गुरुवार, 16 जुलाई 2009

मां का आंचल





तपती गर्मी
चिचिलाती धुंप
लु के थपेङे
बारिश की फुहार
तुफान की मार
कभी कोहरा तो
कभी शीत लहर
क्या करूं कहां जाऊं
समझ नही आता बहुत हुं बैचेन
भागता रहता हुं बचता रहता हुं,
लेकिन दिल को नही है चैन ....
हर समय रहता हुं भयभीत
अनजाना डर सताता है.........
भागता रहता हुं हर क्षण
मन बहुत घबराता है....
कितना टुटा कितना बिखरा
बिखरता ही गया..........
रोया बहुत बिलबिलाया
कहीं ना मिला बसेरा..
कभी अपनों ने मारा
कभी गैरों ने लुटा
कभी खुद गिर गया
तो कभी समय ने पीटा
विपत्तियां आती रही
अलगाव होते रहे
अपने सब बिछुङते गये
याद करता हुं उस पल को
जब
करूणा, ममता, स्नेह और
प्रेम का छाता
मां का आंचल
मेरे सिर पर होता था
जब से छुटा है वो आंचल
भय
असुरक्षा
व्याकुलता
अशांति
पीङा
दुख
और आंसु
और कुछ नही मिला जीवन में..
होकर बच्चा बैचेन जब भी बिलबिलाता है
सुन आवाज दिल के टुकङे की
मां का दिल भर आता है
कितनी भी तपती धुंप हो
या हों लु के थपेङे
अपने आंचल में छुपा लेती है
एक ममता भरा चुंबन देती गाल पर
सारी पीङा हर लेती है............
एक ना आंसु बहे मेरे लाल का
उससे पहले ही आंसु बहा लेती है
सारी दुनिया में भागता रहा
ढुंढता रहा उस आंचल की छांव को
लेकिन
नही मिल सका
नही मिल सका
नही मिल सका
लिख रहा हुं
रो रहा हुं
उस आंचल के पाने को
लेना पङेगा नया जन्म
होते हैं बदनशीब जो भुल जाते हैं
उसे
जिसने खुद कष्ट उठाये
पीङा सही रात भर जागती रही
एक आवाज सुनकर अपने लाल की
नींद उङ जाती थी
शरद रात गीला बिस्तर
लेकिन बच्चे को सुखे में सुलाती थी
जीवन में मिल जाती है हर चीज
बस मां और मां का आंचल नही मिल पाता ही
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर- 09210650915