लोग मुझे पुछते हैं कान्हा...
कैसा है तेरा मोहन...........
तु ही बता कान्हा मैं कैसे करूं तेरा वर्णन
दिल मैं बसा एक एहसास है तु .........
इस दिल को कहां आता है बताना ......
हर पल महसुस करता हुं तुमको ........
लेकिन आता नहीं है मुझको जताना ....
लोग कहते हैं क्या शिवा तुने देखा
है कान्हा को .......................
क्या कहुं उनको जिस नजर को बनाया है
उसने
क्या उसको देख पायेंगी
दिल में दिखता है मुझे हर पल
बांसुरी बजाते हुए चलते है संग संग
तु ही तो जीवन है मेरा
कैसे लोगों को मैं समझाऊं ..........
हर पल तु साथ है मेरे .......
कैसे उनको यकीं दिलाऊं ......
सब पुछते हैं मुझसे कान्हां ........
तेरा मेरा क्या रिस्ता है .........
कैसे समझाऊं उनको कान्हां
कि मेरा तो हर रिस्ता बस तुमसे है .....
पागल कहते हैं मुझे दिवाना समझते हैं .....
मैं कुछ नही समझा पाता हुं उनको ....
बस नादान हैं यही समझकर मुस्कुराता हुं ...
हालत मेरी कोई ना जाने .........
कैसे क्या बताऊं
तु ही बता क्या करूं मैं ............
सब देते हैं मुझको ताने ..........
संसार अब ना भाये मुझे ...........
कान्हां अपनी शरण में ले लो मुझे ..........
तुम अगर ना आ सको कान्हां .............
तो मुझे ही अपने पास बुला लो .................
एक पागल सा कृष्ण का दीवाना
शिवा तोमर
सोमवार, 8 जून 2009
रविवार, 24 मई 2009
आचरण से मिलती है- महानता
आचरण से मिलती है- महानता
हर कोई अपने को महान बनाना चाहता है l यह सोचता है कि सब लोग मेंरी बात मानें मुझे अपना आदर्श समझे l और झुठी हवा में सारा जीवन खो देता है l सुबह से रात तक जिससे भी मिलता है उसी के समक्ष अपनी तारिफ के पुल बांधता रहता है l स्वयं को श्रेष्ठ दर्शाने के लिए भरकस प्रयास करता है l
लेकिन ऐसा क्या है ???? की चन्द ही लोग इस समाज को अपनी महानता से प्रभावित कर पाते हैं l
हर व्यक्ति चाहता है कि, जैसे नंगे पैर सुती धोती में लिपटे हुए एक कमजोर से आदमी के पिछे देखने के लिए भीङ उमङ पङती थी l उनकी एक एक बात को जनता गुरू मंत्र की तरह ग्रहण करते थे l तुम मुझे खुन दो मैं तुम्हे आजादी दुंगा एक ऐसा व्यक्ति जो अपने देश की सरकार की तरफ से मोस्ट वांटेड की श्रेणी में था लेकिन विदेशी जमीं पर जनता पागलों की भांति उनके पिछे भागती थी l ना कोई लालच, ना स्वार्थ है, बस प्रेम समर्पण और भावना थी l
हम सब भी यही चाहते हैं ना कि हर कोई हमें इसी तरह मानें हमारी बात मानें हमारे प्रति समर्पित हो l अभिलाषा तो सभी करते हैं लेकिन लाखों मध्य कोई चन्द्रमा निकलता है जिसके प्रकाश से सारा संसार प्रकाशित हो उठता है l हर सितारें में चमक आ जाती है l
जरा इस बात पर विचार करें कि कैसे होता है यह सब l क्या किया था ???? ऐसा स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोष, महात्मा गांधी, टोलस्टोय अरविंद घोष और बाल गंगाधर तिलक ने l
बापु के बाद बहुत से लोगों को ख्याति प्राप्त हुई l लेकिन उनके बाद आज तक कोई ऐसा नही हुआ जो लोगो के जीवन में चमक ला सके l उनको अपनी महानता से प्रकाशित कर सके l
महान बनने की इच्छा रखने से पहले उन लोगो के जीवन का दर्शन करना होगा l जब हमें वह सुत्र हाथ लगेगा l वह रास्ता मिलेगा जिससे लोगों को अपनी महानता से प्रभावित कर सके l
जितने भी आज तक विस्व के मार्ग दर्शक हुए इतिहास ने जिन विभुतियों को अपने अंदर अलंकारित किया l उन सबका अध्ययन करने पर एक बात स्पस्ट होती है, कि जो भी व्यक्ति घर, परिवार, जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर कार्य करता है वही इतिहास पुरूष बन जाता है l उसे ही सब महान मानने लगते हैं...l
आज देखा जाय तो कितने ही आतंकवादी संगठन हैं l जो घर परिवार की चिंता किये बिना अपने संगठन के लिए काम करते हैं l लेकिन उनकी गणना उन सितारों में नही होती जो अपने नाम से इतिहास की शोभा बढाते हैं l क्योंकि जो कार्य नफरत, हिंसा और घृणा से किया जाता है वह इतिहास में नही पुलिस फाईलों लिखा जाता है l
जो व्यक्ति चार दरवाजे पार करके कार्य करेगा घर, परिवार, जाति और सम्प्रदाय वही समाज में इतिहास में लोगों के दिलों में अपना नाम अंकित कर सकता है l सब उसको महान मानेंगे l
वही ऐसा दिव्य पुरूष बन जायेगा जो अपने तेज से असंख्य सितारों को प्रकाशित कर देगा l
मगर मजबुरी की व्यक्ति की इन्ही चार अङचनों में फंसकर ही भटकता रहता है l और वह इच्छा की लोग हमें महान और श्रेष्ठ समझें दिल की दिल में रह जाती है l आदमी मात्र बातों बातों से ही महान नही बनता l महान बनने के लिए आचरण का पवित्र और सुन्दर होना परिहार्य है l
इस तथ्य को प्रमाणीत किया है महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते हैं l दुसरे भी वैसा ही करते हैं l इस बात से यह भी सच साबित होता है की जो व्यक्ति अच्छा आचरण करेगा अच्छा कर्म करेगा लोग उसको अपना आदर्श मानेंगे उसे महान मानेंगे l
व्यक्ति ना कपङों से, ना बंगले गाङी से, ना पैसो से महान बनता है l यह बात सभी लोग जानते हैं l मदर टेरेसा. कबीर दास, महात्मा गांधी क्या थे ??? लेकिन किसी एक जाति समाज या एक देश ने नही बल्कि सारे संसार ने उन्हे महान स्वीकार किया l सब कुछ जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं l और पुरा जीवन झुठी वाह वाही में गंवा देते हैं l जानते हुए भी हम अपने आचरण को नही बदल पाते l यही कारण है महान बनने का बजाय अपमान सहते रहते हैं l और स्थिती ऐसी बन जाती है कि हम अपने बच्चों के सामने भी अपनी महानता नही दर्शा पाते l बाकि के सामने तो बात ही क्या है l
शिक्षा के क्षेत्र में व्यापार में राजनिति में या किसी दुसरे क्षेत्र में व्यक्ति अच्छा नाम कमा लेता है l प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है l लेकिन अपने आचरण के कारण लोगों में और समाज में अपनी महानता साबित नही कर पाते l
अगर भीङ की बात करें तो एक नेता के पिछे या फिल्मी कलाकार के पिछे भी लग जाती है l लेकिन मरने के 5-7 वर्षों के बाद ही सब भुल जाते हैं l पता नही कितने आये और चले गये l लाखों में कोई एक अपने आचरण के बल पर सबके दिलों में अपनी छाप छोङकर चले जाते हैं l भगवान बुद्ध, गुरू गोविंद, भगत सिंह, टालस्टाय, जरथुस्त्र मीरा महात्मा गांधी ऐसा क्या था ??? इन महान आत्माओं में जो इनके ना होने पर लोग और भी ज्यादा इनके दिवाने बन रहे हैं l इनकी महानता का लोहा मान रहे हैं l
इन महा पुरूषों के जीवन दर्शन से ज्ञात होता है l कि इन्होंने भगवान के कथन को अपने जीवन का आधार माना है l उसको अपने आचरण में ढाला है l भगवान कहते हैं सुख दुख लाभ हानि जय पराजय से ऊपर उठकर अर्थात परमार्थ के लिए कर्म करे जो वही परम ब्रहम को प्राप्त कर लेगा l अर्थात समाज में सबके दिलों में अपनी जगह बना लेगा l सब उसको महान और श्रेष्ठ मानेंगे l सभी महापुरूषों ने घर परिवार जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर अपनें कर्मों से ऐसा आचरण किया जो मानवता इन्सानियत और परमार्थ के लिए था l
अगर हमें भी महान बनना है तो मार्ग पकङना होगा l किताब शास्त्र प्रवचन हवन आदि करने से हमारा अपना लाभ है l लेकिन ये सब अगर हम मात्र कर्म काण्ड तक ही सिमित रखेगें तो कोई भी हमें महान नही मानेगा श्रेष्ठ नही मानेगा l हम महान बनेंगे अपने आचरण से अपने कर्म से बस l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
