बुधवार, 2 सितंबर 2009

पितृगण की शांति के लिए करे गीता पाठ



हर वर्ष में 15 दिन हिंदु धर्म में पितृ पक्ष की शांति के लिए होता है । जिसे हम श्राद्ध भी कहते हैं। बताया जाता है कि, इन 15 दिनों में हम अपने पुर्वजों को खुश करने के लिए दान करते हैं। पंडितों को खाना खिलाते हैं। और जो कुछ भी हम से बन पङता है सब करते हैं । इसका उल्लेख भगवद्गीता में भी एक जगह आया है। जब अर्जुन महाभारत के युद्ध के दौरान अपने दादा, परदादा, ताऊ, चाचा, मामाओं, पुत्र, पोत्र, और सगे संबंधियों को अपने समक्ष युद्ध में खङे देखता है। तो भगवान से कहता है, कि हे मधुसुदन मुझे इन आततायीयों को मारना उचित नही जान पङता। क्योंकि अगर ये सब लोग युद्ध में मारे गये तो कूल की स्त्रीयां अत्यंत दुषित हो जायेंगी। और वर्णशंकर पैदा होंगे। जो कूलघातियों को नरक में ले जाने वाले होते हैं। और हमारे पितृ लोग श्राद्ध और तर्पण से वंचित रह जायेंगें। अर्जुन को भी इस बात की फिक्र थी की कोन हमारे पिंड दान करेगा, कोन श्राद्ध करेगा। कहने का अर्थ यह है कि श्राद्ध का हिंदु धर्म में बहुत महत्व है।
जो हमारे पितृ हैं उनकी शांति के लिए उनको खुश करने के लिए आजकल हम सब ऐसा करते हैं। जिससे हमारी कोई मेहनत ना हो। हम सब पैसा खर्च कर सकते हैं। लेकिन किसी के पास भी समय नही है। जिससे कोई ऐसा कार्य हम करें जिससे उनकी मुक्ति हो जाये। जिससे वो परम शांति को प्राप्त हो जाये।
जब अर्जुन ने भगवान को यह अपना तर्क दिया था। तो भगवान ने जो उसे एक उपदेश दिया था। जिससे हमारे पितृ और हम सबका कल्याण हो जाये। उस पर हमने कभी ध्यान ही नही दिया।
भगवान ने कहा था कि, हे अर्जुन तु सब धर्मों को त्यागकर मेरी शरण आजा। तुझे सारे पापों से मुक्त कर दुंगा। तु मेरा अतिशय प्रिय है, इसिलिए मैं तुझे वह उपदेश दे रहा हुं। जिससे परमगति को प्राप्त होगा तेरा कल्याण होगा।
तो भगवान ने फिर गीता उपदेश दिया था। लेकिन गीता उपदेश का तो अर्थ ही लोगों के समक्ष कुछ अलग ही प्रस्तुत किया गया। हमारे पंडितों ने जो बताया। उससे सब लोग इस मानव कल्याण के महामंत्र के पढने और अध्ययन करने से पलायन करने लगे। गीता उपदेश को कहा गया कि यह तो युद्ध का शास्त्र है, या यह तो सिर्फ बुजुर्गों के लिए है या फिर साधु संतो के लिए है। अभी मैने जैसे कई बार किसी अपने युवा भाईयों को समझाने की कोशिश की, तो सवने मुझे ही कहा कि शिवा बाबा जब हम 50 वर्ष के ऊपर जायेंगें तो पढ लेंगे। यह हालात है क्या करें ??????
जरा आप विचार करें की क्या जिसने यह उपदेश दिया था या जिसे दिया था क्या उनमें से कोई भी साधु संत या बुढा था ??? रही बात की युद्ध कराने की तो दोस्तो अगर भगवान युद्ध कराने की सोचते तो कितनी बार युद्ध को टाला है। और अर्जुन का रथ भीष्म और गुरू द्रोण के सामने क्यों खङा करते ?? वो उसके रथ को उस कर्ण के सामने खङा करते जिसने उनकी पत्नि को वैश्या कहा था। और भीम को खङा कर देते दुसासन के सामने तो ना तो गीता के 700 श्लोक ही नही सुनाने पङते और सबका खात्मा हो जाता।
भगवान ने जो गीता का उपदेश दिया था तो उसका मकसद युद्ध नही था। वो जानते थे कि अधर्म बहुत बढ गया है और कलयुग आने वाला है अब उस उपदेश की आवस्यकता पङेगी। तो उन्होने तब वह उपदेश दिया था।
श्राद्ध शुरू होने वाले हैं तो हर वर्ष की भांति नही इस बार ऐसा करो जिससे हमारे पितृगणों की मुक्ति हो जाये हम सब पितृ ऋण से मुक्त हो जाये। तो अब सवाल इस बात का है कि क्या करें ???
भगवान ने गीता में 11वें अध्याय में अपना विराट रूप दिखाया है। उसमें दिखाया है कि सबके अंदर में ही विधमान हुं। मुझसे पृथक कुछ भी नही है। जो भी चर अचर हैं। चाहे वे मनुष्य हो या फिर देवता, प्रेत हो या सर्प, वृक्ष हो या पहाङ, पितृ हो या यक्ष किन्नर सब उन्ही के प्रकाश से प्रकाशित हैं। तो अगर हम रोज नही कर सकते तो जिस दिन श्राद्ध हो तो कम से कम 11वें एक अध्याय का पाठ तो करना ही चाहिए। तो फिर जो पत्र पुष्प जल जो भी हम श्रद्धा से प्रमात्मा को देंगे तो वो सगुण रूप से ग्रहण करेंगे। अर्थात हमारे पितृगणों तक बङी आसानी से पहुंच जायेगा। यह बात में नही अपनी तरफ से नही कह रहा महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने ही कही है।
बस तो आप और हम सब मिलकर करें वह काम
जो हमारे पितृ को ले जाये पुर्ण धाम।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915

