शनिवार, 12 सितंबर 2009

बङे शर्म की बात है- क्या होगा इन लङकियों का



सोनिया गांधी जी शीला दिक्षित जी जबाब दो
कल की एक खबर पढकर दिल भर आया की कैसे हालात हो गये हैं देश के। हमारा युवा वर्ग किस तरह से अपराध और सैक्स के चंगुल में फंसकर अपना भविष्य चौपट कर रहा है। खजुरी खास के एक स्कुल में परिक्षा के दौरान जो कुछ भी हुआ उस हादसे से आज सारा देश तो शर्मशार है ही लेकिन, एक बात और है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के देश की ही आज मर्यादा खतरे में है। हमारे बच्चे आज अश्लीलता के चंगुल में इस तरह फंस गये हैं कि खुले आम लङकियों के कपङे फाङकर अपनी हवश पुरी कर रहे हैं। अभी सरकार ने महिलाओं को 50 फिसदी आरक्षण दिया है। जो 5-7 लङकियां उस हादसे कि शिकार हुई हैं क्या कोई आरक्षण उस क्षति को पुरा कर सकता है। और जो दर्जनों मासुम बच्चीयां उस विभत्सय दृष्य की साक्षी हैं जो अभी सदमें से लङ रही है उनका क्या होगा। जिसने भी वह दृष्य अपनी आंखो से देखा अभी भी याद करके उनके शरीर के रोंगटे खङे हो जाते हैं। जो लङकियां ऊपर सिढियों से गिरती हुई निचे आयी क्या उनमें हिम्मत होगी कि वो पढने के लिए स्कुल जाने का नाम ले। सारे देश में महिला दिवस.महिला कल्याण और बहुत से नामों से पैसा और समय बरबाद किया जा रहा है।
स्कुल कालेजों में योन शिक्षा के माध्यम से भी जागरूक करने का काम किया जा रहा है। लेकिन परिणाम हम सबके समक्ष है। और ऐसा सिर्फ एक स्कुल में ही नही हो रहा सारे देश में ही देख लो जितना भी अपराध, हिंसा, अश्लीलता और व्याभीचार बढ रहा है उस सबमें 80 प्रतिशत कालेज और स्कुल के विधार्थी ही हैं।
समझ नही आ रहा कि किसके हाथ की कठपुतली बन गये हैं लोग... कहां से इतना दिमाग आ रहा है। अश्लीलता को और ज्यादा बढाने का काम समलैंगिकता को स्वीकृति देकर किया जा रहा है।
एक दिन मैं अपनी ड्युटी करके घर जा रहा था तो स्कुल की भी छुट्टी हो गयी। तो बच्चे आपस में बात कर रहे थे मैंने ध्यान से सुना तो उनमें से एक कह रहा था कि अब सरकार और कोर्ट ने थी इजाजत दे दी है होमोसैक्स को। मैंने उससे पुछा कि भाई क्या होता है यह। उसने बङे लापरवाह अंदाज में कहा कि अंकल ज्यादा तो पता नही लेकिन अब लङकियों कि जरूरत नही रहेंगी।
अब आप ही चिंतन करो कि कैसा परिणाम रहेगा योन शिक्षा और समलैगिकता जैसी बातों का हमारे बच्चों पर।
एक दिन मैंने एक अखबार में पढा था कि एक 12 वर्ष का लङका बाप बन गया और लङकी है 14 साल की। ये खबर किसी पश्चिमी देश की थी। देखो तो सही कि दुनिया कितनी तरक्की कर रही है।
सरकार कहती है कि दोषियों को खिलाफ कार्रवाही होगी। सुनते सुनते कान ही पकने लगे हैं। लेकिन क्या करें।
अब खजुरी खास के उस मनहुस स्कुल को खुनी स्कुल कहा जा रहा है। कह रहे हैं कि खुनी स्कुल में नही पढेगी लङकियां। लोगों का गुस्सा थमने का नाम नही ले रहा वहां पर भारी पुलिस लगा दी गयी। इससे ज्यादा कर सकती है सरकार।