हर कोई अपने को महान बनाना चाहता है l यह सोचता है कि सब लोग मेंरी बात मानें मुझे अपना आदर्श समझे l और झुठी हवा में सारा जीवन खो देता है l सुबह से रात तक जिससे भी मिलता है उसी के समक्ष अपनी तारिफ के पुल बांधता रहता है l स्वयं को श्रेष्ठ दर्शाने के लिए भरकस प्रयास करता है l
लेकिन ऐसा क्या है ???? की चन्द ही लोग इस समाज को अपनी महानता से प्रभावित कर पाते हैं l
हर व्यक्ति चाहता है कि, जैसे नंगे पैर सुती धोती में लिपटे हुए एक कमजोर से आदमी के पिछे देखने के लिए भीङ उमङ पङती थी l उनकी एक एक बात को जनता गुरू मंत्र की तरह ग्रहण करते थे l तुम मुझे खुन दो मैं तुम्हे आजादी दुंगा एक ऐसा व्यक्ति जो अपने देश की सरकार की तरफ से मोस्ट वांटेड की श्रेणी में था लेकिन विदेशी जमीं पर जनता पागलों की भांति उनके पिछे भागती थी l ना कोई लालच, ना स्वार्थ है, बस प्रेम समर्पण और भावना थी l
हम सब भी यही चाहते हैं ना कि हर कोई हमें इसी तरह मानें हमारी बात मानें हमारे प्रति समर्पित हो l अभिलाषा तो सभी करते हैं लेकिन लाखों मध्य कोई चन्द्रमा निकलता है जिसके प्रकाश से सारा संसार प्रकाशित हो उठता है l हर सितारें में चमक आ जाती है l
जरा इस बात पर विचार करें कि कैसे होता है यह सब l क्या किया था ???? ऐसा स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोष, महात्मा गांधी, टोलस्टोय अरविंद घोष और बाल गंगाधर तिलक ने l
बापु के बाद बहुत से लोगों को ख्याति प्राप्त हुई l लेकिन उनके बाद आज तक कोई ऐसा नही हुआ जो लोगो के जीवन में चमक ला सके l उनको अपनी महानता से प्रकाशित कर सके l
महान बनने की इच्छा रखने से पहले उन लोगो के जीवन का दर्शन करना होगा l जब हमें वह सुत्र हाथ लगेगा l वह रास्ता मिलेगा जिससे लोगों को अपनी महानता से प्रभावित कर सके l
जितने भी आज तक विस्व के मार्ग दर्शक हुए इतिहास ने जिन विभुतियों को अपने अंदर अलंकारित किया l उन सबका अध्ययन करने पर एक बात स्पस्ट होती है, कि जो भी व्यक्ति घर, परिवार, जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर कार्य करता है वही इतिहास पुरूष बन जाता है l उसे ही सब महान मानने लगते हैं...l
आज देखा जाय तो कितने ही आतंकवादी संगठन हैं l जो घर परिवार की चिंता किये बिना अपने संगठन के लिए काम करते हैं l लेकिन उनकी गणना उन सितारों में नही होती जो अपने नाम से इतिहास की शोभा बढाते हैं l क्योंकि जो कार्य नफरत, हिंसा और घृणा से किया जाता है वह इतिहास में नही पुलिस फाईलों लिखा जाता है l
जो व्यक्ति चार दरवाजे पार करके कार्य करेगा घर, परिवार, जाति और सम्प्रदाय वही समाज में इतिहास में लोगों के दिलों में अपना नाम अंकित कर सकता है l सब उसको महान मानेंगे l
वही ऐसा दिव्य पुरूष बन जायेगा जो अपने तेज से असंख्य सितारों को प्रकाशित कर देगा l
मगर मजबुरी की व्यक्ति की इन्ही चार अङचनों में फंसकर ही भटकता रहता है l और वह इच्छा की लोग हमें महान और श्रेष्ठ समझें दिल की दिल में रह जाती है l आदमी मात्र बातों बातों से ही महान नही बनता l महान बनने के लिए आचरण का पवित्र और सुन्दर होना परिहार्य है l
इस तथ्य को प्रमाणीत किया है महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते हैं l दुसरे भी वैसा ही करते हैं l इस बात से यह भी सच साबित होता है की जो व्यक्ति अच्छा आचरण करेगा अच्छा कर्म करेगा लोग उसको अपना आदर्श मानेंगे उसे महान मानेंगे l
व्यक्ति ना कपङों से, ना बंगले गाङी से, ना पैसो से महान बनता है l यह बात सभी लोग जानते हैं l मदर टेरेसा. कबीर दास, महात्मा गांधी क्या थे ??? लेकिन किसी एक जाति समाज या एक देश ने नही बल्कि सारे संसार ने उन्हे महान स्वीकार किया l सब कुछ जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं l और पुरा जीवन झुठी वाह वाही में गंवा देते हैं l जानते हुए भी हम अपने आचरण को नही बदल पाते l यही कारण है महान बनने का बजाय अपमान सहते रहते हैं l और स्थिती ऐसी बन जाती है कि हम अपने बच्चों के सामने भी अपनी महानता नही दर्शा पाते l बाकि के सामने तो बात ही क्या है l
शिक्षा के क्षेत्र में व्यापार में राजनिति में या किसी दुसरे क्षेत्र में व्यक्ति अच्छा नाम कमा लेता है l प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है l लेकिन अपने आचरण के कारण लोगों में और समाज में अपनी महानता साबित नही कर पाते l
अगर भीङ की बात करें तो एक नेता के पिछे या फिल्मी कलाकार के पिछे भी लग जाती है l लेकिन मरने के 5-7 वर्षों के बाद ही सब भुल जाते हैं l पता नही कितने आये और चले गये l लाखों में कोई एक अपने आचरण के बल पर सबके दिलों में अपनी छाप छोङकर चले जाते हैं l भगवान बुद्ध, गुरू गोविंद, भगत सिंह, टालस्टाय, जरथुस्त्र मीरा महात्मा गांधी ऐसा क्या था ??? इन महान आत्माओं में जो इनके ना होने पर लोग और भी ज्यादा इनके दिवाने बन रहे हैं l इनकी महानता का लोहा मान रहे हैं l
इन महा पुरूषों के जीवन दर्शन से ज्ञात होता है l कि इन्होंने भगवान के कथन को अपने जीवन का आधार माना है l उसको अपने आचरण में ढाला है l भगवान कहते हैं सुख दुख लाभ हानि जय पराजय से ऊपर उठकर अर्थात परमार्थ के लिए कर्म करे जो वही परम ब्रहम को प्राप्त कर लेगा l अर्थात समाज में सबके दिलों में अपनी जगह बना लेगा l सब उसको महान और श्रेष्ठ मानेंगे l सभी महापुरूषों ने घर परिवार जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर अपनें कर्मों से ऐसा आचरण किया जो मानवता इन्सानियत और परमार्थ के लिए था l
अगर हमें भी महान बनना है तो मार्ग पकङना होगा l किताब शास्त्र प्रवचन हवन आदि करने से हमारा अपना लाभ है l लेकिन ये सब अगर हम मात्र कर्म काण्ड तक ही सिमित रखेगें तो कोई भी हमें महान नही मानेगा श्रेष्ठ नही मानेगा l हम महान बनेंगे अपने आचरण से अपने कर्म से बस l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
शुक्रवार, 22 मई 2009
लोभ -एक मिठा जहर
लोभ -एक मिठा जहर
काम क्रोध और लोभ इनका वर्णन श्री मद भगवद्गीता में किया गया है l भगवान कहते है ये जीव आत्मा को नरक में ले जाने के लिए ही है l कुछ एक लोग जो धन्य धान्य से सम्पन और जो स्वयं को ज्यादा आधुनिक कहते हैं, वे मानते हैं कि स्वर्ग और नरक नाम की कोई चीज इस दुनिया में है ही नही l
मैं अपनी तुच्छ और सिमित बुद्धि में आये अपने विचार इन शब्दों पर वैज्ञानिक आधार पर समझकर ही लिखने का प्रयत्न कर रहा हुं l
भगवान श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान को विज्ञान भी कहा है l
तो ये तीन दोष किस तरह से हमारा पतन करते हैं l भगवान श्री कृष्ण, और भी वहुत से संत महात्माओं ने इन्हें जीव का शत्रु कहा है l कोई तो सच्चाई दिखाई दी होगी इनमें.. सिर्फ खाली बात ही बात तो नहीं की नही है उन्होंने l
सर्व प्रथम बात करते हैं काम की,, यहां काम का अर्थ सिर्फ वासना या सैक्स से नही है l काम मानें कामनाएं इच्छाऐं तृष्णा की बात करते हैं वासना भी काम ही है लेकिन वह काम का छोटा सा अंग है l
ये किस प्रकार से हमें नरक में कष्ट में ले जाते हैं l सर्वप्रथम तो स्वर्ग नरक को अपने अंदर सुक्षमतम में जानें
माना की कहीं कोई स्वर्ग या नरक नही है फिर भी ये कैसे हमारे शत्रु हैं l
