शनिवार, 28 अप्रैल 2012


बाबा-बाबा ना रहे,, नेता- नेता ना रहे........... पहले बाबा नाम को लोग बङी श्रद्धा से लिया करते थे और नेताओं के तो पिछे लोग अंधे होकर चलते थे। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि बाबाओं से भी लोग घबराने लगे हैं, और नेताओं से तो दहशत में हैं। इसका क्या कारण है, जानते तो सब हैं लेकिन क्या करें हमारा देश बापू गांधी का देश है बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, बुरा मत देखो बस सहते रहो। पहले नेता होते थे कि जनता के दुखों को देखकर रो उठते थे, लेकिन आजकल तो कुछ अच्छा ही हो रहा है जनता को रोटी के लाले पङे हैं. और नेताओं के विदेशों में बैंक खाते भरे पङे हैं। बाबाओं के पास लोग इस संसारी दुख और माया से थोङा विरक्त होने के लिए जाते थे लेकिन आज तो हमारे बाबा ही माया पति हुए बैठे हैं, तो जनता किस उद्देश्य से जाये। जिस मारा मारी में एक ग्रहस्थ पङा है उसी मारा मारी में बाबा पङे हैं। तो फिर क्यों जाये बाबा के पास............................ लेकिन जनता आज भी भगवे धारी को भगवान ही मानती है उन्हें ये नही पता की देखो निर्मल बाबा को शराब चढवा कर. गोल गप्पे खिलाकर और औरतों को पर्स में ज्यादा पैसे रखकर और खरीद दारी करके लोगों के कष्टों का निवारण कर रहे हैं। और कई बाबाओ ने तो अपनी दुकान तक खोल ली है कि नहाने के लिए साबुन तेल तक हमारे यहीं से ले जाओं। और बाबा रामदेव की तो बात ही ना करो वो तो ऐसे हैं कि माया पति तो हैं ही अगर देश में कहीं कुछ भी हो उसी पर बोलने लगते हैं हां इनके सामने तो नेता भी कुछ कम ही बोलते हैं। इसका सबसे बङा कारण क्या है..................................................... भगवान ने गीता में एक शब्द्ध कहा है कि हे अर्जुन तु मेरा भक्त बन। लेकिन क्या करें सारे बाबा मुझे लगता है कि उनकी यह बात किसी के याद तक नही रही और खुद को ही भगवान समझने लगे हैं। इस बात का हमें ही चिंतन करना है की कहीं ऐसा ना हो की हम हम ही ना रहें तो कैसा होगा। यह बात बङी खतरनाक हो जायेगी इस माहोल को देखते हुए तो मुझे ऐसा लगता है कि जब बाबा बाबा ना रहे, और नेता नेता ना रहे, तो एक दिन ऐसा ना हो जाये पत्नि पत्नि ना रहे पति पति ना रहे, मां मां ना रहे बेटा बेटा ना, रहे नोकर नोकर ना रहे मालिक मालिक ना रहे, पुलिस पुलिस ना रहे और जज जज ना रहे। ऐसी परिस्थिती में देश और पुरी दुनिया का कोन जिम्मेदार होगा अब तो यह भी नही कह सकते की हमें पता नही था। कभी ऐसे हालात बने तो हम सबके याद आयेगा कि था एक पागल जिसने यह बात एक दिन अपने पागल पन में आकर लिख दी थी लेकिन उस समय हमने उसकी बात पर गहराई से चिंतन नही किया था। अगर किस को मेरी बात गलत लगे या कोई गलती हो माफ करना लेकिन मुझे तो मेरे श्याम की इस दुनिया की यही दशा होनी दिख रही है। क्योंकि आज कोई भी जो है वह नही रहना चाहता। बाकि सब स्वतंत्र है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

नारी नही अर्द्धनारिश्वर कहो..................





