गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

काहे का अभिमान


अभिमान यह एक ऐसा भाव है जो हर मनुष्य के अंदर भरा होता है। इसके भाव से भावित रहता है। क्या है अभिमान। मैं किसी की कही या लिखी बात नही कर रहा जिस समय जो अनुभव होता है उसे शब्द्धों का रूप दे देता हुं। तो बात चल रही है अभिमान की यह होता है या कहा जाय कि इसका क्षेत्र मैं और मेरे में होता है। अर्थात मैं इतना बुद्धिमान इतना बलवान शक्तिशाली इतनी पहुंच वाला मेरा ऐसा मकान व्यापार अच्छी नोकरी मेरे इतने अच्छे बच्चे जो मैं कहुं या जो मैं करुं वह सब सही जो अन्य कोई करे वह गलत। यानि कि अपने को दुसरे की तुलना में श्रेष्ठ समझना तथा दुसरों को तुच्छ समझना।
ये बातें मैंने मोटी मोटी वो लिखी हैं जो सबकी समझ में आ जाये। हर रोज इतनी धर्म की बातें होती हैं सभाए होती हैं। करोङो लोग रोज किसी ना किसी संत या मौलवीयों से धर्म कर्म की बातें सुनते हैं। जो कहते हैं अभिमान नही होना चाहिए अहं नही होना चाहिए। यह हमारे उन्नति के मार्ग में बहुत बङी बाधा है। और वास्तव में यह सत्य भी है। लेकिन हम बार बार अभिमान के वेग में उङते हैं और ठोकर खाकर गिर पङते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है उसको थोङा बहुत समझ आ जाता है अन्यथा उठने और गिरने का यह क्रम जीवन भर जारी रहता है।
मुझमें भी बहुत अहं अभिमान की गंदगी भरी पङी थी इसके कारण मुझे कई बार बहुत हानि और कष्ट उठाना पङा। लेकिन जब तक भगवान की कृपा का हाथ हमारे सिर पर नही आता तो हमारे आगे अभिमान रूपी पत्थर पङे दिखाई नही पङते। और फिर ठोकर खा जाते हैं। मेरे साथ एक घटना घटी जिसने मुझे प्रभु की कृपा प्राप्त करा दी। मैं 1999 में किसी कारण से जेल चला गया वहां जाकर देखा की लोग कैसे रह रहे हैं कैसे सोते हैं। क्या मैं यहां सोने के लायक हुं अहं भरा पङा था ना यह सब वो ही कह रहा है। एक बैरिग में करीब 100 से भी ज्यादा लोग सोते रहते थे। सारी बातें मुझे याद आ रही थी क्या कमी है हमारे घर में। मैं वहां के माहोल को बिलकुल भी अपने लायक नही समझ रहा था और यही कारण था कि किसी से भी बात नही करता। प्रमात्मा तो बङे शक्तिशाली हैं। उनको तो घमंड अंहकार बिलकुल भी पसंद नही है। क्योंकि अहं के चंगुल में फंसकर ही प्रमात्मा से दुर होता है उनसे विमुख होता है। जहां पर 40 आदमीयों के सोने की जगह वहां पर 100 से भी ज्यादा सो रहे फिर भी पता नही क्या वहां मुझे कहा कि यहां से जा बहार जाकर सो। मैंने उससे कहा कि कम से कम बात तो प्यार से कर ले। वह और ज्यादा भङक गया। मैं वहां से चुपचाप निकल गया। सारा दिन तनाव से भरा रहा। मैंने अकेले एक पेङ के निचे बैठकर सोचता रहा कि आखिर यह सब है क्या। ऐसा क्यों हो रहा है। मेरा दिमाग तेजी से चल रहा था। यह कैसी विडम्बना है कि दो दिन पहले ही में अपने घर में आराम से सौ रहा था तो आज ही मेरे पास बैठने के लिए भी जगह नही है। ऐसे हालात बन गया कि एक पेङ के निचे बिलकुल अकेला बेसाहरा अनाथ की तरह बैठा। कोई कुछ पुछने वाला नही। कहां गया घर बार मां बाप भाई बहन यार दोस्त धन दौलत कुछ भी काम नही आया। किस चिज का अभिमान।
फिर मुझे एक घटना याद आयी पांडवो ने इंद्रप्रस्थ बसाया ऐसा भव्य किला कि आज तक कोई दुसरा बना पाया। लेकिन प्रभु की मर्जी की सोने के सिंहासन पर बैठने वाले फुलों पर चलने वाली द्रोपदी जंगल के कांटो पर रहे धरती पर सोये तो हम काहे का अभिमान करते हैं।
दोस्तों ये सिर्फ मेरे ही जीवन की सच्चाई नही हर व्यक्ति के समक्ष प्रमात्मा संकेत देते हैं। लेकिन जिस पर कृपा नही होती वो नही समझ पाते की करोङो की गाङी में बंगले में रहने वाले इस शरीर को एक झटके में ही ऐसा कर देंगे कि जिनको अपना समझता है वो ही इसे आरामदेह विस्तर से उठाकर सफेद चद्दर पर ढांप कर धरती पर लिटा देंगे।

जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर- 09210650915