शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

भय का सर्वथा अभाव


कोई भी जीव,,,, मनुष्य हो या जीव जन्तु या देवता कोई भी भय में नही रहना चाहता। हर कोई निर्भय रहना चाहता है। और हम सबके अंदर जो सबसे ज्यादा है अगर हम अपने अंदर की खोज करें तो या थोङा सा ध्यान करें तो ज्ञान होता है कि भय की मात्रा ही सबसे ज्यादा है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में भी इसका बहुत बार वर्णन किया है। कि हे अर्जुन तु भय मत कर। जब अर्जुन जैसा योद्धा महावीर शक्तिशाली व्यक्ति और जिसका संचालन स्वंय भगवान कर रहे हैं उसे भी भगवान को बार बार कहने की आवस्यकता पङी की तु भय मत कर। हर व्यक्ति चाहे वह अमीर हो या गरीब व्यापारी हो या अधिकारी सब भयभीत हैं। एक आदमी की ही नही देश और विस्व की भी ही हालात हैं।
एक देश दुसरे देश से डरता है कि कहीं अटैक ना कर दे।
और इसका दर्शन हम और आप बखुबी कर सकते हैं। कि आये दिन हर देश अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करके हथियार मिशाइल आदि को दिखाकर यह दर्शाना चाहते हैं कि किसी से डरते नही हैं। कितना भी छोटा आदमी हो या बङा डर में जीवन व्यतीत कर रहे है भय में हैं।
और यही कारण है कि भगवान ने गीता के 16 वें अध्याय के प्रथम श्लोक में प्रथम वाक्य कहा है कि भय का सर्वथा अभाव ................ बिलकुल शत प्रतिशत निर्भय। उन्होंने सबसे ज्यादा जोर भय पर ही दिया क्योंकि इसी के कारण समाज में अराजकता, अलगाव, अशांति असुरक्षा और हिंसा बढती है। हम लोग भी हर समय यही सोचते हैं कि कहीं कोई हमारा अमंगल ना हो जाये कोई अनिष्ट ना हो जाये। इसी भय के बचाव के लिए सब लोग सुबह से रात तक दिन रैन एक ऐसा सुरक्षा कवच बनाते रहते हैं कि कोई भी कैसे भी ना तोङ सके। और इसी प्रक्रिया में हमसे कई अनुचित कार्य ऐसे हो जाते हैं जिससे दुसरों की सुख शांति भंग हो जाती है। और परिणाम भुगतना पङता है सभी को।
जो ये बात कही है कि भय सर्वथा अभाव तो ये गुण भी दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन हुए पूरूषों का बताया है। निर्भय वो ही रहते हैं जो सत्य कहो या प्रमात्मा कहो उसकी छतरी के निचे जो आ जाता वो ही निर्भय रहता है।
हर आदमी अपने जीवन में जीतोङ मेहनत करके धन दौलत शोहरत कमाता है कि कोई भी यह जो भी एकत्रत करता कोई भी किसी और के लिए नही कमाता सिर्फ स्वयं के लिए ही कमाता है। इतनी कुत्ता घसीङी करके पुख्ता इंतजाम अपने अंदर छीपे भय के कारण ही करता है।
एक छोटी सी कहानी है
एक सेठ के चार बेटे थे अपने जीवन काल में कठिन परिश्रम करके सेठ ने फैक्ट्री लगाई बच्चों को पढा लिखाकर कामयाब किया। चारों को अपना अपना व्यापार करा दिया। जब वह सेठ बुजुर्ग हुआ तो बीमार पढ गया। काम कर नही सकता था और बीमारी बढती गयी पैसा पानी की तरह लग रहा था। उसका बङा बेटा बोला की पिताजी सारा नगद पैसा जितना भी था हमारे पास सब लग गया कुछ नही बचा।
