शुक्रवार, 6 जून 2014
नकसीर (Epistaxis)-
नकसीर (Epistaxis)-
नाक में से खून बहने के रोग को नकसीर कहते हैं| नकसीर के रोग में अचानक पहले सिर में दर्द होता है और चक्कर आने लगते हैं,इसके बाद नाक से खून आने लगता है | यह रोग सर्दी की अपेक्षा गर्मी में अधिक होता है | नकसीर रोग ज़्यादा समय तक धूप में रहने से हो जाता है | कुछ लोग गर्म पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं जिसकी वजह से भी नाक से खून निकल सकता है |
नकसीर का उपचार विभिन्न औषधियों द्वारा किया जा सकता है -
१- तुलसी के पत्तों का रस ३-४ बूँद दिन में २-३ बार नाक में डालने से नकसीर में लाभ मिलता है |
२- आधे कप अनार के रस में दो चम्मच मिश्री मिलाकर प्रतिदिन दोपहर के समय पीने से गर्मी के मौसम में नकसीर ठीक हो जाती है | |
३- प्रतिदिन केले के साथ मीठा दूध पीने से नकसीर में लाभ होता है | यह प्रयोग लगातार दस दिन तक अवश्य करना चाहिए |
४- बेल के पत्तों का रस पानी में मिलाकर पीने से नकसीर में लाभ मिलता है |
५- लगभग १५-२० ग्राम गुलकंद को प्रतिदिन सुबह-शाम दूध के साथ खाने से नकसीर का पुराने से पुराना रोग भी ठीक हो जाता है |
६- अगर ज़्यादा तेज़ धूप में घूमने की वजह से नाक से खून बह रहा हो तो सिर पर लगातार ठंडा पानी डालने से नाक का खून बहना बंद हो जाता है |
७- गर्मियों के मौसम में सेब के मुरब्बे में इलायची (कुटी हुई) डालकर खाने में नकसीर में बहुत लाभ होता है |
सावधानियां - नकसीर रोग में रोगी को भोजन में गर्म तासीर वाले पदार्थ तथा मिर्च मसालों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा रोगी को धूप में घूमने और आग के पास बैठने से भी बचना चाहिए |
मंगलवार, 19 जून 2012
मोदी जैसा कोई नही........
शनिवार, 28 अप्रैल 2012
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
नारी नही अर्द्धनारिश्वर कहो..................
नारी को प्रभु ने अपने शरीर के आधे भाग से बनाया है ऐसा हम सुनते आये हैं। चाहे कोई भी सम्प्रदाय हो उसमें ऐसा ही कुछ है कि जब सृष्टि बनी तो धरती पर आदम पहला मनुष्य को प्रभु ने भेजा जब वह हजारों साल अकेला घुमता रहा और भगवान ने सोचा कि यह तो इस तरह से पागल हो जायेगा तो उसी की एस पसली से एक महिला का निर्माण किया जिसका नाम ईव(हवा) रखा। इसका अर्थ यह हुआ कि नारी के बिना तो संसार ही अधुरा है। और कहीं भी देख लो शंकर पार्वती जी के साथ कृष्ण राधा के साथ विष्णु जी लक्ष्मी जी के साथ जीसस मदर मरियम की गोद में दिखाये जाते हैं।
यह बात हम सब लोग जानते ही नही मानते भी है कि बिना महिला के संसार का निर्माण होने वाला नही है। क्योंकि हम सब भी एक समाजिक प्राणी है। और हमें महत्व भी मालुम है कि बिना महिला के जीवन ही नही चल सकता। हमारे यहां एक कहावत है कि जिस घर में लङकी नही वो घर नरक के समान हैं। लेकिन यह हम लोग सुनते और कहते हैं असलियत तो बहत दुर है आज इतने आधुनिक युग में जहां कल्पना चावला अंतरिक्ष में पहुंच गयी वहां पर अभी भी लङकियों को भार समझा जाता है। और जिस घर में पहली बेटी हो गयी बङा अपसगुन मानते हैं। मैं किसी की क्या बात करूं अपने ही घर की बात करता हुं मेरी इकलोती बेटी डेढ साल से ज्यादा की है हमारे घर में 20 साल बाद बच्ची का जन्म हुआ तो सभी को बहुत बुरा