जब तक मरीज कि बिमारी का डाक्टर को पता नही चलेगा कि मेरे मरीज को क्या बिमारी तो कैसे ईलाज होगा। यह कितने लानत की बात है कि लोग कह रहे हैं कि हमारी बच्चीयां इस स्कुल में नही पढेंगी। सरकार की बेबशी इससे ज्यादा और क्या देखने को मिलेगी। जनता तो ऐसी है जो सामने है बस वही देखती है। आज एक स्कुल से अपनी बच्चीयों को हटा लेंगे कल ऐसी घटना किसी और स्कुल में हो जायेगी। तो आखिर कहां मां बाप अपनी बेटीयों को सुरक्षित समझे। कितनी भी पुलिस बढा दी जायें थाने बना दिये जाये। यह तो बस ऐसी ही हमारी कोशिश है जैसे कोई महामारी फैल जाये और हर अस्पताल में दुनिया भर के डाक्टर बैठा दे और बिमारी की कोई दवा उनको ना दे तो कैसे होगी बिमारी से मुक्ति ?????????????????
बापु गांधी के सिद्धांतो को सारी दुनिया स्वीकार कर रही है। उनके जन्म दिवस को विस्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाने लगा। लेकिन हमारे ही देश में कोई भी उनके बताये सिद्धांतो को ना तो ग्रहण ही कर रहे हैं और ना ही कोई उन पर चल रहा है। आज के विधार्थीयों की तरह से गांधी जी भी ईंगलैंड पढकर आये थे। लेकिन उनके जीवन में ऐसा क्या कुछ था जिससे आज सारी दुनिया उनके कर्म, आचरण और व्यवहार को महान मानने पर मजबुर हैं।
जिस आयु के बच्चे आज लङकियों के कपङे फाङ रहे हैं उसी उम्र में उधमसिंह ने कितना महान संकल्प किया था।
विचार करने वाली बात यह है कि दिल्ली ही नही पुरे देश में ही देख लो हर व्यक्ति भय में जी रहा है। डरा हुआ है सहमा हुआ है। कि पता नही किस समय कोनसी घटना का शिकार बन जाये। बङे नेता बङे अधिकारी सब लोग बयान बाजी में पिछे नही रहते एक दुसरे पर वार करते रहते हैं। किसी को किसी से कोई मतलब नही कहीं कोई भावना नही। बस स्वार्थ ही समाया है चहुं और।
इस घटना को देखकर मुझे एक और घटना की याद आयी है जिसे आप हम सबने सुना है। जैसे इस स्कुल में लङकियों को वस्त्रहीन किया गया 5600 वर्ष पहले भी भरी सभा में एक महिला को वस्त्रहीन करने का प्रयास किया था तो परिणाम भी हम सबने सुना होगा।
ऐसी ऐसी घटनाओं से हर कोई चिंतित है परेशान है लेकिन क्या करे किससे कहे अपने दुखङे। क्योंकि कोई इस लायक नही है जो आज हमारे बच्चों के गिरते चरित्र को संवार सके। जो आयु खेलने और पढाई की है उसमें ही वो सैक्स और नशे के आदि होकर समाज की सुख शांति भंग कर रहे हैं।
शिक्षा के साथ साथ जरूरी है बच्चों को संस्कारी और चरित्रवान बनाना। लेकिन जो बात मैंने इतनी आसानी और सहजता से लिख दी है इस पर अम्ल करना और आचरण में लाना लोहे के चने चबाना है।
क्योंकि कोन देगा चरित्र निर्माण की शिक्षा।
जिसका स्वयं का ही चरित्र अच्छा नही है जो खुद ही भ्रष्टता में लिप्त हो वो दुसरो को कैसे पवित्र कर सकता है।
भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते हैं अन्य पुरूष भी वैसा ही करते है। तो इस बात का भी विचार करो जो हमारे समाज को चलाने वाले वो कैसे हैं उनका चरित्र कैसा है। जैसे शिक्षक हैं, नेता हैं पुलिस अधिकारी हैं, न्यायाधिश आदि हैं।
आज जो भी हालात हो रहे हैं उसमें किसी एक का हाथ नही हम सब उसमें साहयक हैं।
और उससे मुक्त भी हम ही कर सकतें हैं। अन्यथा आज एक स्कुल में घटना हुई है कल देखना आपके सामने होगा। भाईयों मैं तो इस हालात को देखकर दुखी होता रहुंगा और जितना भी हमसे होगा करते रहेंगे।
अब वो समय आ गया है जब उस लहर की आवस्यकता है जो इस सारी भ्रष्टता अश्लीलता हिंसा और अनैतिकता की गंदगी को उङाकर ले जा सके।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-9210650915