काम का भाव उत्पन हुआ; कुछ पाने की लालसा कुछ बनने की इच्छा हुई तो जो अभी तक हम स्वयं में ही सुख शांत और संतुष्ट थे l वहीं अशांत बेचैन और व्याकुल हो गये, कोई भी जीव मनुष्य हो या पशु पक्षी दुखी और अशांत नही होना चाहता लेकिन काम के मुंह उठाते ही जो हमने सोचा है विचार किया है l मान लो गाङी लेनी है मकान लेना है उसी पर सारी एकाग्रता लग जाती है l यह इच्छा गलत नही है लेकिन इच्छा का अति में पहुंच जाना गलत है l हमारे पास इतनी योग्यता भी नही है, पैसा भी नही है, खुछ भी साधन नही है l जिससे हमारी इच्छा पुर्ण हो सके l लेकिन काम ने अपना प्रभाव हमारे शरीर के चालक पर दिखा दिया, और वह गाङी का संतुलन खो बैठता है l यह नही देखता की आगे रास्ता खराब है या लाल बत्ती है सब सिगनल तोङकर अपने अंदर की शांति को भष्म कर देता है l काम की अग्नि में स्वाहा कर देता है l यही तो नरक है जहां हम चैन से खा नही सकते, सो नही सकते बेचैन उदास और दुखी रहते हैं l
दुसरा है क्रोध ------
इन शत्रुओं से हमारा तो मानसिक शारीरीक आर्थिक हानि और अनिष्ट होता ही है, और अपने साथ साथ जो भी हमारे सम्पर्क में है हमारे निकट होते हैं उसे भी इस पीङा और दुख का शिकार होना पङता है l इसका कष्ट उठाना पङता है l तो हम बात कर रहे हैं क्रोध की - ये तीनों इस प्रकार हैं जैसे कई बल्ब सिरिज में लगा देते हैं l तीनों एक साथ जलते हैं इनका आपस में परस्पर घनिष्ट सम्बंध है l जब भी किसी विषय की कामना उत्पन होती है उसमें विघ्न या बाधा पङने पर जैसे वह पुर्ण नही होती तो क्रोध आता है l
क्रोध एक ऐसा भाव है जो नरक में ले जाने वाली गाङी का अंतिम स्थानक है l
यह अचानक से नही निकलता इसका अंकुर छोटी छोटी बातों से बाहर आता है l उस समय हमें इस बात का ज्ञान ही नही होता की क्रोध आ रहा है l पहले थोङी सी बेचैनी थोङा सा चिङचिङापन आता है l हम सोचते है कि तनाव है गोली का साहरा लेकर इससे बच जाते हैं l कोई हमारा थोङा सा अपमान कर दे हमारे मन के विरूद्ध हो जाये l जिस बात की हमने इच्छा की किसी कारण से वह पुर्ण नही हो पायी l जैसे हमने पत्नि को कहा चाय बना लो वो बेचारी शब्जी बनाने में व्यस्त है l नोकर को मालिक ने कुछ कहा चाहे किसी भी कारण से काम नही हुआ तो क्रोध अपना रंग दिखा देता है l ये छोटे छोटे ऱूप क्रोध के ही हैं l किसी भी विषय की कामना में बाधा पङना l और व्यक्ति का विचलित हो जाना चेहरा तमतमा जाना l
एक बात और हमारे सामने आती है l की 100 काम हमारे पुर्ण हो जायें लेकिन यह बेईमान मन अपनी पीठ थपथपायेगा l उस समय किसी को शाबाशी नही देगा l अगर 100 में से एक काम के पुर्ण होने में कोई रूकावट आ गयी l कोई बाधा पङ गयी l तो जिन लोगों ने 100 काम पुरे किये सभी में सफलता दिलवायी और पीठ ठोकी अपनी l तो आज क्या हुआ वो ही सब लोग हैं, वो ही दफ्तर है, क्यों खुद को नही कोसता l अब अपनी पराजय के क्रोध का शिकार मासुम लोगों को बना रहा है l इस क्रोध नाम के दुष्मन की एक और खास बात है l अपना शिकार अपने से कमजोर लोगों को ही बनाता है l
एक बेचारी पत्नि 7 वर्ष से जो भी पति ने कहा सब काम छोङकर उसे पहले किया लेकिन आज अचानक कोई छोटा सा काम को नही कर पायी तो पति ने मारे क्रोध के जुल्म और सिता की हद कर दी l
इस बात को समझनें में कुछ भी बाकि नही है की किस तरह हमें जीते जी क्रोध ने नरक में डाल दिया है l हर जगह दफ्तर में, घर में, दोस्तों में सब हमारे शत्रु बन गये हैं l घर में सीता रूपी पत्नि को इसकी ज्वाला में धधकना पङ रहा है l छोटी छोटी बातें हम सबको पता है लेकिन कभी बचने का प्रयत्न नही करते l
तिसरा है लोभ ------------------
काम क्रोध लोभ क्रम बद्ध तरिके से इसको सबसे अंत में स्थान दिया है l इसका इतना ज्यादा महत्व भी नही समझते l लेकिन अगर सजग होकर ध्यान दिया जाय सावधानी से देखा जाय, तो यह हमारे मन और शरीर को अंदर से खोखला कर रहा है l जैसे दीमक अंदर ही अंदर लकङी को अनवरत , लगातार खाती रहती है l और खोखला कर देती है लोभ भी ऐसा ही करता है l
काम और क्रोध तो मानव मन और तन पर कुछ ही समय अपना प्रभाव दिखाते हैं l लेकिन यह लोभ एक एक क्षण हमें हमारे प्रमानंद शांति, और चैन से हमें दुर ले जाता है l काम और क्रोध ऐसे हैं जिनके आगमन पर हमें तथा हमारे निकट वालों को आभास हो जाता है l की अब फलां शत्रु या चोर घुस गया है लेकिन लोभ इतने दबे कदमों से प्रवेश करता है की बाहर वाले तो क्या हम स्वयं भी नही जान पाते l
यह लोभ एक ऐसा जहर है की हमें अगर पता भी लग जाये, तो भी इसे थुकना नही चाहते, बाहर फैंकना नही चाहते l और जैसे दुध में पानी मिल जाता है किसी को भी दिखाई नही देता उसी तरह यह हमारे अंदर मिल जाता है l
व्यक्ति काम और क्रोध से बचने का उपाय भी सोचता है लेकिन लोभ को जैसे बच्चे शहद का निप्पल चुसते रहते हैं उसी प्रकार अंदर ही अंदर चुसता रहता है l
एक बात का स्पस्ट मैं कर देना चाहता हुं कि काम क्रोध और लोभ के बिना जीवन चलना भी असंभव है l अगर व्यक्ति की कामना ही नही होगी तो तो कार्य भी नही होगा l सृष्टि का उत्पन होना ही बंद हो जायेगा l पति पत्नि संतान की कामना करते हैं l फिर उनके लालन पालन की सोचकर उन्हें खुश रखने की इच्छा करती है l और अगर क्रोध नही होगा तो सारी कार्य व्यवस्था न्याय व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जायेगी l व्यक्ति लोभ नही करेगा तो लाभ नही होगा, उन्नति नही होगी, इनके बिना शरीर और संसार का चलना भी असंभव है l
लेकिन जब तक ये दवा के रूप में शरीर में हैं तो ठीक हैं l जब दवाई उल्टा बिमारी बढाने लगे बङी हानि हो जायेगी l
जैसे एक पिता के कई बच्चे होते हैं l सब एक ही घर में रहते हैं l पिता सबके ऊपर निगरानी रखता है l उनका ध्यान रखता है l की कोई बच्चा गलत ना हो जाये संगती खराब ना हो जाये या फिर कोई शारीरीक बिमारी ना हो जाये l कहीं सारे भाई बहन आपस में ही झगङा ना कर बैठे l कितना ध्यान रखता है कितनी देखभाल करता है वह उन बच्चों का पिता l
इसी प्रकार उन बच्चों की तरह इनका संबंध हमारे मन से है l वह इन पर नियंत्रण करके अपनी सेवा भी करा सकता है l जैसे किसी परिवार का कोई बच्चा बिगङ जाता है असंतुलित या बेकाबु हो जाता है l तो परिणाम उस सारे घर के हर सदस्य के और जो भी निकट वाले हैं सबको को भुगतना पङता है l अगर काम क्रोध लोभ तीनों में से कोई एक भी असंतुलित हो गया,तो हमारा मन शरीर वाणी को इसकी सजा भुगतनी पङती है l
जिस तरह एक कुशल घर का संचालक अपने घर में तथा सदस्यों में स्वर्ग जैसा आनंद और प्रेम बनाता है l इस शरीर का संचालक मन के माध्यम से इनको नियंत्रण में रखकर अपने शरीर और मन की सुख शांति और जीव आत्मा को अधोगति में जाने से बचाकर परम धाम परम पवित्र परम शांत जगह ले जा सकते हैं l बस जरूरत है सजगता और सावधानी की l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
काम क्रोध और लोभ इनका वर्णन श्री मद भगवद्गीता में किया गया है l भगवान कहते है ये जीव आत्मा को नरक में ले जाने के लिए ही है l कुछ एक लोग जो धन्य धान्य से सम्पन और जो स्वयं को ज्यादा आधुनिक कहते हैं, वे मानते हैं कि स्वर्ग और नरक नाम की कोई चीज इस दुनिया में है ही नही l
मैं अपनी तुच्छ और सिमित बुद्धि में आये अपने विचार इन शब्दों पर वैज्ञानिक आधार पर समझकर ही लिखने का प्रयत्न कर रहा हुं l
भगवान श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान को विज्ञान भी कहा है l
तो ये तीन दोष किस तरह से हमारा पतन करते हैं l भगवान श्री कृष्ण, और भी वहुत से संत महात्माओं ने इन्हें जीव का शत्रु कहा है l कोई तो सच्चाई दिखाई दी होगी इनमें.. सिर्फ खाली बात ही बात तो नहीं की नही है उन्होंने l
