यह बात सनातन काल से हमारे पुर्वज बताते आये हैं ! कि इस जीवन के लिए जन्म और मृत्यु सबसे बङे कष्ट हैं.. सबसे बङा नरक है !
गर्भ में बच्चा रक्त मांस के लोथङे में नीचे सिर ऊपर पैर करके पङा रहते है ! एक दो दिन नही पुरे नौ महिने ! हम तो नौ मिनट में ही दुखी हो जाते हैं बैचेन हो जाते है ! 8 -9 माह इसी तरह कष्ट उठाता हुआ पिङा सहता हुआ जब बाहर आता है तो सारा शरीर लहु से सना हुआ !
जब इस मायावी संसार में पहला सांस लेता है ! तो लहु लुहान इतनी बङी पीङा से मुक्त हुआ है, जैसे आदमी कई वर्षों पश्चात कारागार से मुक्त हुआ हो, लेकिन यहां आकर संतोष की सांस नही लेता चैन से नही बैठता ! मुक्ति की खुशी में हंसता नही बल्कि रोता है चिल्लाता है.. अगर बच्चा पैदा होते ही नही रोता तो दादा दादी मां बाप डाक्टर कहते हैं की बच्चा स्वस्थ नही है !
अरे भाई इतने कष्ट भोगकर आया है थोङा चैन लेने दो !
बच्चे की रोने की चिल्लाने की आवाज से घर में खुशी की लहर दोङ जाती है....
जो भगवान हमें दिखाते हैं अपनी माया से उसका आशय समझना चाहिए
लेकिन उसकी माया को समझना बङा दुस्तर है ! वो तो माया पति हैं हम माया के अधिन हैं !
कैसे हम माया के रहस्य को समझ सकते हैं ???
लेकिन प्रभु की कृपा से ही हमारे मन और बुद्धि में कुछ दिव्य भाव आते हैं ! जो मानव कल्याणार्थ होते हैं ...........
प्रमेश्वर अपनी माया समझाने के लिए किसी की वाणी को अपना यंत्र बनाते हैं , माध्यम बनाते हैं !
जो प्रकृति में वस्तु स्थिती दर्शायी गयी है, उसमें प्रमेश्वर तक जाने का दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग है, लेकिन हम तो बस अपनी नजरों से अपने अनुसार ही उसके दर्शन करते हैं !
अगर एक बार प्रमात्मा की दिव्य दृष्टि से प्रकृति का दर्शन करे तो वही पर्मात्मा तक ले जाने वाली सिढी है...
गर्भ में बच्चा उल्टा ही क्यों होता है ????
संसार में आता है तो उल्टा ही आता है !
अगर 100 आदमीयों से अलग अलग पुछा जाय तो सबका उत्तर अपनी अपनी बुद्धि के अनुरूप अलग अलग ही होगा....
मैने भी विचार किया की हमारे पुर्वज संत महात्मा क्यों हमे बार बार इस बात का स्मरण कराते हैं की 9 माह ऊपर पैर नीचे सिर करके मल मुत्र में पङा रहता है ! और इतने कष्ट में रहने के बाद भी बाहर आकर सब भुल जाता है.....
क्यों ऐसी मुद्रा में रहता है ?????
यह तो मात्र संकेत है प्रमात्मा का, कि जिस तरह कष्ट में जिस नरक में मां के गर्भ में घुमता रहता है उल्टा पङा रहता है और उल्टा ही निकलता है !
इससे भी बहुत बङा गर्भ जिसमें पता नही कितने हजार करोङ वर्षों न जानें कितने जन्मों से यही इसी तरह घुम रहा है भटक रहा है ! भगवान ने संकेत भी किया है, हर मनुष्य को इसारा किया ! जन्म के साथ ही ज्ञान कराने का प्रयत्न करते हैं ... लेकिन यह मनुष्य बहार आते ही इस माया की हवा में उस ज्ञान के दिपक को बुझा देता है ! फिर इसे कुछ नही दिखाई पङता ....
इस संसार में आवागमन के कष्ट के कुएं से कभी सिधा नही निकल सकता सही और सहजता से उल्टा ही निकलेगा ! लेकिन गर्भ से बाहर आते ही सब भुल गया जो प्रमात्मा ने संकेत किया था, कि यहां से निकलने का एक मात्र मार्ग बस यही है..... हम क्या करते हैं ??? जो मार्ग हमें बताया था की यहां से बहार जा सकते हो वहां से निकलने के बजाय उल्टा उसी में प्रवेश करते चले गये ....