लगा। लेकिन किसी को क्या पता था यह किसी पर भार नही है और दोस्तो लङकी किसी पर कभी भार नही बनती जैसे दुध का गिलास ऊपर किनारों तक भरा हो जिसमें एक बुंद दुध भी आने की गुंजाईस नही है वहीं पर एक गुलाब की पंखुङी भरे गिलास में डाल दो तो दुध भी बहार नही आयेगा और खुशबु भर देगी लङकी तो गुलाब की पंखुङी की तरह है सारे घर को खुशबु से भर देती है। वो ही मेरी बेटी जिससे देखकर घर में कोई खुश नही हुआ था आज वो सारे मुहल्ले की प्यारी है और घर में वो सब चीजें आ गयी जो हमारे पास थी ही नही।
अब जो बात में बताने जा रहा हुं उसे ध्यान से सुनना हो सकता है कि किसी के काम आ जाये मेरा एक दोस्त था जो अस्पताल में दवाई की दुकान पर काम करता था उसने मुझे सारी कहानी सुनाई में उसी के अनुसार लिख रहा हुं।
एक दिन उसके पास मालिक का ड्राईवर आया और कहने लगा कि भाई मेरी बीबी के गर्भ की सफाई करनी है तो उसने अपने सिनियर से पुछकर दवाई दे दी लेकिन वह महिला 3 माह से ज्यादा की गर्भवति थी उसकी ब्लीडींग तो शुरू हो गयी लेकिन सफाई नही हुई और उसे बङी परेशानी होने लगी तो उसे लेकर वो लोग पास के अस्पताल में गये वहां पर उसकी सफाई हो गई।
इस घटना को कोई एक महिना भर ही गुजरा होगा तो जिसने दवाई दी थी उसके पैर में अचानक 1 इंछ गहरा कांच धंस गया और जो सिनियर था वो मरने से बचा पिलिया में उसकी इतनी हालत खराब हो गयी और अंत में जिसकी बीबी थी वो गाङी लेकर नोयडा जा रहा था कि ऐसा एक्सीडैंट हुआ की करीब 18 महिनों तक बैड पर ही पङा रहा और बाद में भी काम करने के लायक नही रहा। जब यह घचना उसने मुझे बताई तो मेरे मुंह से एकाएक निकला यह उस बच्ची की चिख का फल है। ऐसा नही है कि हमारे कर्मों का फल हमें नही मिलता मिलता तो हैं लेकिन हम उसे समझ नही पाते और उसका कोई दुसरा कारण मान लेते हैं।
दोस्तों लङकी ही है जो घर में बाप भाई या कोई भी कुछ काम कहता है तो रोटी को छोङकर पहले काम करती है लङका कभी नही उठता देखा होगा।
और यह सारा समाज ही आज उसी बच्ची पर अत्याचार कर रहा है जब गर्भ में आयी और मां बाप को पता लग गया तो उसका पेट में ही गला घोंटने की सोचते हैं और अगर किसी तरह से जालिम की नजरों से बचकर पैदा हो गयी घर में सभी उसका पैदा होते ही बहिष्कार करने लगते हैं दादी तो कहती है कि पता नही कैसी बहु है पहले ही बेटी जन दी जबकि दादी भी भुल गयी की तु भी किसी दिन एक बच्ची के रूप में जन्मी थी। चलो कोई बात नही पैदा भी हो गयी थोङी बङी क्या हुई की हवश के भेङियों की नजरों से नही बच पाती किसी तरह से अपने को बचाती हुई बङी भी हो गयी शादी भी हो गयी तो सबसे बङा कष्ट लोग आजकल लङकियों को तो वस्तु ही समझने लगे हैं जैसे कुर्सी मेज फ्रिज टीवी बस दहेज के दानवों का अत्याचार शुरू हो जाता और हद तो तब होती है जब उस कोमल सी बच्ची को शराब के नशे और दहेज के लालच में पंखे पर लटका दिया जाता है या आग के हवाले कर दिया जाता है या फिर रोज रोज की यातनाएं झेलती रही और मरती रहे अब फैसला आपके हाथों में है कि हमें क्या करना है बस लिखने से कोई काम होने वाला नही है जब तक हम सब कोई ठोस कदम नही उठायेगें आज कलम उठाने के साथ साथ आवाज उठाना भी बहुत जरूरी है।
रविवार, 15 अप्रैल 2012
देश को तोङने का नही जोङने का काम करे
देश को टुटने ना दें.........