सोमवार, 31 अगस्त 2009



पढकर सोच रहे होंगे की कैसा आदमी है सुबह सुबह ही आग की बात कर रहा है लेकिन दोस्तों क्या करें आज हमारे देश की ऐसे ही हालात हो गये हैं हर तरफ आग ही आग दिखाई पङती है कोई भी समाचार पत्र देखो या कोई भी चैनल देखो चारो तरफ खुन ही खुन हिंसा ही हिंसा कही किसी बच्ची की चीख तो कहीं किसी महिला की पीङा की कराह कहीं बीच बाजार में धमाकों से हुए शरीर के लोथङे और खुन ही खुन
है ना चारो तरफ आग ही आग
पता तो हम सबको है देखते पढते सुनते हम सब हैं लेकिन जीवन की व्यस्तता के कारण सबको अनदेखा करके अपने काम में ही लगे रहकर बस अपने परिवार की ही चिंता करते रहते हैं
मुझे एक बात याद आती है मैं उस समय 10-12 वर्ष का था हमारे गांव में एक महिला घर के झगङे में कुएं में डुबकर आत्महत्या कर ली थी उस दिन सारे गांव में सन्नाटा सा छाया रहा एक दहशत सी फैली रही सारा दिन
ऐसा लग रहा था जैसे की सारे ही गांव को ही यह सन्नाटा निंगल लेगा कोई किसी से बात नही कर रहा था हर आदमी चाहे पुरूष हो महिला सब सब डरे हुए थे सहमे हुए थे कोई किसी से बात बात तक नही कर रहा था थोङी थोङी देर में पुलिस चक्कर लगा रही थी
एक बुढा बाहर से आया और कहने लगा की क्या बात है आज तो सारा गांव ही सुनसान लग रहा है
आज भी मुझे उस बुढे की बात याद आती है एक औरत के मरने पर सारा गांव उदास हो गया था लेकिन आज हर रोज पता नही कितनी महिलाएं मरती है और कितनी बच्चीयां की चीख निकलती है तो कितने कत्ल होते हैं लेकिन किसी के ऊपर कोई प्रतिक्रिया नही कोई दुख नही कोई अफसोस नही कि किसी के साथ कुछ हुआ है
चारो तरफ आग ही आग और लोग मजे में रह रहे हैं कहां गई सारी मानवता किसी के अंदर कोई करूणा नही कोई सद्भावना नही बस अपना काम बनता ऐसी तैसी करे जनता
ये मानसिकता हो गयी है
समाज झुलस रहा है देश झुलस रहा है और हम बङे चैन से सो रहे हैं
मुझे तो बहुत बैचेनी होती है क्या करूं सहन नही होता तो बस थोङा भावुकता के आंसु बहाकर या लिखकर ही अपनी भङास निकाल लेता हुं
अभी मैंने एक दिन एक खबर पढी की एक महिला को किसी ने टक्कर मारी वह सङक पर गिर गयी जिसने टक्कर मारी उसने अपनी गाङी को रोका नही बल्कि तेज भगाकर ले गया चलो उसके अंदर तो इन्सानियत थी ही नही वह सङक पर पङी पङी चिल्लाती रही किसी ने उस खुन से लथपथ एक बेबश अबला की चीख नही सुनी किसी ने भी अपनी गाङी को रोका तक नही अरे बाबा रोकना तो दुर रहा किसी ने ऱफ्तार भी कम नही की बल्कि अखबार में तो लिखा था कि उसको कुचल भी दिया था
हे भगवान क्या होगा बस लिख रहा और आंखो से आंसु बहा रहा हुं
हे भगवान हर प्राणी में प्रेम सद्भावना करूणा दया और मानवता जगे जो यह आग फैल रही है इस संसार में इसमें कोई ना झुलसे बससससससससससससस
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर-09210650915

