शनिवार, 1 अगस्त 2009

आत्महत्याएं- क्यों


आत्महत्या! सोचकर भी डर सा लगता है लेकिन आजकल हर तरफ इन वारदातों को लेकर भारत ही नही पूरा विश्व ही भयभीत है, डरा हुआ है। हर समाचार पत्र में, हर चैनल में, रोज दो चार आत्महत्या की खबर दिख ही जाती हैं। मरना कोई नहीं चाहता है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह जिये ओर जीवन का आनंद ले, मौज करे। अपने मां बाप भाई बहन सगे सम्बंधी के साथ प्रेम से जीना चाहता है। जो मां बाप आज तक बच्चे की हर इच्छा पूरी करते थे, हर सुख सुविधा ऐशो-आराम का ध्यान रखते थे; फिर अचानक क्या हुआ, कौन सा संकट आ गया, जो आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। व्यक्ति जिनके लिये धन दौलत सोहरत इज्जत कमाना चाहता है, उनको छोड़ने का कैसे करता है संकल्प। सुबह से सांय, सांय से रात तक कोल्हू के बैल की तरह पिलता रहता है। हर वर्ष आंकड़ों के मुताबिक हजारों बच्चे आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। एक कहावत है कि आत्म हत्या कायर लोग करते हैं। लेकिन नही, आत्म हत्या करने में बहुत हिम्मत चाहिए। मैं आपको आंकड़ो के आधार पर नही अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ। मैं 8-10 ऐसे आदमीयों को जानता हूँ जिन्होने आत्म हत्या की। कई बार आदमी अपने आप को परिस्थतियों के सामने इतना मजबूर पाता है कि चारो ओर कहीं कुछ दिखाई ही नहीं देता।
आज जिस तरह आत्महत्या नाम की यह बिमारी लोगों को अपने शिकंजे में कसती जा रही है, बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है। इतना भय ओर हानि देश में ओर किसी भी कारण से नही जितनी बढ़ती आत्महत्या से है। मनोवैज्ञानिक लोग, ड़ाक्टर लोग ओर सर्वे करने वाले अपने अपने अलग कारण बताते है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि जब कहीं से भी कोई प्रकाश की किरण नजर नही आती और व्यक्ति जीवन से बहुत उदास हो जाता है। किसी से कुछ कह नही सकता, बता नही सकता क्योंकि लोग तो रो कर पूछते हैं और हंसकर उड़ाते है। किसी के सामने अपनी व्यथा कहकर और हंसी उड़वानी है। बढ़ती आत्महत्या या अपराध का कारण शिक्षा की कमी, गरीबी या कमजोरी नही है। देखा जाय तो शिक्षक, सैनिक, विद्यार्थी, अमीर, गरीब, औरत, मर्द सब अपनी जीवन लीला समाप्त करके आंकड़ो में एक ओर आत्महत्या जोड़ देते है। व्यक्ति कोई भी कर्म करता है तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मन की होती है। कर्म चाहे किसी भी भाव से भावित रहा हो; काम का संचार हो, भय का, क्रोध, वासना, खुशी, दुख कुछ भी हो; सीधा सम्पर्क हमारे मन से होता है। तो आत्महत्या भी हमारे मन में उत्पन होने वाले भाव का ही एक अंग है। हर व्यक्ति चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी बात मानें, इज्जत करें, उससे प्रेम करें। जो भी हम काम करते अपने लिये नही अन्य लोगो के मध्य अपनी जगह बनाने के लिये भरसक प्रयास करते हैं, चाहे झूठ भी बोलना पड़े। यह सोचते है कि देखो अगर यह हो गया तो लोग मेरी इज्जत करेंगे, मेरा समाज में नाम होगा सब मेरी वाह वाही करेंगे।