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
शनिवार, 24 जुलाई 2010
क्यों भङक रही है हिंसा और अशांति
आज सारी दुनिया भुखी है प्यासी है यह नही सोचना कि मैं रोटी की बात कर रहा हुं या जल वाली प्यास की बात कर रहा हुं। किसी के पास धन, दौलत, पैसा, सोहरत, ताकत, किसी चीज की कमी नही है लेकिन फिर भी सारी दुनिया अधुरी सी है जैसा कुछ छिन गया हो।
मैं बात कर रहा हुं सुख, शांति, चैन, सद्धभावना, प्रेम, एकता, सुरक्षा, और अभयता की जो आज दुनिया से ये समझो की उठ ही गयी है कहीं नामोनिशान भी नही रहा स्वार्थ की ज्वाला ने इसे जलाकर खाक कर दिया।
सब लोग चाहे कोई किसी भी जाति को हो या किसी भी देश का हो वो असुरक्षा भय और अशांति में जी रहा है।
यही कारण है कि आज आये दिन हर देश और जगह जगह सभाओं का आयोजन किया जाता है और हर एक का मुद्दा यही रहता की आतंक, हिंसा, व्याभीचार, और अनैतिकता पर कैसे अंकुश लगे। तो एक कमरे में बैठते भी है लोग सेमिनार करते हैं और बङे बङे गहरे गहरे चिंतन करते हैं और तालियां की गङगङाहट भी बहुत होती है एक दुसरे की तारिफें भी बहुत होती हैं, लेकिन जिस मकसद से सभा हुई उसकी प्राप्ति हुई क्या?
लोग चिल्लाते हैं अहिंसा के लिए, गला फाङते हैं अपराध मुक्त भारत के लिए, बात करते हैं विस्व शांति स्थापना की...... इतनी सभाएं होने के बाद और इतना धन इन सभाओं के नाम पर बर्बाद होने के बाद क्या हम अपने अभियान में सफल हो पाये ? ? ?
ऐसा भी नही है कि इनकी आवस्यकता सिर्फ उन्हीं लोगो को है जो सेमिनार में बैठे है जो भाषण दे रहे हैं यह बिलकुल नही है इसकी जरूरत तो हर किसी को है लोग उस सभा को जो इतने गम्भीर मुद्दे पर हो रही है उसको अपने घरों में टीवी के जरिये देखते है और एक जिज्ञासा रखते हैं कि शायद इसी बार कोई परिणाम निकल जाये लेकिन फिर वही पुरानी बात तालियां और लिखा लिखाया बोलना कि अगर ऐसा हो जाये तो ये हो सकता है अगर हम सब एक बार इस रास्ते पर चल सके तो यह संभव है और जो भी ऐसी बातें कहता है उसके पिछे तालियां बजाने वाले बहुत होते हैं। इसी तरह सभा का समापन हो जाता है निष्कर्ष के नाम पर समस्या जस की तस रही। और सारे हम जैसे लोग एक बार फिर निराश और हताश होकर अपना टीवी बंद कर देते।
तो बात चल रही थी बढती हुई हिंसा, अत्याचार, अन्याय, असुरक्षा, भय और अशांति की। कहने का र्थ है कि व्यक्ति के पेट में जव भुख नही लगती तो उसे कभी भी बोजन की याद नही आती खाने की चाह नही होती जब तक प्यास नही लगती तो पानी की किमत का पता नही लगता अर्थात जिस वस्तु की अभाव होता है उसी की मांग बढती है। अब सारे संसार में सारी दुनिया में अंहिसा,शांति और सुरक्षा का अभाव हो चुका है अगर कहा जाये ये सब अपने अंत की स्थिती में हो बेहतर होगा। जब भुख लगती है तो बच्चा रोता है उसे खाने के लिए पेट की भुख शांत करने के लिए रोना पङा गला फाङकर