जैसे सरकार सङक मार्ग पर कहीं लाल बत्ती, कहीं प्रवेश वर्जित है के निर्देश बोर्ड लगा देते हैं ! यह सरकार का संकेत है ! अगर हम उसमें घुसे तो फंस जाते हैं ! आदमी के बनाये दिशा निर्देश नियमों का हम पालन करते हैं ! क्योंकि नियम तोङकर किसी विपत्ति में ना फंस जाये ! लेकिन जिस कष्ट को भोगते हुए कितने आंसु बह गये और न जाने कितने शरीर जलकर राख हो गये ! उससे बचने के लिए जो निर्देश दिये हैं जो नियम बताये हैं उनको नजर अंदाज करते रहते हैं !
और सारे सिगनल तोङकर फंस जाते हैं ! रास्ता है जन्म मृत्यु कष्टों से मुक्ति पाने का
इसका मतलब यह नही है कि हम उल्टे ही खङे हो जाओ ! नही अर्थात जहां से हम उल्टे होकर अबोध सम और निर्दोश होकर आये हैं वैसे ही जाने का इंतजाम करो !
पहले स्वयं गर्भ में रहा बाहर आते ही सब कुछ भुल कर और लग गया पढाई लिखाई धन व्यापार बीबी बच्चों में ! वह क्षण याद नही जो मल मुत्र में सिर रखकर पङा था ! जिस मायावी संसार से इतना स्नेह कर रहा है मोह कर रहा है ! इसमें प्रवेश करते ही पहला सांस लिया तो रोना प्रारम्भ हो गया था ! आज इसी को सम्पुर्ण सुख सास्वत आन्नद मानकर रात दिन कोल्हु के बैल की भांति पिलता रहता है !
प्रमेश्वर कितने दयालु हैं पग पग पर संकेत देते हैं ! अब उसके घर परिवार में बच्चे पैदा हो गये उन्हे देखकर भी अपना अतीत याद नही आया ! और उनकी तोतली आवाज को सुनकर कितना आन्नदित और भाव विभोर होता है ! याद ही नही रहता की कोई शक्ति है जो तुझे पुकार रही है ....
एक और संकेत प्रभु का बच्चा जब किसी को देखता है कभी उदास होता है कभी हंसने लगता है ! हम सब इस संकेत को भी अपनी बुद्धि से समझकर बालक का चुलबुलापन शरारती देखकर कितना आन्नदित होते हैं !.
अरे भाई समझ जाओ इतने मुर्ख मत बनो जो बाद में माफी के लायक भी ना रहो ! बच्चा कभी उदास होता है कभी खुश तो कभी गम्भीर हो जाता है ! उस क्षण बच्चे को अपने सैंकङो जन्म याद होते हैं और जो सामने होता है उसे भी पहचानता है जो किसी जन्म में दुश्मन रहे या जो अपने रहे उन्हे देखकर वैसी ही मुद्रा बनाता है ! और हम उसे देखकर बाल क्रिङा समझकर खुश होते रहते हैं...
वही गर्भ वाला बच्चा यह सब देखता हुआ परिवार बीबी बच्चे आदि को सुख दुखों को भोगते भोगते कब अंत समय आ गया मुंह में दांत नही पैरों में चलने की ताकत नही फिर भी बिस्तर पङा पङा भगवान से प्रार्थना करता है हे प्रभु बस छोटे बेचे के बच्चे का मुंह और देख लुं !
अरे पागल मानव नही सम्भल रहा !!!
जब बालक का जन्म होता तो ना मुंह में दांत होते हैं ना पैरों में चलने की ताकत होती है ! वही क्षण आ गया जैसे आया था क्यों व्यर्थ में प्रार्थना कर रहा है ?????
कितने गति अवरोधक लगाये जीवन की सङक पर लेकिन क्या करें ??? कुछ देखा ही नही ! आदमी मरता है खुली हथेली होती है ! उन्हे देखकर कहते हैं देखो भाई सब यहीं छोङकर चला गया, हम भी ऐसे ही चले जायेंगे ! कुछ क्षण उपरान्त सब भुल जाता है ! और लग जाता है माया को फेर में ! और बच्चों की तोतली आवाज में !
यही संकेत है उल्टा पैदा होने का कि जब तक मानव अपने आप को इस माया और मोह से नही मोङेगा तो इसी तरह दंड भोगता रहेगा ! अपनी मंजील से दुर होता जाता है!