सेठ ने कहा बेटा पैसा तो हम बाद में कमा लेंगे एक फैक्ट्री बेच दो। इसी तरह तीन फैक्ट्री बिक गया सारा नगद जाता रहा लेकिन सेठ की हालात में कोई सुधार नही आया। डाक्टर ने कहा कि आखिरी उम्मीद है इसमें खर्चा कुछ ज्यादा ही आयेगा बस आप्रेसन करना पङेगा और सेठ जी की स्वस्थ होने की पुरी उम्मीद है।
सेठ जी की बीबी बच्चे सब इकठठे होकर सेठजी के पास गये।
इस तरह अचानक सबको एक साथ देखकर सेठजी ने उत्सुक्ता से पुछा कि क्या हुआ
सेठानी ने कहा डाक्टर कह रहा है एक लाख रूपये लगेंगे आप्रेसन करना है।
फिर क्या परेशानी है दे क्यों नही देते सेठ जी ने कहा
सेठानी ने बङी दुखी होकर बोली- आपकी बीमारी में सब कुछ बीक गया है तीन फैंक्ट्री सारा नगदी और मेरे जेवरात सब कुछ लग गया । अब हमारे पास कुछ भी नही बचा है बस एक फैंक्ट्री है। तो उसे ही बेच दो। फिर हमारे पास क्या बचेगा क्या खायेंगे हम।
सेठजी ने झल्लाकर कहा की अरे मेरी ही तो कमाई की है तुम लोग क्यों चिंता करते हो।
देखा सेठ जी बीबी बच्चे सब कुछ भुल गया बस अपनी जान की पङी है ये बात एक सेठ की नही है हर व्यक्ति की बात है। जो सारी जिंदगी इतनी मेहनत करके धन दौलत गाङी बंगला बच्चे और सारा सामान इकठठा करता है वो सब अपनी ही सुरक्षा के लिए। क्योंकि भयभीत जो रहते हैं।
ये भय ही हमारी सुख शांति और चैन का सबसे बङा दुष्मन है। भगवान बार बार कहते हैं कि हे अर्जुन तु भय मत कर उन्होंने उपदेश दिया था अर्जुन को लेकिन वो संकेत हमारी सबकी तरफ ही था। लेकिन हम रोज नित्य गीता पाठ भी करते हैं। उनके संदेश को भी पढते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि फिर भी हम भयभीत रहते हैं डरे रहते हैं। पता नही क्युं। या तो हम आसुरी प्रवृत्ति के हैं या फिर हमें पता ही नही है की हमें इस समय क्या बीमारी है।
अशांति का एक और सबसे बङा कारण है कि हम अपने अंदर इस घातक बीमारी को छीपा कर रखे रहते हैं। और इसकी किसी को जानकारी भी ना हो ये ही कोशिश करते हैं।
हमें सबसे पहले इस बात पर विस्वास करना है कि जो भी हमारी जिंदगी में अराजकता, अलगाव, अशांति, बैचेनी, चिङचिङापन रहता है उसका कारण ये भय ही है। और कब यह हमारें अंदर प्रवेश कर जाये हमें ही नही पता चलता।
और हम इसके शिकार होते चले जाते हैं। जब हमें कुछ ज्ञान ही नही रहेगा की कोन आ रहा है या जा रहा है तो हम किससे सावधान रहेंगे। लेकिन भाईयों अर्जुन ने तो स्वीकार कर लिया था कि मैं भयभीत हुं। हममे में से कोई भी इस बात को कबुल नही करता की भय हमारे अंदर अपने पैर पसार चुका है।
हर आदमी के अंदर है ये ऐसा नही है कि मेरे अंदर नही है बहुत है लेकिन मैं इसे खोजने का प्रयत्न करता हुं की ये कहां है कहां छुपा हुआ है। जैसे कोई चोर घर में घुस जाये और उसे लगे की कोई खोज रहा है तो किसी ऐसे कोने में जाकर बैठ जाता है जहां उस पर हमारी नजरें नही पङती। ये भय भी ऐसा ही करता है कहीं छुपकर बैठ जाता है।
जब भी ऐसी परिस्थती आती तो मैं ये ही खोजने की कोशिश करता की ये आया कहां से है और कहां अंदर छुपकर बैठ जाता है। तो इसके छुपने का स्थान मन ऐसा करता की कुछ अनिष्ट होने वाला है।