सोमवार, 7 सितंबर 2009

दिव्य अनुभुति



मैंने जीवन में इतना ध्यान किया, इतनी पुजा की बहुत अच्छा लगा। और बुरे से बुरा वक्त युं कट गया कि पता ही नही लगा। यह सब ध्यान और पुजा पाठ का ही परिणाम
था। और मेरा चिंतन मनन भी बहुत हो गया। ऐसी ऐसी परिस्थिती भी मेरे सामने आयी
लेकिन प्रभु की कृपा ऐसी रही की में कभी भी विचलित नही हुआ परेशान नही हुआ। और सुबह गीता पाठ करना ध्यान करना तो मेरे जीवन का मानो एक हिस्सा बन गया हो। लेकिन एक दिन घर पर भगवती कथा पढ रहा था तो उसमें भागवत का भी वर्णन है। उसी में मैने नारद जी के पुर्व जन्म का किस्सा पढा। की कैसे पांच वर्ष के बालक की संतो के सत्संग से लग्न लगी और जब संत उनके गांव से जाने लगे तो नारद जी से नही रहा गया तो पिछे पिछे भाग लिए। जब संतो के गुरू ने देखा नारद जी को अपने पास बुलाया। और उन्हें ध्यान बताया की किस तरह से करना है। और फिर कहा की श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा,,, इससे बढकर संसार में कोई मंत्र नही है। तो मैं उस पुस्तक को पढ रहा था। और मुझे लग रहा था कि जैसे वह संत मुझे ही ज्ञान ध्यान करवा रहा हो। मेरा रोम रोम ध्यान की तरंगो से खिल उठा। और महसुस हुआ कि नन्द लाल श्यामसुन्दर कन्हैया मेरे पास ही है। मैं पुस्तक को एक तरफ रखकर
अंदर कमरें में लेट गया और अपने आप पता नही क्या हुआ आंसु निकलने लगे। चेहरा लाल और शरीर में कम्पन हो रहा था। अंदर से एक आवाज निकली ओ नंदलाल मुझे भी माखन दो। बार बार यही आवाज निकल रही थी। कहां हो कन्हैया कहां हो मेरे श्याम मुझे भी माखन दो। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था। जैसे श्याम कहीं छिपे हैं। और मैं उन्हें ढुंढ रहा हुं खोज रहा हुं। उस पल मुझे कुछ भी नही पता कि मैं कहां हुं दिन है या रात है, कमरें में प्रकाश है या अंधकार। मैं बार बार कोशिश करता हुं कि कुछ याद आये
कि कैसे था उस समय जिससे मैं कुछ उस पल का वर्णन लिख सकुं। भाईयों कुछ पल तो ऐसे भी आये अंत में कि मुझे ये भी नही पता लगा कि मन कुछ बोल भी रहा हा है या नही। अब मैं सारा सार समझ कि वह तो कुछ समय की कुछ पलों की झलक थी। प्रमेश्वर की सत्य की जहां पर कुछ ना तो सुनाई दे ना दिखाई दे ना शरीर का मालुम हो। जहां पर हमें स्थुलता का यानि कि इस शरीर का ज्ञान होगा तब तक सत्य की जानकारी नही होगी। कुछ लोग तर्क बाजी के लिए बातें बना देते हैं कि शरीर बिना कुछ नही होता अगर नाव नही होगी तो इस संसार समुंद्र को कैसे पार करेंगे। लेकिन दोस्तों यह मेरा अनुभव कि मुझे नही पता क्या झलक थी जैसे मैंने लिखा है। कुछ पलों तक तो सारा शरीर तरंगीत रहा, फिर मन ने पुकार की लेकिन बाद में पता नही क्या हुआ। जहां पर शरीर, मन और बुद्धि काम करना बंद कर देतो वहीं से सत्य का रास्ता शुरू होता है। और मुझे नही लगता की कोई इससे आगे लिख पाता होगा। और हो सकता है कि मेरे अंदर इतनी सामर्थ्य ना हो जो मैं उस वेग को सहन कर पाता। उस दिन के बाद भी मैंने ध्यान किया पुजा की लेकिन वह झलक नही मिली। मैं वह झलक पाने की बहुत प्रयत्न कर रहा हुं। लेकिन मुझे इस बात का भी ज्ञान है कि जब तक किसी भी प्रकार का प्रयत्न या कोशिश होगी तो तब तक उस दिव्य आन्नद का अनुभव नही होगा। वह तो जब भी होगा स्वत: ही होगा। लेकिन मन तो पागल है जो एक बार अच्छी चीज देख लेता है उसे बार बार याद करता है। अब तो मैं और भी कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा,,, का जप करता हुं। इसमें भी एक असीम आन्नद है शांति है। मैं तो अब लिखते लिखते भी आन्नद में सराबोर हुं। लेकिन उस दिन के बाद वो झलक वो आन्नद ना तो मैं देख पाया हुं ना लिख सकता।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर

