शनिवार, 12 जून 2010
लेखको से एक अपील..........
ब्लोग जिसे हम अपने विचार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेज सकें वो एक माध्यम था। लेकिन कुछ लेखकों की तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता ने ब्लोग को इतना गंदा कर दिया पढें तो क्या देखने का भी मन नही करता। एक अच्छा लेखक वो ही होता है जो अपनी कलम के माध्यम से समाज में एकता अखंडता और भाईचारा बनाने में साहयक हो अपनी किसी भी लेखनी से दरार मत डालो। किसी ने भगवान को देखा है ना अल्लाह को तो हम क्यों एक दुसरे पर किचङ फैंकते रहते हैं। कोई देवी देवता पीर पैगम्बर हमारा कोई लाभ नही कर सकता। अगर कोई आग के ऊपर हाथ रखे और याद करो किसी भी पैगम्बर को तो भी हाथ जलने से नही बच पायेगा। हमें स्वंय ही अपने विवेक से भङकी हुई आग से बचना है। मत बनो वो चिंगारी जिससे समाज से प्रेम,सहानुभुति और दया विस्वास नाम की चीज जलकर राख हो जाये और आपसी भाईचारा जो दिन पर दिन खत्म होता जा रहा है। उसमें हमारी कलम और लेखनी का बहुत बङा हाथ है। मैंने कई ब्लोग पढे कोई हिंदूओं पर कालिख पोतने की कोशिश करते हैं, तो कोई मुस्लिमों का मुंह काला करने के पिछे पङे रहते हैं। दोस्तो आप एक बात बताओ अगर हममें से कोई चाहे कि सुरज पर गंदगी फैंक दे इस हमारे पागलपन से सुर्य पर कोई असर नही पङेगा लेकिन हमारे अंदर द्वेष नाम की बीमारी अपने पैर पसारती चली जायेगी। और यह एक ऐसा शत्रु है कि आज राम पर मेहरवान है तो कल खान साहब पर भी कुर्बान हो सकता है। आपसे एक अपील है कि आज के बाद कोई भी ब्लोग ऐसा ना लिखें जो किसी को आहत पहुंचे। अगर किसी के अंदर ज्यादा द्वेष, घृणा और नफरत भरी पङी हो तो मुझसे फोन पर बात कर और अपनी सारी घृणा क्रोध मुझ पर निकाल दे। जिससे सैंकङो लोग इस नफरात की आग में ना झुलसें। हमारे ऊपर तो ऐसा कवच है कि किसी भी नफरत की ज्वाला का कोई असर नही होता। जय हिंद जय भारत
गुरुवार, 10 जून 2010
तलाक हुआ आसान------
तलाक हुआ आसान------
वाह भई क्या कहना हमारी अदालतों में इतने मुकदमें पैंडिंग पङे हैं इतने अरबों के घोटाले इतनी हत्याओं के दोषी जिनको फांसी तक सुना रखी है इतनें आतंकवादी लेकिन उन मुकदमों पर कोई फैसला नही उनकी किसी को कोई चिंता नही और ऐसे फैसले जिससे समाज में अराजकता बढे दुरियां बढे उन पर सरकार का ध्यान आजकल कुछ ज्यादा ही है। घरों में लङाई झगङे तो सनातन काल से होते आये हैं लेकिन भारत देश के संस्कार परम्परा और आदर्श ऐसे बनाये थे कि उन सब झगङों तकरार को एक किनारे करके फिर भी घर बसे रहते थे। लेकिन एक और रास्ता साफ कर दिया कि अगर पति पत्नि आपस में खुश नही हैं और काफी समय से अलग रह रहे तो वो तालाक ले सकते हैं। कितना सुंदर फैंसला दिया है। लोगो में खुशी की लहर दोङ रही है सब खुश हैं। अब शादी का बंधन प्रेम का नही रहेगा अगर किसी को भी थोङी सी परेशानी हुई तो तलाक........... ये काम थे समाज के कि चार आदमी बैठकर उन्हे समझाते थे कि अगर तुम्हारी नही बन रही है तो और अगर दुसरे के साथ शादी करोगे तो जरूरी नही है कि खुश रह सको तो ये कोई विकल्प नही है खुश रहने का और ग्रहस्थी को सही चलाने का।