बुधवार, 19 अगस्त 2009

धरती मां के बहते आंसु


आप सब सोच रहे होगे की धरती मां कैसे आंसु बहा रही होंगी और क्यों बह रहे हैं आंसु....
शास्त्रों में वर्णन आता है की एक बार धरती पर अपराध बढ गया ! हर तरफ हिंसा ही हिंसा, अत्याचार, अन्याय, क्रुरता इतनी बढ गयी की आम आदमी का जीवन दुभर हो गया ! आतंकी और अपराधियों का अधिपत्य हो गया ! साधु सन्यासी, सीधे, साधे, गरीब लोग और महिलाओं को अपनी इज्जत आबरू बचाना मुश्किल हो गया ! चारो ओर धरती खुन से लाल हो रही थी !
तो धरती मां हाथ जोङकर भगवान के सामने रोती हुई गयी !
उनको देखते ही भगवान ने पुछा की क्या हुआ धरती मां ?? आपके अंदर तो ममता, प्रेम, करूणा, और क्षमा ही रहती है आज ये आंसु कैसे ??
तो धरती मां ने कहा की प्रभु अब और नही सहा जाता मुझसे यह भार ! मैं जल रही हुं ! मुझे इनके चंगुल से मुक्त करो !
तो प्रभु ने समय समय पर हर युग में धरती मां के आंसु देखकर अत्याचार, अन्याय, और अपराध से मुक्त करके धरती के भार को हल्का किया था !
तो आज भी वही समय है ! जब धरती मां आंसु बहा रही है, रो रही है, गिङगिङा रही है ! नही सह पा रही इतना अत्याचार का भार !
किसी भी तरफ नजर घुमाकर देख लो ! धरती का कोई भी कोना ऐसा बचा हुआ नही है ! जहां पर किसी कन्या की चीख सुनाई नही पङती हो ! कोई दुखी कराह ना रहा हो !
धरती मां एक नारी स्वरूपा है ! करूणा, दया, और ममता की देवी इतनी भोली है की कुछ किसी का विरोध नही कर सकती बस सह सकती है !
आप किसी भी दिन कोई भी अखबार उठाकर पढ लो ! कहीं होगा की एक नव विवाहित ने जुल्म के आगे घुटने टेके और नही कर पायी सहन तो मोत को गले लगा लिया ! तो कहीं किसी ने अपनी एक दिन की बच्ची को कुङे के ढेर में फैंककर मां की ममता को कलंकित कर दिया तो ! कहीं कई हवस के भेङियों ने एक नाबालीग की मासुमियत को रोंद डाला अपनी दरिंदगी से !
ऐसे में क्या करें धरती मां ?? नही सहन कर पा रही है ! और आंसु बहा रही है !
एक दिन अभी दिल्ली की घटना है ! एक औरत को एक कार ने टक्कर मार दी तो ड्राईवर ने गाङी रोकी नही बल्कि और तेज चला दी ! वह महिला करीब 50 मीटर तक घिसटती रही ! इन्सानियत की धज्जियां यहीं पर ही खत्म नही हुई ! जख्मी हालात में वह सङक पर पङी पङी चिल्लाती रही ! लोग अपनी तेज रफ्तार को रोकने के बजाय उसको कुचलते चले गये ! तो क्या बीत रही होगी धरती मां के सिने पर !
एक पिता भी अपनी बच्ची को हवस में रोंद रहा है ! हर तरफ अधर्म इतना बढ गया है कि लोग धनोपार्जन के लिए कितना भी गिरा हुआ काम कर देते हैं ! यहां तक की अपनो के साथ भी विस्वासघात करने से बाज नही आते ! एक गरीब जो एक एक रूपया जोङकर इकठठा करता है उसको भी विस्वास में लेकर छुरा भोंक देता हैं !
आज से 5600 वर्ष पहले भी ऐसा ही हुआ था ! इससे भी खतरनाक समय आ गया था ! धरती मां चीत्कार रही थी !
एक नारी को भरी सभा में नग्न करने का प्रयास, उस बेबस नारी ने इतने आंसु बहाये लेकिन किसी के ऊपर जुं तक ना रेंगी !
धन के लोभ में अपने ही भाईयों को मारने का भरकस प्रयास ! शाराब और जुआ
हर तरफ अपराध, हिंसा, और क्रुरता तो महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के सामने आंसु बहाये धरती मां ने गिङगिङायी तो ! सबको ही पता है किस तरह से धरती को अपराधमुक्त किया था भगवान ने !
और एक संदेश भी दिया था ! कि जब जब धरती मां पर ऐसा संकट आयेगा ! जब भी धरती मां अपराध और अन्याय के चगुल में फंस जायेगी ! तो उससे मुक्त करने का एक सुत्र बताया था !
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
अर्थात जब किसी भी युग में धरती मां के आंसु बहेंगे ! तो धर्म की स्थापना यानि की बढते अपराध और अन्याय के वर्चस्व को समाप्त करने लिए तदात्मानं सर्जाम्यहम अर्थात किसी भी आत्मा को ऐसी प्रकाशित कर दुंगा की उसके प्रकाश से सारा संसार प्रकाशित हो उठेगा !
आपने सुना होगा सतयुग में एक राक्षस हुआ करता था हिरणाकष्यपु प्रह्लाद का पिता ! उसने पहले तप किया और बाद में स्वयं को ही भगवान कहलवाना शुरू कर दिया ! और जिसने नही स्वीकार किया उसको दंड देता या मरवा देता था !
उस राक्षस का आतंक समाप्त करने के लिए प्रह्लाद की आत्मा को ऐसा प्रकाशित किया की सब लोग नारायण नारायण जपने लगे ! हां सब लोग छिपकर ही जपते थे ! सब डरते थे कहीं राजा साहब को मालुम हो गया तो कोल्हु में पिलवा देगा !
और सब दिल ही दिल में भगवान से प्रार्थना करते की हे प्रभु हमें इसके चंगुल से मुक्त कराओ इसके कहर से आजाद करो !
और आज चारो तरफ नजर ले जाओ ! कितने लोग ऐसे हैं जो खुद की पुजा करा रहे हैं आरती करा रहे है ! अपने सिंहासन इतने ऊंचा लगवा देते हैं कि इंद्र के सिंहासन से भी भव्य लगे ! और भगवान को बिलकुल गौण कर देते हैं ! और उनके भक्त भी यही कहते हैं सबसे की गुरू ने सब कुछ दे दिया तो ! देखो आज कितने हिरणाकष्यपु हो गये हैं ! जो खुद को भगवान साबित करने में लगें हैं ! तो क्या करेंगी धरती मां आंसु नही बहायेगी तो क्या करेगी !
लेकिन हमने किसी ने भी उस उपदेश पर ध्यान नही दिया ! और बस यही सोच रहे है कि इस आतंक, हिंसा, अलगाव, असुरक्षा, भय, अराजकता, और अनैतिकता से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अवतार लेकर प्रभु आयेगें !
अरे भाईयों प्रभु ने जो संदेश दिया था, तदात्मानं सर्जाम्यहम ! उसको स्मरण करो ! और स्वयं को इस अभियान में लगा दो ! जो प्रभु के अवतार लेने का मकसद होता है ! अपराधमुक्त समाज निर्माण और मानवाधिकार रक्षा !
आज हर तरफ अज्ञान के कारण हमारी तामसी बुद्धि अधर्म को भी धर्म मानकर मानवाधिकार के बजाय दानवाधिकारों की रक्षा कर रहे हैं !
अगर हमें प्रभु के उपदेशों पर चलना है ! और धरती मां के आसुंओं को रोकना है ! तो धरती पर होते जुल्म को रोकने का प्रयत्न करो ! बढते अन्याय, अत्याचार, हिंसा अनैतिकता और अश्लीलता को रोकने में साहयक हो जाओ !
जब भी कभी इतिहास में इस बात का वर्णन हो तो धरती मां के आंसु बहाने में हमारा नाम नही आना चाहिए ! उन्हें रोकने में हमारी गणना होनी चाहिए !
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर- 09210650915