तो सबसे पहले बात आती अपने घर परिवार की कहीं कोई घटना का शिकार तो नही होने वाला लेकिन जब और गहराई में जाकर खोजा तो पाया की हमें अपने से ज्यादा डर किसी और का है ही नही। बस हर समय ये ही रहता है कि मेरा कुछ अनिष्ट तो नही होगा। इसका क्षेत्र सबसे ज्यादा मैं तक ही है। अगर किसी की फिक्र भी करता है या किसी के प्रति भयभीत भी होता है तो उसमें भी मैं का ही स्वार्थ होता है। मेरे मां पिता भाई बहन जमीन जायदाद बीबी बच्चों को कुछ हो ना जाये। जो मैं ये लिख रहा हुं कटु सत्य है जिसे कोई भी स्वीकार नही कर पाता क्योंकि सच्चाई से सभी को डर लगता है।
अब बात आती है कि ये भय हमारे अंदर प्रवेश कैसे और क्यों करता है। नहीं तो सब भाई सोचेंगे की बात तो इतनी गहरी कर रहा है समस्या भी सभी की है। दुनिया का एक बहुत बङा हिस्सा इसी से पीङीत है। और ये नही बता रहा कि कि इस घातक बीमारी से कैसे निजात मिले कैसे छुटकारा हो। तो जैसा मैंने अनुभव किया है की आखिर ये आता कैसे है।
इसका मुख्य कारण है अज्ञान............. यह एक ऐसा पर्दा है एक ऐसा ऐनक है जो सिर्फ अपने अनुसार ही हर चीज का दर्शन कराती है। मन अपने ही अनुसार देखता है। बुद्धि की कभी सुनता ही नही। और मन डरता बहुत है जैसे एक चोर होता है कितना डरता है बिलकुल उसी तरह ही डरता है हर किसी पर शक करता है। और जहां शक होता है संदेह होता है वहीं पर असुरक्षा भय अशांति तो आ ही जाती है। भय से मुक्ति का बस एक ही उपाय है ज्ञान। जब भी यह चोर हमारे अंदर प्रवेश करने की कोशिश करे तो सावधान रहो बस यह इतना शक्तिशाली नही है बस जैसे चोर सिर्फ खांसी सुनकर ही भाग जाता है ये भी फिर हमसे दुर ही रहेगा। बस अपने अंदर ज्ञान का एक छोटा सा दीपक जलाओ और इस बीमारी से मुक्ति पाओ।

जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दिवाली पङ रही है फिकी



दिवाली का नाम आते ही सब लोग खुशियों से झुम उठते थे। और आंखो के सामने अस्तबाजियां, बम फोङना और मिठाईयां बांटना घुमने लगता था। और इस त्योहार की हम सब महिनों पहले ही तैयारियां करने लगते थे। इस पावन त्योहार का वर्णन प्राचीन काल से शास्त्रों में भी होता आया है। आज के दिन लक्ष्मी जी की विशेष पुजा की जाती है। और कहते हैं कि इस पुजा करने के बाद लक्ष्मी जी खुश होकर हमारे घरों में निवास करती है। मैं जब छोटा करीब 7-8 साल का हुआ करता था ये उन दिनों की बात है। एक महिना पहले से ही मां से पुछने लगते थे कि दिवाली कब है क्योंकि चार दिन की छुट्टी होती थी। सब बच्चे मिलकर खुब मस्ती से खेलते कभी किसी के घर जा रहे तो कभी किसी के। हम सारे गली के बच्चे सुबह जल्दी से ही हाथों मैं छोटी छोटी सी बंदुके लेकर पटाखे छुङाने शुरू कर देते थे। अब तो सुबह इतनी ठंड नही पङती लेकिन दिनों सही ठंड पङती थी सुबह सांय। मम्मी मुझे कहती रहती थी कि बेटा अभी बहार मत जाओ शर्दी लग जायेगी जुकाम हो जायेगा। लेकिन बच्चे किसी की नही मानते थे। और सांय को कोई खिल बांटता था तो कोई मुरमुरे कोई मिठाई। लोग नोकरी से छुट्टियां कर कर के अपने घर आते थे। कितना मजा आता था। बस अब तो वो दिवाली यादों में ही रह गयी है।
