रविवार, 20 जून 2010

हत्यारों को क्यों नही आता रहम.....


मैं और मेरे साथ दो लङके कहीं सुनसान जगह पर खङे हैं और एक गाङी आयी। गाङी को देखते ही मेरे साथ का एक लङका कहने लगा कि भाई इसी ने मुझे मारा था आज हम इसको नही छोङेंगे। और हमने वो गाङी रूकवा ली उसमें जो भी बैठा था उसको खिंचकर निचे गिरा दिया उसने कहा कि मुझसे क्या गलती हुई मुझे क्यों मार रहे हो। लेकिन उसकी बात किसी ने नही सुनी जब तक थप्पङ से काम चला तो चलाया उसके बाद उसी की गाङी में रखे पेचकस से हम लोग उसे मारने लगे वो चिल्लाता रहा कि भाई मैंने आपका क्या बिगाङा है मेरे तो छोटे से बच्चे हैं, बुढे मां बाप हैं उनका कोन करेगा, लेकिन पता नही कहां चली गयी दया क्यों इतने बेरहम हो गये कि उस खुन से लथपथ की कोई भी गुहार कोई भी चीख दया की भीख का कोई असर नही हो रहा और उसकी पेचकस से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी अब वह बेचारा सङक पर पर पङा आंखे बहार सङक पर भी खुन की धारा बहने लगा। हममें से एक ने कहा कि भाई पुलिस आ गयी और सारे भाग खङे हुए बस भागे जा रहे थे अब हमें अपनी जान के लाले पङ रहे थे। और हम भागते भागते बेहाल से हो गये सांस धोंकनी की तरह से चल रही थी और पता नही कहां कहां से निकलते हुए खेतों में जंगलो में से होते हुए पता नही कहां भागे जा रहे थे। सारा बदन पसिने पसिने हो रहा था। गला सुख रहा था और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि भगवान आद बचा लो। मैं हङबङाकर उठा मेरा भाई कहने लगा की क्या बात है बहुत डरे से हुए से लग रहे हो चेहरा पीला पङा हुआ है। मैं उसे क्या बताऊं की सपने में हमने किसी को बङी निर्दयता से मार दिया। मैंने कहा कुछ नही पानी दे दो ये बात रात के करीब 2 बजे की थी। मेरा भाई तो बेचारा पानी देकर सो गया लेकिन मैं नही सो पाया सारी रात पता नही कितने विचार मन में दोङते रहे।
सबसे पहले तो दिमाग में ये बात आयी की आदमी इतना बेरहम क्यों हो जाता है कहां से आ जाती है इतनी कट्टरता इस मासुम दिल में, चाहे कोई कितना भी गिङगिङाता रहे रहम की फरियाद करता रहे लेकिन कोनसी शक्ति इसके अंदर आ जाती है जिससे उससे किसी की कोई भी चीख पुकार नही सुनती।
और दुसरी बात ये आयी की जब इतना बहादुर निडर और बलवान है तो जब अपनी जान पर पङी तो क्यों कुत्ते की तरह भागता फिर रहा था ये बात मैंने सिर्फ सुनी थी कि बुरे कर्म करेगा तो कुत्ते की तरह भागता फिरेगा लेकिन मैने इसे देखा है और अभी भी ऐसा लग रहा जैसे कि सच में घट रहा हो। अब कहां गयी वो सारी ताकत पानी पीने के लिए भी समय नही है और भागे जा रहा है अपने को बचाने के लिए।
इन दोनो बातो ने मुझे सारी रात नही सोने दिया क्या करूं इतनी बैचेनी रही की लिख नही सकता।
मैं इसे इसलिए लिख रहा हुं कि कहानी की तरह से नही पढें यही तो आज सारी दुनिया में हो रहा कोई कितना भी मजबुर हो दुखी हो और किसी के पास भी चला जाये कितना भी रोता रहे लेकिन कोई नही सुनता बस अपने स्वार्थ में अंधे हो रहे हैं आंखो पर ऐसा चश्मा चढा रखा है कि कोई नही दिखता। और ऐसा नही है कि ये पल किसी एक पर नही आता जीवन में कभी ना कभी प्रत्येक के ऊपर आता है लेकिन अपने ऊपर जब पङती है तो सुनता ही नही। बस सावधान हो जाओ जो आज हमारे सामने कोई गिङगिङा रहा है कल हो सकता है कि हम भी किसी के सामने खङे हों और अगर वो भी हम पर रहम नही करेगा तो दुनिया में कितनी भयावह स्थिती हो जायेगी। जय हिंद

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