रविवार, 16 अगस्त 2009

प्रेम बङा दुर्लभ है


जय श्री कृष्णा
कल मैं औशो की एक पुस्तक पढ रहा था ! उसमें प्रेम और आसक्ति के बारें में बहुत अच्छा वर्णन किया गया है ! उसको पढकर मुझे लगा की ये बात सच ही है की आज के वर्तमान युग में आसक्ति का क्षेत्र बढता जा रहा है, और प्रेम कम होता जा रहा है !
मैं बहुत वर्षों से ओशो की पुस्तकें पढता आ रहा हुं ! और यही कारण है की हर बात का गहराई से चिंतन करता हुं ! जब मैंने इस बात का भी चिंतन किया कि प्रेम तो बङा दुर्लभ है ! हर व्यक्ति अपने ही बारें में सोचता है ! जो हर कोई कहता है की मुझे अपने बच्चों बीबी से यार दोस्त से प्रेम है ! तो ओशो ने कही है की जब तक हम (जिसे प्यार करते हैं) वो हमारी बात मानते हैं ! हमारे मन के मुताबीक चलते हैं ! तो प्रेम रहता है ! जिस दिन (वो ही व्यक्ति जिसे हम इतना प्यार करते) हमारी बात मानने से इंकार दे ! हमारे विरूद्ध चल पङे तो कहां गया सारा प्रेम ! उस दिन हमें बङा कष्ट होता है जिस दिन पहली बार वह ( जिसे हम प्रेम करते थे) हमारी आकाक्षाओं की हमारी इच्छाओं की चिता जलाता है ! उस पर इतना गुस्सा आता है ! की अगर पुलिस का डर ना हो तो सिधी गोली मार दें ! अरे बाबा जब प्रेम था तो इतनी जल्दी नफरत और गुस्से में कैसे बदल गया !
जिस किसी के ह्रदय में एक बार प्रेम का बीज अंकुरित हो जाता है ! वह तो गुलाब के फुल की तरह से बन जाता है ! कि जो भी उसके निकट आयेगा तो खुशबु से सुगंधित हो उठता है !
तो इसका अर्थ हुआ की जो हम सबके अंदर प्रेम दिख रहा है यह कुछ और ही है !
दुसरी एक बात और कही है की हम जितना किसी से इच्छा रखते है और (फलां आदमी जिसे हम प्रेम करते) हैं ! वह हमारी आकांक्षाए पुर्ण करता है तो वह हमें इतना ही प्यारा होता है अर्थात हम उससे उतना ज्यादा प्रेम करता है !
मैंने भी इस पर अपने विचार लिखे और लिखकर आ गया ! तो मेरी बीबी (राधा) ने बाद में पढ लिया ! और उसने भी इस पर अपने विचार लिखे ! वह भी पिछले चार पांच सालों से गीता अध्ययन और ध्यान में रत रहती है !
उसने कुछ तथ्य लिखे ! जिसका में संक्षेप में वर्णन करता हुं ! उन्होनें लिखा है कि, संसार में प्रेम ही प्रेम ही है ! अगर प्रेम नही होता तो ! क्या एक मां रात को 10 बार उठकर अपने बच्चे को दुध पिलाती ! उसके मल मुत्र साफ करती ! माना की सारा संसार स्वार्थी हो गया है ! लेकिन अभी तो उस बच्चे से कोई स्वार्थ पुर्ण ही नही हो सकता ! स्वयं रात को गीले बिस्तर पर सो जायेगी लेकिन अपने बच्चे को सुखे में सुलाती है !
उन्होने दुसरी बात लिखी है की, एक मां अपनी नन्हीं सी बेटी को ऊंगली पकङकर चलना सिखाती है ! सारा काम सिखाती है 18 20 वर्ष तक पाल पोसकर बङा करके फिर विदा करके किसी अनजान के हाथ में हाथ देकर भेज देती है ! लेकिन मां का दिल तो अपनी लाडली के पास ही रहता है और कभी कभी सुबह आवाज लगाती है ! बेटी उठ जा सुबह हो गयी है ! जव उसे होस आता कि बेटी तो चली गयी तो दिल भर आता है ! और इसके प्रेम का जबाब उस बेबस मां की आंखे देती है ! क्या यह भी आसक्ति है !
बातें तो उसने और भी बहुत लिखी है ! अंत में लिखा है की भगवान कहते है की ये सारी सृष्टि मैंने ही बनायी है ! संसार का हर जीव मेरा ही अंश है ! जो इससे प्रेम नही कर सकता जो इसको भी स्वार्थ रूप में देखता है ! तो वह मुझसे क्या प्रेम करेगा !
मैंने रात को जाकर डायरी में लिखने का विचार किया ! जैसे ही मैंने यह पढा तो असमंजस में पङ गया ! जो राधा ने लिखा है उसको भी हम नकार नही सकते ! प्रेम के बिना तो संसार रेगिस्तान बन जायेगा ! मरूस्थल हो जायेगा ! और सारी व्यवस्था ही बिगङ जायेगी !
मैं तो अपनी बात और ओशो के उपदेश को अभी भी 100 प्रतिशत सत्य मान रहा हुं ! क्योंकि अगर हम भावनाओं में बहकर नही बल्कि व्यवहारिकता से देखें ! तो हर तरफ आसक्ति और स्वार्थ ने अपना शिकंजा कस रखा है ! किसी को भी इससे मुक्त नही होने देता !
आप अपनी राय जरूर दे की मैं ठीक हुं या राधा ????????
जय श्री कृष्णा

शिवा तोमर-- 09210650915

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

आजादी पर संकल्प


15 अगस्त
आज आजादी का दिन ! सुबह से ही देश भक्ति के गाने और शहीदों की शहीदी बहुत सुंदर तरिके से दिखाकर लोगों के अंदर देश भक्ति की भावना पैदा करने का काम टी वी चैनल कर रहे थे !
मैं सुबह से ही अपने आफिस में बैठा हुआ अपने ही चैनल का आजादी पर खाश प्रोग्राम देख रहा था !
पता नही बचपन से ही ऐसी क्या बात रही, की आजादी की कोई भी बात सुनकर पढकर ही मेरी आंखों में आंसु निकलने लगते हैं !मुझे नही पता की क्या संबंध है मेरी आजादी से !
आजादी और शहीदों की कहानी देश भक्ति और भारत माता का नाम ही सुनकर अंदर से ही भाव विभोर हो जाता हुं !
मेरे पिताजी भारत मां के सच्चे सिपाही हैं उन्होने 1962 चीन के साथ 1965 पाक के साथ और 1972 बंगला देश वाली लङाई भारतीय सेना की तरफ से लङे थे ! उन्हीं का लहू मेरी रगों में दोङ रहा है ! या कोई और कारण है ! मुझे कुछ समझ नही आता ! बस इतना ही पता है की देश भक्ति की बात सुनकर ऐसा मन करता है की मैं कैसे अपनी भारत मां के काम आ सकता हुं ! और देश में बढती गुलामी से कैसे अपने युवा भाईयों को आजादी दिलाऊं ! आज के युवाओं को देखकर स्वयं से और पर उस युवा पर गुस्सा आता है जो हमारी भारत मां और संस्कृति के विरूद्ध चलते हैं !
भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, मंगलपांडे, सुभाषचंद्र बोश इन भारत मां के सच्चे सपुतों को क्या पङी थी ! वो भी हमारी तरह मोज ले सकते थे.... समझ नही आता की ऐसा क्या हो गया है ऐसी कोनसी चक्की का आटा खाने लगे हमारे युवा किशोर भाई की जो लगातार नशा सैक्स हिंसा अनैतिकता अश्लीलता व्याभीचार के शिकंजे में फंसकर इतने स्वार्थी और मतलबी हो हो गये हैं की कुछ भी कहना गलत ही होगा !
सुबह से ही मेरे दिल में आ रहा है कि ऐसा क्या करूं जो देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का सबक हो ! मेरे पास कोई साधन संगठन भी नही है बस भावना है !
आपसे मेरा अनुरोध है, कि हमारी जागरूक युवा सेना को मनोबल बढायें और सबको प्रेरित करो की कुछ ऐसा करो जो सबके लिए एक सबक हो
आज आजादी पर्व के मोके पर उन शहीदों से हमें ये ही वायदा करना है की जिस भारत माता की आन शान की खातिर फांसी का फंदा चुम लिया था हम भी इसकी आन शान बचाने के लिए तन मन धन से समर्पित होंगे !
जय भारत जय हिंद
शिवा तोमर - 09210650915