होली दिवाली ईद दशहरा सब त्योहारों की खुशियां हमारे स्वार्थ ने निंगल ली है।
क्या करें कोई मिठाई खरीदने से भी डरता है क्योंकि खोया घी सब नकली बनाने लगे हैं लोग। दुसरा इन सबसे भी बङा डर है बम धमाकों का पता नही कहां विस्फोट हो जाये और दिवाली की जगह दिवाला ही न निकल जाये। दो दिन पहले ही पाकिस्तान में आतंकियों ने दिवाली को खुन से लाल कर दिया।
दिवाली दीयों का त्योहार था यानि की सबको प्रकाश दिखाने का दीये जलाना एक मतलब ये भी होता है कि अपनी खुशी में सबको शामिल करने का । लेकिन क्या करे आज तो हम एक दुसरे किसी कि भी खुशी नही देख पाते। मैं किसी एक व्यक्ति की या धर्म सम्प्रदाय की बात नही कर रहा हर आदमी की बात कर रहा हुं।
कुछ वर्षों पहले आदमी के पास कमाई के नाम पर थोङा बहुत ही होता था लेकिन आज बहुत पैसा कमा रहे हैं लेकिन किसी के पास भी वो शांति संतुष्टी नही हैं।
हम सबने अपनी शांति को दिवाली को अपने स्वार्थ तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता की आग में स्वाहा कर दिया।
और अपने को संकिर्ण करते हुए चले गये। जैसे पहले सारे मुहल्ले का साथ खुशियां मनाते थे तो लेकिन कुछ वर्षों पहले अपने परिवार तक सिमट गये। और अब लोग और संकुचीत हो गये घर परिवार की कोन करे परवाह बस अपनी बीबी बच्चे तक ही सिमट गये और हर त्योहार को बस यहीं तक बांध दिया। कहां से खुशियां मिलेगी। खुशियों के तो सारे रास्ते हमने खुद बंद कर दिये।
भगवान ने गीता में कहा है कि हे अर्जुन पृथ्वी से आकाश तक सम्पुर्ण जगत को एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हुं। जब सारे जगत में एक ही प्रकाश है एक ही ताकत है और हमने तो अपनी बुद्धि को ऐसी तामसी बना लिया है कि अधर्म को भी धर्म मानकर बस सोचती है कि जो तु करता है जो तु कहता वो ही ठीक है बाकि सब गलत। जब ये सारा जगत ही एक प्रमात्मा का है तो उसके बिना कैसे हमें खुशी प्राप्त होगी।
अरे दोस्तों दिवाली के अगले दिन होती गोवर्धन पुजा। इस पर तो भगवान ने साफ दिखा भी दिया था कि कोई भी त्योहार या खुशी संकुचित नही है। एक इंद्र को खुश करने के लिए ही ब्रजवासी उसे पुजते थे लेकिन भगवान तो दिव्य हैं विराट उन्होने तो सारे जगत को एक माला में पिरोया हुआ है। तो उनकी तो खुशी भी विराट होगी तो उन्होंने गोवर्धन को ही पुजवा दिया। कोई भी त्योहार को जब भी हम बांधने की कोशिश करेंगे तो परिणाम घातक होगा।
दिवाली का मेरे विचार से एक और गहरा रहष्य है कि आज के दिन लोगो ने इतने दीये जलाए की अगर किसी घर में कोई कष्ट या दुख पीङा हो और वो खुशी नही मना रहा हो तो सबके घर के प्रकाश से उसके घर में प्रकाश पहंचेगा यानि कि खुशियां आंयेगी।