चिल्लाना पङा जब आकर मां ने दुध पिलाया। आज उसी तरह से हर व्यक्ति रो रहा है देश रो रहा है विस्व गला फाङकर चिल्ला रहा है लेकिन इन सबका कोई लाभ नही हो रहा है। जितना हम चिल्ला रहे हैं उतने ही ये सब हमसे दुर होती जा रही हैं। बङे चिंतन का विषय है। हम सबके सामने एक उदाहरण है कि हर शाराब की बोतल पर लिखा होता स्वास्थ के लिए हानिकारक है, बीङी सिगरेट तम्बाकु गुटखा सभी के ऊपर मोटे शब्द्धों मे छपा होता है कि इनसे कैंसर होता है लेकिन इन सबका व्यापार दिन दुना रात चौगुना बढ रहा है। लोगो ने लिखा खुब किताबें लिखी पर्चें भी बंटवायेनशा मुक्त रहो नही तो फेफङे खराब हो जायेंगे, लेकिन किसी के ऊपर भी इन लिखी पोथियों का कोई प्रभाव नही पङा।
महात्मा गांधी को शांति का दुत मानने लगे कहा गया है सत्य और अहिंसा का मार्ग उन्होने ही दिया तो क्या पता उनके ही नाम से लोगों को शांति मिल जाये अहिंसा के रास्ते पर चलने लगे संसार में हिंसा ने अपना शिकंजा ऐसा कसा की दुनियाभर के देश गांधी जी के जन्म दिन को विस्व अंहिसा दिवस के रूप में मनाने लगे लेकिन हिंसा रूके ते क्या इस बढती आग पर अंकुश तो क्या ये और ज्यादा भयानक रूप से भङकने लगी। लोग बैचेनी और विवशता का चौला ओढे अभी भी किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं इस दुनिया में कोई कृष्ण, श्री राम, ईशा सुकरात आयेगा और हिंसा आतंक और अपराध को रोककर राम राज्य की स्थापना करेगा। भगवान के उस श्लोक को याद करते हैं जो महाभारत के समय अर्जुन को बताया था कि धर्मसंस्थपनार्थाय संभवामि युगे युगे। की जब भी धरती पर अधर्म बढेगा तो में साकार रूप से प्रकट होकर रक्षा करूंगा बस अब तो उन्ही का इंतजार है।
लेकिन इस बात पर विचार नही करते की इतनी सभाओं और शिक्षा तथा प्रचार प्रसार के बाद भी हमें शांति सुरक्षा और अभयता नही प्राप्त हो रही इसका सबसे बङा कारण है कहते कुछ हैं और कर कुछ और रहे हैं।
आप ये नही सोचना कि मैं किसी एक की बात नही कर रहा मानव जाति की बात कर रहा हुं। किसी भी बीमारी का ईलाज करने के लिए उसकी तह में जाना होगा गहराई में जाना होगा खोजना होगा ये स्थिती पैदा कैसे हुई इसमें किसी का भी नही हमारा ही हाथ है। मान लो किसी को बुखार है बदन तप रहा है जल रहा है और हम उसको जानने की कोशिश नही करें ये नही जाने की इसका कारण क्या है और हम जिसको बुखार हुआ है जो बदन जल रहा है उसे पानी से नहलाकर ठंडा करने लगे तो कैसा रहेगा। हम सब भी वही कर रहे हैं और कोस रहे हैं एक दुसरे को कि महिलाओं पर अत्याचार क्यों हो रहा है? ? क्यों वहशी बच्चियों को अपनी हवश का शिकार बना देते है? ? आदमी कैसे बन जाता है संहारी? ? क्यों इस दुनियां में आतंक और हिंसा लोगो को बना रही है अपना निवाला। इसकी गहराई में जाकर तह में जाकर खोज नही करते और ऊपर से ही पानी डालकर धोने का प्रयत्न करके ही समस्या से मुक्ति पाने की इच्छा करते हैं।