पहले सरकार अगर किसी अदालत में कोई मुकदमा जाता था कि तलाक चाहिए तो अदालत कहती थी तुम्हें एक ओर मोका दिया जाता है 6 माह एक साथ रहो। और जो फैंसला गुस्से की घङी में लिया गया हो उन 6 माह में बदल भी सकता था।
इस फैसले के बाद लीव इन रिलेशनशिप का करेज बहुत बढेगा सरकार एक के बाद जैसे सिढी बना रहे हो उन रास्तों की अङचने साफ कर रहे हैं जिसको हम कभी लाज शर्म और हया कहते थे। लीव इन रिलेशनशिप. समलैंगिकता जिसे सरकार ने पहले से ही मान्याता दे दी है उसकी तरफ हमारे युवा भाई झुकेगे। मेरी समझ में ये नही आया की आखिर ये सरकार चाहती क्या है। भोपाल गैस त्रासदी के फैंसला सबके सामने है अजमस का फैंसला सबके सामने है इन पर बिलकुल भी चिंतित नही है फिक्रमंद है तो बस उन मुद्दों पर जिससे हमारे युवा कमजोर हो व्याभीचारी बने।
हिंदूओं में तलाक को पाप समझा जाता रहा है और हर पत्नि की यही इच्छा रही है कि सात जन्म तक साथ निंभाना है और अपने पतियों को करवा चौथ पर भगवान की तरह से पुजती हैं। अदालत को चाहिए था उन करोङो महिलाओं का हवाला देकर कोई फैसला करना चाहिए था जो भुखी सुखी रहकर भी अपने पति के साथ हर दुख सुख की घङी में कंधा से कंधा मिलाकर चलती थी। लेकिन इस आधुनिकता और पश्चिम विचारों से ग्रसित लोगो के कारण पति को छोङना और नयी बीबी रखना अब तो कोई दिक्कत ही नही रही चाहे 50 शादी कर ले हर 6 माह बाद तलाक दो। मैं तो बहुत दुखी हुं क्या करें।
वाह भई क्या कहना हमारी अदालतों में इतने मुकदमें पैंडिंग पङे हैं इतने अरबों के घोटाले इतनी हत्याओं के दोषी जिनको फांसी तक सुना रखी है इतनें आतंकवादी लेकिन उन मुकदमों पर कोई फैसला नही उनकी किसी को कोई चिंता नही और ऐसे फैसले जिससे समाज में अराजकता बढे दुरियां बढे उन पर सरकार का ध्यान आजकल कुछ ज्यादा ही है। घरों में लङाई झगङे तो सनातन काल से होते आये हैं लेकिन भारत देश के संस्कार परम्परा और आदर्श ऐसे बनाये थे कि उन सब झगङों तकरार को एक किनारे करके फिर भी घर बसे रहते थे। लेकिन एक और रास्ता साफ कर दिया कि अगर पति पत्नि आपस में खुश नही हैं और काफी समय से अलग रह रहे तो वो तालाक ले सकते हैं। कितना सुंदर फैंसला दिया है। लोगो में खुशी की लहर दोङ रही है सब खुश हैं। अब शादी का बंधन प्रेम का नही रहेगा अगर किसी को भी थोङी सी परेशानी हुई तो तलाक........... ये काम थे समाज के कि चार आदमी बैठकर उन्हे समझाते थे कि अगर तुम्हारी नही बन रही है तो और अगर दुसरे के साथ शादी करोगे तो जरूरी नही है कि खुश रह सको तो ये कोई विकल्प नही है खुश रहने का और ग्रहस्थी को सही चलाने का।
पहले सरकार अगर किसी अदालत में कोई मुकदमा जाता था कि तलाक चाहिए तो अदालत कहती थी तुम्हें एक ओर मोका दिया जाता है 6 माह एक साथ रहो। और जो फैंसला गुस्से की घङी में लिया गया हो उन 6 माह में बदल भी सकता था।
इस फैसले के बाद लीव इन रिलेशनशिप का करेज बहुत बढेगा सरकार एक के बाद जैसे सिढी बना रहे हो उन रास्तों की अङचने साफ कर रहे हैं जिसको हम कभी लाज शर्म और हया कहते थे। लीव इन रिलेशनशिप. समलैंगिकता जिसे सरकार ने पहले से ही मान्याता दे दी है उसकी तरफ हमारे युवा भाई झुकेगे। मेरी समझ में ये नही आया की आखिर ये सरकार चाहती क्या है। भोपाल गैस त्रासदी के फैंसला सबके सामने है अजमस का फैंसला सबके सामने है इन पर बिलकुल भी चिंतित नही है फिक्रमंद है तो बस उन मुद्दों पर जिससे हमारे युवा कमजोर हो व्याभीचारी बने।