सोमवार, 10 अगस्त 2009

आंसु एक नारी के


जुन का महिना चिलचिलाती धुंप ऐसी की सब कुछ उबल रहा है सुरज तो मानों आग ही उगल रहा हो !
एक महिला ऐसी गरमी में बाहर सुरज की तपती धुंप में मिटटी के चुल्हे पर रोटी पका रही है ! माथे से पसिना टपक टपक कर गालों को भीगोता हुआ सारी गरदन पुरा बदन पसिना पसिना कर रहा है !
एक छोटी सी लङकी भागती हुई आती है !
मम्मी मम्मी मुझे दो रूपये दे दो आईसक्रिम लेनी है !
वह महिला बेचारी कुछ तो धुंप की गरमी से बेहाल थी ! कुछ चुल्हे में जलती आग की तपन से तंग थी ! टालने के लिए कहती है की तेरा बाप आंदर बैठा है ! जा उससे मांग ले ! बस ये कहना था कि वह आदमी उन दोनों मां बेटी पर चीते की तरह टुट पङा ! गाली गलोच करता हुआ बक रहा था, की एक तो साली तुने ये लङकी का पाप मेरे सिर पर गिरा रखा है !
ऊपर से तेरी और तेरी इस कम्बख्त बेटी ने तो हमारा जीना हराम कर दिया है ! आज में तुम्हे दोनो को ही खत्म कर देता हुं ! कम से कम घर में सुख शांति तो रहेगी !
और निर्दयी ने अपनी दरिंदगी की हद ही कर दी उस जल्लाद ने उस मासुम सी बच्ची को हाथ पकङ कर दीवार पर फैंक मारा ! बेचारी वह अबोद्ध बच्ची रोती रही बिलबिलाती रही तङपती रही ! उसके गुस्से की आग यहीं पर ही ठंडी नही हुई ! चुल्हे से तवा उठाकर सरोज (पत्नि) की पीठ पर मारने लगा !
हा हुल्ला और हाहाकार सुनकर बाहर से कई लोगों ने आकर उस राक्षस के चंगुल से उन दो मासुमों की जान बचाई !
दोनों मां बेटी बेचारी अंदर खाट पर पङी हैं ! एक तो गरमी ऊपर से मार का दर्द कराह रही है ! एक लाचार और बेबस मां पसिने से लथपथ अपनी बेटी को कुछ इस तरह अपने सीने में छुपा रही है जैसे किसी किले में लेकर बैठ गयी हो !
रोती रोती कहती है, मेरी अभागी बच्ची तु क्यों आयी यहां इस घर में ??? तेरी इस घर में जरूरत नही है ! इस पापी को तो बस बेटा चाहिए ! और आंसु बहाती हुई बच्ची का मुंह चुमने गलती है !
रोती रोती उसकी बेटी कहती है, मम्मी मम्मी मैंने ऐसा क्या किया है ?? या कोई गलती हो गयी ?? जो पापा हर समय मुझे मारते रहते हैं ! आज तक कभी भी प्यार नही किया......
बेटी तेरी और मेरी दोनों की किष्मत ही खराब है जो इस घर में आये हैं !
उसके बालों को ठीक करती हुई कहती है ! चल बेटी तु पहले खाना खा ले, नही तो फिर तेरा जल्लाद बाप आ जायेगा ! वो चैन से खाना भी नही खाने देगा !
नही मम्मी मेरा मन नही कर रहा कुछ खाने का !
मुझे खाना नही प्यार चाहिए प्यार मम्मी !
क्या करूं ?? बेटी जो कुछ मेरे हाथ में हो वह मांग ले ! में दुंगी चाहे मेरी जान ले ले वो भी दे दुंगी मेरी बच्ची !
उस छोटी सी बच्ची का नाम है राखी !
राखी अपने छोटे छोटे मुलायम हाथों से अपनी मां के आंसु पोछ कर कहती है ! मम्मी आपको इतना दुख मेरे ही कारण मिल रहा है ना ! जो पापा रोज रोज आपको मारते रहते है ! आपको मेरी वजह से ही इतनी मार खनी पङ रही है ना !
मम्मी मैं आपसे आज प्रोमिस करती हुं, की अब कभी भी मैं कुछ नही मांगुगी ! कुछ भी ऐसा नही करूंगी जिससे पापा आपको मारें !
अपनी मासुम सी बच्ची के मुंह से इतनी भावुक बातें सुनकर सरोज का दिल भर आया ! आंखो से आंसु और मुंह से बस आह ही निकल सकी ! रा........खी.......... मेरी बच्ची मैं तुझे कहां छुपाऊं ??? कहां ले जाऊं ??? जो उस राक्षस की नजर तुझ पर ना पङ सके !
और दोनो मां बेटी इसी तरह भुखी प्यासी पता नही कब नींद आ गयी ! दुख में कष्ट में जिल्लत में ना गरमी अपना प्रभाव दिखाती है ना शरदी......
उन दोनों मां बेटी को तो पता ही नही गरमी है या शरदी ! कोन क्या कह रहा है ?? बस निश्चिंत होकर ऐसे सो रही है ! जैसे उन दोनो के अलावा उनका कोई नही है इतने बङे संसार में !
भुखा पेट आंखों में आंसु, क्या उनके लिए इस जहां में एक रोटी भी नही है ! जिसे वो मां बेटी चैन से खाकर पानी पीकर सो जायें !
अचानक राजेश (पति) आ जाता है, और इस तरह चैन से सोता देखकर आग बबुला हो जाता है ! और चिल्लाने लगता है.... सरोज….. सरोज के घोङे बेच कर सोई है क्या ! जो उठने का नाम ही नही ले रही ! साली हरामजादी अपना तो पेट भरकर सो गयी ! दुसरा कोई अपनी ऐसी तैसी कराता रहे ! भुखा मरता रहे ! तुझे तो बस अपनी और अपनी छोरी की ही चिंता है !
और बाल खिंचकर घसिटता है !
सरोज बेचारी चिल्लाती रही रोती रही !
लेकिन राजेश को तो शायद कुछ सुनाई ही नही देता ! और थप्पङ मारने लगा !
बेचारी राखी सहमी सी घर के एक कोने में घुस गयी !
राजेश गुस्से में कहता है, की आज तु अपने दिल की बता ही दे आखिर तु चाहती क्या है ????
मैं अब तुझे एक मिनट भी अपने घर में नही रहने दुंगा !
बेचारी अबला बेसाहरा जो अपने मां बाप को छोङकर पति के साथ आयी ! जब पति ही घर से निकालने की कहे तो कहां जायेगी !
सरोज बेचारी रोती हुई हाथों के बीच में साङी का पल्लु और आंसु टपक रहे हैं ! आंखों में दया की भीख ! हाथ जोङकर कहती है, की अगर आप मुझे निकाल देंगे तो मैं कहां जाऊंगी ???
राजेश और गुस्से में आग बबुला हो जाता है ! साली हरामजादी कुतिया मुझे क्या मतलब ??? है कि तु कहां जायेगी ??? मैंने तेरा ठेका ले रखा है क्या ???
राखी रोती हुई सुबकती हुई हाथ जोङकर आती है-पापा पापा आप मम्मी को नही मारो !
राजेश तो यह सुनते ही मानों उसके अंदर बम फट गया हो !
और कहता है... अच्छा तो तेरी इस चंडाली मां को ना मारूं ! इसकी पुजा करूं साथ में तेरे ऊपर भी फुल चढाऊं ! और उसके छोटे से मासुम कोमल से मुंह को इतनी जोर से दबाता है की राखी की चीख निकल जाती है ! पापा छोङ दो...... बहुत दर्द हो रहा है ! बेचारी मासुम कन्या तङपती रही चिल्लाती रही ! लेकिन राजेश के ऊपर कोई असर नही और जोर से धक्का दिया ! तो बेचारी राखी दुध के पतिले के ऊपर जाकर पङी !