सर्व प्रथम बात करते हैं काम की,, यहां काम का अर्थ सिर्फ वासना या सैक्स से नही है l काम मानें कामनाएं इच्छाऐं तृष्णा की बात करते हैं वासना भी काम ही है लेकिन वह काम का छोटा सा अंग है l
ये किस प्रकार से हमें नरक में कष्ट में ले जाते हैं l सर्वप्रथम तो स्वर्ग नरक को अपने अंदर सुक्षमतम में जानें
माना की कहीं कोई स्वर्ग या नरक नही है फिर भी ये कैसे हमारे शत्रु हैं l
काम का भाव उत्पन हुआ; कुछ पाने की लालसा कुछ बनने की इच्छा हुई तो जो अभी तक हम स्वयं में ही सुख शांत और संतुष्ट थे l वहीं अशांत बेचैन और व्याकुल हो गये, कोई भी जीव मनुष्य हो या पशु पक्षी दुखी और अशांत नही होना चाहता लेकिन काम के मुंह उठाते ही जो हमने सोचा है विचार किया है l मान लो गाङी लेनी है मकान लेना है उसी पर सारी एकाग्रता लग जाती है l यह इच्छा गलत नही है लेकिन इच्छा का अति में पहुंच जाना गलत है l हमारे पास इतनी योग्यता भी नही है, पैसा भी नही है, खुछ भी साधन नही है l जिससे हमारी इच्छा पुर्ण हो सके l लेकिन काम ने अपना प्रभाव हमारे शरीर के चालक पर दिखा दिया, और वह गाङी का संतुलन खो बैठता है l यह नही देखता की आगे रास्ता खराब है या लाल बत्ती है सब सिगनल तोङकर अपने अंदर की शांति को भष्म कर देता है l काम की अग्नि में स्वाहा कर देता है l यही तो नरक है जहां हम चैन से खा नही सकते, सो नही सकते बेचैन उदास और दुखी रहते हैं l
दुसरा है क्रोध ------
इन शत्रुओं से हमारा तो मानसिक शारीरीक आर्थिक हानि और अनिष्ट होता ही है, और अपने साथ साथ जो भी हमारे सम्पर्क में है हमारे निकट होते हैं उसे भी इस पीङा और दुख का शिकार होना पङता है l इसका कष्ट उठाना पङता है l तो हम बात कर रहे हैं क्रोध की - ये तीनों इस प्रकार हैं जैसे कई बल्ब सिरिज में लगा देते हैं l तीनों एक साथ जलते हैं इनका आपस में परस्पर घनिष्ट सम्बंध है l जब भी किसी विषय की कामना उत्पन होती है उसमें विघ्न या बाधा पङने पर जैसे वह पुर्ण नही होती तो क्रोध आता है l
क्रोध एक ऐसा भाव है जो नरक में ले जाने वाली गाङी का अंतिम स्थानक है l
यह अचानक से नही निकलता इसका अंकुर छोटी छोटी बातों से बाहर आता है l उस समय हमें इस बात का ज्ञान ही नही होता की क्रोध आ रहा है l पहले थोङी सी बेचैनी थोङा सा चिङचिङापन आता है l हम सोचते है कि तनाव है गोली का साहरा लेकर इससे बच जाते हैं l कोई हमारा थोङा सा अपमान कर दे हमारे मन के विरूद्ध हो जाये l जिस बात की हमने इच्छा की किसी कारण से वह पुर्ण नही हो पायी l जैसे हमने पत्नि को कहा चाय बना लो वो बेचारी शब्जी बनाने में व्यस्त है l नोकर को मालिक ने कुछ कहा चाहे किसी भी कारण से काम नही हुआ तो क्रोध अपना रंग दिखा देता है l ये छोटे छोटे ऱूप क्रोध के ही हैं l किसी भी विषय की कामना में बाधा पङना l और व्यक्ति का विचलित हो जाना चेहरा तमतमा जाना l
एक बात और हमारे सामने आती है l की 100 काम हमारे पुर्ण हो जायें लेकिन यह बेईमान मन अपनी पीठ थपथपायेगा l उस समय किसी को शाबाशी नही देगा l अगर 100 में से एक काम के पुर्ण होने में कोई रूकावट आ गयी l कोई बाधा पङ गयी l तो जिन लोगों ने 100 काम पुरे किये सभी में सफलता दिलवायी और पीठ ठोकी अपनी l तो आज क्या हुआ वो ही सब लोग हैं, वो ही दफ्तर है, क्यों खुद को नही कोसता l अब अपनी पराजय के क्रोध का शिकार मासुम लोगों को बना रहा है l इस क्रोध नाम के दुष्मन की एक और खास बात है l अपना शिकार अपने से कमजोर लोगों को ही बनाता है l
एक बेचारी पत्नि 7 वर्ष से जो भी पति ने कहा सब काम छोङकर उसे पहले किया लेकिन आज अचानक कोई छोटा सा काम को नही कर पायी तो पति ने मारे क्रोध के जुल्म और सिता की हद कर दी l
इस बात को समझनें में कुछ भी बाकि नही है की किस तरह हमें जीते जी क्रोध ने नरक में डाल दिया है l हर जगह दफ्तर में, घर में, दोस्तों में सब हमारे शत्रु बन गये हैं l घर में सीता रूपी पत्नि को इसकी ज्वाला में धधकना पङ रहा है l छोटी छोटी बातें हम सबको पता है लेकिन कभी बचने का प्रयत्न नही करते l
तिसरा है लोभ ------------------
काम क्रोध लोभ क्रम बद्ध तरिके से इसको सबसे अंत में स्थान दिया है l इसका इतना ज्यादा महत्व भी नही समझते l लेकिन अगर सजग होकर ध्यान दिया जाय सावधानी से देखा जाय, तो यह हमारे मन और शरीर को अंदर से खोखला कर रहा है l जैसे दीमक अंदर ही अंदर लकङी को अनवरत , लगातार खाती रहती है l और खोखला कर देती है लोभ भी ऐसा ही करता है l
काम और क्रोध तो मानव मन और तन पर कुछ ही समय अपना प्रभाव दिखाते हैं l लेकिन यह लोभ एक एक क्षण हमें हमारे प्रमानंद शांति, और चैन से हमें दुर ले जाता है l काम और क्रोध ऐसे हैं जिनके आगमन पर हमें तथा हमारे निकट वालों को आभास हो जाता है l की अब फलां शत्रु या चोर घुस गया है लेकिन लोभ इतने दबे कदमों से प्रवेश करता है की बाहर वाले तो क्या हम स्वयं भी नही जान पाते l
यह लोभ एक ऐसा जहर है की हमें अगर पता भी लग जाये, तो भी इसे थुकना नही चाहते, बाहर फैंकना नही चाहते l और जैसे दुध में पानी मिल जाता है किसी को भी दिखाई नही देता उसी तरह यह हमारे अंदर मिल जाता है l
व्यक्ति काम और क्रोध से बचने का उपाय भी सोचता है लेकिन लोभ को जैसे बच्चे शहद का निप्पल चुसते रहते हैं उसी प्रकार अंदर ही अंदर चुसता रहता है l
एक बात का स्पस्ट मैं कर देना चाहता हुं कि काम क्रोध और लोभ के बिना जीवन चलना भी असंभव है l अगर व्यक्ति की कामना ही नही होगी तो तो कार्य भी नही होगा l सृष्टि का उत्पन होना ही बंद हो जायेगा l पति पत्नि संतान की कामना करते हैं l फिर उनके लालन पालन की सोचकर उन्हें खुश रखने की इच्छा करती है l और अगर क्रोध नही होगा तो सारी कार्य व्यवस्था न्याय व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जायेगी l व्यक्ति लोभ नही करेगा तो लाभ नही होगा, उन्नति नही होगी, इनके बिना शरीर और संसार का चलना भी असंभव है l
लेकिन जब तक ये दवा के रूप में शरीर में हैं तो ठीक हैं l जब दवाई उल्टा बिमारी बढाने लगे बङी हानि हो जायेगी l
जैसे एक पिता के कई बच्चे होते हैं l सब एक ही घर में रहते हैं l पिता सबके ऊपर निगरानी रखता है l उनका ध्यान रखता है l की कोई बच्चा गलत ना हो जाये संगती खराब ना हो जाये या फिर कोई शारीरीक बिमारी ना हो जाये l कहीं सारे भाई बहन आपस में ही झगङा ना कर बैठे l कितना ध्यान रखता है कितनी देखभाल करता है वह उन बच्चों का पिता l
इसी प्रकार उन बच्चों की तरह इनका संबंध हमारे मन से है l वह इन पर नियंत्रण करके अपनी सेवा भी करा सकता है l जैसे किसी परिवार का कोई बच्चा बिगङ जाता है असंतुलित या बेकाबु हो जाता है l तो परिणाम उस सारे घर के हर सदस्य के और जो भी निकट वाले हैं सबको को भुगतना पङता है l अगर काम क्रोध लोभ तीनों में से कोई एक भी असंतुलित हो गया,तो हमारा मन शरीर वाणी को इसकी सजा भुगतनी पङती है l
जिस तरह एक कुशल घर का संचालक अपने घर में तथा सदस्यों में स्वर्ग जैसा आनंद और प्रेम बनाता है l इस शरीर का संचालक मन के माध्यम से इनको नियंत्रण में रखकर अपने शरीर और मन की सुख शांति और जीव आत्मा को अधोगति में जाने से बचाकर परम धाम परम पवित्र परम शांत जगह ले जा सकते हैं l बस जरूरत है सजगता और सावधानी की l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
मंगलवार, 19 मई 2009
डर गये होली से
डर गये होली से
डर गये होली से सब सोच रहे होंगे की होली तो प्रेम बढाने का दिन है, मिलन का दिवस है l तो फिर डरेंगे क्यों ???