हिंदूओं में तलाक को पाप समझा जाता रहा है और हर पत्नि की यही इच्छा रही है कि सात जन्म तक साथ निंभाना है और अपने पतियों को करवा चौथ पर भगवान की तरह से पुजती हैं। अदालत को चाहिए था उन करोङो महिलाओं का हवाला देकर कोई फैसला करना चाहिए था जो भुखी सुखी रहकर भी अपने पति के साथ हर दुख सुख की घङी में कंधा से कंधा मिलाकर चलती थी। लेकिन इस आधुनिकता और पश्चिम विचारों से ग्रसित लोगो के कारण पति को छोङना और नयी बीबी रखना अब तो कोई दिक्कत ही नही रही चाहे 50 शादी कर ले हर 6 माह बाद तलाक दो। मैं तो बहुत दुखी हुं क्या करें।
मां बाप से दुर हो रहे बच्चे
सुनने में बङा ही कष्ट सा हो रहा हो लेकिन ये बात बिलकुल सत्य है। जैसा आज हर तरफ देखा जा रहा है कि कही भी चले जाओ। मैं रोज पार्क में जाता हुं और ज्यादा घुमना मुझे अच्छा लगता है। रोज बुजुर्ग लोग अपनी अपनी व्यथा सुनाते रहते हैं कि कैसे उनके बच्चे उनसे अलग हो रहे हैं उनकी अनदेखी कर रहै हैं। जो मां नौ माह बच्चे को पेट में अपने खुन से सिंचकर पालती है और रात दिन उसकी गंदगी को कितने प्यार से साफ करके नये कपङे पर सुलाती आज वही उसी मां की खांसी से बहु बेटा तंग होकर उसे एक कोने में डाल दे रहे हैं। एक छोटी सी कहानी मेरे याद आती है। एक घर में एक बुढिया एक बुढा एक बेटा और उनकी बहु। बहु जो नयी आयी तो कई दिन तक अपने सास ससुर को बङे चाव से खाना खिलाया उनकी सेवा की लेकिन थोङे ही दिनों में पता नही क्या बात हुई छोटी छोटी बातों पर लङाई होने लगी घर में क्लेश बढता चला गया इसी दौरान बीमारी से जुझती हुई बुढी मां चल बसी। बेचारा बुढा अकेला रह गया कोन उसकी सुने किसे वह अपनी व्यथा सुनाये। अब सुसर और बहु में लङाई होने लगी बात यहां तक पहुंच गयी की वो लङका जो उस बुढे का इकलौता बेटा था बीबी को कहने लगा की अब तु ही बता किस तरह इस लङाई से इस क्लेश से मुक्ति मिल सकती है। बीबी कहने लगी कि जब तक ये बुढा घर में रहेगा लङाई की आग लगी रहेगी कोई नही बुझा सकता। दोनो ने फैसला ये किया की इसे कही अनाथ आश्रम में छोङ आये। एक दिन बुढे बाप को गाङी में बैठाया और एक अनाथ आश्रम के सामने लाकर बोला की पिता श्री आप यहां बैठना मैं आता थोङी देर में और ठंड है ये चद्दर ओढ लेना। बुढा हंसा और बोला बेटा बात सुन जरा इधर आ। उसने उस चद्दर को फाङकर आधी उसे दी और कहने लगा की ये तेरे काम आयेगी इसमें तेरी गलती नही है मैं भी अपनी बीबी के कहने से तेरे दादा को इसी तरह छोङकर आया था मुझे तो तुने यह चद्दर दे भी दी पता नही तुझे मिले या नही ले लेजा इसे। लङका बाप की बात सुनकर रोने लगा और गले लगा लिया। वापस घर ले आया। बच्चों को उनकी सम्पत्ति से ज्यादा प्यार है।