सारे घर में दुध ही दुध !
सरोज भी कितना सहती कितना झेलती आखिर सबर का बांध टुट गया !
और दुध को देखकर गुस्से में बोली की आप मुझ पर अपना गुस्सा उतार लो !
राखी को भी मारते रहते हो ! लेकिन अब तो घर का नुकसान भी करने लगे हो !
उसकी बात ने राजेश के गुस्से में आप में घी का काम किया ! और उसे घुरकर खा जाने वाले अंदाज में बोला ! मेरा घर मेरा सारा सामान मैं इसको रखुं खिडाऊं या आग लगाऊं तु कोन होती है ! मुझे कुछ कहने वाली !
बहार से राजेश के मां बाप आते है...
पिता... राजेश तुमने इस घर को जंग का मैदान बना दिया है ! जब भी देखे यहां लङाई ही होती रहती है क्या मामला है ??
दुध को देखकर राजेश की मां की आंख फटी रह जाती है .. ये क्या सारे घर में दुध ही दुध गिरा रखा है ! लोगों को पीने के लिए नही मिलता यहां गिरा पङा है !
नाश खेतों तरस जाओगे लेकिन कभी दर्शन भी नही होंगे ऐसे तो ! पता नही किसकी किष्मत से भगवान दे रहा है !
राजेश राखी की तरफ चीते की तरह झपटता है... मां ये दुध इसने खिंडाया है ! पता नही कोनसा मैंने पाप किया था ! जब से पैदा हुई है घर का नाश ही हो रहा है ! चल पोचा उठा और साफ कर !
सरोज कहती है.. इतनी छोटी सी बच्ची क्या साफ कर सकती है दया करो थोङी !
बीच में ही मां बोल पङती है.. लङकी है अभी से काम करना सिखेगी तो ही अच्छा रहेगा ! नही तो तेरी तरह सिर पर बैठ जायेगी !
सब चुप देख रहे हैं ! बेचारी राखी नन्हे नन्हे से हाथो में पोचा लेकर सफाई कर रही है और रो रही है !
कितने निर्दयी हैं ये लोग ! जो हाथ ठीक से रोटी का टुकङा भी नही ऊठ सकते ! उसे इतनी यातनाएं दे रहे हैं ! कहां भला होगा इनका !
राजेश का पिता ही चुप्पी को तोङता है ! राजेश और सरोज हम तुम दोनों को आखिरी बार समझा रहे हैं ! अगर तुम लोग आपस में झगङा करने से बाज नही आते तो हमें ही यहां से भागना पङेगा !
और कहकर चले जाते हैं !
बेचारी सरोज और राखी को इसी तरह यातनाएं मिलती रही ! दुख देते रहे
अवहेलना प्रताङना जिल्लत सहते हुए कई वर्ष बीत गये ! इसी बीच राजेश को एक और बुरी आदत लग गयी शाराब पीने लगा ! पहले से ही वह इतना दरिंदा था राक्षस भी उसकी दरिंदगी सामने तौबा कर ले ! और अब तो शाराब पीकर बस उन दोनों के खुन का प्यासा बना रहता था ! रात को शाराब पीकर घर पर आना और फिर दोनों मां बेटी पर जुल्म करना उसकी आदत बन चुकी थी !
एक दिन रात के करीब 11 बजे शाराब में धुत लङखङाता चिल्लाता हुआ आता है !
साली कुतिया हर समय दरवाजे को बंद रखती है मेरा ही घर और मेरे लिए ही घर के दरवाजे बंद ! खोल साली दरवाजा खोल आज तेरी अच्छी खबर लेता हुं !
राखी दरवाजा खोलती है !
दरवाजा खुलते ही वह धङाम से पङता है !
पापा पापा आप ठीक तो हो राखी बैचेनी से पुछती है !
अच्छा हरामजादी बङा प्यार सा दिखा रही है ! पता नही कहां से लायी इस पाप को जो मेरी छाती पर पङा है ! और कहकर दो थप्पङ मारता है !
सरोज अंदर से भागती हुई आती है ! क्या हुआ राखी बेटी ?? ठीक तो है !
हां आजा तेरी कमी रह गयी थी तु भी आ गयी ठीक हुआ ! और उसके बाल पकङकर घसीटता है !
मुंह से शाराब की बदबु इतनी आ रही है की सारा घर ......
और कपङों में से भी बदबु आ रही है ! वह लङखङाता हुआ सरोज की तरफ लपकता है !
लेकिन वह आगे से हट जाती है ! और कहती है आप नहा कर खाना खाओ और सो जाओ ! शाराब बहुत चढ गयी है !
अच्छा हरामजादी कुतिया मुझे शाराब चढ गयी है ! मैं तो शाराबी हुं ! मुझमें तो 100 ऐब है ! बस तु और तेरी यह बेटी ही ठीक हो !
सरोज बङी दीनता से लङाई को दबाने के लिए हाथ जोङकर कहती है ! नही आप ही ठीक हो अच्छे हो ! हम दोनो तो गलत हैं ! चलो आपका पानी रख दिया ! आप पहले नहा लो
नहा धोकर खाना खाता है !
राखी पापा बता देना कितनी रोटी लोगे !उतनी ही बनायेगी मम्मी ! नही तो फिर बच जायेगी सुबह खानी पङेगी !
इतना सुनते ही राजेश तो आग बबुला हो गया ! और दाल की कटोरी उठाकर राखी के मुंह पर फैंक मारी ! हरामजादी रांड की औलाद तु और तेरी मां ही खाओ !
मुझे नही खानी लङखङाता हुआ राखी को लपकने के लिए पीछे भागा ! लेकिन वह अपने को उसकी पकङ से बचाती हुई बहार भाग गयी है !
रोज आये दिन इसी तरह घर में झगङा होता गया ! हालात ऐसे हो गये की एक पल के लिए भी उनके घर में चैन शांति नाम की चिज नही रही ! बस आपस में झगङा कलह क्लेश रोना पिटना आंसु दो बेबस महिलाओं के ! और शाराब की बदबु बससससससस
उनके यहां कोई आना भी पसंद नही करता !
राजेश बहुत गिर चुका था ! उसकी मां भी उसी का पक्ष लेती सरोज और राखी पर सारे इल्जाम लगाती थी !
सरोज इसी तरह रोती रही सहती रही झेलती रही ! और पता नही किस तरह से अपनी और राखी की आबरू बचाती ! एक दिन दोनों मां बेटी बात करती है !
राखी... मम्मी ऐसा कब तक चलेगा ??
क्या सारी जिंदगी हम दोनों इसी तरह मार खाती रहेंगी !
और कितना सहेंगे अब नही सहा जाता ! बस इससे अच्छा तो भगवान हमें उठा ही ले तो बढीया रहे !
सरोज.. राखी का हाथ अपने हाथों में लेकर प्यार से कहती है ! बेटी बस भगवान एक बार सही सलामत तेरे हाथ पीले करवा दे ! तु अपने पति के साथ आराम से रहना और कभी इधर आना भी नही ! और आंखे डबडबा आई !
राखी अपनी मां के आंसु पोछकर कहती है ! मां मैं कभी आपको अकेला छोङकर नही जाऊंगी ! आपने मेरी वजह से बहुत कष्ट उठाये हैं !