बात करीब 18-20 वर्ष पहले की है होली के सवा माह पहले से ही बच्चे लकङी काटकर होली की तैयारी करने लगते थे, औरतें फागुन की चांदनी रात में गीत गाकर अपनी खुशी का इजहार करती थी l
एक दिन सांय को करीब चार बजे मैं अपने पिताजी की अंगुली पकङकर खेत से आ रहा था मैंने देखा बहुत से लङके पेङों को काटकर सङक पर खिंचकर ला रहे थे l
मैंने पिताजी से पुछा--- ये सब क्या कर रहे हैं ???
पिताजी ने कहा-- बेटा होली आने वाली है l ये बच्चे होली को जलाने के लिए लकङी इकठठा कर रहे हैं l
मैंने भोलेपन से पुछा-- ये होली कोन है ?? और ये लोग उसे क्यो जलाते हैं ????
पिताजी ने मुझे बङे धैर्य से समझाया-- बेटा ये होली एक राक्षसी थी जो हजारों वर्ष पहले आग में जलकर मर गयी थी l वह बहुत बुरी थी l
मैंने कहा-- जब वह इतने वर्ष पहले वह मर गयी तो फिर अब भी उसे क्यों जलाते हैं ???
पिताजी ने कहा-- वह तो मर गयी लेकिन हम आज भी इस त्योहार के दिन लकङी की होली जलाकर जो हमारा आपस में लङाई झगङा, बैर, कलह होती है l इसे जलाकर आपस में गले मिलकर, प्रेम बढाते हैं, भाईचारा बढाते हैं l आपस में गुलाल लगाकर मिठाई खिलाते हैं l
मैंने होली आने तक बीच में कई बार पुछा कि कब है होली ??? जब हम सब गले मिलकर गुलाल लगायेंगे और मिठाई खिलायेंगे ????
पिताजी कहते की बेटा जल्दी ही है l
आखिर वह दिन आ ही गया l
चारो तरफ वातावरण में खुशियां ही खुशियां........
मानों सुर्य भी नाच रहा हो ........
और पवन इतनी लुभावनी चल रही है की मन में प्रेम बढा रही है......
हर एक के चेहरे पर हंसी मुस्कान ......
सब नये नये कपङे पहन रहे हैं l
मम्मी ने कहा मुझसे-- बेटा शिवा तु भी जल्दी अपने नये कपङे पहन ले होली पर जाना है l और अपने काम में लग गयी बङी व्यस्त सी लग रहीं थी l
उस दिन मम्मी ने दाल चावल बुरा घी बनाये थे l
गांव में कई जगह लोग इकठठा होकर होली के गाने गा गाकर आनंद ले रहे थे l
कितना मजा आया उस दिन मैं कागज पर पैन से नही लिख सकता l
वह तो अब बस मेरे ख्वाबों में ही रह गया है l
उन पलों को याद करके खुशी का अनुभव करके अभी भी आंखे भर आती हैं l
12 15 16 17 वर्ष की लङकीयां सज संवर कर गोबर के बहुत छोटे थोटे से उपले बनाकर रस्सी में पिरोकर अपने अपने घर से होली पर डालने जा रही थी कितनी सुन्दर लग रही थी
मैंने अपनी मां से पुछा-- मम्मी ये सब क्या है और कहां ले जा रही हैं
एक बात का मुझे गर्व है की हमारा सारा परिवार साधु संत प्रवृति का है l
नित्य सत्संग और गीता पाठ होता ही रहता था त
मम्मी ने कहा-- बेटा तु अभी बहुत छोटा है सब पता लग जायेगा उन्होने मुझे टालना चाहा
मैंने जिद्द से कहा की अभी बताओ मुझे l
मम्मी ने कहा-- बेटा ये सब होली को जलाने के लिए अपने अपने घर से डालने को जा रहे हैं
मैंने कहा-- इतनी लकङी तो पहले से ही इकठठा कर रखी हैं फिर इन्हे क्यो ले जा रही हैं ????
मम्मी ने बङे प्यार से कहा-- बेटा ये इस लिए की होली बहुत बुरी थी, लङाई झगङा करने वाली, सब लोग ये उपले इसलिए डालते हैं, की हमारे घर परिवार में जो अशांति है, लङाई झगङा है,
घृणा है l वह सब होली के साथ जल जाये और सब प्रेम से रहे l भाईचारा बढे, सब मिलकर रहे,
मैंने हां में सिर हिलाकर कहा-- अच्छा तो मम्मी जी मैं तो कई गिराकर आऊंगा l
मम्मी ने कहा-- क्यों बेटा कई क्यों ?????
मैंने कहा-- मम्मी जी आप और पिताजी झगङा करते हो l पिताजी, चाचा, ताऊ, सबका झगङा होता रहता है l मेरी चाची ओर चाचा लङते रहते हैं l मैंने भोले पन से कहा की मैं तो 10 गिराकर आऊंगा l सब में प्यार होगा फिर कोई नही लङेगा l
मम्मी जोर से हंसी -- बेटा शिवा तु अभी बहुत भोला है बालक है l
मैंने कहा क्यों मम्मी जी भोले और बालक नही डालते क्या ??????
उन्होने टालने के लिए कहा कि डाल आना जा अब अपने कपङे पहन ले l
मैंने सफेद छोटा सा कुर्ता पायजामा पहन लिया l
सारे गांव में खुशियां ही खुशियां l हर तरफ सब नये नये कपङे पहन कर घुम रहे थे l और उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे सुर्य भी अपनी रोशनी को दुगना कर रहा हो l वह भी होली पर सबके साथ प्यार बांटना चाहता हो l
रात के करीब 8 बजे पिताजी मेरा हाथ पकङकर चले l
पिताजी मुझसे बोले-- बेटा शिवा मेरे पास ही खङे रहना कहीं इधर उधर नही चले जाना l
मैंने कहा-- नही पिताजी मैं आपके पास ही खङा रहुंगा कहीं नही जाऊंगा l
गांव के बाहर लकङीयों का बङा ऊंचा सा ढेर और उन पर बहुत से उपले भी पङे थे जो गोबर से बनाकर पिरो रखे थे वो भी सुखी टहनीयों पर लटक रही थी l
होली जलाने के लिए सैंकङो लोग इकठठा हुए थे l
ढोल नगाङे बज रहे थे लोग होली गा रहे थे l
9 बजे के करीब लकङी के ढेर योनि की होली में आग लगाई l
आग की लपटें बहुत ऊपर तक जा रही थी, मानों आसमान को छुना चाहती हों आंच इतनी तेज थी की सहन नही हो रही थी l
अचानक मैं चिल्लाया-- पिताजी भागो आग हमारी तरफ आ रही है और मैं भागने लगा l
सब लोग मुझे देखकर हंसने लगे l
एक बुढे ने कहा-- यह आग कहीं नही जायेगी बस यहीं तक ही रहेगी तु डर मत l
हम सब भी तो यहीं हैं l मैं सहमा सा डरा सा अपने पिताजी की गोद में सिमटा रहा l डरा डरा सा आग को देख रहा था जैसे पता नही कब वह हमारी तरफ भाग आये l
धीरे धीरे आग ठंडी हो गयी अब वहां मोटे मोटे से लकङों से धुंआ निकल रहा बाकि राख का ढेर l
होली जलाकर सब अपने अपने घर चले गये l
रात को पिताजी ने मुझसे कहा-- बेटा शिवा कल अपने पुराने कपङे पहन लेना जब खेलना और किसी से झगङा मत करना बस अपने घर में ही खेलना
छोटा चाचा आ गया मम्मी से बोले -- कल आप भाभी भांग की लस्सी बनाकर रख लेना l
पिताजी ने कहा-- जो भी होली खेलने आये सबको गुंजीयां और लस्सी दे देना l
------------------------ होली खेलने का दिन ----------------------------------------------
सुबह उठते ही मम्मी ने मुझे पुराने कपङे पहना दिये l
सारे बच्चे सुबह से ही रंगीन पानी की पिचकारी एक दुसरे पर फैंक कर खिलखिलाते, ताली बजाकर हंसते, होली का पुरा आनंद ले रहे थे l
बस हर तरफ मस्ती ही मस्ती खुशियां ही खुशियां मौसम झुम रहा था l
बङे बङे लोग ढोल नगाङे बजाकर खेलते खेलते सबके घरों में जाते l औरते उन पर पानी डालकर मारती l वो मस्ती में झुमते लस्सी पीते गुजीयां और मिठाई खाते फिर नाचने लगते l कितना आनंद आ रहा था l ना कोई छोटा बङा ना कोई हिंदू ना मुस्लिम ना जैन सब ऐसे रंगो में रंगे हुए की सब रंग फिके पङ जाये औरतो ने लोगो के कपङे फाङ दिये l
हम सब बच्चे भी उन पर रंगो की पिचकारी मार रहे थे l
सब लोग उस दिन मानो सब कुछ भुल गये बस होली ही होली खेलना, औरतों से पिटना, खाना पिना, और नाचना और मस्ती से झुमना बस और कुछ नही l
अचानक एक बच्चे की चिखने की आवाज आयी..... मम्मी..........................................