इस बात पर चिंतन नही करते ये घातक बीमारी जो आज इतना विकराल रूप ले चुकी है ये एक दो दिन या वर्षों की नही बल्कि सदियों की लापरवाही का कारण है।
थोङा समझने का प्रयत्न करें की मान लो हमने एक बीज बोया तो जैसा बीज होगा उसका पेङ भी वो ही होगा ना ऐसा ही होगा। तो चिंतन करने वाली बात ये है कि जब एक मानव का बीजारोपण हुआ तो बीज कैसा था हम लोग लगे रहते हैं पेङ को ऊपर से साफ करने में उसकी जङ में पानी नही डाल रहे जङ की निराई गुङाई नही कर रहे। बीज जैसा बोया फल भी वैसा ही होगा अगर वह बीज क्रोध की खाद या वासना क्रुरता और अंह की मिट्टी में खाद पानी मिलाकर अज्ञानता की जलवायु में बोया गया है तो पेङ भी ऐसा ही होगा। वही मानव जब रूप लेकर पेङ बनेगा तो उसमें से प्रेम की छाव नही निकलेगी बल्कि नफरत घृणा वासना क्रोध और अज्ञानता की ज्वाला ही निकलेगी।
और हम सोचने लगे की उस पेङ को पर्चें बंटवाकर किताबे लिखकर उन्हे सुनाकर उनसे अंहिसा की उम्मीद करे शांति की इच्छा करें एकता की कामना करें। तो हमारी बङी भुल है। सभी सभाओं का मकसद स्वार्थ अपना स्वार्थ सिद्ध करना अपना उल्लु सिधा करने में लगे रहते हैं कोई अपनी राजनीति में तो कोई धन लोलुपता में लेकिन असली बात किसी तक नही जाने देते। समय आ गया है हम सबको सावधान होने का और जागरूक होकर इस बीमारी से निजात दिलाने का।
आप भी इस बात पर अपना दिमाग लगायें कि ऐसा क्यों हो रहा है? ? क्यों नही किसी भी सभा का कोई प्रभाव नही हो रहा ? क्यों सब निरर्थक हो रहा है? ? क्या इस तरह बंद कमरे में बैठकर सभाए करके युवाओं को अपराध मुक्त किया जा सकता है? ?
क्या लिखकर या कहीं से रटकर लोगों के सामने बोलने से इस घातक बीमारी से निजात मिल सकती है? ?
कल लिखुंगा इसकी जानकारी------------ जय हिंद
मैं बात कर रहा हुं सुख, शांति, चैन, सद्धभावना, प्रेम, एकता, सुरक्षा, और अभयता की जो आज दुनिया से ये समझो की उठ ही गयी है कहीं नामोनिशान भी नही रहा स्वार्थ की ज्वाला ने इसे जलाकर खाक कर दिया।
सब लोग चाहे कोई किसी भी जाति को हो या किसी भी देश का हो वो असुरक्षा भय और अशांति में जी रहा है।
यही कारण है कि आज आये दिन हर देश और जगह जगह सभाओं का आयोजन किया जाता है और हर एक का मुद्दा यही रहता की आतंक, हिंसा, व्याभीचार, और अनैतिकता पर कैसे अंकुश लगे। तो एक कमरे में बैठते भी है लोग सेमिनार करते हैं और बङे बङे गहरे गहरे चिंतन करते हैं और तालियां की गङगङाहट भी बहुत होती है एक दुसरे की तारिफें भी बहुत होती हैं, लेकिन जिस मकसद से सभा हुई उसकी प्राप्ति हुई क्या?
लोग चिल्लाते हैं अहिंसा के लिए, गला फाङते हैं अपराध मुक्त भारत के लिए, बात करते हैं विस्व शांति स्थापना की...... इतनी सभाएं होने के बाद और इतना धन इन सभाओं के नाम पर बर्बाद होने के बाद क्या हम अपने अभियान में सफल हो पाये ? ? ?