सरोज राखी को बाहों में भर लेती है ! बेटी तु ही तो मेरी जिंदगी है ! तेरे लिए ही तो मेरी सांसे चल रही हैं !अगर तु नही होती तो मैं कभी की मोत को गले लगा लेती !
और इस राक्षस इसके नरक जैसे घर को कभी की अलविदा कहकर भगवान के पास चली जाती !
राखी बङे भोलेपन और सादगी से पुछती है ! की मम्मी क्या लङकी इस धरती पर सिर्फ इसलिए आती है की !
सारी जिंदगी यातनाए सहे !
जिलल्त उठाये !
कष्ट भोगे !
इतनी अवहेलना, यातना, प्रताङना !
इतने ताने क्या ये सब हमारी ही किष्मत में ही लिखा है !
बेटी राखी........ सरोज की आवाज में सारे जहां का दुख सा समाया हुआ था ! और आवाज ऐसे निकल रही थी जैसे जबरदस्ती निकल रही हो !
कुछ वर्षों पहले तक लङकी को देवी की तरह पुजते थे लोग ! अभी पता नही क्या आग लग गयी है ! जो लङकीयों को पाप समझने लगे !
इसी बीच कोई बाहर से दरवाजा खटखटाता है !
मम्मी इस समय कोन होगा ??? पापा तो अभी आ नही सकते !
सरोज दरवाजा खोलती है ! तो राजेश ही गिरता पङता अंदर आता है !
आप आज इतनी जल्दी कैसे आ गये ?? सरोज ने अचम्भीत सी होकर पुछा !
क्यों... मु..,,झे ज...ल्दी न.. ही... आ...ना चा..हि...ए क्या... लङखङाती आवाज में कहने लगा मुझे... अ..ब.. तु..झ..से पु..छ..क..र आ..ना प..ङे..गा.. क्या...
ला मुझे 50 रूपये दो कुछ काम है !
मेरे पास तो एक भी पैसा नही है कहां से दुं !
यह सुनते ही उसका तो पारा हाई हो गया आग बबुला हो गया !
तु साली जोङकर कहां ले जायेगी ! जब तु अपने पति को नही दे सकती तो काहे की मेरी पत्नि है !
गाली गलोच करता हुआ इधर उधर सिर मारने लगा !
साली पता नही इतने पैसे जोङकर क्या करेगी ?? जब वो मेरे काम नही आयेंगे तो क्या तुने अपने कफन के लिए इकठठा करके रखे हैं !
मैं आखिरी बार कह रहा हुं, की पैसे दे दे वरना आज तुझे मार डालुंगा !
वह गालीयां बकता रहा ! आज चाहे कोई भी आ जाये मैं किसी को नही छोङुंगा !
सबको मार दुंगा ! और सरोज को मारने के लिए भागा !
राखी बीच में ही बोल पङी पापा झगङा मत करो ! मैं आपके हाथ जोङती हुं !
हरामजादी तु भी अपनी मां रांड का ही फेवर करती है ! आज तुम दोनो को ही खत्म कर दुंगा ! वह लङखङाता हुआ उन्हे पकङने के लिए भागता रहा !
सरोज चीखी राखी जा तु इसके मां को ही बुलाकर ला ! आज हम फैंसला कर ही देते है की आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ????
यह सुनकर उसके गुस्सा और भी ज्यादा चढ गया ! वह बङबङाया जाओ तुम आज किसी को भी बुला लाओ मैं तुम्हे नही छोङुंगा !
और सरोज को मारने के लिए एक शाराब की खाली बोतल फोङकर उसके पिछे लपका !
इतनी ही देर में राजेश के मां बाप भी आ गये ! उन्होने उसे ऐसी हालात में देखा तो होश उङ गये ! किसी को कुछ समझ ही नही आ रहा था की क्या करें ?? क्या ना करें ??
राजेश का बाप बोला... राजेश बेटा बोतल फैंक दे ! जो तु कहेगा वैसे ही होगा !
नही पिताजी में आज इसको छोङने वाला नही हुं ! सारे घर को इसने नरक बना
दिया है ! सरोज भागती भागती चिल्लाई... नरक हमने नही तेरे करतुत ने और शाराब ने बनाया है ! मैं कहां से इसे पैसे दुं ! भीख मांगकर लाऊं क्या ?? देने का तो नाम नही !
राजेश ने सरोज को पकङने लिए जैसे ही घर में पङी खाट के ऊपर से छलांग लगाई तो
फिसलकर गिर गया ! और हाथ में पकङी बोतल उसी की छाती में धंस गयी !
किसी को कुछ नही पता लगा की क्या हुआ ?? इस बात का तो यकिन था ही नही राजेश ऐसा पङा है जो अब कभी भी उठने वाला नही है !
सरोज हांफती हुई दीवार से सटकर आंखे बंद करके लम्बे लम्बे सांस लेने लगी !
राखी भागती आयी मम्मी मम्मी ठीक तो हो ना !
हां बेटी बस मौत के मुंह से ही निकलकर आयी हुं !
राखी ने सरोज का सिर अपने कंधे पर रख लिया मम्मी पानी लाऊं !
राजेश की मां चिल्लाई .... अरी निर्भाग्य राखी अपनी मां की ही गोद में बैठी रहेगी ! अपने बाप को भी देख ले जब से गिरा है उठा ही नही है ! क्या हो गया ???
राजेश का बाप गुस्से में झल्लाकर बोला उसे कुत्ते कमिने को कुछ नही होगा ! जब शाराब उतर जायेगी तो उठ जायेगा !
सरोज के मुंह से कराह निकली राखी अपने पापा को देख बेटी वो बहुत जोर से गिरे हैं !
राखी उसके पास गयी पापा पापा पापा कई आवाज लगाई ! लेकिन कोई जबाब नही !
जब कई बार आवाज लगाने से भी नही बोला तो राखी ने हाथ पकङकर उठाने की कोशिश की खिंचते ही राजेश का शरीर एक तरफ लुङक गया !
छाती में बोतल धंसी उसके निचे खुन ही खुन !
राखी के मुंह से तेज चीख निकली .... मम्मी ...........................
सारे लोग राखी के पास गये ! तो देखते ही सबके होश उङ गये ! राजेश तो कभी का मर चुका था ! उसकी मां जोर जोर से राने लगी !
मेरे लाल को दोनों मां बेटी खा गयी हैं ! और विलाप करने लगी !
सरोज को पता नही क्या हुआ ?? ना रोई ना कुछ बोल रही ना कुछ कह रही है ! बस दुर कहीं शुन्य में खोई रही !
शाम का समय गांव के बाहर राजेश का अंतिम संस्कार हो रहा है ! चीता में आग लगा दी गयी ! और वहीं थोङी दुरी पर सरोज एक टक राजेश की चिता को देख रही है ! और ना किसी की तरफ देख रही है ना कुछ कह रही है ! बस रोये जा रही है ! और आंसु तो मानों थमने का नाम ही नही दे रहे !
राखी मम्मी आप अपने आप को सम्भालो ! अगर आप ही ऐसी रहोगी तो मेरा तो अब कोई है ही नही ! और गले लगकर जोर जोर से रोने लगी !
सरोज बेहद गम्भीरता से बोली राखी बेटी हम औरतो के पास आंसु बहाने के अलावा और कुछ नही है ! और फिर कहीं आकाश में शुन्य में खोकर आंसु बहाती रही !
जैसे जैसे चिता की आग ठंडी हो रही थी ! आंसु और ज्यादा बह रहे थे !
शिवा तोमर- 09210650915