मैं ये नही कह रहा कि सब बहु बेटे गलत हैं लेकिन दोस्तो बुढे आदमी का दिमाग बिलकुल बच्चे की तरह हो जाता है। एक बार की बात है एक लङका छुट्टी वाले दिन अपने घर पर बैठा सब आराम से बैठे थे। अचानक उसे पिताजी ने कहा बेटा वो क्या है एक पेङ पर बैठे पक्षी की तरफ इसारा करते हुए कहा। बेटे ने कहा कि काग है। उसने फिर पुछा..... तीन चार बार पुछने पर वो बेटा झल्लाकर पङा कहने लगा पिताजी आपका दिमाग खराब हो गया है या पागल हो गये हो। बुढा हंसा और कहने लगा की बेटा जब तु छोटा था तो 20 बार पुछता था तो भी मैं हंसकर और प्यार से बताता था तु मेरे दो चार बार के पुछने पर ही चीङ गया। दोस्तो मां बाप जैसी कोई चीज दुनिया में नही है। पहले उनको देखो बाद में कोई दुसरा काम करो क्योंकि हमें इस धरा पर लाने वाले वो ही है। कितने कष्ट सहकर मां बच्चे को जन्म देती है अब पता चला है मुझे मेरी बीबी गर्भवती है तीन महीने से ना तो ठीक से खाना खा पायी है और उल्टी सिर में तेज दर्द से किस तरह वो परेशान रहती है लेकिन कहती है मेरे बच्चे पर कोई असर नही पङना चाहिए चाहे मैं कितनी भी दुखी हो जाऊं लेकिन दवा नही लुंगी। अपना मन पसंद खाना भी छोङ दिया। उसी की बात नही हर मां इसी तरह से दुख उठाकर बच्चा पैदा करती है। और मै सोचता हुं कि चाहे मैं ना खाऊं लेकिन राधा को खिलाऊ कहीं बच्चा भुखा ना रह जाये। और हम बङे होकर उन्ही मां बाप को खाना नही देते जो खुद भुखा रहकर हमें खिलाते हैं। जो मां अपने पेट में सुलाती पुरे नौ माह रखती है उन्हे ही घर में नही रहने देते।
एक बार युद्धिष्ठर से पुछा यक्ष ने धरती से बङी क्या चीज है और आसमान से बङा कोन है तो युद्धिष्ठर ने कहा कि मां बाप हैं यक्ष ने खुश होकर उसके चारो भाईयों को जीवित कर दिया था । मां बाप की सेवा सबसे बङी सेवा है।
लोग मंदिरों में जाते हैं और जाना भी चाहिए मां पर चुन्नी चठाते हैं और घर में बैठी मां को दुत्कारते है क्या मंदिर वाली मां कभी खुश होगी ..... हो ही नही सकती। एक बार गणेश जी और कार्तिकेय में झगङा हो गया वो कहे में ताकतवर हुं वो अपने को बताये। तो फैसला ये हुआ कि जो भी धरती का चक्कर पहले लगा कर आयेगा वो ही बङा है। कार्तिकेय की सवारी तो बङी तेज हवा में उङने वाली और गणेश जी तो चुहे पर चलते है। वो सोच में पङ गये की क्या करूं। शिव पार्वती बैठे थे उनके दिमाग में आया की मेरे लिए तो मेरी मां बाप हो धरती से बढकर है और उनकी ही परिक्रमा कर दी। अब जहां भी कार्तिकेय जाते गणेश जी के चुहें बाबा के चरण चिन्ह पहले ही दिखाई देते।
दोस्तो जिसने मां बाप को खुश कर दिया वो बच्चा जीवन में कभी भी दुखी नही हो सकता। और जिस बच्चे ने मां बाप की आंखे रूला दी उसको इस जहां में भगवान भी नही हंसा सकता।।।।
मंगलवार, 8 जून 2010
अरे भगवान से डर...............
अरे भगवान से डर...............
आम भाषा में यह अक्सर सुनने में आ ही जाता है। अगर कोई कुछ गलत कर रहा हो या किसी दुर्बल को सता रहा हो ये ही कहते हैं अरे भाई रहम कर ऊपर वाले से डर उसकी लाठी की आवाज नही आती। ऐसा भी नही है कि ये बात सिर्फ भारत या किसी एक सम्प्रदाय में ही हो। हुआ युं कि कल में एक गली से निकल रहा था वहां किसी घर में पति पत्नि का झगङा हो रहा था पति ने पता नही क्या लेकिन बीबी रोती हुई कह रही थी की आप ऐसा कह रहे हो भगवान से डरो वो सबकुछ देख रहे हैं। मैं अपने घर पर आ गया लेकिन घर पर आकर भी मेरे दिमाग में वो ही बात घुमती रही कि भगवान से डर। इसका मतलब की सारी दुनिया ही उससे डरती है जितना भी में इस बात पर चिंतन करता उतना ही उलझता गया की क्यों कहते हैं लोग ये बात की भगवान से डर.......