ऐसा भी नही है कि इनकी आवस्यकता सिर्फ उन्हीं लोगो को है जो सेमिनार में बैठे है जो भाषण दे रहे हैं यह बिलकुल नही है इसकी जरूरत तो हर किसी को है लोग उस सभा को जो इतने गम्भीर मुद्दे पर हो रही है उसको अपने घरों में टीवी के जरिये देखते है और एक जिज्ञासा रखते हैं कि शायद इसी बार कोई परिणाम निकल जाये लेकिन फिर वही पुरानी बात तालियां और लिखा लिखाया बोलना कि अगर ऐसा हो जाये तो ये हो सकता है अगर हम सब एक बार इस रास्ते पर चल सके तो यह संभव है और जो भी ऐसी बातें कहता है उसके पिछे तालियां बजाने वाले बहुत होते हैं। इसी तरह सभा का समापन हो जाता है निष्कर्ष के नाम पर समस्या जस की तस रही। और सारे हम जैसे लोग एक बार फिर निराश और हताश होकर अपना टीवी बंद कर देते।
तो बात चल रही थी बढती हुई हिंसा, अत्याचार, अन्याय, असुरक्षा, भय और अशांति की। कहने का र्थ है कि व्यक्ति के पेट में जव भुख नही लगती तो उसे कभी भी बोजन की याद नही आती खाने की चाह नही होती जब तक प्यास नही लगती तो पानी की किमत का पता नही लगता अर्थात जिस वस्तु की अभाव होता है उसी की मांग बढती है। अब सारे संसार में सारी दुनिया में अंहिसा,शांति और सुरक्षा का अभाव हो चुका है अगर कहा जाये ये सब अपने अंत की स्थिती में हो बेहतर होगा। जब भुख लगती है तो बच्चा रोता है उसे खाने के लिए पेट की भुख शांत करने के लिए रोना पङा गला फाङकर चिल्लाना पङा जब आकर मां ने दुध पिलाया। आज उसी तरह से हर व्यक्ति रो रहा है देश रो रहा है विस्व गला फाङकर चिल्ला रहा है लेकिन इन सबका कोई लाभ नही हो रहा है। जितना हम चिल्ला रहे हैं उतने ही ये सब हमसे दुर होती जा रही हैं। बङे चिंतन का विषय है। हम सबके सामने एक उदाहरण है कि हर शाराब की बोतल पर लिखा होता स्वास्थ के लिए हानिकारक है, बीङी सिगरेट तम्बाकु गुटखा सभी के ऊपर मोटे शब्द्धों मे छपा होता है कि इनसे कैंसर होता है लेकिन इन सबका व्यापार दिन दुना रात चौगुना बढ रहा है। लोगो ने लिखा खुब किताबें लिखी पर्चें भी बंटवायेनशा मुक्त रहो नही तो फेफङे खराब हो जायेंगे, लेकिन किसी के ऊपर भी इन लिखी पोथियों का कोई प्रभाव नही पङा।
महात्मा गांधी को शांति का दुत मानने लगे कहा गया है सत्य और अहिंसा का मार्ग उन्होने ही दिया तो क्या पता उनके ही नाम से लोगों को शांति मिल जाये अहिंसा के रास्ते पर चलने लगे संसार में हिंसा ने अपना शिकंजा ऐसा कसा की दुनियाभर के देश गांधी जी के जन्म दिन को विस्व अंहिसा दिवस के रूप में मनाने लगे लेकिन हिंसा रूके ते क्या इस बढती आग पर अंकुश तो क्या ये और ज्यादा भयानक रूप से भङकने लगी। लोग बैचेनी और विवशता का चौला ओढे अभी भी किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं इस दुनिया में कोई कृष्ण, श्री राम, ईशा सुकरात आयेगा और हिंसा आतंक और अपराध को रोककर राम राज्य की स्थापना करेगा। भगवान के उस श्लोक को याद करते हैं जो महाभारत के समय अर्जुन को बताया था कि धर्मसंस्थपनार्थाय संभवामि युगे युगे। की जब भी धरती पर अधर्म बढेगा तो में साकार रूप से प्रकट होकर रक्षा करूंगा बस अब तो उन्ही का इंतजार है।