बुधवार, 5 अगस्त 2009

भयभीत हुआ मैं


भाईयों जय श्री कृष्णा
जो आज मैं लिख रहा हुं समझ ही नही आ रहा की वह समस्या मेरी ही है, या सबकी है !
अंदर एक अनजाना सा डर सा लगा रहता है ! एक अजीब सा भय रहता है ! मैं उस स्थिती को क्या नाम दुं ??? उस विषय में कोई ठोस निर्णय नही ले पा रहा हुं !
आज रात ही मैं सो रहा था तो अचानक मेरी नींद खुल गयी ! कोई खतरनाक डरावना स्वपन देखा होगा!
काली अंधेरी रात का सन्नाटा ! कहीं कोई भी आवाज नही ! मैं बिस्तर पर लेटा, आंख खोलने की हिम्मत नही हो रही थी ! जीभ तालु पर चिपक गयी ! गला सुख गया ! सारे बदन में सिहरन सी दोङ रही थी ! रोंगटे खङे थे ! दिमाग काम नही कर रहा था ! मैं बिस्तर पर बैठ गया तो ऐसे बैठा जैसे कि दीवार पर किसी ने चिपका दिया हो !
मैंने अपने कमरे में सामने ही मंदिर बनाया हुआ है ! अचानक मेरी नजर मंदिर पर पङी तो मुझे साफ स्पस्ट दिखाई दिया की अंधेरे और सन्नाटे में एक कोई बालक घुटनों के बल हंसता हुआ मेरी तरफ आ रहा है ! उसे देखते ही मुझे कुछ होश सा आया ! और मेरे आंसु निकलने लगे ! मुझे नही मालुम की वह कोन था ?? लेकिन उस पर नजर पङते ही जो मेरे सारे बदन में जङता सी हो गयी थी वह दुर हो गयी ! और चेतनता आ गयी मैंने उठकर पानी पिया और धिरे धिरे सो गया ! सुबह जब उठा तो तब तक भी बदन टुटा सा था ! लेकिन वह हालात मैं अब भी याद करता हुं तो रोंगटे खङे हो रहे हैं ! मुझे कुछ समझ नही आ रहा था, की वह सब क्या था ?? ऐसा भी नही था की मैं सो रहा हुं ! मैं तो अपने बिस्तर पर बैठा था आंखे खोलकर !वह बालक कोन था जो मंदिर की तरफ से मेरी तरफ हंसता हुआ आ रहा था मैं इतना ज्यादा डरा कैसे ???
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर-9210650915