बुधवार, 16 दिसंबर 2009

प्रेम बङा दुर्लभ है----



दिखता तो ऐसा नही है हमें तो हर तरफ प्रेम ही प्रेम ही दिखता हम तो दिन में कई बार सुनते होंगे की जैसे कोई कहता है कि मैं तो फलां आदमी से बङा प्रेम करता हुं। और वह भी मुझसे बहुत प्रेम करता है। जब चारो तरफ प्रेम ही प्रेम है तो आप सोच रहे होंगे की शिवा पागल हो गया है क्या जो कह रहा है कि प्रेम बङा दुर्लभ है। ऐसा हो सकता है कि शिवा के जीवन में ही प्रेम ना हो सिर्फ और सिर्फ जीवन नीरस हो।
चाहे कोई जैसा भी समझे लेकिन मैं जीवन के तथ्यों को गहराई से जांचकर परखकर उनका विशलेषण करके ही कुछ लिखने का साहस करता हुं।
सच्चाई बङी कङुवी होती है कई बार सच को निंगल पाना नामुनकिन हो जाता है। और हम ऐसी असमंजस की हालात में फंस जाते हैं की अगर स्वीकार करें तो मरे ना करें तो मरे। हमारे यहां एक कहावत है पागल गिदङ के किसी ने कान पकङ लिए अब छोङे तो खाने का डर और नही तो कब तक पकङे रखेगा। तो यह सच्चाई है कि प्रेम बङा दुर्लभ है अर्थात प्रेम होना बङा कठिन है।
यहां संसार में तो कोई मानने को ही तैयार नही होता क्योंकि आप हो या मैं हममे से कोई भी नही चाहता की हमारी किसी भी बात की पोल सबके सामने खुल जाये सबके सामने उजागर हो जाये।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में एक जगह कहा है कि हजारों में कोई एक मुझे खोजने के लिए चलता है यानि की हजारों में से किसी एक के अंदर प्रेम का बीज अंकुरित हुआ। और उनमें से भी कोई एक है बिरला जो मुझे तत्व से जानता है। कितना स्पस्ट कहा है लेकिन हमारी तो समझ में ही नही आता। अरे बाबा जब किसी के अंदर प्रेंम उपजेगा तो ही तो प्रमात्मा की तरफ चलेगा अर्थात मानवता, अहिंसा, सदभावना, सहयोग, मैत्री और करूणा ह्रदय में प्रवेश करेगी।
सर्वप्रथम यह समझना चाहिए की प्रेम है क्या कैसे होता। कई बार हम किसी और चीज को ही प्रेम समझते रहते हैं। और भागते रहते हैं जीवन भर उसी के पीछे पागलों की तरह, और पता भी नही रहता की क्या कर रहे हैं और जाना कहां है। और अंदर ही अंदर खुश होते रहते हैं कि प्रेम प्रमात्मा का गुण है जो हमारे भीतर सबसे ज्यादा है।
एक छोटा सा उदाहरण है एक कोई गरीब आदमी था बेचारा उसने जीवन में कभी खीर नही देखी थी। उसका एक साथी खीर की बङी तारिफ कर रहा था। आज तो भाई मजा आ गया किसी ने मुझे खीर खिलाई। उस बेचारें ने बङी सहजता और भोलेपन से पुछा कि भाई कैसी होती है खीर.............
दोस्त ने कहा मीठी स्वाद्धिष्ट बङी लजीज होती है।
उसको क्या पता बेचारे को पुछता है की भाई देखने में कैसी होती।
अब वो कैसी बताये सामने एक बगुला खङा था कहने लगा देख इस बगुले जैसी सफेद होती है।
तो आप और हम सब समझ गये कि क्या हर सफेद चीज खीर हो सकती है। वैसी ही उपमा प्रेम की हो रही है। हम चाहे किसी से भी बात करके देखे बस यही कहेगा की मुझसे ज्यादा प्रेम तो कोई करता ही नही। कि इतना प्रेम करता हुं की फलां आदमी के बिना जी नही सकता। अरे भोले भाई प्रेम तो जीना सिखाता है जीवन को कैसे जीये ये हमें सिखाता है। जहां यह बात है कि हम जी नही सकते, तो प्रेम के बजाय कुछ ओर ही है जिसका हमने दर्शन किया है। राधा ने तो कभी नही कहा था की मैं कृष्ण के बिना नही जी पाऊंगी। और मीरा तो कृष्ण के प्रेम के आन्नद में झुम उठी थी, और कोई भी व्यक्ति दुखों में तो झुमेगा नही। भगवान श्री कृष्ण प्रेम के महासागर हैं। इसलिए बार बार कहते हैं कि हे अर्जुन तु मेरा सखा है भक्त है इसलिए जो गोपनीय से भी गोपनीय ज्ञान है वह मैं तुझे दे रहा हुं। अर्थात वह रहष्य तुझे बता रहा हुं। और हमारा कैसा प्रेम है। कि मैं फलां से प्रेम करता हुं वह भी मेरी सारी बात मानता है लेकिन जिस दिन उसी आदमी ने हमारी कोई बात मानने इंकार कर दिया तो सारा प्रेम टुटकर बिखर जाता है अब उससे खराब कोई नही है वह ही हमारा सबसे बङा दुष्मन बन जाता है। अरे भाई प्रेम तो दिव्य है अलौकिक है असीम है किसी का बंधन नही होता इसके ऊपर। और अगर किसी के अंदर एक बार अंकुरित हो जाये तो फिर जो भी उसके निकट आयेगा सभी को प्रेम मिलेगा ऐसा नही है जैसे एक मां अपने बच्चे को तो सीने से गलाकर रखती है और दुसरे का बच्चा चाहे रास्ते पर पङा रोता रहे कोई दया नही आती कोई प्रेम नही उमङता इतना स्वार्थी नही होता प्रेम इतना संकुचित नही होता।
जैसा आजकल देखा जा रहा है हम सबके समक्ष है एक लङका और एक लङकी आपस में बहुत प्यार करते हैं और एक दुसरे के लिए सभी दीवारें सभी मर्यादाएँ तोङकर मां बाप के प्रेम को ठोकर मारकर एक बंधन में बंध जाते हैं। कितना अटुट प्रेम है जिसने मां की ममता को भी दरकिनार कर दिया और पिता की परवरिश को भी अनदेखा कर दिया। एक दुसरे की हर बात को हर क्षण मानने को तैयार रहते हैं। एक दुसरे की दिल की धङकन हैं। कुछ समय बाद उन्ही के घर के प्रेम के मंदिर में हिंसा के कुत्ते भौंकते हैं नफरत और घृणा हर पल नाचती है। तो कहां छु मंत्र हो जाता है वह प्रेम। समझना बहुत कठिन है कोई सच्चाई को स्वीकार नही करना चाहता। सब भ्रम में जी रहे हैं। लोगो ने अपनी इच्छाओं को आसक्ति को प्रेम का चोला पहनाकर सबको को धोखे में रखते ही हैं स्वंय को भी धोखा दे रहे हैं।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-- 9210650915