बीबी बच्चे मां बाप यार दोस्त इन सब के लिये कितना करता है फिर भी आत्महत्या.............................. इस विषय पर गहरा चिन्तन करना पड़ेगा....... श्री मदभगदगीता में एक श्लोक है......विषयों का चिन्तन करने वाले पुरूष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से कामना उत्पन होती है, कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध पैदा होता है। क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता, स्मृति में भ्रम होने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है, बुद्धि का नाश हो जाने पर पुरूष अपनी स्थिति से गिर जाता है और गिर कर वह व्यक्ति हत्या, डकैती, बलात्कार या आत्म हत्या कुछ भी कर सकता है। मेरा मानना है कि आज यह श्लोक पूरे विश्व की वर्तमान हालत बयान कर रहा है। जिस तरह भारत ही नही सारे विश्व में अपराध, हिंसा, अशांति और आत्महत्या में वृद्धि हो रही है, उसका यही एक कारण है। बात चल रही है आत्महत्याओं की तो सबसे पहले उस संवेदनशील समय से पहले का विचार करना होगा । मैं आपके सामने कुछ केस की थोड़ी हकीकत बताउंगा। एक आदमी था निर्मल सिंह, खूब नशा करता था। एक दिन रात को मैं उठा तो देखा की 3.30 बजे स्मैक पी रहा है। मैंने कहा, “चाचा! अब तो सोने का समय है।“ उसने मुझे कहा कि “शिवा बाबा! जीवन में हर प्रकार की मौज लेने दो ना” और उसने 4.00 बजे फांसी लगा ली। राजेश, पिता का नाम ओमप्रकाश; तिहाड़ जेल में था। रोज वहाँ सबके साथ हंसी मजाक करता रहता था। अचानक फांसी लगा ली। वह भी चरस आदि का नशा करता था। एक आदमी पेसे से डाक्टर था। एक दिन उसकी बीबी से कुछ कहा सुनी हुई और लटक गया पंखे पर। एक ओर लड़का था जो एक लड़की से प्यार करता था और अकेले में बैठकर ऐसे बातें करता था कि जैसे वह सामने ही बैठी हो। उसके घरवालों ने उसे कहा कि तेरी शादी इसके साथ नही हो सकती, तो एक दिन रात को फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अगले दिन उसके बिस्तर पर उस लड़की के कई पत्र मिले जिन्हे शायद वह सारी रात पढ़ता रहा होगा। जैसे मैंने अभी तक इतनी आत्महत्याओं का अध्ययन किया तो हर केस में कुछ एक बात समान मिलती है। जैसे कि जो भी इतना खतरनाक कदम उठाता है, उन संवेदनशील पलों से पहले बिलकुल अकेला रहकर, डूबा रहता है, वह खो जाना चाहता है। अपने को मिटा देता है इस समाज, सभी रिश्तों और हर बन्धन से। वह अपने को कहीं डुबा देना चाहता है, चाहे वह नशे में डूबे या फिर किसी की यादों में। उसमें डूबकर अनुभव करता है कि इस वस्तु या व्यक्ति के अलावा मेरा कोई नहीं है। एक बार मेरे सामने भी यह मनहूस घड़ी आयी थी। जहर की शीशी हाथ में थी। आधा घण्टा दरवाजा बंद करके रोता रहा फिर शीशी हाथ में ली, मन में यही विचार था कि वह नहीं तो मेरा कोई नहीं है, तो क्या करूँगा जीकर। इसी बीच एक ऐसा चमत्कार हुआ कि मुझे जीवन मिल गया। मैने अपनी घड़ी में 9 बजे का अलार्म भर रखा था। वह चित्कार उठी। बस सारा नक्शा ही बदल गया। वो ऐसे नाजुक पल होते हैं जिनमें व्यक्ति इतना बड़ा फैसला कर लेता है और वह क्षण बस कुछ ही सैकेंडों का होता है। उस पल अगर कोई बीच में आ जाये तो कुछ नहीं होगा। वह नाजुक पल जब आता है तो व्यक्ति आत्महत्या ही