शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

भय का सर्वथा अभाव


कोई भी जीव,,,, मनुष्य हो या जीव जन्तु या देवता कोई भी भय में नही रहना चाहता। हर कोई निर्भय रहना चाहता है। और हम सबके अंदर जो सबसे ज्यादा है अगर हम अपने अंदर की खोज करें तो या थोङा सा ध्यान करें तो ज्ञान होता है कि भय की मात्रा ही सबसे ज्यादा है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में भी इसका बहुत बार वर्णन किया है। कि हे अर्जुन तु भय मत कर। जब अर्जुन जैसा योद्धा महावीर शक्तिशाली व्यक्ति और जिसका संचालन स्वंय भगवान कर रहे हैं उसे भी भगवान को बार बार कहने की आवस्यकता पङी की तु भय मत कर। हर व्यक्ति चाहे वह अमीर हो या गरीब व्यापारी हो या अधिकारी सब भयभीत हैं। एक आदमी की ही नही देश और विस्व की भी ही हालात हैं।
एक देश दुसरे देश से डरता है कि कहीं अटैक ना कर दे।
और इसका दर्शन हम और आप बखुबी कर सकते हैं। कि आये दिन हर देश अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करके हथियार मिशाइल आदि को दिखाकर यह दर्शाना चाहते हैं कि किसी से डरते नही हैं। कितना भी छोटा आदमी हो या बङा डर में जीवन व्यतीत कर रहे है भय में हैं।
और यही कारण है कि भगवान ने गीता के 16 वें अध्याय के प्रथम श्लोक में प्रथम वाक्य कहा है कि भय का सर्वथा अभाव ................ बिलकुल शत प्रतिशत निर्भय। उन्होंने सबसे ज्यादा जोर भय पर ही दिया क्योंकि इसी के कारण समाज में अराजकता, अलगाव, अशांति असुरक्षा और हिंसा बढती है। हम लोग भी हर समय यही सोचते हैं कि कहीं कोई हमारा अमंगल ना हो जाये कोई अनिष्ट ना हो जाये। इसी भय के बचाव के लिए सब लोग सुबह से रात तक दिन रैन एक ऐसा सुरक्षा कवच बनाते रहते हैं कि कोई भी कैसे भी ना तोङ सके। और इसी प्रक्रिया में हमसे कई अनुचित कार्य ऐसे हो जाते हैं जिससे दुसरों की सुख शांति भंग हो जाती है। और परिणाम भुगतना पङता है सभी को।
जो ये बात कही है कि भय सर्वथा अभाव तो ये गुण भी दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन हुए पूरूषों का बताया है। निर्भय वो ही रहते हैं जो सत्य कहो या प्रमात्मा कहो उसकी छतरी के निचे जो आ जाता वो ही निर्भय रहता है।
हर आदमी अपने जीवन में जीतोङ मेहनत करके धन दौलत शोहरत कमाता है कि कोई भी यह जो भी एकत्रत करता कोई भी किसी और के लिए नही कमाता सिर्फ स्वयं के लिए ही कमाता है। इतनी कुत्ता घसीङी करके पुख्ता इंतजाम अपने अंदर छीपे भय के कारण ही करता है।
एक छोटी सी कहानी है
एक सेठ के चार बेटे थे अपने जीवन काल में कठिन परिश्रम करके सेठ ने फैक्ट्री लगाई बच्चों को पढा लिखाकर कामयाब किया। चारों को अपना अपना व्यापार करा दिया। जब वह सेठ बुजुर्ग हुआ तो बीमार पढ गया। काम कर नही सकता था और बीमारी बढती गयी पैसा पानी की तरह लग रहा था। उसका बङा बेटा बोला की पिताजी सारा नगद पैसा जितना भी था हमारे पास सब लग गया कुछ नही बचा।
सेठ ने कहा बेटा पैसा तो हम बाद में कमा लेंगे एक फैक्ट्री बेच दो। इसी तरह तीन फैक्ट्री बिक गया सारा नगद जाता रहा लेकिन सेठ की हालात में कोई सुधार नही आया। डाक्टर ने कहा कि आखिरी उम्मीद है इसमें खर्चा कुछ ज्यादा ही आयेगा बस आप्रेसन करना पङेगा और सेठ जी की स्वस्थ होने की पुरी उम्मीद है।
सेठ जी की बीबी बच्चे सब इकठठे होकर सेठजी के पास गये।
इस तरह अचानक सबको एक साथ देखकर सेठजी ने उत्सुक्ता से पुछा कि क्या हुआ
सेठानी ने कहा डाक्टर कह रहा है एक लाख रूपये लगेंगे आप्रेसन करना है।
फिर क्या परेशानी है दे क्यों नही देते सेठ जी ने कहा
सेठानी ने बङी दुखी होकर बोली- आपकी बीमारी में सब कुछ बीक गया है तीन फैंक्ट्री सारा नगदी और मेरे जेवरात सब कुछ लग गया । अब हमारे पास कुछ भी नही बचा है बस एक फैंक्ट्री है। तो उसे ही बेच दो। फिर हमारे पास क्या बचेगा क्या खायेंगे हम।
सेठजी ने झल्लाकर कहा की अरे मेरी ही तो कमाई की है तुम लोग क्यों चिंता करते हो।