कुछ नही समझा साधु संतो महात्माओं शास्त्र सारा जीवन सुनता तो सबकी रहा ! देखता हर बोर्ड पर कि क्या लिखा है ??? की फलां जगह जाना वर्जित है ! मगर जीवन की भागम भाग में सब सिगनल तोङता जाता है !
अंत समय में सांस इस शरीर से निकलना चाहता है ! लेकिन बङा कष्ट हो रहा है... जब जीव निकलता है तो आगे जो शरीर मिलने वाला होता है वही दिखाई देता है ! पुरा जीवन अपराध करता रहा, आखिर पकङा गया ! जेल तो जाना पङेगा ना भाई ....
जिस मंहगी बहुमुल्य कार में सारा जीवन सफर करता रहा उसे छोङकर घटीया सी गाङी में तो बैठने तो कतरायेगा ना अब ! हम सब भी कतराते है !
यह मानव तन छिना जा रहा है ! कुकर सुकर गधा किट का तन मिल रहा है ! यह जीव मानव तन को छोङना नही चाहता बङी पीङा हो रही है एक एक सांस लेना भारी हो रहा है ! घर वाले भगवान से दुआ करते हैं कि हे भगवान इन्हे उठा लो हम पंडित बैठायेगें चद्दर चढायेगें !
जब यह बात उसके कानों में पङती है बङा कष्ट होता है ! अब उसे सारी बातें याद आती है कि किस तरह जिनकी खातिर सारे सिगनल तोङे वो ही आज मेरे मरने की प्रार्थना कर रहे हैं ....
भाईयों यह बात किसी एक की नही है हम सबके साथ घटती है !
तो जीवन में प्रमेश्वर के संकेत दिशा निर्देश देखकर ही चले की प्रभु हमें इस क्षण क्या संकेत दे रहे हैं ???? अगर हमें मंजील तक पहुंचना है तो सावधानी से यात्रा करनी होगी जो पैदा होते समय साथ लाते हैं अर्थात लहुलुहान होकर आते हैं विचार करें इस जगत में पहला सांस लिया लहुलुहान खुन ही खुन था हमारे ऊपर इससे हमें बचना है की कहीं हमसे खुन ना बहे इसमें हम शामिल ना हों... सावधानी बरतनी है
बाकि सब समझदार हैं!
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर 09210650915
गर्भ में बच्चा रक्त मांस के लोथङे में नीचे सिर ऊपर पैर करके पङा रहते है ! एक दो दिन नही पुरे नौ महिने ! हम तो नौ मिनट में ही दुखी हो जाते हैं बैचेन हो जाते है ! 8 -9 माह इसी तरह कष्ट उठाता हुआ पिङा सहता हुआ जब बाहर आता है तो सारा शरीर लहु से सना हुआ !
जब इस मायावी संसार में पहला सांस लेता है ! तो लहु लुहान इतनी बङी पीङा से मुक्त हुआ है, जैसे आदमी कई वर्षों पश्चात कारागार से मुक्त हुआ हो, लेकिन यहां आकर संतोष की सांस नही लेता चैन से नही बैठता ! मुक्ति की खुशी में हंसता नही बल्कि रोता है चिल्लाता है.. अगर बच्चा पैदा होते ही नही रोता तो दादा दादी मां बाप डाक्टर कहते हैं की बच्चा स्वस्थ नही है !
अरे भाई इतने कष्ट भोगकर आया है थोङा चैन लेने दो !
बच्चे की रोने की चिल्लाने की आवाज से घर में खुशी की लहर दोङ जाती है....
जो भगवान हमें दिखाते हैं अपनी माया से उसका आशय समझना चाहिए
लेकिन उसकी माया को समझना बङा दुस्तर है ! वो तो माया पति हैं हम माया के अधिन हैं !
कैसे हम माया के रहस्य को समझ सकते हैं ???
लेकिन प्रभु की कृपा से ही हमारे मन और बुद्धि में कुछ दिव्य भाव आते हैं ! जो मानव कल्याणार्थ होते हैं ...........
प्रमेश्वर अपनी माया समझाने के लिए किसी की वाणी को अपना यंत्र बनाते हैं , माध्यम बनाते हैं !
जो प्रकृति में वस्तु स्थिती दर्शायी गयी है, उसमें प्रमेश्वर तक जाने का दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग है, लेकिन हम तो बस अपनी नजरों से अपने अनुसार ही उसके दर्शन करते हैं !