एक औरत ने भागकर उसे उठाया -- क्या हुआ लाला आंखे खोल लाला लाला
उसने रोते हुए कहा -- मम्मी अमित ने मेरी आंख में रंग फैंक दिया है l बहुत दर्द हो रहा है l
उस बच्चे का बाप ताऊ चाचा सब इकठठे हो गये l
कुछ ही क्षणों के बाद मस्ती भरे माहोल में जहर घुल गया l और मां बहन की गालीयां होने लगी l
दुसरी तरफ से कुछ लोग भी और जोर से बोलने लगे l
बातों बातों में ही लाठीयां बल्लम भाले निकाल लाये l
मैंने अपनी मां से कहा-- मम्मी आप तो कह रही थी होली जलाने से लङाई झगङा नही होता l
उन्होने मुझे डांटा तु चुप नही रह सकता हर समय चपङ चपङ करता रहता है l जुबान को बंद भी रख लिया कर l
और लङाई इतनी बढी की पांच सात आदमीयों के सिर फुट गये l
जहां थोङी ही देर पहले रंगो से भीगे हुए मस्ती में झुम रहे थे l वहीं खुन से लथपथ खाटों पर पङे गालीयां दे रहे हैं l
एक दुसरे के खुन के प्यासे l
मैंने चुपचाप अपनी पिचकारी घर के अंदर छिपाकर रख दी l
मैंने मम्मी से कहा--- मम्मी जी अब मैं कभी नही खेलुंगा होली मुझे पिचकारी से डर लगता है l
क्या गलती थी उस मासुम की ???? क्या गलती थी उस पिचकारी की ?????
उस दिन से मैं गांव में होली के मौके पर रहा ही नही और ना ही कहीं खेला l
ऐसा खेल क्या खेले जिसमें प्रेम की जगह नफरत हो हिंसा हो l नही करनी ऐसी मस्ती जिससे समाज में भाई चारे की जगह दरार पङे एक दुसरे के खुन के प्यासे हो l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
डर गये होली से सब सोच रहे होंगे की होली तो प्रेम बढाने का दिन है, मिलन का दिवस है l तो फिर डरेंगे क्यों ???
बात करीब 18-20 वर्ष पहले की है होली के सवा माह पहले से ही बच्चे लकङी काटकर होली की तैयारी करने लगते थे, औरतें फागुन की चांदनी रात में गीत गाकर अपनी खुशी का इजहार करती थी l
एक दिन सांय को करीब चार बजे मैं अपने पिताजी की अंगुली पकङकर खेत से आ रहा था मैंने देखा बहुत से लङके पेङों को काटकर सङक पर खिंचकर ला रहे थे l
मैंने पिताजी से पुछा--- ये सब क्या कर रहे हैं ???
पिताजी ने कहा-- बेटा होली आने वाली है l ये बच्चे होली को जलाने के लिए लकङी इकठठा कर रहे हैं l
मैंने भोलेपन से पुछा-- ये होली कोन है ?? और ये लोग उसे क्यो जलाते हैं ????
पिताजी ने मुझे बङे धैर्य से समझाया-- बेटा ये होली एक राक्षसी थी जो हजारों वर्ष पहले आग में जलकर मर गयी थी l वह बहुत बुरी थी l
मैंने कहा-- जब वह इतने वर्ष पहले वह मर गयी तो फिर अब भी उसे क्यों जलाते हैं ???
पिताजी ने कहा-- वह तो मर गयी लेकिन हम आज भी इस त्योहार के दिन लकङी की होली जलाकर जो हमारा आपस में लङाई झगङा, बैर, कलह होती है l इसे जलाकर आपस में गले मिलकर, प्रेम बढाते हैं, भाईचारा बढाते हैं l आपस में गुलाल लगाकर मिठाई खिलाते हैं l
मैंने होली आने तक बीच में कई बार पुछा कि कब है होली ??? जब हम सब गले मिलकर गुलाल लगायेंगे और मिठाई खिलायेंगे ????
पिताजी कहते की बेटा जल्दी ही है l
आखिर वह दिन आ ही गया l
चारो तरफ वातावरण में खुशियां ही खुशियां........
मानों सुर्य भी नाच रहा हो ........
और पवन इतनी लुभावनी चल रही है की मन में प्रेम बढा रही है......
हर एक के चेहरे पर हंसी मुस्कान ......
सब नये नये कपङे पहन रहे हैं l
मम्मी ने कहा मुझसे-- बेटा शिवा तु भी जल्दी अपने नये कपङे पहन ले होली पर जाना है l और अपने काम में लग गयी बङी व्यस्त सी लग रहीं थी l
उस दिन मम्मी ने दाल चावल बुरा घी बनाये थे l
गांव में कई जगह लोग इकठठा होकर होली के गाने गा गाकर आनंद ले रहे थे l
कितना मजा आया उस दिन मैं कागज पर पैन से नही लिख सकता l
वह तो अब बस मेरे ख्वाबों में ही रह गया है l
उन पलों को याद करके खुशी का अनुभव करके अभी भी आंखे भर आती हैं l
12 15 16 17 वर्ष की लङकीयां सज संवर कर गोबर के बहुत छोटे थोटे से उपले बनाकर रस्सी में पिरोकर अपने अपने घर से होली पर डालने जा रही थी कितनी सुन्दर लग रही थी
मैंने अपनी मां से पुछा-- मम्मी ये सब क्या है और कहां ले जा रही हैं
एक बात का मुझे गर्व है की हमारा सारा परिवार साधु संत प्रवृति का है l
नित्य सत्संग और गीता पाठ होता ही रहता था त
मम्मी ने कहा-- बेटा तु अभी बहुत छोटा है सब पता लग जायेगा उन्होने मुझे टालना चाहा
मैंने जिद्द से कहा की अभी बताओ मुझे l
मम्मी ने कहा-- बेटा ये सब होली को जलाने के लिए अपने अपने घर से डालने को जा रहे हैं
मैंने कहा-- इतनी लकङी तो पहले से ही इकठठा कर रखी हैं फिर इन्हे क्यो ले जा रही हैं ????
मम्मी ने बङे प्यार से कहा-- बेटा ये इस लिए की होली बहुत बुरी थी, लङाई झगङा करने वाली, सब लोग ये उपले इसलिए डालते हैं, की हमारे घर परिवार में जो अशांति है, लङाई झगङा है,
घृणा है l वह सब होली के साथ जल जाये और सब प्रेम से रहे l भाईचारा बढे, सब मिलकर रहे,
मैंने हां में सिर हिलाकर कहा-- अच्छा तो मम्मी जी मैं तो कई गिराकर आऊंगा l
मम्मी ने कहा-- क्यों बेटा कई क्यों ?????
मैंने कहा-- मम्मी जी आप और पिताजी झगङा करते हो l पिताजी, चाचा, ताऊ, सबका झगङा होता रहता है l मेरी चाची ओर चाचा लङते रहते हैं l मैंने भोले पन से कहा की मैं तो 10 गिराकर आऊंगा l सब में प्यार होगा फिर कोई नही लङेगा l
मम्मी जोर से हंसी -- बेटा शिवा तु अभी बहुत भोला है बालक है l
मैंने कहा क्यों मम्मी जी भोले और बालक नही डालते क्या ??????