दिवाली हो या कोई भी त्योहार हो सिर्फ मिठाई बांटने तक ही नही है। इन पावन दिनों का मतलब है कि जो हमने अपने स्वार्थ वस जो दीवारें खींच रखी हैं उन सबको तोङकर प्रेम से गले मिलों और एक हो जाओ क्योंकि हम सब एक ही माला के मोती है। जब से बिखरें हैं तभी से ही अलगाव अशांति अराजकता असुरक्षा, और भय में जी रहे हैं।
हर त्योहार आज फीका पङता जा रहा है। चाहे वह दीवाली हो या होली या फिर ईद। इनको एक बार फिर हम सबको ही मिलकर ही रंगीन करना होगा। आज अपने अंदर ऐसे दीपक जलाओ जिससे वो सारा अंधकार दुर हो जाये जिससे ये सब हमारी खुशियां फिकी पङ गई है।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

काहे का अभिमान


अभिमान यह एक ऐसा भाव है जो हर मनुष्य के अंदर भरा होता है। इसके भाव से भावित रहता है। क्या है अभिमान। मैं किसी की कही या लिखी बात नही कर रहा जिस समय जो अनुभव होता है उसे शब्द्धों का रूप दे देता हुं। तो बात चल रही है अभिमान की यह होता है या कहा जाय कि इसका क्षेत्र मैं और मेरे में होता है। अर्थात मैं इतना बुद्धिमान इतना बलवान शक्तिशाली इतनी पहुंच वाला मेरा ऐसा मकान व्यापार अच्छी नोकरी मेरे इतने अच्छे बच्चे जो मैं कहुं या जो मैं करुं वह सब सही जो अन्य कोई करे वह गलत। यानि कि अपने को दुसरे की तुलना में श्रेष्ठ समझना तथा दुसरों को तुच्छ समझना।
ये बातें मैंने मोटी मोटी वो लिखी हैं जो सबकी समझ में आ जाये। हर रोज इतनी धर्म की बातें होती हैं सभाए होती हैं। करोङो लोग रोज किसी ना किसी संत या मौलवीयों से धर्म कर्म की बातें सुनते हैं। जो कहते हैं अभिमान नही होना चाहिए अहं नही होना चाहिए। यह हमारे उन्नति के मार्ग में बहुत बङी बाधा है। और वास्तव में यह सत्य भी है। लेकिन हम बार बार अभिमान के वेग में उङते हैं और ठोकर खाकर गिर पङते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है उसको थोङा बहुत समझ आ जाता है अन्यथा उठने और गिरने का यह क्रम जीवन भर जारी रहता है।
मुझमें भी बहुत अहं अभिमान की गंदगी भरी पङी थी इसके कारण मुझे कई बार बहुत हानि और कष्ट उठाना पङा। लेकिन जब तक भगवान की कृपा का हाथ हमारे सिर पर नही आता तो हमारे आगे अभिमान रूपी पत्थर पङे दिखाई नही पङते। और फिर ठोकर खा जाते हैं। मेरे साथ एक घटना घटी जिसने मुझे प्रभु की कृपा प्राप्त करा दी। मैं 1999 में किसी कारण से जेल चला गया वहां जाकर देखा की लोग कैसे रह रहे हैं कैसे सोते हैं। क्या मैं यहां सोने के लायक हुं अहं भरा पङा था ना यह सब वो ही कह रहा है। एक बैरिग में करीब 100 से भी ज्यादा लोग सोते रहते थे। सारी बातें मुझे याद आ रही थी क्या कमी है हमारे घर में। मैं वहां के माहोल को बिलकुल भी अपने लायक नही समझ रहा था और यही कारण था कि किसी से भी बात नही करता। प्रमात्मा तो बङे शक्तिशाली हैं। उनको तो घमंड अंहकार बिलकुल भी पसंद नही है। क्योंकि अहं के चंगुल में फंसकर ही प्रमात्मा से दुर होता है उनसे विमुख होता है। जहां पर 40 आदमीयों के सोने की जगह वहां पर 100 से भी ज्यादा सो रहे फिर भी पता