देखा सेठ जी बीबी बच्चे सब कुछ भुल गया बस अपनी जान की पङी है ये बात एक सेठ की नही है हर व्यक्ति की बात है। जो सारी जिंदगी इतनी मेहनत करके धन दौलत गाङी बंगला बच्चे और सारा सामान इकठठा करता है वो सब अपनी ही सुरक्षा के लिए। क्योंकि भयभीत जो रहते हैं।
ये भय ही हमारी सुख शांति और चैन का सबसे बङा दुष्मन है। भगवान बार बार कहते हैं कि हे अर्जुन तु भय मत कर उन्होंने उपदेश दिया था अर्जुन को लेकिन वो संकेत हमारी सबकी तरफ ही था। लेकिन हम रोज नित्य गीता पाठ भी करते हैं। उनके संदेश को भी पढते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि फिर भी हम भयभीत रहते हैं डरे रहते हैं। पता नही क्युं। या तो हम आसुरी प्रवृत्ति के हैं या फिर हमें पता ही नही है की हमें इस समय क्या बीमारी है।
अशांति का एक और सबसे बङा कारण है कि हम अपने अंदर इस घातक बीमारी को छीपा कर रखे रहते हैं। और इसकी किसी को जानकारी भी ना हो ये ही कोशिश करते हैं।
हमें सबसे पहले इस बात पर विस्वास करना है कि जो भी हमारी जिंदगी में अराजकता, अलगाव, अशांति, बैचेनी, चिङचिङापन रहता है उसका कारण ये भय ही है। और कब यह हमारें अंदर प्रवेश कर जाये हमें ही नही पता चलता।
और हम इसके शिकार होते चले जाते हैं। जब हमें कुछ ज्ञान ही नही रहेगा की कोन आ रहा है या जा रहा है तो हम किससे सावधान रहेंगे। लेकिन भाईयों अर्जुन ने तो स्वीकार कर लिया था कि मैं भयभीत हुं। हममे में से कोई भी इस बात को कबुल नही करता की भय हमारे अंदर अपने पैर पसार चुका है।
हर आदमी के अंदर है ये ऐसा नही है कि मेरे अंदर नही है बहुत है लेकिन मैं इसे खोजने का प्रयत्न करता हुं की ये कहां है कहां छुपा हुआ है। जैसे कोई चोर घर में घुस जाये और उसे लगे की कोई खोज रहा है तो किसी ऐसे कोने में जाकर बैठ जाता है जहां उस पर हमारी नजरें नही पङती। ये भय भी ऐसा ही करता है कहीं छुपकर बैठ जाता है।
जब भी ऐसी परिस्थती आती तो मैं ये ही खोजने की कोशिश करता की ये आया कहां से है और कहां अंदर छुपकर बैठ जाता है। तो इसके छुपने का स्थान मन ऐसा करता की कुछ अनिष्ट होने वाला है।
तो सबसे पहले बात आती अपने घर परिवार की कहीं कोई घटना का शिकार तो नही होने वाला लेकिन जब और गहराई में जाकर खोजा तो पाया की हमें अपने से ज्यादा डर किसी और का है ही नही। बस हर समय ये ही रहता है कि मेरा कुछ अनिष्ट तो नही होगा। इसका क्षेत्र सबसे ज्यादा मैं तक ही है। अगर किसी की फिक्र भी करता है या किसी के प्रति भयभीत भी होता है तो उसमें भी मैं का ही स्वार्थ होता है। मेरे मां पिता भाई बहन जमीन जायदाद बीबी बच्चों को कुछ हो ना जाये। जो मैं ये लिख रहा हुं कटु सत्य है जिसे कोई भी स्वीकार नही कर पाता क्योंकि सच्चाई से सभी को डर लगता है।
अब बात आती है कि ये भय हमारे अंदर प्रवेश कैसे और क्यों करता है। नहीं तो सब भाई सोचेंगे की बात तो इतनी गहरी कर रहा है समस्या भी सभी की है। दुनिया का एक बहुत बङा हिस्सा इसी से पीङीत है। और ये नही बता रहा कि कि इस घातक बीमारी से कैसे निजात मिले कैसे छुटकारा हो। तो जैसा मैंने अनुभव किया है की आखिर ये आता कैसे है।
इसका मुख्य कारण है अज्ञान............. यह एक ऐसा पर्दा है एक ऐसा ऐनक है जो सिर्फ अपने अनुसार ही हर चीज का दर्शन कराती है। मन अपने ही अनुसार देखता है। बुद्धि की कभी सुनता ही नही। और मन डरता बहुत है जैसे एक चोर होता है कितना डरता है बिलकुल उसी तरह ही डरता है हर किसी पर शक करता है। और जहां शक होता है संदेह होता है वहीं पर असुरक्षा भय अशांति तो आ ही जाती है। भय से मुक्ति का बस एक ही उपाय है ज्ञान। जब भी यह चोर हमारे अंदर प्रवेश करने की कोशिश करे तो सावधान रहो बस यह इतना शक्तिशाली नही है बस जैसे चोर सिर्फ खांसी सुनकर ही भाग जाता है ये भी फिर हमसे दुर ही रहेगा। बस अपने अंदर ज्ञान का एक छोटा सा दीपक जलाओ और इस बीमारी से मुक्ति पाओ।

जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915