नारी को प्रभु ने अपने शरीर के आधे भाग से बनाया है ऐसा हम सुनते आये हैं। चाहे कोई भी सम्प्रदाय हो उसमें ऐसा ही कुछ है कि जब सृष्टि बनी तो धरती पर आदम पहला मनुष्य को प्रभु ने भेजा जब वह हजारों साल अकेला घुमता रहा और भगवान ने सोचा कि यह तो इस तरह से पागल हो जायेगा तो उसी की एस पसली से एक महिला का निर्माण किया जिसका नाम ईव(हवा) रखा। इसका अर्थ यह हुआ कि नारी के बिना तो संसार ही अधुरा है। और कहीं भी देख लो शंकर पार्वती जी के साथ कृष्ण राधा के साथ विष्णु जी लक्ष्मी जी के साथ जीसस मदर मरियम की गोद में दिखाये जाते हैं।
यह बात हम सब लोग जानते ही नही मानते भी है कि बिना महिला के संसार का निर्माण होने वाला नही है। क्योंकि हम सब भी एक समाजिक प्राणी है। और हमें महत्व भी मालुम है कि बिना महिला के जीवन ही नही चल सकता। हमारे यहां एक कहावत है कि जिस घर में लङकी नही वो घर नरक के समान हैं। लेकिन यह हम लोग सुनते और कहते हैं असलियत तो बहत दुर है आज इतने आधुनिक युग में जहां कल्पना चावला अंतरिक्ष में पहुंच गयी वहां पर अभी भी लङकियों को भार समझा जाता है। और जिस घर में पहली बेटी हो गयी बङा अपसगुन मानते हैं। मैं किसी की क्या बात करूं अपने ही घर की बात करता हुं मेरी इकलोती बेटी डेढ साल से ज्यादा की है हमारे घर में 20 साल बाद बच्ची का जन्म हुआ तो सभी को बहुत बुरा लगा। लेकिन किसी को क्या पता था यह किसी पर भार नही है और दोस्तो लङकी किसी पर कभी भार नही बनती जैसे दुध का गिलास ऊपर किनारों तक भरा हो जिसमें एक बुंद दुध भी आने की गुंजाईस नही है वहीं पर एक गुलाब की पंखुङी भरे गिलास में डाल दो तो दुध भी बहार नही आयेगा और खुशबु भर देगी लङकी तो गुलाब की पंखुङी की तरह है सारे घर को खुशबु से भर देती है। वो ही मेरी बेटी जिससे देखकर घर में कोई खुश नही हुआ था आज वो सारे मुहल्ले की प्यारी है और घर में वो सब चीजें आ गयी जो हमारे पास थी ही नही।
अब जो बात में बताने जा रहा हुं उसे ध्यान से सुनना हो सकता है कि किसी के काम आ जाये मेरा एक दोस्त था जो अस्पताल में दवाई की दुकान पर काम करता था उसने मुझे सारी कहानी सुनाई में उसी के अनुसार लिख रहा हुं।
एक दिन उसके पास मालिक का ड्राईवर आया और कहने लगा कि भाई मेरी बीबी के गर्भ की सफाई करनी है तो उसने अपने सिनियर से पुछकर दवाई दे दी लेकिन वह महिला 3 माह से ज्यादा की गर्भवति थी उसकी ब्लीडींग तो शुरू हो गयी लेकिन सफाई नही हुई और उसे बङी परेशानी होने लगी तो उसे लेकर वो लोग पास के अस्पताल में गये वहां पर उसकी सफाई हो गई।
इस घटना को कोई एक महिना भर ही गुजरा होगा तो जिसने दवाई दी थी उसके पैर में अचानक 1 इंछ गहरा कांच धंस गया और जो सिनियर था वो मरने से बचा पिलिया में उसकी इतनी हालत खराब हो गयी और अंत में जिसकी बीबी थी वो गाङी लेकर नोयडा जा रहा था कि ऐसा एक्सीडैंट हुआ की करीब 18 महिनों तक बैड पर ही पङा रहा और बाद में भी काम करने के लायक नही रहा। जब यह घचना उसने मुझे बताई तो मेरे मुंह से एकाएक निकला यह उस बच्ची की चिख का फल है। ऐसा नही है कि हमारे कर्मों का फल हमें नही मिलता मिलता तो हैं लेकिन हम उसे समझ नही पाते और उसका कोई दुसरा कारण मान लेते हैं।
दोस्तों लङकी ही है जो घर में बाप भाई या कोई भी कुछ काम कहता है तो रोटी को छोङकर पहले काम करती है लङका कभी नही उठता देखा होगा।
और यह सारा समाज ही आज उसी बच्ची पर अत्याचार कर रहा है जब गर्भ में आयी और मां बाप को पता लग गया तो उसका पेट में ही गला घोंटने की सोचते हैं और अगर किसी तरह से जालिम की नजरों से बचकर पैदा हो गयी घर में सभी उसका पैदा होते ही बहिष्कार करने लगते हैं दादी तो कहती है कि पता नही कैसी बहु है पहले ही बेटी जन दी जबकि दादी भी भुल गयी की तु भी किसी दिन एक बच्ची के रूप में जन्मी थी। चलो कोई बात नही पैदा भी हो गयी थोङी बङी क्या हुई की हवश के भेङियों की नजरों से नही बच पाती किसी तरह से अपने को बचाती हुई बङी भी हो गयी शादी भी हो गयी तो सबसे बङा कष्ट लोग आजकल लङकियों को तो वस्तु ही समझने लगे हैं जैसे कुर्सी मेज फ्रिज टीवी बस दहेज के दानवों का अत्याचार शुरू हो जाता और हद तो तब होती है जब उस कोमल सी बच्ची को शराब के नशे और दहेज के लालच में पंखे पर लटका दिया जाता है या आग के हवाले कर दिया जाता है या फिर रोज रोज की यातनाएं झेलती रही और मरती रहे अब फैसला आपके हाथों में है कि हमें क्या करना है बस लिखने से कोई काम होने वाला नही है जब तक हम सब कोई ठोस कदम नही उठायेगें आज कलम उठाने के साथ साथ आवाज उठाना भी बहुत जरूरी है।

रविवार, 15 अप्रैल 2012

देश को तोङने का नही जोङने का काम करे

देश को टुटने ना दें.........
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।