बुधवार, 2 सितंबर 2009

पितृगण की शांति के लिए करे गीता पाठ



हर वर्ष में 15 दिन हिंदु धर्म में पितृ पक्ष की शांति के लिए होता है । जिसे हम श्राद्ध भी कहते हैं। बताया जाता है कि, इन 15 दिनों में हम अपने पुर्वजों को खुश करने के लिए दान करते हैं। पंडितों को खाना खिलाते हैं। और जो कुछ भी हम से बन पङता है सब करते हैं । इसका उल्लेख भगवद्गीता में भी एक जगह आया है। जब अर्जुन महाभारत के युद्ध के दौरान अपने दादा, परदादा, ताऊ, चाचा, मामाओं, पुत्र, पोत्र, और सगे संबंधियों को अपने समक्ष युद्ध में खङे देखता है। तो भगवान से कहता है, कि हे मधुसुदन मुझे इन आततायीयों को मारना उचित नही जान पङता। क्योंकि अगर ये सब लोग युद्ध में मारे गये तो कूल की स्त्रीयां अत्यंत दुषित हो जायेंगी। और वर्णशंकर पैदा होंगे। जो कूलघातियों को नरक में ले जाने वाले होते हैं। और हमारे पितृ लोग श्राद्ध और तर्पण से वंचित रह जायेंगें। अर्जुन को भी इस बात की फिक्र थी की कोन हमारे पिंड दान करेगा, कोन श्राद्ध करेगा। कहने का अर्थ यह है कि श्राद्ध का हिंदु धर्म में बहुत महत्व है।
जो हमारे पितृ हैं उनकी शांति के लिए उनको खुश करने के लिए आजकल हम सब ऐसा करते हैं। जिससे हमारी कोई मेहनत ना हो। हम सब पैसा खर्च कर सकते हैं। लेकिन किसी के पास भी समय नही है। जिससे कोई ऐसा कार्य हम करें जिससे उनकी मुक्ति हो जाये। जिससे वो परम शांति को प्राप्त हो जाये।
जब अर्जुन ने भगवान को यह अपना तर्क दिया था। तो भगवान ने जो उसे एक उपदेश दिया था। जिससे हमारे पितृ और हम सबका कल्याण हो जाये। उस पर हमने कभी ध्यान ही नही दिया।
भगवान ने कहा था कि, हे अर्जुन तु सब धर्मों को त्यागकर मेरी शरण आजा। तुझे सारे पापों से मुक्त कर दुंगा। तु मेरा अतिशय प्रिय है, इसिलिए मैं तुझे वह उपदेश दे रहा हुं। जिससे परमगति को प्राप्त होगा तेरा कल्याण होगा।
तो भगवान ने फिर गीता उपदेश दिया था। लेकिन गीता उपदेश का तो अर्थ ही लोगों के समक्ष कुछ अलग ही प्रस्तुत किया गया। हमारे पंडितों ने जो बताया। उससे सब लोग इस मानव कल्याण के महामंत्र के पढने और अध्ययन करने से पलायन करने लगे। गीता उपदेश को कहा गया कि यह तो युद्ध का शास्त्र है, या यह तो सिर्फ बुजुर्गों के लिए है या फिर साधु संतो के लिए है। अभी मैने जैसे कई बार किसी अपने युवा भाईयों को समझाने की कोशिश की, तो सवने मुझे ही कहा कि शिवा बाबा जब हम 50 वर्ष के ऊपर जायेंगें तो पढ लेंगे। यह हालात है क्या करें ??????
जरा आप विचार करें की क्या जिसने यह उपदेश दिया था या जिसे दिया था क्या उनमें से कोई भी साधु संत या बुढा था ??? रही बात की युद्ध कराने की तो दोस्तो अगर भगवान युद्ध कराने की सोचते तो कितनी बार युद्ध को टाला है। और अर्जुन का रथ भीष्म और गुरू द्रोण के सामने क्यों खङा करते ?? वो उसके रथ को उस कर्ण के सामने खङा करते जिसने उनकी पत्नि को वैश्या कहा था। और भीम को खङा कर देते दुसासन के सामने तो ना तो गीता के 700 श्लोक ही नही सुनाने पङते और सबका खात्मा हो जाता।
भगवान ने जो गीता का उपदेश दिया था तो उसका मकसद युद्ध नही था। वो जानते थे कि अधर्म बहुत बढ गया है और कलयुग आने वाला है अब उस उपदेश की आवस्यकता पङेगी। तो उन्होने तब वह उपदेश दिया था।
श्राद्ध शुरू होने वाले हैं तो हर वर्ष की भांति नही इस बार ऐसा करो जिससे हमारे पितृगणों की मुक्ति हो जाये हम सब पितृ ऋण से मुक्त हो जाये। तो अब सवाल इस बात का है कि क्या करें ???
भगवान ने गीता में 11वें अध्याय में अपना विराट रूप दिखाया है। उसमें दिखाया है कि सबके अंदर में ही विधमान हुं। मुझसे पृथक कुछ भी नही है। जो भी चर अचर हैं। चाहे वे मनुष्य हो या फिर देवता, प्रेत हो या सर्प, वृक्ष हो या पहाङ, पितृ हो या यक्ष किन्नर सब उन्ही के प्रकाश से प्रकाशित हैं। तो अगर हम रोज नही कर सकते तो जिस दिन श्राद्ध हो तो कम से कम 11वें एक अध्याय का पाठ तो करना ही चाहिए। तो फिर जो पत्र पुष्प जल जो भी हम श्रद्धा से प्रमात्मा को देंगे तो वो सगुण रूप से ग्रहण करेंगे। अर्थात हमारे पितृगणों तक बङी आसानी से पहुंच जायेगा। यह बात में नही अपनी तरफ से नही कह रहा महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने ही कही है।
बस तो आप और हम सब मिलकर करें वह काम
जो हमारे पितृ को ले जाये पुर्ण धाम।
जय श्री कृष्ण
शिवा तोमर-09210650915