इसका अर्थ यह हुआ कि जो भी उसे याद करता है कहीं ऐसा तो नही की डरकर ही लोग नमाज अदा करते हो या मंदिर में गुणगान करते हों। वह बहुत शक्तिशाली है सर्वगुण सम्पन्न है उसके समान भी कोई नही फिर अधिक तो कैसे हो सकता है। जब सारी दुनिया ऊपर वाले से भयभीत है अब सबसे बङी बात बात ये आयी की जिससे हम डरते हैं तो उससे प्रेम कैसे करते होंगे क्योंकि यह तो मानव मन का स्वभाव है जिससे भी डरेगा या डरता है तो उससे नफरत या घृणा ही करेगा। जो लाखों की संख्या में मंदिरों मे मस्जिदों और गिरीजाघरों में भीङ लगी रहती है इतनी लम्बी लम्बी कतारें लगी रहती हैं। इसका कारण मेरी समझ नही आया हां हो सकता है कि भय के कारण ही हो। साधारणत अगर हम किसी से डरते हैं या कोई हमसे ताकतवर है शक्तिशाली है वह घर में हो या दफ्तर में गां शहर कहीं भी उससे कितने प्रेम से पेश आते हैं हम लेकिन सत्य यह है कि अंदर से प्रेम नही करते बस प्रेम का अभिनय कर रहे दिखावा कर रहे हैं। कि जो बात हम सबको सिखाई जाती है कि उपर वाले से डरो यह भ्रम सम्प्रदाय के ठेकेदारों मुल्ला मोलवी पंडित पादरी उन्होंने ही कही क्योंकि अगर लोग भगवान से डरेंगे तो इन्ही के पास जायेंगे ओर चढावा देंगे। और हो भी ये रहा है। जरा याद करो राम जन्म भुमि पर कितने लोगो का खुन बहा था कितने लोग मारे गये थे। इसी तरह बाबर और ओरंगजेब ने ना जाने कितने मंदिर तोङे ओर उन पर मस्जिद बनायी। हम लोग बङे भोले हैं जरा से डरा दिये गये कि ऊपर वाला तुम्हे कभी माफ नही करेगा तो हम लोग तन मन धन से समर्पित हो जाते हैं। जरा सभी देवताओ पीर पैगम्बरो का ध्यान करें भोले बाबा को जंगलों में दिखाया गया विष्णु जी को सागर में और ब्रह्मा जी को कमल पर आसिन दिखाया गया है इनके पास क्या कमी थी अपने लिए एक भव्य सा महल नही बना लेते। जो बाबर और ओरंगजेब ने अल्लाह के नाम पर इतने मंदिर तोङे उनका तो कोई रूप ही नही है फिर किसको स्थापित करने के लिए इतने बेकसुर लोगो का खुन बहाया। रही प्रेम के दिवाने ईसा की बात तो आज तक बेचारे को कहीं महल में नही दिखाया बस क्रुस पर लटके और अस्तबल में जन्म दिखाया। किसी ने भी यह नही कहा की तुम मेरे लिए किसी का खुन बहाओ और जो काफिर मेरे रास्ते पर ना चले तो उसे जिंदा जला दो। ये तो हमें उसके नाम से डराया गया है। लेकिन सम्प्रदायों के ठेकेदारों ने हमें इतना भयभीत कर दिया की ऊपर वाले के नाम पर हमसे कुछ भी करा लो। मेरी बात वो ही समझ नही आयी की अगर हम उससे डरें तो प्रेम कैसे करेंगे। किसी ने कहा है कि भय बिन प्रीत नही...... यह बात को सत्य मान भी ले तो लेकिन भय वाली प्रीत श्रद्धावान नही होगी उसमें सम्पर्ण नही होगा। भगवान ने अर्जुन को गीता में कहा है कि तु भय मत कर यानि की व्यक्ति जब तक भयभीत रहेगा तो उस प्रमात्मा तक पहुंच ही नही सकता। सीधी सी बात है कि जिससे हम डरेंगे उसके पास कभी भी अपनी मर्जी से नही जायेंगे बल्कि उल्टा जाने से कतरायेंगे। ये समाज ऊपर वाले के नाम से फैला भय ही तो हमारा सबसे बङा शत्रु है जो हमे एक दुसरे दुर करके रखता है।
भय रहित रहो किसी से कोई डरने की आवस्यकता नही ऊपर वाला तो हमें बहुत प्रेम करता है बस तुम उससे प्रेम करो वो हमको प्रेम करते हैं। उनके नाम से किसी को डराओ नही की तुम नरक में जाओगे बस उनके कर्मों के बारें बताकर उनका वर्णन करके सब भाईयों को भी ऐसा ही करने की सिख दो। जय हिंद जय भारत
रविवार, 6 जून 2010
हिंदू बनों ना मुस्लिम बनो............
हिंदू बनों ना मुस्लिम बनो............
