शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दिवाली पङ रही है फिकी



दिवाली का नाम आते ही सब लोग खुशियों से झुम उठते थे। और आंखो के सामने अस्तबाजियां, बम फोङना और मिठाईयां बांटना घुमने लगता था। और इस त्योहार की हम सब महिनों पहले ही तैयारियां करने लगते थे। इस पावन त्योहार का वर्णन प्राचीन काल से शास्त्रों में भी होता आया है। आज के दिन लक्ष्मी जी की विशेष पुजा की जाती है। और कहते हैं कि इस पुजा करने के बाद लक्ष्मी जी खुश होकर हमारे घरों में निवास करती है। मैं जब छोटा करीब 7-8 साल का हुआ करता था ये उन दिनों की बात है। एक महिना पहले से ही मां से पुछने लगते थे कि दिवाली कब है क्योंकि चार दिन की छुट्टी होती थी। सब बच्चे मिलकर खुब मस्ती से खेलते कभी किसी के घर जा रहे तो कभी किसी के। हम सारे गली के बच्चे सुबह जल्दी से ही हाथों मैं छोटी छोटी सी बंदुके लेकर पटाखे छुङाने शुरू कर देते थे। अब तो सुबह इतनी ठंड नही पङती लेकिन दिनों सही ठंड पङती थी सुबह सांय। मम्मी मुझे कहती रहती थी कि बेटा अभी बहार मत जाओ शर्दी लग जायेगी जुकाम हो जायेगा। लेकिन बच्चे किसी की नही मानते थे। और सांय को कोई खिल बांटता था तो कोई मुरमुरे कोई मिठाई। लोग नोकरी से छुट्टियां कर कर के अपने घर आते थे। कितना मजा आता था। बस अब तो वो दिवाली यादों में ही रह गयी है।
होली दिवाली ईद दशहरा सब त्योहारों की खुशियां हमारे स्वार्थ ने निंगल ली है।
क्या करें कोई मिठाई खरीदने से भी डरता है क्योंकि खोया घी सब नकली बनाने लगे हैं लोग। दुसरा इन सबसे भी बङा डर है बम धमाकों का पता नही कहां विस्फोट हो जाये और दिवाली की जगह दिवाला ही न निकल जाये। दो दिन पहले ही पाकिस्तान में आतंकियों ने दिवाली को खुन से लाल कर दिया।
दिवाली दीयों का त्योहार था यानि की सबको प्रकाश दिखाने का दीये जलाना एक मतलब ये भी होता है कि अपनी खुशी में सबको शामिल करने का । लेकिन क्या करे आज तो हम एक दुसरे किसी कि भी खुशी नही देख पाते। मैं किसी एक व्यक्ति की या धर्म सम्प्रदाय की बात नही कर रहा हर आदमी की बात कर रहा हुं।
कुछ वर्षों पहले आदमी के पास कमाई के नाम पर थोङा बहुत ही होता था लेकिन आज बहुत पैसा कमा रहे हैं लेकिन किसी के पास भी वो शांति संतुष्टी नही हैं।
हम सबने अपनी शांति को दिवाली को अपने स्वार्थ तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता की आग में स्वाहा कर दिया।
और अपने को संकिर्ण करते हुए चले गये। जैसे पहले सारे मुहल्ले का साथ खुशियां मनाते थे तो लेकिन कुछ वर्षों पहले अपने परिवार तक सिमट गये। और अब लोग और संकुचीत हो गये घर परिवार की कोन करे परवाह बस अपनी बीबी बच्चे तक ही सिमट गये और हर त्योहार को बस यहीं तक बांध दिया। कहां से खुशियां मिलेगी। खुशियों के तो सारे रास्ते हमने खुद बंद कर दिये।
भगवान ने गीता में कहा है कि हे अर्जुन पृथ्वी से आकाश तक सम्पुर्ण जगत को एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हुं। जब सारे जगत में एक ही प्रकाश है एक ही ताकत है और हमने तो अपनी बुद्धि को ऐसी तामसी बना लिया है कि अधर्म को भी धर्म मानकर बस सोचती है कि जो तु करता है जो तु कहता वो ही ठीक है बाकि सब गलत। जब ये सारा जगत ही एक प्रमात्मा का है तो उसके बिना कैसे हमें खुशी प्राप्त होगी।
अरे दोस्तों दिवाली के अगले दिन होती गोवर्धन पुजा। इस पर तो भगवान ने साफ दिखा भी दिया था कि कोई भी त्योहार या खुशी संकुचित नही है। एक इंद्र को खुश करने के लिए ही ब्रजवासी उसे पुजते थे लेकिन भगवान तो दिव्य हैं विराट उन्होने तो सारे जगत को एक माला में पिरोया हुआ है। तो उनकी तो खुशी भी विराट होगी तो उन्होंने गोवर्धन को ही पुजवा दिया। कोई भी त्योहार को जब भी हम बांधने की कोशिश करेंगे तो परिणाम घातक होगा।
दिवाली का मेरे विचार से एक और गहरा रहष्य है कि आज के दिन लोगो ने इतने दीये जलाए की अगर किसी घर में कोई कष्ट या दुख पीङा हो और वो खुशी नही मना रहा हो तो सबके घर के प्रकाश से उसके घर में प्रकाश पहंचेगा यानि कि खुशियां आंयेगी।
दिवाली हो या कोई भी त्योहार हो सिर्फ मिठाई बांटने तक ही नही है। इन पावन दिनों का मतलब है कि जो हमने अपने स्वार्थ वस जो दीवारें खींच रखी हैं उन सबको तोङकर प्रेम से गले मिलों और एक हो जाओ क्योंकि हम सब एक ही माला के मोती है। जब से बिखरें हैं तभी से ही अलगाव अशांति अराजकता असुरक्षा, और भय में जी रहे हैं।
हर त्योहार आज फीका पङता जा रहा है। चाहे वह दीवाली हो या होली या फिर ईद। इनको एक बार फिर हम सबको ही मिलकर ही रंगीन करना होगा। आज अपने अंदर ऐसे दीपक जलाओ जिससे वो सारा अंधकार दुर हो जाये जिससे ये सब हमारी खुशियां फिकी पङ गई है।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915