उन्होने टालने के लिए कहा कि डाल आना जा अब अपने कपङे पहन ले l
मैंने सफेद छोटा सा कुर्ता पायजामा पहन लिया l
सारे गांव में खुशियां ही खुशियां l हर तरफ सब नये नये कपङे पहन कर घुम रहे थे l और उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे सुर्य भी अपनी रोशनी को दुगना कर रहा हो l वह भी होली पर सबके साथ प्यार बांटना चाहता हो l
रात के करीब 8 बजे पिताजी मेरा हाथ पकङकर चले l
पिताजी मुझसे बोले-- बेटा शिवा मेरे पास ही खङे रहना कहीं इधर उधर नही चले जाना l
मैंने कहा-- नही पिताजी मैं आपके पास ही खङा रहुंगा कहीं नही जाऊंगा l
गांव के बाहर लकङीयों का बङा ऊंचा सा ढेर और उन पर बहुत से उपले भी पङे थे जो गोबर से बनाकर पिरो रखे थे वो भी सुखी टहनीयों पर लटक रही थी l
होली जलाने के लिए सैंकङो लोग इकठठा हुए थे l
ढोल नगाङे बज रहे थे लोग होली गा रहे थे l
9 बजे के करीब लकङी के ढेर योनि की होली में आग लगाई l
आग की लपटें बहुत ऊपर तक जा रही थी, मानों आसमान को छुना चाहती हों आंच इतनी तेज थी की सहन नही हो रही थी l
अचानक मैं चिल्लाया-- पिताजी भागो आग हमारी तरफ आ रही है और मैं भागने लगा l
सब लोग मुझे देखकर हंसने लगे l
एक बुढे ने कहा-- यह आग कहीं नही जायेगी बस यहीं तक ही रहेगी तु डर मत l
हम सब भी तो यहीं हैं l मैं सहमा सा डरा सा अपने पिताजी की गोद में सिमटा रहा l डरा डरा सा आग को देख रहा था जैसे पता नही कब वह हमारी तरफ भाग आये l
धीरे धीरे आग ठंडी हो गयी अब वहां मोटे मोटे से लकङों से धुंआ निकल रहा बाकि राख का ढेर l
होली जलाकर सब अपने अपने घर चले गये l
रात को पिताजी ने मुझसे कहा-- बेटा शिवा कल अपने पुराने कपङे पहन लेना जब खेलना और किसी से झगङा मत करना बस अपने घर में ही खेलना
छोटा चाचा आ गया मम्मी से बोले -- कल आप भाभी भांग की लस्सी बनाकर रख लेना l
पिताजी ने कहा-- जो भी होली खेलने आये सबको गुंजीयां और लस्सी दे देना l
------------------------ होली खेलने का दिन ----------------------------------------------
सुबह उठते ही मम्मी ने मुझे पुराने कपङे पहना दिये l
सारे बच्चे सुबह से ही रंगीन पानी की पिचकारी एक दुसरे पर फैंक कर खिलखिलाते, ताली बजाकर हंसते, होली का पुरा आनंद ले रहे थे l
बस हर तरफ मस्ती ही मस्ती खुशियां ही खुशियां मौसम झुम रहा था l
बङे बङे लोग ढोल नगाङे बजाकर खेलते खेलते सबके घरों में जाते l औरते उन पर पानी डालकर मारती l वो मस्ती में झुमते लस्सी पीते गुजीयां और मिठाई खाते फिर नाचने लगते l कितना आनंद आ रहा था l ना कोई छोटा बङा ना कोई हिंदू ना मुस्लिम ना जैन सब ऐसे रंगो में रंगे हुए की सब रंग फिके पङ जाये औरतो ने लोगो के कपङे फाङ दिये l
हम सब बच्चे भी उन पर रंगो की पिचकारी मार रहे थे l
सब लोग उस दिन मानो सब कुछ भुल गये बस होली ही होली खेलना, औरतों से पिटना, खाना पिना, और नाचना और मस्ती से झुमना बस और कुछ नही l
अचानक एक बच्चे की चिखने की आवाज आयी..... मम्मी..........................................
एक औरत ने भागकर उसे उठाया -- क्या हुआ लाला आंखे खोल लाला लाला
उसने रोते हुए कहा -- मम्मी अमित ने मेरी आंख में रंग फैंक दिया है l बहुत दर्द हो रहा है l
उस बच्चे का बाप ताऊ चाचा सब इकठठे हो गये l
कुछ ही क्षणों के बाद मस्ती भरे माहोल में जहर घुल गया l और मां बहन की गालीयां होने लगी l
दुसरी तरफ से कुछ लोग भी और जोर से बोलने लगे l
बातों बातों में ही लाठीयां बल्लम भाले निकाल लाये l
मैंने अपनी मां से कहा-- मम्मी आप तो कह रही थी होली जलाने से लङाई झगङा नही होता l
उन्होने मुझे डांटा तु चुप नही रह सकता हर समय चपङ चपङ करता रहता है l जुबान को बंद भी रख लिया कर l
और लङाई इतनी बढी की पांच सात आदमीयों के सिर फुट गये l
जहां थोङी ही देर पहले रंगो से भीगे हुए मस्ती में झुम रहे थे l वहीं खुन से लथपथ खाटों पर पङे गालीयां दे रहे हैं l
एक दुसरे के खुन के प्यासे l
मैंने चुपचाप अपनी पिचकारी घर के अंदर छिपाकर रख दी l
मैंने मम्मी से कहा--- मम्मी जी अब मैं कभी नही खेलुंगा होली मुझे पिचकारी से डर लगता है l
क्या गलती थी उस मासुम की ???? क्या गलती थी उस पिचकारी की ?????
उस दिन से मैं गांव में होली के मौके पर रहा ही नही और ना ही कहीं खेला l
ऐसा खेल क्या खेले जिसमें प्रेम की जगह नफरत हो हिंसा हो l नही करनी ऐसी मस्ती जिससे समाज में भाई चारे की जगह दरार पङे एक दुसरे के खुन के प्यासे हो l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
रविवार, 17 मई 2009
मिलन का सुख
मिलन का सुख-- मेरा अनुभव
यह तो सभी को पता है, कि मिलन से कितना सुख प्राप्त होता है l अगर हमें किसी से मिलना हो तो कई दिन पहले से ही तैयारी करने लगते हैं , की हमारा फलां रिस्तेदार भाई बहन या बेटा बेटी या कोई और चाहने वाला आ रहा है l कितने असीम आनंद के पल होते हैं वो l लेकिन आज कल क्या सोच रहे है कि वही मां वही बाप भाई बहन रिस्तेदार उनको तो रोज आना जाना है l अब बस ऐसा होता है की फलां आदमी आज हमसे मिलने आ रहा है l कोई तङप नही होती कोई व्याकुलता नही होती l बस थोङा खुश होने का दिखावा सा करते हैं ऊपर से देखकर मुस्कुराते हैं मैं किसी एक की बात नही कर रहा ज्यादातर लोग ऐसे ही हो गया हैं l अरे मिलने की तङप तो क्या कई बार तो बोर भी होने लगते है अपनो से l और सोचते है की रोज ही आकर बैठ जाते हैं l पता नही कोई काम है या नही l ऐसा भाईयों इसलिए है, की हम अपनो सो अभी तक बिछुङे नही हैं l किसी चीज का गहरा अनुभव जभी होता है, जब हाथो से छुट जाती है तब उसकी किमत का पता लगता है l
मिलने की तङप, मिलने का सुख देखा है मैने.. की किस तरह, कितनी बैचैनी होती है l एक एक पल काटना कितना भारी होता है l किस तरह अपनों को खोजती हैं ये प्यासी निंगाहे.. कुछ पलों की देरी हो जाये और इन बेबस निगाहों को ना हो अपनो का दीदार तो कैसे आँसु बहाती है, की सारा चेहरा भीग जाता है l और फिर अचानक भीङ और अंधेरे में दिखाई देता है किसी अपने का दुखी और उदास चेहरा शोर ऐसा की कुछ भी सुनाई ना पङे 100-- 125 आदमी छोटी सी जगह में चिल्लाते रहते हैं तो कितना सकुन मिलता है , इस दिल को कितना आनंद मिलता है l इसका वर्णन किसी की भी वाणी नही कर सकती, कलम लिख नही सकती l
लेकिन इस आनंद की अनुभूति जो मैंने प्राप्त की है चाहता हुं की किसी को भी ना हो l अपनो से मिलने का आनंद तो भगवान इससे भी ज्यादा दे सबको l लेकिन माध्यम ऐसा ना हो, हम आम जीवन में अपने मां बाप भाई बहन दोस्तो से रिस्तेदारों से सबसे मिलते हैं लेकिन यंत्रवत से मिलते है कोई संवेदना नही होती कोई तङप नही होती l
एक जगह है हमारे समाज का अंग है कारागार यानि की जेल l नाम से तो लग रहा होगा की बात तो कैसी भावुकता की कर रहा है लेकिन जेल में क्या कोई किसी से मिलने के लिए तङपता होगा ??? जो हत्यारे हैं मां को बेटे से जुदा कर देते हैं भाई को मारकर बहन को अकेला कर देते हैं तो क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहाते होंगे ??? जो लोग हत्या डकैती अपहरण बलात्कार दहेज के लालच में अपनी बहु को जला देते हैं, क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहायेंगे ??? किसी के लिए तङपेंगे l