आप भी सोच रहे होंगे की कैसा आदमी है क्या कह रहा है कि हिंदू बनों ना मुस्लिम तो और क्या बने हमें किसी दुसरे बेङे में तो नही बांध रहा है बिलकुल नही भाई.... लेकिन आज तो सरकार भी जो हमारी गिनती कर रही है जाति के आधार पर ही कर रही है कितने हिंदू है तो कितने मुस्लिम कितने दलित तो कितने अनुसुचित देश में होङ सी लगी है और हमारे यहां तो बङे गर्व से कहते हैं कि हम तो जाट हैं....
हिंदू बनों ना मुस्लिम बनो तो क्या बने.....
ये तो हमारे नेताओं ने समाज के ठेकेदारों ने अपनी गद्दी के लिए वोटों के लिए हमें बांट दिया है और सब अपने अपने बेङे के ठेकेदार बन कर बैठ गये हैं। उन्हे किसी से भी कुछ लेना देना नही है। अभी मैंने एक मुस्लिम नेता के बयान सुने थे कह रहा था कि सब मुस्लिमों को एक होकर अपनी पार्टी बनानी चाहिए जिससे हम सत्ता में आ सके और कहीं किसी दुसरे की मुंह की तरफ नही देख सके। कोई हिंदू संगठन वाले कुछ कहते हैं। भाईयों हमें ही चिंतन करना चाहिए क्यों किसी के हाथों की कठपुतली बन रहे हो। मेरा नाम शिवा की जगह सरफराज रख दो तो क्या मेरी मानसिकता बदल जायेगी बिलकुल नही। जो भी गद्दी पर बैठेगा वो गरीबों का शोषण ही करेगा। आजादी के 65 साल से ज्यादा हो गये बहुत से नेता देखे होंगे किसी ने किसी के लिए कुछ किया। जो आम आदमी हैं उनकी आस्था और भावनाओं से खेलकर अपना उल्लु सिधा करते हैं। कहीं कोई मंदिर जले या मस्जिद गिरे उन पर कोई फरक नही पङता उनका भगवान हो या अल्लाह सब कुछ पैसा ही है तभी तो वो हमें कोई हमें हिंदू कहकर लुट लेता तो कोई मुस्लिम कहकर और हम इतने झटके खाने के बाद भी नही सम्भलते तो क्या हम बेवकुफ नही।
कल मैं गीता पाठ कर रहा था तो एक शब्द्ध आया की हे अर्जुन तु मेरा भक्त बन बस मेरा दिमाग उसी बात पर आकर ठहर गया कि भगवान ने यह ही क्यों कहा उन्होंने क्यों नही कहा कि तु हिंदू बन......
जब जब इस धरती पर अपराध हिंसा और अत्याचार बढता है उसका सबसे बङा कारण ये दरार चाहे वह सम्प्रदाय की हो कोई दुसरी मुख्य बात यह है कि जब जब किसी चीज के टुकङे होंगे तो परेशान करेंगे ही..............
हिंदू बनों ना मुस्लिम बनो बस जो भगवान ने हमें दिया है उसी को सम्भाल कर चलो तो बहुत महान कार्य कर दोगे... ऊपर वोले ने हमें ना हिंदू बनाया ना मुस्लिम बनाया बस एक छोटा सा इन्सान बनाया है और कहा है कि तु मेरा भक्त बन इसमे ऐसा नही है कि कह रहे हो कि तु मुर्ती को मंदिर में रखकर पुज नही, भाई कहा है तु मेरा भक्त आगे बङी सावधानी से पढना कि मेरा बताया विराट रूप कि जो भी ये चर अचर है सारी दुनिया में जो भी दिखाई दे रहा है मेरा ही रूप है तु उसका भक्त बन ये नही कहा कि जाकर एक खुंटे पर बंध जाना और जो उस खुंटे पर ना बंधे तो उसको मार देना। सबसे प्यार कर जहां हिंसा हो रक्त पात हो अन्याय हो बंधन हो वहां कभी कोई धर्म नही ठहर सकता। आज धर्म के नाम पर ही हम सबको बेवकुफ बनाया जा रहा है। जितने भी आतंकी है उनको पढाया जाता है कि अगर अपने धर्म पर चलते हुए मोत भी हो जाये तो जन्नत में जाओगे उन बेचारे सिधे युवाओं को क्या पता कि कोन से धर्म की बात कर रहे है ये लोग और उनकी शतरंज के मोहरे बनकर इतना रक्तपात करते हैं ये नही मालुम की जो तुम ये नर संहार कर रहे इसका परिणाम तो भुगतना ही पङेगा।।।।।।
सब भाई ज्ञानी है सब समझदार हैं किसी के पास ज्ञान की कमी नही है बस सावधान हो जाओ और कोई कहीं कोई जाल बिछा देखो तो फंसना नही है............