अगर एक बार प्रमात्मा की दिव्य दृष्टि से प्रकृति का दर्शन करे तो वही पर्मात्मा तक ले जाने वाली सिढी है...
गर्भ में बच्चा उल्टा ही क्यों होता है ????
संसार में आता है तो उल्टा ही आता है !
अगर 100 आदमीयों से अलग अलग पुछा जाय तो सबका उत्तर अपनी अपनी बुद्धि के अनुरूप अलग अलग ही होगा....
मैने भी विचार किया की हमारे पुर्वज संत महात्मा क्यों हमे बार बार इस बात का स्मरण कराते हैं की 9 माह ऊपर पैर नीचे सिर करके मल मुत्र में पङा रहता है ! और इतने कष्ट में रहने के बाद भी बाहर आकर सब भुल जाता है.....
क्यों ऐसी मुद्रा में रहता है ?????
यह तो मात्र संकेत है प्रमात्मा का, कि जिस तरह कष्ट में जिस नरक में मां के गर्भ में घुमता रहता है उल्टा पङा रहता है और उल्टा ही निकलता है !
इससे भी बहुत बङा गर्भ जिसमें पता नही कितने हजार करोङ वर्षों न जानें कितने जन्मों से यही इसी तरह घुम रहा है भटक रहा है ! भगवान ने संकेत भी किया है, हर मनुष्य को इसारा किया ! जन्म के साथ ही ज्ञान कराने का प्रयत्न करते हैं ... लेकिन यह मनुष्य बहार आते ही इस माया की हवा में उस ज्ञान के दिपक को बुझा देता है ! फिर इसे कुछ नही दिखाई पङता ....
इस संसार में आवागमन के कष्ट के कुएं से कभी सिधा नही निकल सकता सही और सहजता से उल्टा ही निकलेगा ! लेकिन गर्भ से बाहर आते ही सब भुल गया जो प्रमात्मा ने संकेत किया था, कि यहां से निकलने का एक मात्र मार्ग बस यही है..... हम क्या करते हैं ??? जो मार्ग हमें बताया था की यहां से बहार जा सकते हो वहां से निकलने के बजाय उल्टा उसी में प्रवेश करते चले गये ....
जैसे सरकार सङक मार्ग पर कहीं लाल बत्ती, कहीं प्रवेश वर्जित है के निर्देश बोर्ड लगा देते हैं ! यह सरकार का संकेत है ! अगर हम उसमें घुसे तो फंस जाते हैं ! आदमी के बनाये दिशा निर्देश नियमों का हम पालन करते हैं ! क्योंकि नियम तोङकर किसी विपत्ति में ना फंस जाये ! लेकिन जिस कष्ट को भोगते हुए कितने आंसु बह गये और न जाने कितने शरीर जलकर राख हो गये ! उससे बचने के लिए जो निर्देश दिये हैं जो नियम बताये हैं उनको नजर अंदाज करते रहते हैं !
और सारे सिगनल तोङकर फंस जाते हैं ! रास्ता है जन्म मृत्यु कष्टों से मुक्ति पाने का
इसका मतलब यह नही है कि हम उल्टे ही खङे हो जाओ ! नही अर्थात जहां से हम उल्टे होकर अबोध सम और निर्दोश होकर आये हैं वैसे ही जाने का इंतजाम करो !
पहले स्वयं गर्भ में रहा बाहर आते ही सब कुछ भुल कर और लग गया पढाई लिखाई धन व्यापार बीबी बच्चों में ! वह क्षण याद नही जो मल मुत्र में सिर रखकर पङा था ! जिस मायावी संसार से इतना स्नेह कर रहा है मोह कर रहा है ! इसमें प्रवेश करते ही पहला सांस लिया तो रोना प्रारम्भ हो गया था ! आज इसी को सम्पुर्ण सुख सास्वत आन्नद मानकर रात दिन कोल्हु के बैल की भांति पिलता रहता है !
प्रमेश्वर कितने दयालु हैं पग पग पर संकेत देते हैं ! अब उसके घर परिवार में बच्चे पैदा हो गये उन्हे देखकर भी अपना अतीत याद नही आया ! और उनकी तोतली आवाज को सुनकर कितना आन्नदित और भाव विभोर होता है ! याद ही नही रहता की कोई शक्ति है जो तुझे पुकार रही है ....