नही क्या वहां मुझे कहा कि यहां से जा बहार जाकर सो। मैंने उससे कहा कि कम से कम बात तो प्यार से कर ले। वह और ज्यादा भङक गया। मैं वहां से चुपचाप निकल गया। सारा दिन तनाव से भरा रहा। मैंने अकेले एक पेङ के निचे बैठकर सोचता रहा कि आखिर यह सब है क्या। ऐसा क्यों हो रहा है। मेरा दिमाग तेजी से चल रहा था। यह कैसी विडम्बना है कि दो दिन पहले ही में अपने घर में आराम से सौ रहा था तो आज ही मेरे पास बैठने के लिए भी जगह नही है। ऐसे हालात बन गया कि एक पेङ के निचे बिलकुल अकेला बेसाहरा अनाथ की तरह बैठा। कोई कुछ पुछने वाला नही। कहां गया घर बार मां बाप भाई बहन यार दोस्त धन दौलत कुछ भी काम नही आया। किस चिज का अभिमान।
फिर मुझे एक घटना याद आयी पांडवो ने इंद्रप्रस्थ बसाया ऐसा भव्य किला कि आज तक कोई दुसरा बना पाया। लेकिन प्रभु की मर्जी की सोने के सिंहासन पर बैठने वाले फुलों पर चलने वाली द्रोपदी जंगल के कांटो पर रहे धरती पर सोये तो हम काहे का अभिमान करते हैं।
दोस्तों ये सिर्फ मेरे ही जीवन की सच्चाई नही हर व्यक्ति के समक्ष प्रमात्मा संकेत देते हैं। लेकिन जिस पर कृपा नही होती वो नही समझ पाते की करोङो की गाङी में बंगले में रहने वाले इस शरीर को एक झटके में ही ऐसा कर देंगे कि जिनको अपना समझता है वो ही इसे आरामदेह विस्तर से उठाकर सफेद चद्दर पर ढांप कर धरती पर लिटा देंगे।

जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर- 09210650915

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

बापु को श्रद्धांजली



सुबह से ही हर अखबार में न्युज चैनल पर बापु को श्रद्धांजली दी जा रही है। सरकार 2 अक्तुबर को इतना खर्च देगी की हमारे सैंकङो गरीब परिवारो को खाना मिल सकता है। जगह जगह बहुत बङी बङी सभायें होगी। सारे नेता बयानबाजी करते देखे जायेंगे बापु प्रतिमा पर पुष्प चढायेंगे। उनके जीवन की चर्चा करके उनके कार्यों की सराहना करके एक दुसरे को हम सबको उस पर चलने के लिए कहेंगे। और कार्यक्रम खत्म हुआ कोन बापु कोन गांधी सब भुल जायेंगे।
क्या यही मकसद था बापु का कि मेरे मरने के बाद मेरे नाम पर पैसा बहायें और सभाएं करके भाषणबाजी करें।
क्या सोच रहे होंगे बापु रो रहें होंगे कहीं कोने में खङे होकर।
कहीं उनके चष्में की बोली लग रही हैं कहीं किसी और सामान की। सबसे पहले तो ये देखो की बापु ने हमारे लोगो को क्यों नही दी सारी अपनी चीजें जो आज विदेश में बौली लग रही है। अगर इस लायक समझते तो अपने बच्चों को ही देते। कोन पिता चाहता है कि उसकी कोई भी वस्तु किसी दुसरे के घर जाये।
लेकिन दोस्तो बापु को किसी भी चीज से आसक्ति नही उन्होने तो अनासक्त जीवन जीया है। 1892 के करीब बापु 300 रूपये प्रतिमाह कमा लेते थे। क्या कमी थी उनके पास वो भी हम सबकी भांति मोज ले सकते थे। ऐसो आराम का सब सामान तो था ही अपने परिवार के साथ आन्नद से जीवन जी सकते थे।