हमें ना हिंदू बनना है ना मुस्लिम बस एक इन्सान बनना है...... जय हिंद जय भारत
शनिवार, 5 जून 2010
हम हो रहे हैं पथ भ्रष्ट..........
जैसा देखा जा रहा है और हम सबके समक्ष है कि समाज में कितनी भ्रष्टता बढती जा रही है। ना किसी के अंदर कोई डर ना शर्म। बस पशुओं की भांति व्यवहार करते रहते हैं बस अपना ही सोच कर काम करते हैं। ये नही देखते की क्या करना और क्या नही करना। ऐसा नही है कि कोई गरीब या कम शिक्षित ही कोई अनुचित कार्य करता है। चाहे कोई कितने बङे पद पर क्यों ना प्रतिष्ठित हो वहीं पर भ्रष्टाचार में लिप्त है। एक बार एक अखबार में खबर छपी की किसी बङी कम्पनि के बङे अधिकारी ने किसी का मोबाईल चौरी कर लिया और बाद में उसे हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया क्या उसके पास किसी चीज की कमी थी जो चौरी करनी पङी। दुसरा किसी भी सरकारी अधिकारी जो जनता के काम के लिए बैठा है उसके पास चले जाओ तो कोई एक आध होगा 100 में जो बिना किसी के लालच के अपना फर्ज समझकर काम करता है नही तो सबकी ये ही सोच बनती जा रही है की पगार तो सारी बच जाये और ऊपर से ही काम चल जाये। ये में अपने बीती ही लिख रहा हुं। और ऐसी भी नही है कि सिर्फ पुलिस. एमसीडी. अदालत या किसी एक विभाग की बात हो रही है। चाहे कितने बङे पद पर हो और कितनी भी पगार हासिल हो लेकिन मेज के निचे की कमाई अवश्य चाहिए। मैं सभी को नही कह रहा हुं हां कोई ऐसा भी हो सकता है जो जितना मिल जाये उसी में संतुष्ट हो लेकिन इस समय ना के बराबर ही है। जिसके पास ऊपर की कमाई का साधन नही है और वो कहे की मैंने आज तक कहीं से कोई गलत धन का संग्रह नही किया तो उसकी बात में कोई दम नही है। हर आदमी अपने पद की गरीमा को भुलकर बस धन कमाने के पिछे पङा है। अरे भाई कोई घर ग्रहस्थ तो कमाई करने की सोचता है तो फिर भी ठीक है आजकल तो बाबा लोग जिन्हें साधु संत गुरू कहते हैं लोग वो भी धन कमाने की होङ में ऐसे लगे हैं कि ये भी नही देख रहे कि तुम्हारे वेष स्वरूप और कर्मों को कितने लोग उसी अनुसार देखकर कर्म करते हैं, घरों में उनके फोटो लगाकर भगवान की तरह उन्हे पुजते हैं। जब वो भी पथ भ्रष्ट हो रहे हैं तो अन्य तो होगे ही। जब समाज सुधारक ही ऐसे होगे तो क्या होगा ऐसे समाज का।
गीता में कहा गया है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करता है उनको देखकर दुसरे भी वैसा ही करते हैं। जब बाबा धनादि के संग्रह के लिए देह व्यापार तक करने से नही चुकते तो दुसरे क्या करेंगे सब पथ भ्रष्ट होते जा रहे हैं। किसको दोष दे किसको सजा दें।
अर्जुन के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने इस समाज को बताया भी था कि क्यों आदमी गिरता है, क्यों अपराध करता है। इसका कारण जो उन्होंने जो बताया है उसको कई भाग में विभाजित करके हमें समझाया है। कहा कि विषयों के बार बार चिंतन करने से उनमें आसक्ति पैदा होती है, आसक्ति से उनकी कामना बढती है और कामना में विघ्न पढने पर क्रोध आता है क्रोध से स्मृति में भ्रम पङ जाता है और व्यक्ति अपनी स्थिती से गिर जाता है। कितना बङा खुलाशा किया है जो बाबा है उनके पास इसे पढने का समय कहां है। जब चिंतन बढता जाता है तो वह किसी की हत्या भी कर सकता है और अपहरण, बलात्कार भी और देह व्यापार में भी लिप्त हो सकते हैं। थोङा सा समझे कि कैसे चलता है चिंतन,, एक बार एक क्लर्क(राम) था बेचारा सिधा साधा