एक और संकेत प्रभु का बच्चा जब किसी को देखता है कभी उदास होता है कभी हंसने लगता है ! हम सब इस संकेत को भी अपनी बुद्धि से समझकर बालक का चुलबुलापन शरारती देखकर कितना आन्नदित होते हैं !.
अरे भाई समझ जाओ इतने मुर्ख मत बनो जो बाद में माफी के लायक भी ना रहो ! बच्चा कभी उदास होता है कभी खुश तो कभी गम्भीर हो जाता है ! उस क्षण बच्चे को अपने सैंकङो जन्म याद होते हैं और जो सामने होता है उसे भी पहचानता है जो किसी जन्म में दुश्मन रहे या जो अपने रहे उन्हे देखकर वैसी ही मुद्रा बनाता है ! और हम उसे देखकर बाल क्रिङा समझकर खुश होते रहते हैं...
वही गर्भ वाला बच्चा यह सब देखता हुआ परिवार बीबी बच्चे आदि को सुख दुखों को भोगते भोगते कब अंत समय आ गया मुंह में दांत नही पैरों में चलने की ताकत नही फिर भी बिस्तर पङा पङा भगवान से प्रार्थना करता है हे प्रभु बस छोटे बेचे के बच्चे का मुंह और देख लुं !
अरे पागल मानव नही सम्भल रहा !!!
जब बालक का जन्म होता तो ना मुंह में दांत होते हैं ना पैरों में चलने की ताकत होती है ! वही क्षण आ गया जैसे आया था क्यों व्यर्थ में प्रार्थना कर रहा है ?????
कितने गति अवरोधक लगाये जीवन की सङक पर लेकिन क्या करें ??? कुछ देखा ही नही ! आदमी मरता है खुली हथेली होती है ! उन्हे देखकर कहते हैं देखो भाई सब यहीं छोङकर चला गया, हम भी ऐसे ही चले जायेंगे ! कुछ क्षण उपरान्त सब भुल जाता है ! और लग जाता है माया को फेर में ! और बच्चों की तोतली आवाज में !
यही संकेत है उल्टा पैदा होने का कि जब तक मानव अपने आप को इस माया और मोह से नही मोङेगा तो इसी तरह दंड भोगता रहेगा ! अपनी मंजील से दुर होता जाता है!
कुछ नही समझा साधु संतो महात्माओं शास्त्र सारा जीवन सुनता तो सबकी रहा ! देखता हर बोर्ड पर कि क्या लिखा है ??? की फलां जगह जाना वर्जित है ! मगर जीवन की भागम भाग में सब सिगनल तोङता जाता है !
अंत समय में सांस इस शरीर से निकलना चाहता है ! लेकिन बङा कष्ट हो रहा है... जब जीव निकलता है तो आगे जो शरीर मिलने वाला होता है वही दिखाई देता है ! पुरा जीवन अपराध करता रहा, आखिर पकङा गया ! जेल तो जाना पङेगा ना भाई ....
जिस मंहगी बहुमुल्य कार में सारा जीवन सफर करता रहा उसे छोङकर घटीया सी गाङी में तो बैठने तो कतरायेगा ना अब ! हम सब भी कतराते है !
यह मानव तन छिना जा रहा है ! कुकर सुकर गधा किट का तन मिल रहा है ! यह जीव मानव तन को छोङना नही चाहता बङी पीङा हो रही है एक एक सांस लेना भारी हो रहा है ! घर वाले भगवान से दुआ करते हैं कि हे भगवान इन्हे उठा लो हम पंडित बैठायेगें चद्दर चढायेगें !
जब यह बात उसके कानों में पङती है बङा कष्ट होता है ! अब उसे सारी बातें याद आती है कि किस तरह जिनकी खातिर सारे सिगनल तोङे वो ही आज मेरे मरने की प्रार्थना कर रहे हैं ....
भाईयों यह बात किसी एक की नही है हम सबके साथ घटती है !
तो जीवन में प्रमेश्वर के संकेत दिशा निर्देश देखकर ही चले की प्रभु हमें इस क्षण क्या संकेत दे रहे हैं ???? अगर हमें मंजील तक पहुंचना है तो सावधानी से यात्रा करनी होगी जो पैदा होते समय साथ लाते हैं अर्थात लहुलुहान होकर आते हैं विचार करें इस जगत में पहला सांस लिया लहुलुहान खुन ही खुन था हमारे ऊपर इससे हमें बचना है की कहीं हमसे खुन ना बहे इसमें हम शामिल ना हों... सावधानी बरतनी है
बाकि सब समझदार हैं!
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर 09210650915