बुधवार, 16 सितंबर 2009

हम तुमसे जुदा होके मर जायेंगे रो रोके



कई वर्षों पहले किसी फिल्म में के गाने में सुनी थी ये पंक्ति कि मर जायेंगे रो रो के। कितना प्रेम दिखाया गया है। कि जुदा हुए तो मर जायेंगे। कैसा अनुठा नाता है। एक दुसरे के प्रति ऐसा भाव इतना प्रेम की आंखो में आंसु और दिल से आह निकल रही है। ये पंक्ति दिल की गहराई से लिखी गयी है। हर आदमी अपने विवेक के अनुसार ही इसका अर्थ निकाल रहा है। इससे संबंधित एक दृष्टांत आता है तुलसीदास जी के जीवन का। एक दफा उनकी पत्नि कई दिन के लिए अपने मायके चली गयी। तो वो उनसे मिलने के बैचेन हो गये तङप गये। जब उनकी जुदाई नही सही गयी एक एक पल काटना बङा ही भारी और दुखद लगने लगा और वही हालात हो गयी कि हम तुमसे जुदा होकर मर जायेंगे रो रो कर। तो वो रात को ही उठकर ही चल पङे। अंधेरी काली रात के सन्नाटे को चीरते हुए तुलसीदास जी कामांधाग्नि की ज्वाला में धधकते हुए पत्नि के मायके की तरफ चले जा रहे थे। रास्ते में एक बहुत गहरी नदी भी थी। जिसे पार करने बहुत ही मुशिकल था। तो अचानक उन्हें कोई चीज तैरती हुई नजर आयी तो वो उसी के ऊपर लपक कर चढ गये। उन्हे यह भी नही दिखाई दिया कि जिस पर बैठकर यात्रा कर रहे हैं वो तो लाश है। वह तो उस वेदना में जल रहे थे जिसने आंखे बंद कर दी थी। यानि की हम सब की आंखो पर अज्ञान का पर्दा डाल दिया। बस उन्हें तो पत्नि के पास पहुंचना था। नदी पार करके पत्नि के घर तक पहुंच गये। अब आगे कैसे जाये दरवाजा बंद सब सो रहे हैं इस बेवक्त जगा भी नही सकता। क्योंकि समाज की लाज शर्म भी तो होती है।
पत्नि के कमरे की खिङकी खुली दिख रही थी। लेकिन चढे कैसे वहां तक। उनकी किष्मत अच्छी थी रात को भी एक रस्सी लटकी नजर आयी तुलसीदास जी उसे ही पकङकर चढ गये। पत्नि ने देखा तो अचम्भीत हो गयी। उसे तो यकिन ही नही हो रहा था कि वो इतनी रात में आ सकते थे। उसने पुछा कि आप कैसे चढे तो तुलसीदास जी ने बङी सहजता से बता दिया कि आपके खिङकी के पास एक रस्सी लटक रही है। जैसे ही उसने आश्चर्य से देखा तो देखती ही रह गयी क्योकि वह रस्सी नही सांप था। उनकी पत्नि भी बहुत समझदार थी उन्होने एक बात कही जिसने तुलसीदास जी को ऐसा मार्ग दिखाया जिससे आज सारा देश ही उन्हे याद करता है। उन्होने कहा था कि
जितनी नियत हराम में उतनी हर में होय,
तो चला जा बैकुंठ को पल्ला पकङे ना कोई।
भाईयों ये वही मार्ग है जिसकी जुदाई में सारा जीवन रोते रहते हैं और मर जाते हैं। लेकिन हम सब अपनी तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता के कारण उन नेत्रों से इसका दर्शन नही करते। जिसका रास्ता तुलसीदास जी की बीबी ने दिखाया था। लेकिन हमने हम सबने अपनी सुविधा के अनुसार ही इसका वर्णन किया। कोई अपनी बीबी की जुदाई में रोता रहा तो कोई अपनी प्रेमिका के गम में कोई धन के वियोग में मर रहा है तो कोई किसी की जुदाई में।
हर व्यक्ति के अंदर से आवाज निकलती है कि तु अपने प्रियतम से बहुत लम्बे समय से बिछुङा हुआ है। और उसी की जुदाई में ही कभी इधर कभी उधर भागता रहता है रोता रहता है। यही तो इतने जन्मों से होता आया है लेकिन क्या करे जहां हमें अपने प्रेमी को खोजना चाहिए वहां तो खोजते नही और बस किसी और से ही अपना काम चलाने की सोचते हैं। कुछ समय तक तो हमें शांति सी मिलती है लेकिन वह शास्वत नही है ध्रुव नही है। वो तो अनित्य है क्षणिक है।
किसी किसी के अंदर थोङी सी चेतना आती है तो वह अपने दिल की तङप को कागज पर लिखकर ही शांत कर लेता है। हम तुमसे जुदा हो के मर जायेंगे रो रो के,,,,,,, और इसे ही गाते रहते हैं। इससे तृप्ति तो होती नही लेकिन जैसे किसी मरीज को नींद नही आती है और दवा देकर डाक्टर लोग थोङा आराम दे देते हैं बस यही हम सब कर रहे हैं।
हम थोङी थोङी सी शांति को वही समझ जाते हैं जिसकी जुदाई में रो रो के मरते रहते हैं। हमें उसे ही खोजने का प्रयत्न करना चाहिए।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-9210650915