सोमवार, 31 अगस्त 2009



पढकर सोच रहे होंगे की कैसा आदमी है सुबह सुबह ही आग की बात कर रहा है लेकिन दोस्तों क्या करें आज हमारे देश की ऐसे ही हालात हो गये हैं हर तरफ आग ही आग दिखाई पङती है कोई भी समाचार पत्र देखो या कोई भी चैनल देखो चारो तरफ खुन ही खुन हिंसा ही हिंसा कही किसी बच्ची की चीख तो कहीं किसी महिला की पीङा की कराह कहीं बीच बाजार में धमाकों से हुए शरीर के लोथङे और खुन ही खुन
है ना चारो तरफ आग ही आग
पता तो हम सबको है देखते पढते सुनते हम सब हैं लेकिन जीवन की व्यस्तता के कारण सबको अनदेखा करके अपने काम में ही लगे रहकर बस अपने परिवार की ही चिंता करते रहते हैं
मुझे एक बात याद आती है मैं उस समय 10-12 वर्ष का था हमारे गांव में एक महिला घर के झगङे में कुएं में डुबकर आत्महत्या कर ली थी उस दिन सारे गांव में सन्नाटा सा छाया रहा एक दहशत सी फैली रही सारा दिन
ऐसा लग रहा था जैसे की सारे ही गांव को ही यह सन्नाटा निंगल लेगा कोई किसी से बात नही कर रहा था हर आदमी चाहे पुरूष हो महिला सब सब डरे हुए थे सहमे हुए थे कोई किसी से बात बात तक नही कर रहा था थोङी थोङी देर में पुलिस चक्कर लगा रही थी
एक बुढा बाहर से आया और कहने लगा की क्या बात है आज तो सारा गांव ही सुनसान लग रहा है
आज भी मुझे उस बुढे की बात याद आती है एक औरत के मरने पर सारा गांव उदास हो गया था लेकिन आज हर रोज पता नही कितनी महिलाएं मरती है और कितनी बच्चीयां की चीख निकलती है तो कितने कत्ल होते हैं लेकिन किसी के ऊपर कोई प्रतिक्रिया नही कोई दुख नही कोई अफसोस नही कि किसी के साथ कुछ हुआ है
चारो तरफ आग ही आग और लोग मजे में रह रहे हैं कहां गई सारी मानवता किसी के अंदर कोई करूणा नही कोई सद्भावना नही बस अपना काम बनता ऐसी तैसी करे जनता
ये मानसिकता हो गयी है
समाज झुलस रहा है देश झुलस रहा है और हम बङे चैन से सो रहे हैं
मुझे तो बहुत बैचेनी होती है क्या करूं सहन नही होता तो बस थोङा भावुकता के आंसु बहाकर या लिखकर ही अपनी भङास निकाल लेता हुं
अभी मैंने एक दिन एक खबर पढी की एक महिला को किसी ने टक्कर मारी वह सङक पर गिर गयी जिसने टक्कर मारी उसने अपनी गाङी को रोका नही बल्कि तेज भगाकर ले गया चलो उसके अंदर तो इन्सानियत थी ही नही वह सङक पर पङी पङी चिल्लाती रही किसी ने उस खुन से लथपथ एक बेबश अबला की चीख नही सुनी किसी ने भी अपनी गाङी को रोका तक नही अरे बाबा रोकना तो दुर रहा किसी ने ऱफ्तार भी कम नही की बल्कि अखबार में तो लिखा था कि उसको कुचल भी दिया था
हे भगवान क्या होगा बस लिख रहा और आंखो से आंसु बहा रहा हुं
हे भगवान हर प्राणी में प्रेम सद्भावना करूणा दया और मानवता जगे जो यह आग फैल रही है इस संसार में इसमें कोई ना झुलसे बससससससससससससस
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर-09210650915