लेकिन इस बात पर विचार नही करते की इतनी सभाओं और शिक्षा तथा प्रचार प्रसार के बाद भी हमें शांति सुरक्षा और अभयता नही प्राप्त हो रही इसका सबसे बङा कारण है कहते कुछ हैं और कर कुछ और रहे हैं।
आप ये नही सोचना कि मैं किसी एक की बात नही कर रहा मानव जाति की बात कर रहा हुं। किसी भी बीमारी का ईलाज करने के लिए उसकी तह में जाना होगा गहराई में जाना होगा खोजना होगा ये स्थिती पैदा कैसे हुई इसमें किसी का भी नही हमारा ही हाथ है। मान लो किसी को बुखार है बदन तप रहा है जल रहा है और हम उसको जानने की कोशिश नही करें ये नही जाने की इसका कारण क्या है और हम जिसको बुखार हुआ है जो बदन जल रहा है उसे पानी से नहलाकर ठंडा करने लगे तो कैसा रहेगा। हम सब भी वही कर रहे हैं और कोस रहे हैं एक दुसरे को कि महिलाओं पर अत्याचार क्यों हो रहा है? ? क्यों वहशी बच्चियों को अपनी हवश का शिकार बना देते है? ? आदमी कैसे बन जाता है संहारी? ? क्यों इस दुनियां में आतंक और हिंसा लोगो को बना रही है अपना निवाला। इसकी गहराई में जाकर तह में जाकर खोज नही करते और ऊपर से ही पानी डालकर धोने का प्रयत्न करके ही समस्या से मुक्ति पाने की इच्छा करते हैं।
इस बात पर चिंतन नही करते ये घातक बीमारी जो आज इतना विकराल रूप ले चुकी है ये एक दो दिन या वर्षों की नही बल्कि सदियों की लापरवाही का कारण है।
थोङा समझने का प्रयत्न करें की मान लो हमने एक बीज बोया तो जैसा बीज होगा उसका पेङ भी वो ही होगा ना ऐसा ही होगा। तो चिंतन करने वाली बात ये है कि जब एक मानव का बीजारोपण हुआ तो बीज कैसा था हम लोग लगे रहते हैं पेङ को ऊपर से साफ करने में उसकी जङ में पानी नही डाल रहे जङ की निराई गुङाई नही कर रहे। बीज जैसा बोया फल भी वैसा ही होगा अगर वह बीज क्रोध की खाद या वासना क्रुरता और अंह की मिट्टी में खाद पानी मिलाकर अज्ञानता की जलवायु में बोया गया है तो पेङ भी ऐसा ही होगा। वही मानव जब रूप लेकर पेङ बनेगा तो उसमें से प्रेम की छाव नही निकलेगी बल्कि नफरत घृणा वासना क्रोध और अज्ञानता की ज्वाला ही निकलेगी।
और हम सोचने लगे की उस पेङ को पर्चें बंटवाकर किताबे लिखकर उन्हे सुनाकर उनसे अंहिसा की उम्मीद करे शांति की इच्छा करें एकता की कामना करें। तो हमारी बङी भुल है। सभी सभाओं का मकसद स्वार्थ अपना स्वार्थ सिद्ध करना अपना उल्लु सिधा करने में लगे रहते हैं कोई अपनी राजनीति में तो कोई धन लोलुपता में लेकिन असली बात किसी तक नही जाने देते। समय आ गया है हम सबको सावधान होने का और जागरूक होकर इस बीमारी से निजात दिलाने का।
आप भी इस बात पर अपना दिमाग लगायें कि ऐसा क्यों हो रहा है? ? क्यों नही किसी भी सभा का कोई प्रभाव नही हो रहा ? क्यों सब निरर्थक हो रहा है? ? क्या इस तरह बंद कमरे में बैठकर सभाए करके युवाओं को अपराध मुक्त किया जा सकता है? ?
क्या लिखकर या कहीं से रटकर लोगों के सामने बोलने से इस घातक बीमारी से निजात मिल सकती है? ?
कल लिखुंगा इसकी जानकारी------------ जय हिंद
रविवार, 20 जून 2010
हत्यारों को क्यों नही आता रहम.....