और साईकल से दफ्तर आता था। उसी के दफ्तर में दुसरा क्लर्क जो उसके बाद में आया उसने मोटरसाईकल ले ली तो राम के दिल में भी आया की अगर मेरे पास भी मोटरसाईकल हो तो मेरा कितना समय बचेगा घर से आने में। उसका अब ये ही चिंतन चलता रहने लगा। आखिर एक दिन उसने अपने साथी क्लर्क से पुछ ही लिया की भाई तुने इतने कम समय में कैसे इतना पैसे बचा लिया जो मोटरसाईकल और सारा समान भी खरीद लिया। उसने उसे बताया वो ही रास्ता मेज के निचे वाला। तो बेचारा सुनकर पहले तो घबरा गया। लेकिन हर समय चिंतन करता रहा उसे अब कुछ नही सुझ रहा था पैसा ही पैसा उसके नजरों के सामने नाचता रहता। उसके दिमाग सारे काम से हटकर पैसे पर ही घुमता रहता। और वह भी आखिर एक दिन उसी दल दल में फंस गया जिसमें फंसकर आज तक कोई बाहर नही निकल पाया। वह अपनी स्थिती से गिर गया था।
चाहे शिक्षा कि कितनी भी उपाधी प्राप्त कर ली हों डाक्टर हो या कितना बङा अधिकारी हो या कोई मजदुर चिंतन तो हर कोई करता है।
बस ध्यान इतना रखे की उस चिंतन को चिंता में ना तव्दील ना होने दें, उसका प्रयोग हम सावधानी से करे।
भ्रष्टता को हम सब मिलकर ही समाप्त कर सकते हैं। इससे सब पीङीत हैं कोई नही चाहता की ऐसा हो अगर कोई अपना काम अदालत में या किसी और विभाग में पङा हो और वहां पर हमसे कोई 10000 रूपये मांग लेता है हम कहते हैं कि बङा भ्रष्टाचार पऐल गया है हर जगह कहीं कोई साफ सुथरी जगह ही नही बची। क्या होगा देश का लेकिन अगर हम किसी ऐसे पद पर बैठे हों जहां पर कोई दुसरा काम के लिए आये तो सोचते हैं कि 10 की जगह 15 मिल जाये। किसी को बुरा लगे या नही लेकिन बात विलकुल सत्य है। अरे भाई अगर कोई दिल्ली पुलिस में 5-7 लाख रूपये देकर भर्ती होता है तो वो सिर्फ पगार के लिए ही नही होता वो तो 7 लाख एक वर्ष में ही कमाना चाहता है। जीवन में तरक्की अवस्य करनी चाहिए धन दौलत सब कमाओ लेकिन कुछ इस तरह से कमाओ की उस पैसे में किसी आह ना हो। आगे बढने का चिंतन करो लेकिन चिंता ना करो बाकि आप सब बहुत समझदार हैं।
क्या करें गरीब
देश में रोज आये दिन मंहगाई को लेकर बङे बङे धरने और प्रदर्शन हो रहे है। जिसे देखो वही गरीबो का मसीहा का बना फिरता है। संसद में भी बङे जोर शोर से बहस होती है कि मंहगाई से एक आम आदमी कितना त्रस्त हो रहा है कितनी बुरी तरह से पिस रहा है। और कई पार्टी तो एक रूपये किलो तो कोई दो रूपये किलो चावल आदि देने का वायदा करती है। कितने फिक्रमंद हैं कितने संवेदनशिल हैं गरीब और गरीबों के प्रति.... कितनी दया भरी है उनके अंदर शायद इतनी चिंता तो राम राज्य में भी नही होती थी। कैसी विडंम्बना है कि फिर भी गरीबों को कोई राहत नही.... राहत के बजाय आहत ही होते जा रहे हैं बेचारे कुछ सोच भी नही पा रहे की क्या करे। आटा खरीदें या दाल दुध ले या बिजली के बिल के लिए पैसा बचाये। कई लोगों ने जब घर का काम नही चल रहा तो अपने मासुम बच्चों को स्कुल से हटाकर कहीं काम पर लगा दिया यानि की बाल मजदुरी कराने पर मजबुर हो गये हैं। एक तरफ तो सरकार बाल मजदुरी पर रोक लगा रहे हैं तो दुसरी तरफ हालात ऐसे बना रहे है जिससे बच्चों को काम पर लगाना लोगो की मजबुरी बन रही है। आप सब बताओं की क्या कोई है गरीबों का जो उनकी समस्याओं को सुन सके। ज्यादा से ज्यादा अपनी राय दो हो सके की किसी की राय देश को बदलने में ही काम हो जाये।
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