बुधवार, 19 अगस्त 2009

धरती मां के बहते आंसु


आप सब सोच रहे होगे की धरती मां कैसे आंसु बहा रही होंगी और क्यों बह रहे हैं आंसु....
शास्त्रों में वर्णन आता है की एक बार धरती पर अपराध बढ गया ! हर तरफ हिंसा ही हिंसा, अत्याचार, अन्याय, क्रुरता इतनी बढ गयी की आम आदमी का जीवन दुभर हो गया ! आतंकी और अपराधियों का अधिपत्य हो गया ! साधु सन्यासी, सीधे, साधे, गरीब लोग और महिलाओं को अपनी इज्जत आबरू बचाना मुश्किल हो गया ! चारो ओर धरती खुन से लाल हो रही थी !
तो धरती मां हाथ जोङकर भगवान के सामने रोती हुई गयी !
उनको देखते ही भगवान ने पुछा की क्या हुआ धरती मां ?? आपके अंदर तो ममता, प्रेम, करूणा, और क्षमा ही रहती है आज ये आंसु कैसे ??
तो धरती मां ने कहा की प्रभु अब और नही सहा जाता मुझसे यह भार ! मैं जल रही हुं ! मुझे इनके चंगुल से मुक्त करो !
तो प्रभु ने समय समय पर हर युग में धरती मां के आंसु देखकर अत्याचार, अन्याय, और अपराध से मुक्त करके धरती के भार को हल्का किया था !
तो आज भी वही समय है ! जब धरती मां आंसु बहा रही है, रो रही है, गिङगिङा रही है ! नही सह पा रही इतना अत्याचार का भार !
किसी भी तरफ नजर घुमाकर देख लो ! धरती का कोई भी कोना ऐसा बचा हुआ नही है ! जहां पर किसी कन्या की चीख सुनाई नही पङती हो ! कोई दुखी कराह ना रहा हो !
धरती मां एक नारी स्वरूपा है ! करूणा, दया, और ममता की देवी इतनी भोली है की कुछ किसी का विरोध नही कर सकती बस सह सकती है !
आप किसी भी दिन कोई भी अखबार उठाकर पढ लो ! कहीं होगा की एक नव विवाहित ने जुल्म के आगे घुटने टेके और नही कर पायी सहन तो मोत को गले लगा लिया ! तो कहीं किसी ने अपनी एक दिन की बच्ची को कुङे के ढेर में फैंककर मां की ममता को कलंकित कर दिया तो ! कहीं कई हवस के भेङियों ने एक नाबालीग की मासुमियत को रोंद डाला अपनी दरिंदगी से !
ऐसे में क्या करें धरती मां ?? नही सहन कर पा रही है ! और आंसु बहा रही है !
एक दिन अभी दिल्ली की घटना है ! एक औरत को एक कार ने टक्कर मार दी तो ड्राईवर ने गाङी रोकी नही बल्कि और तेज चला दी ! वह महिला करीब 50 मीटर तक घिसटती रही ! इन्सानियत की धज्जियां यहीं पर ही खत्म नही हुई ! जख्मी हालात में वह सङक पर पङी पङी चिल्लाती रही ! लोग अपनी तेज रफ्तार को रोकने के बजाय उसको कुचलते चले गये ! तो क्या बीत रही होगी धरती मां के सिने पर !
एक पिता भी अपनी बच्ची को हवस में रोंद रहा है ! हर तरफ अधर्म इतना बढ गया है कि लोग धनोपार्जन के लिए कितना भी गिरा हुआ काम कर देते हैं ! यहां तक की अपनो के साथ भी विस्वासघात करने से बाज नही आते ! एक गरीब जो एक एक रूपया जोङकर इकठठा करता है उसको भी विस्वास में लेकर छुरा भोंक देता हैं !
आज से 5600 वर्ष पहले भी ऐसा ही हुआ था ! इससे भी खतरनाक समय आ गया था ! धरती मां चीत्कार रही थी !
एक नारी को भरी सभा में नग्न करने का प्रयास, उस बेबस नारी ने इतने आंसु बहाये लेकिन किसी के ऊपर जुं तक ना रेंगी !
धन के लोभ में अपने ही भाईयों को मारने का भरकस प्रयास ! शाराब और जुआ
हर तरफ अपराध, हिंसा, और क्रुरता तो महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के सामने आंसु बहाये धरती मां ने गिङगिङायी तो ! सबको ही पता है किस तरह से धरती को अपराधमुक्त किया था भगवान ने !
और एक संदेश भी दिया था ! कि जब जब धरती मां पर ऐसा संकट आयेगा ! जब भी धरती मां अपराध और अन्याय के चगुल में फंस जायेगी ! तो उससे मुक्त करने का एक सुत्र बताया था !
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
अर्थात जब किसी भी युग में धरती मां के आंसु बहेंगे ! तो धर्म की स्थापना यानि की बढते अपराध और अन्याय के वर्चस्व को समाप्त करने लिए तदात्मानं सर्जाम्यहम अर्थात किसी भी आत्मा को ऐसी प्रकाशित कर दुंगा की उसके प्रकाश से सारा संसार प्रकाशित हो उठेगा !
आपने सुना होगा सतयुग में एक राक्षस हुआ करता था हिरणाकष्यपु प्रह्लाद का पिता ! उसने पहले तप किया और बाद में स्वयं को ही भगवान कहलवाना शुरू कर दिया ! और जिसने नही स्वीकार किया उसको दंड देता या मरवा देता था !
उस राक्षस का आतंक समाप्त करने के लिए प्रह्लाद की आत्मा को ऐसा प्रकाशित किया की सब लोग नारायण नारायण जपने लगे ! हां सब लोग छिपकर ही जपते थे ! सब डरते थे कहीं राजा साहब को मालुम हो गया तो कोल्हु में पिलवा देगा !
और सब दिल ही दिल में भगवान से प्रार्थना करते की हे प्रभु हमें इसके चंगुल से मुक्त कराओ इसके कहर से आजाद करो !
और आज चारो तरफ नजर ले जाओ ! कितने लोग ऐसे हैं जो खुद की पुजा करा रहे हैं आरती करा रहे है ! अपने सिंहासन इतने ऊंचा लगवा देते हैं कि इंद्र के सिंहासन से भी भव्य लगे ! और भगवान को बिलकुल गौण कर देते हैं ! और उनके भक्त भी यही कहते हैं सबसे की गुरू ने सब कुछ दे दिया तो ! देखो आज कितने हिरणाकष्यपु हो गये हैं ! जो खुद को भगवान साबित करने में लगें हैं ! तो क्या करेंगी धरती मां आंसु नही बहायेगी तो क्या करेगी !
लेकिन हमने किसी ने भी उस उपदेश पर ध्यान नही दिया ! और बस यही सोच रहे है कि इस आतंक, हिंसा, अलगाव, असुरक्षा, भय, अराजकता, और अनैतिकता से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अवतार लेकर प्रभु आयेगें !
अरे भाईयों प्रभु ने जो संदेश दिया था, तदात्मानं सर्जाम्यहम ! उसको स्मरण करो ! और स्वयं को इस अभियान में लगा दो ! जो प्रभु के अवतार लेने का मकसद होता है ! अपराधमुक्त समाज निर्माण और मानवाधिकार रक्षा !
आज हर तरफ अज्ञान के कारण हमारी तामसी बुद्धि अधर्म को भी धर्म मानकर मानवाधिकार के बजाय दानवाधिकारों की रक्षा कर रहे हैं !
अगर हमें प्रभु के उपदेशों पर चलना है ! और धरती मां के आसुंओं को रोकना है ! तो धरती पर होते जुल्म को रोकने का प्रयत्न करो ! बढते अन्याय, अत्याचार, हिंसा अनैतिकता और अश्लीलता को रोकने में साहयक हो जाओ !
जब भी कभी इतिहास में इस बात का वर्णन हो तो धरती मां के आंसु बहाने में हमारा नाम नही आना चाहिए ! उन्हें रोकने में हमारी गणना होनी चाहिए !
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर- 09210650915