आज के नेता जो देश को चला रहे हैं जो आज के दिन बापु को पुष्प अर्पित करके श्रद्धांजली देंगे। अगर उनको उनकी पसंद का बंगला नही मिलता तो रहते नहीं। जिस देश में गरीब किसान रोज आत्म हत्या कर रहे हैं। आये दिन ना जाने कितनी मासुमों की चीख से दिल दहल उठता है। पता नही कितनी अबोद्ध बच्चीयां भेङियों की हवस की शिकार हो रही हैं। ना जाने कितने हिंसा का शिकार हो रहे हैं।
वहीं इन सब हालातों से बेखबर हमारे देश के नेता फाईव स्टार होटलों में कई कई महिने मोज करते है।
उनको तो बस आज मौका प्रप्त हुआ है। उस आदमी की प्रतिमा पर फुल चढा रहे हैं जिन्होंने अपनी गरीब जनता की हालात देखी। एक बार बापु सुना है कि उङीसा में चले गये वहां देखा कि औरतों के पास बदन ढांपने के लिए कपङा तक नही है। तो बापु की आंखों में आंसु आ गये। और क्या किया जरा ध्यान देना देश के नेताओं वो कहीं फाईव स्टार में नही गये। जो बापु दो सुती धोती लपेटते थे उनमें से एक को किसी महिला को ओढने के लिए देकर स्वयं एक धोती के दो टुकङे करके एक को लुंगी की जगह बांध लिया तो दुसरे भाग से शरीर के ऊपर के हिस्से को ढांप लिया। ये थे बापु गांधी।
मेरी तो समझ ही नही आ रहा कि मैं उन्हें क्या अर्पित करूं। मेरे पास क्या है उस महान पुरूष को देने के लिए। जिन्होंने अपना ही नही परिवार को भी इस देश को समर्पित कर दिया था। मां कस्तुरबा गांधी कितने दिनों जेल में रही और सुना है कि अंतिम सांस भी जेल में ही ली है। क्या कसुर था उनका क्या पङी थी बिना बात इतना कष्ट उठाने की।
70-75 साल की वृद्धवस्था में आराम करने के दिन फिर भी अन्याय और अत्याचार का पुरजोर विरोध किया और नमक उठाकर नये कानुन की खिलाफत की।
आज बापु मात्र किताबों तक ही सिमित रह गये हैं या फिर भाषणो में। 2 अक्तुबर को विस्व अहिंसा दिवस मनाया जाने लगा। लेकिन क्या विस्व में अहिंसा है। सारी दुनिया उस महान पुरूष को मान रही है। फिर ऐसा क्या है जो बढती हिंसा पर काबु पाने में नाकाम हो रही है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि एक आम आदमी मोहनदास कर्मचंद गांधी को ऐसा कोनसा पारस प्राप्त हुआ था जिससे लोग उन्हें बापु, राष्टपिता कहने लगे और उनकी महानता के ऐसे दीवाने हुए की उस वृद्ध शरीर जिसमें ताकत सिर्फ चलने के लिए ही थी उनके पिछे पागलों की तरह जनता चलती थी। उनके मुख से निकला एक एक शब्द्ध को गुरूमंत्र की तरह मानते थे।
दे दी हमें आजादी बिना खङग बिना ढाल,, साबरमति के संत तुने कर दिया कमाल।
कोनसा सुत्र था वो जिससे उन्हें कभी किसी भी चीज से आसक्ति नही हुई। अनासक्त रहे।
कहां से प्राप्त हुआ सत्य और अहिंसा का मार्ग जिसकी वजह से बापु ने सत्याग्रह किये।
बापु के वाक्य हैं कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। इस बात को भुलकर लोग उन पर फुल चढाने में लगे हैं उनके चस्में उनकी लाठी के पिछे पङे हैं। अरे पागलों नादान भाईयों बापु के जीवन में ही वो रास्ता है वो संदेश है जिसको हम उन्हें श्रद्धांजली दे सकते हैं।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-9210650915