मैं और मेरे साथ दो लङके कहीं सुनसान जगह पर खङे हैं और एक गाङी आयी। गाङी को देखते ही मेरे साथ का एक लङका कहने लगा कि भाई इसी ने मुझे मारा था आज हम इसको नही छोङेंगे। और हमने वो गाङी रूकवा ली उसमें जो भी बैठा था उसको खिंचकर निचे गिरा दिया उसने कहा कि मुझसे क्या गलती हुई मुझे क्यों मार रहे हो। लेकिन उसकी बात किसी ने नही सुनी जब तक थप्पङ से काम चला तो चलाया उसके बाद उसी की गाङी में रखे पेचकस से हम लोग उसे मारने लगे वो चिल्लाता रहा कि भाई मैंने आपका क्या बिगाङा है मेरे तो छोटे से बच्चे हैं, बुढे मां बाप हैं उनका कोन करेगा, लेकिन पता नही कहां चली गयी दया क्यों इतने बेरहम हो गये कि उस खुन से लथपथ की कोई भी गुहार कोई भी चीख दया की भीख का कोई असर नही हो रहा और उसकी पेचकस से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी अब वह बेचारा सङक पर पर पङा आंखे बहार सङक पर भी खुन की धारा बहने लगा। हममें से एक ने कहा कि भाई पुलिस आ गयी और सारे भाग खङे हुए बस भागे जा रहे थे अब हमें अपनी जान के लाले पङ रहे थे। और हम भागते भागते बेहाल से हो गये सांस धोंकनी की तरह से चल रही थी और पता नही कहां कहां से निकलते हुए खेतों में जंगलो में से होते हुए पता नही कहां भागे जा रहे थे। सारा बदन पसिने पसिने हो रहा था। गला सुख रहा था और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि भगवान आद बचा लो। मैं हङबङाकर उठा मेरा भाई कहने लगा की क्या बात है बहुत डरे से हुए से लग रहे हो चेहरा पीला पङा हुआ है। मैं उसे क्या बताऊं की सपने में हमने किसी को बङी निर्दयता से मार दिया। मैंने कहा कुछ नही पानी दे दो ये बात रात के करीब 2 बजे की थी। मेरा भाई तो बेचारा पानी देकर सो गया लेकिन मैं नही सो पाया सारी रात पता नही कितने विचार मन में दोङते रहे।
सबसे पहले तो दिमाग में ये बात आयी की आदमी इतना बेरहम क्यों हो जाता है कहां से आ जाती है इतनी कट्टरता इस मासुम दिल में, चाहे कोई कितना भी गिङगिङाता रहे रहम की फरियाद करता रहे लेकिन कोनसी शक्ति इसके अंदर आ जाती है जिससे उससे किसी की कोई भी चीख पुकार नही सुनती।
और दुसरी बात ये आयी की जब इतना बहादुर निडर और बलवान है तो जब अपनी जान पर पङी तो क्यों कुत्ते की तरह भागता फिर रहा था ये बात मैंने सिर्फ सुनी थी कि बुरे कर्म करेगा तो कुत्ते की तरह भागता फिरेगा लेकिन मैने इसे देखा है और अभी भी ऐसा लग रहा जैसे कि सच में घट रहा हो। अब कहां गयी वो सारी ताकत पानी पीने के लिए भी समय नही है और भागे जा रहा है अपने को बचाने के लिए।
इन दोनो बातो ने मुझे सारी रात नही सोने दिया क्या करूं इतनी बैचेनी रही की लिख नही सकता।
मैं इसे इसलिए लिख रहा हुं कि कहानी की तरह से नही पढें यही तो आज सारी दुनिया में हो रहा कोई कितना भी मजबुर हो दुखी हो और किसी के पास भी चला जाये कितना भी रोता रहे लेकिन कोई नही सुनता बस अपने स्वार्थ में अंधे हो रहे हैं आंखो पर ऐसा चश्मा चढा रखा है कि कोई नही दिखता। और ऐसा नही है कि ये पल किसी एक पर नही आता जीवन में कभी ना कभी प्रत्येक के ऊपर आता है लेकिन अपने ऊपर जब पङती है तो सुनता ही नही। बस सावधान हो जाओ जो आज हमारे सामने कोई गिङगिङा रहा है कल हो सकता है कि हम भी किसी के सामने खङे हों और अगर वो भी हम पर रहम नही करेगा तो दुनिया में कितनी भयावह स्थिती हो जायेगी। जय हिंद
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