रविवार, 16 अगस्त 2009

प्रेम बङा दुर्लभ है


जय श्री कृष्णा
कल मैं औशो की एक पुस्तक पढ रहा था ! उसमें प्रेम और आसक्ति के बारें में बहुत अच्छा वर्णन किया गया है ! उसको पढकर मुझे लगा की ये बात सच ही है की आज के वर्तमान युग में आसक्ति का क्षेत्र बढता जा रहा है, और प्रेम कम होता जा रहा है !
मैं बहुत वर्षों से ओशो की पुस्तकें पढता आ रहा हुं ! और यही कारण है की हर बात का गहराई से चिंतन करता हुं ! जब मैंने इस बात का भी चिंतन किया कि प्रेम तो बङा दुर्लभ है ! हर व्यक्ति अपने ही बारें में सोचता है ! जो हर कोई कहता है की मुझे अपने बच्चों बीबी से यार दोस्त से प्रेम है ! तो ओशो ने कही है की जब तक हम (जिसे प्यार करते हैं) वो हमारी बात मानते हैं ! हमारे मन के मुताबीक चलते हैं ! तो प्रेम रहता है ! जिस दिन (वो ही व्यक्ति जिसे हम इतना प्यार करते) हमारी बात मानने से इंकार दे ! हमारे विरूद्ध चल पङे तो कहां गया सारा प्रेम ! उस दिन हमें बङा कष्ट होता है जिस दिन पहली बार वह ( जिसे हम प्रेम करते थे) हमारी आकाक्षाओं की हमारी इच्छाओं की चिता जलाता है ! उस पर इतना गुस्सा आता है ! की अगर पुलिस का डर ना हो तो सिधी गोली मार दें ! अरे बाबा जब प्रेम था तो इतनी जल्दी नफरत और गुस्से में कैसे बदल गया !
जिस किसी के ह्रदय में एक बार प्रेम का बीज अंकुरित हो जाता है ! वह तो गुलाब के फुल की तरह से बन जाता है ! कि जो भी उसके निकट आयेगा तो खुशबु से सुगंधित हो उठता है !
तो इसका अर्थ हुआ की जो हम सबके अंदर प्रेम दिख रहा है यह कुछ और ही है !
दुसरी एक बात और कही है की हम जितना किसी से इच्छा रखते है और (फलां आदमी जिसे हम प्रेम करते) हैं ! वह हमारी आकांक्षाए पुर्ण करता है तो वह हमें इतना ही प्यारा होता है अर्थात हम उससे उतना ज्यादा प्रेम करता है !
मैंने भी इस पर अपने विचार लिखे और लिखकर आ गया ! तो मेरी बीबी (राधा) ने बाद में पढ लिया ! और उसने भी इस पर अपने विचार लिखे ! वह भी पिछले चार पांच सालों से गीता अध्ययन और ध्यान में रत रहती है !
उसने कुछ तथ्य लिखे ! जिसका में संक्षेप में वर्णन करता हुं ! उन्होनें लिखा है कि, संसार में प्रेम ही प्रेम ही है ! अगर प्रेम नही होता तो ! क्या एक मां रात को 10 बार उठकर अपने बच्चे को दुध पिलाती ! उसके मल मुत्र साफ करती ! माना की सारा संसार स्वार्थी हो गया है ! लेकिन अभी तो उस बच्चे से कोई स्वार्थ पुर्ण ही नही हो सकता ! स्वयं रात को गीले बिस्तर पर सो जायेगी लेकिन अपने बच्चे को सुखे में सुलाती है !
उन्होने दुसरी बात लिखी है की, एक मां अपनी नन्हीं सी बेटी को ऊंगली पकङकर चलना सिखाती है ! सारा काम सिखाती है 18 20 वर्ष तक पाल पोसकर बङा करके फिर विदा करके किसी अनजान के हाथ में हाथ देकर भेज देती है ! लेकिन मां का दिल तो अपनी लाडली के पास ही रहता है और कभी कभी सुबह आवाज लगाती है ! बेटी उठ जा सुबह हो गयी है ! जव उसे होस आता कि बेटी तो चली गयी तो दिल भर आता है ! और इसके प्रेम का जबाब उस बेबस मां की आंखे देती है ! क्या यह भी आसक्ति है !
बातें तो उसने और भी बहुत लिखी है ! अंत में लिखा है की भगवान कहते है की ये सारी सृष्टि मैंने ही बनायी है ! संसार का हर जीव मेरा ही अंश है ! जो इससे प्रेम नही कर सकता जो इसको भी स्वार्थ रूप में देखता है ! तो वह मुझसे क्या प्रेम करेगा !
मैंने रात को जाकर डायरी में लिखने का विचार किया ! जैसे ही मैंने यह पढा तो असमंजस में पङ गया ! जो राधा ने लिखा है उसको भी हम नकार नही सकते ! प्रेम के बिना तो संसार रेगिस्तान बन जायेगा ! मरूस्थल हो जायेगा ! और सारी व्यवस्था ही बिगङ जायेगी !
मैं तो अपनी बात और ओशो के उपदेश को अभी भी 100 प्रतिशत सत्य मान रहा हुं ! क्योंकि अगर हम भावनाओं में बहकर नही बल्कि व्यवहारिकता से देखें ! तो हर तरफ आसक्ति और स्वार्थ ने अपना शिकंजा कस रखा है ! किसी को भी इससे मुक्त नही होने देता !
आप अपनी राय जरूर दे की मैं ठीक हुं या राधा ????????
जय श्री कृष्णा

