रविवार, 15 अप्रैल 2012

देश को तोङने का नही जोङने का काम करे

देश को टुटने ना दें.........
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।
समय ऐसा आ गया है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कई वर्षों से देख रहे हैं कि एक बार श्रीमति शीलादीक्षित जी ने कहा था कि दिल्ली में जो अपराध बढ रहा है वो युपी बिहार और बहार से आये लोगों के कारण हो रहा। लेकिन भाईयों ये तो कोई कह नही सकता फलां जगह का आदमी अपराधी ही होगा लेकिन ऐसे बयान देना देश में अराजतकता फैलाना है। अब आप ही देखो कभी लालु जी मुम्बई में कहते हैं चाहे कोई कुछ भी कर ले छठी पुजा वही करेंगें तो राज ठाकरे कहता है कि हम यहां पर नही आने देंगे और गरीब लोगों की जैसी पिटाई मुम्बई में हुई वो सभी को मालुम है। अब भी कुछ ऐसा ही हुआ नितिश जी ने कहा कि हम बिहार दिवस के अवसर पर मुम्बई में लोगों को सम्बोधित करेंगे तो राज ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया नही ऐसा नही होने देंगे हालाकि बाद में कुछ शर्तों के अनुसार दोनो में सलाह बन गयी। एक बार माया जी मुर्ती लगवाने के लिए संघर्ष करती है तो दुसरे नेता उन्हे गिराने के नाम पर जनता की सहानुभुति बटोरना चाहते हैं। लेकिन क्या जनता ये सब नही जानती है कि जो राहुल जी कहते हैं कि युपी का सारा पैसा हाथी खा गया तो वो किस तरफ इशारा है। मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने कहा था युपी सरकार का कोश बिलकुल खाली है पहले जनता ने माया को बनाया अब मुलायम को बनाया हां यह हो सकता है हाथी की खुराख ज्यादा हो साईकल पर तो खर्चा बहुत कम ही होता है, हाथी तो सारे गांव को खा जाये तो भी उसका पेट ना भरे।
मेरी आज तक समझ में यह नही आया कि मुम्बई में जिन लोगों की पिटाई मराठी माणुस ने की जिसका श्रेय राज ठाकरे को जाता है उनकी क्या गलती थी..... देश में मैंने बहुत राज्यों में घुमकर और लोगों से बात करके देखा है एक आम आदमी को ना तो किसी दंगे से कोई लेना देना है ना किसी साम्प्रदायिकता से उसे तो बेचारे को अपने भेट की भुख शांत करने के लिए ही सुबह से रात तक कोल्हु के बैल की भांति पिलना पङता है तब जाकर उसको दो टाईम की रोटी का जुगाङ कर पाता है लेकिन फिर भी देश में कितनी हिंसा हो रही है मैं किसी एक दंगे या हिंसा को नाम नही लिखना चाहता ना ही मुझे किसी से कोई लेना देना नही है लेकिन एक बात तो मैं कहना चाहता हुं कि मंदिर गिरे चर्च गिरे या मस्जीद हानि तो हमारी ही होती है गोधरा में ट्रेन जले या दंगो में लोग जले इसमें मर तो हमारे ही भाई रहे हैं ना। और दुसरा पहलु की किसी से भी बात मैंने आजतक की है किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति किसी से घृणा नही करता तो भी सारे देश में जाति के नाम पर सम्प्रदाय के नाम पर भाषा के नाम पर प्रांत के नाम पर क्यों लोग आपस में जल रहे हैं। क्या मराठियों का हक दिल्ली पर नही है देश सभी के बलिदान से मिला है चाहे वो शिवाजी महाराज हो या भगतसिहं हो या आजाद हो अगर वो लोग भी कहते कि यह आजाद तो युपी के हैं भगतसिंह तो पंजाब के हैं उन लोगो ने कुछ नही कहा वो भारत माता के थे। उन लोगो के बलिदान का हमारे ठेकेदारों ने विभाजन कर दिया, एक विभाजन को अभी देश भुला नही पाया कि देश में भी विभाजन की तैयारी है। हमारे यहां एक कहावत है बंधी झाङू भारी वजन को खिसका सकती है अगर वो झाङु बिखर गयी तो खुद ही टुट जायेगी।
सबसे प्रार्थना है कि देश को टुटने ना दें इसे जोङने की कोशिश करें यह पता नही कितने नौ जवानो के खून के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।