नहीं; हत्या, बलात्कार, कुछ भी कर सकता है। यह मन बड़ा चंचल है। एक क्षण में इधर उधर हो जाता है। यह चाहता है कि कोई इसे प्यार करे और आज व्यस्त युग में मनुष्य के पास हर चीज है, बस समय नहीं है। घर में बच्चे कब तक अकेले रहें। उन्हें तो प्यार चाहिए, अपनापन चाहिए। कोई उनसे बात करे, उनके दिल की पूछे। लेकिन मम्मी पापा के पास समय नही होता, 5-10 मिनट के लिये खाने के समय बात करते हैं तो बस यही पूछते हैं कि कैसी पढ़ाई चल रही है, क्या चाहिए, बेटा तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना है, पढ़ाई का ध्यान करना और जाकर सो जाते हैं। बच्चा सुन सुन कर दुखी हो जाता है; परेशान हो जाता है; झल्ला जाता है। जब घर में उसे प्यार नहीं मिलता, कोई उनके दिल की आवाज नही सुनता तो वह कहीं और दूसरी जगह प्यार खोजता है। उस व्यक्ति को खोजता है जो उसको प्यार दे सके, उसकी दिल की आवाज सुन सके। तो वह अपने दोस्तों से सम्पर्क बढ़ाता है और किसी ना किसी में वह तस्वीर देखता है कि यह मेरी दिल की आवाज सुनेगा। और यह मन बड़ा चालू है, विपरीत लिंग की ओर ही प्रभावित होता है। लेकिन यह कार्यक्रम ज्यादा नही चलता। हर व्यक्ति रोज एक सा पाकर भी बोर हो जाता है और जिसे मन अपना समझता है, वह कहीं और भी अपना ठिकाना बना लेता है। जब वह मासूम मन उसे देखता है तो सहन नहीं कर पाता क्योंकि पहले तो अपने मां बाप से नहीं मिला प्यार; बाहर भी खोजा लेकिन जितना वह मासूम मन चाहता है उतना नही मिल पाता। बस टूट जाता है, टूट गयी सारी उम्मीदें। वह अब दुख ओर कष्ट के कुऐं में पड़ा रहता है। अब वह हर तरफ से निराश और मायूस होकर कोई ऐसा रास्ता खोजता है जो सहज और सरल हो। जैसा हम सब जानते है कि दुख ओर कष्ट से निकलने का सबसे आसान तरीका मानते हैं नशा................................. अब वह मन मां-बाप, यार-दोस्त सबसे निराश हो चुका और सिर्फ नशे में ही अपने जीवन का आनन्द सुख समझने तथा अनुभव करने लगता है। यहाँ कई लोग अपने को उस अकेलेपन ओर मायूसी से बचाने के लिये लड़ाई झगड़ा, हिंसा और अपराध में लिप्त कर लेते है। नशे में डूबा हुआ आदमी अपनी वास्तविक स्थिति से गिर जाता है, नशे के सागर या फिर किसी में अपनी तस्वीर देखता हुआ बाकी सारे जहाँ से अलग होकर आत्महत्या में ही आत्मीक सुख और जीवन का आनन्द समझता है और इस संसार में जो भी उसके अपने मां, बाप, भाई, बहन, यार-दोस्त, घर, पैसा, सोहरत सबको अपना नहीं मानता। वह बस अकेला है। यह जग दुश्मन है। यहां इस स्थिति पर आकर वह दुखी मन हत्या भी कर सकता है, बलात्कार औरर आत्महत्या भी। यह भेड़चाल नही है और कोई किसी के बहकावे में आकर भी आत्महत्या नहीं करता। अर्जुन भी यही कह रहा था कि हे कृष्ण! अगर ये सब ही मर गये तो मैं किसके लिये राज्य करूंगा। मेरा मरना भी कल्याण का होगा। जब मेरा परिवार नहीं रहेगा तो मैं जीकर क्या करूंगा। भगवान जानते थे कि ऐसी परिस्थति होगी भविष्य में तो पहले ही इससे बचने के लिये वह रास्ता इस दुनिया को दिया जो हमें इन सभी बीमारियों से मुक्ति दे सकती है वह है श्री मदभगवदगीता!
शिवा तोमर 09210650915

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