शिवा तोमर-- 09210650915

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

आजादी पर संकल्प


15 अगस्त
आज आजादी का दिन ! सुबह से ही देश भक्ति के गाने और शहीदों की शहीदी बहुत सुंदर तरिके से दिखाकर लोगों के अंदर देश भक्ति की भावना पैदा करने का काम टी वी चैनल कर रहे थे !
मैं सुबह से ही अपने आफिस में बैठा हुआ अपने ही चैनल का आजादी पर खाश प्रोग्राम देख रहा था !
पता नही बचपन से ही ऐसी क्या बात रही, की आजादी की कोई भी बात सुनकर पढकर ही मेरी आंखों में आंसु निकलने लगते हैं !मुझे नही पता की क्या संबंध है मेरी आजादी से !
आजादी और शहीदों की कहानी देश भक्ति और भारत माता का नाम ही सुनकर अंदर से ही भाव विभोर हो जाता हुं !
मेरे पिताजी भारत मां के सच्चे सिपाही हैं उन्होने 1962 चीन के साथ 1965 पाक के साथ और 1972 बंगला देश वाली लङाई भारतीय सेना की तरफ से लङे थे ! उन्हीं का लहू मेरी रगों में दोङ रहा है ! या कोई और कारण है ! मुझे कुछ समझ नही आता ! बस इतना ही पता है की देश भक्ति की बात सुनकर ऐसा मन करता है की मैं कैसे अपनी भारत मां के काम आ सकता हुं ! और देश में बढती गुलामी से कैसे अपने युवा भाईयों को आजादी दिलाऊं ! आज के युवाओं को देखकर स्वयं से और पर उस युवा पर गुस्सा आता है जो हमारी भारत मां और संस्कृति के विरूद्ध चलते हैं !
भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, मंगलपांडे, सुभाषचंद्र बोश इन भारत मां के सच्चे सपुतों को क्या पङी थी ! वो भी हमारी तरह मोज ले सकते थे.... समझ नही आता की ऐसा क्या हो गया है ऐसी कोनसी चक्की का आटा खाने लगे हमारे युवा किशोर भाई की जो लगातार नशा सैक्स हिंसा अनैतिकता अश्लीलता व्याभीचार के शिकंजे में फंसकर इतने स्वार्थी और मतलबी हो हो गये हैं की कुछ भी कहना गलत ही होगा !
सुबह से ही मेरे दिल में आ रहा है कि ऐसा क्या करूं जो देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का सबक हो ! मेरे पास कोई साधन संगठन भी नही है बस भावना है !
आपसे मेरा अनुरोध है, कि हमारी जागरूक युवा सेना को मनोबल बढायें और सबको प्रेरित करो की कुछ ऐसा करो जो सबके लिए एक सबक हो
आज आजादी पर्व के मोके पर उन शहीदों से हमें ये ही वायदा करना है की जिस भारत माता की आन शान की खातिर फांसी का फंदा चुम लिया था हम भी इसकी आन शान बचाने के लिए तन मन धन से समर्पित होंगे !
जय भारत जय हिंद
शिवा तोमर - 09210650915