जी हां यह बिलकुल सत्य है l घर में मां बाप कहते हैं, की बेटा जल्दी आना l लेकिन हमें तो कोई असर ही नही होता की कोई हमारा इंतजार कर रहा होगा l कितने तङपते होंगे मां बाप हमारे लिए l
11 जुन 1999 को में कारागार तिहाङ चला गया किसी आरोप में l घर से अलग रहते हुए तो मुझे कई वर्ष हो गये थे l लेकिन कोई परेशानी नही आयी l जेल में पता नही क्या हुआ ना कोई दिक्कत ना कोई परेशानी l इतने आदमी साथ रह रहे l मात्र दो ही दिनों में ऐसा लगने लगा की जैसे पता नही कितने वर्षों से नही मिला अपने मां बाप से अपने भाई बहनो से l खाना भी खाया सोया भी लेकिन रोया भी बहुत l जब घर से अलग सारे परिवार से अलग मैं रहता ही था, कभी किसी की याद नही आती थी l तो अब क्यों इतना बैचेन हो रहा हुं l दिल में आया की बस घर वाले भी याद कर रहे होंगे इसलिए मुझे भी उनकी याद आ रही है l
लेकिन यह तङप मेरी ही नही थी,,, और भी कई लोग इसी तरह व्याकुल थे अपने घर वालों के लिए तङप रहे थे l
सोमवार का दिन जेल में मुलाकात का दिन होता है l मुझे कुछ नही पता की क्या होगा लेकिन जो लोग पुराने थे जल्दी जल्दी नहा धोकर घुमने लगे l मैंने पुछा किसी से कि क्या बात है आज सब लोग बङे खुश से लग रहे हैं l तो उसने कहा की आपको नही पता की आज मुलाकात का दिन है l सबके घर वाले मिलने के लिए आते हैं l तो मुझे भी बहुत खुशी सी हुई की शायद हमारे घर से भी कोई आ जाये l
वार्ड में घंटी बजी सब लोग एक ग्राउंड में इकठठा हो गये l मुलाकात का पर्चा बोला उसमें मेरा भी नाम था l मुझे अभी तक कुछ भी नही पता था की क्या होगा ???? क्या है ये मुलाकात का पचङा ??? सबके हाथ पर नम्बर लिख दिये गये मुझे भी 25 नम्बर दे दिया l जहां पर हम गये वहां छोटी छोटी सी जालीयां हल्का सा अँधेरा जाली इतनी छोटी की साफ कुछ भी नही दिखाई पङ रहा l और शोर इतना की कल्पना करो एक हाल में 200 250 आदमी
और सब एक दुसरे को खोज रहे हों तो क्या हालात बनेंगे ???? कुछ भी सुनाई नही पङ रहा l मैं तो पहली बार आया था पागलों की तरह घुम रहा था l क्या करू क्या ना करू समझ ही नही आ रहा था ????? अचानक मेरे कानों में आवाज आयी शिवा,,,,,,,,,,,, तो मैं झट से आवाज की दिशा में झपटा जाली इतनी छोटी की साफ साफ कुछ भी नही दिखाई दे रहा था l फिर आवाज आयी की शिवा हम यहां है आवाज मेरी बहन की थी l मैने पहचान लिया,, दुसरी तरफ मेरी मां, बहन और जीजा थे l मेरी बहन ने पुछा की कैसा है l
यह बात तो जब भी में उनके पास जाता था पुछते ही थे, लेकिन आज क्या हो गया जो उनको देखते ही मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकली l बस गला रूंध गया और आंखो से आँसु टपकने लगे l
जेल में ना कोई कष्ट है, ना कोई तंग रहा, और सिर्फ तीन दिन ही तो हुए हैं l जब मैं तीन महिने घर से अलग रहता तो कभी नही रोया लेकिन उस दिन तो गजब हो गया रोकते रोकते नयनों से अश्रु बह रहे थे रूकने का नाम ही नही.. बङी मुश्किल से बस एक ही बात कह पाया की मम्मी जी आप कैसी हो
वही मां वही बहन तो आज अलग क्या हो गया जो इतना स्नेह इतना प्यार हुआ की दिल में नही समाया तो आंखो के जरिये बहार आ रहा है मेरी बहन ना कहा तु चिंता मत कर हम जल्दी ही जमानत करवा लेंगे और मम्मी भी ऐसे रोने लगी जैसे पता नही कितने वर्षों के बाद देख रही हो अपने बेटे को मुलाकात का समय समाप्त हुआ पुलिस वाला आया और सबको भगाने लगा की चलो दुसरो को भी मुलाकात करनी है लेकिन ना मां का दिल कर रहा है जाने का ना मेरा मन कर रहा था कि वापिस जेल जाउं परन्तु क्या करें जाना तो पङता ही मम्मी ने खाना और कपङे दिये और घर की तरफ चल दिये पिछे मुङ मुङ कर देखती जा रही थी मेरी मां आज मुझे पहली बार मां की तङप एक बेबस मां की ममता का आभास हुआ और क्या होता है अपनो से मिलने का आनंद उस दिन कैसी दिव्य शांति का अनुभव हुआ जिसका वर्णन मैं शायद लिखकर कभी नही कर सकता लेकिन यह बात मैं अवस्य ही कहुंगा की पहली बार मुझे अपनी मां देवी के रूप में प्रतित हो रही थी.. जो खाना देकर जाते हैं घर वाले सब लोग एक जगह एक कमरें में बैठकर खाते हैं चारो तरफ खाना ही खाना
जीवन के 20-- 22 वर्ष रोज ही ते घर का खाना खाया था लेकिन उस दिन जो खाने में आनंद आया वह पहले कभी नही आया, घर पर तो रोज मन करता था की बाहर कहीं होटल में खाया जाये, प्रथम बार यह अनुभव हुआ की जिस भोजन में मां की ममता मिली होती है उस जैसा आनंद वैसा स्वाद किसी भी व्यंजन में नही होता..
घर पर और समाज में कितने त्योहार होते हैं हम सब मनाते भी हैं लेकिन क्या दिपावली पर पटाखे छोङना मिठाई बांटना होली पर रंग लगाकर गुंजीयां खाना बस यही हैं त्योहार की खुशियां,,,,,, नही दोस्तो त्योहारों में होता है अपनापन, सदभावना, मैत्री, प्रेम, भाईचारा, और शांति....... जरा विचार करें की क्या हमारे त्योहारो हैं ये सब
क्या होता है त्योहारों की खुशियां,,, रक्षाबंधन का नाम तो सबने ही सुना होगा कि बहन इस दिन भाई की कलई पर राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है और टिके की थाली में अपनी हैसियत के अनुसार रूपये दे देते है बस....
लेकिन भाईयों मैंने इस त्योहार की अहमियत देखी है बहन सिर्फ राखी ही नही बांधती अपने भाई की सलामती और खुशियों का भी प्रार्थना करती है.. जेल में भी इस पावन पर्व को मनाने की खुली छुट है कोई बंधन नही कोई रोक टोक नही,,, राखी तो बहने हर साल बांधती है लेकिन सन 2000 के रक्षा बंधन को में आज तक नही भुल पाया हुं और शायद ना ही भुल पाऊं ...
सारी जेल में रक्षा बंधन से सम्बंधित गीत बज रहे थे सुबह 8 बजे से ही बहने मिठाई लेकर आनी शुरू हो गयी थी मेरा भी नाम मुलाकात पर्चे में आ गया जहां मुलाकात हो रही थी वहां का दृष्य देखकर कितने भी कठोर दिल का आदमी हो वह भी रोने लगेगा किस तरह से बहन भागकर आती और रोती हुई अपने मजबुर और बेबस भाई को गले लगाकर विलाप करती... राखी तो हर वर्ष आयी होगी लेकिन क्या इतनी बैचेनी भाई को देखने के लिए इतनी तङप राखी बांधने के लिए हुई होगी कभी,,,, शायद कभी नही...................
मैं बचपन से ही बहुत कटटर रहा हुं मेरा नम्बर आया, लेकिन कोई नही आया इन्तजार करता रहा, दिमाग में पता नही कितने विचार आये, की पता नही क्यों नही कोई आया ??? कहीं कोई घटना तो नही घट गयी ??? इन्हीं विचारों में भटक रहा तो दरवाजे पर मेरी बहन दिखाई दी मेरी नजरें तो एकटक दरवाजे पर ही लगी हुई थी मेरी बहन की हालात भी दुसरी बहनों जैसी आते ही फुट फुटकर रोने लगी पता नही मेरे कटटर दिल में कहां से प्रेम भावनाए पनप आयी की मैं भी अपनें आंसु नही रोक पाया..
जब बाहर राखी होती है तो बहन की थाली में रूपये डालते है लेकिन हम कितने मजबुर की आज अपनी बहन को कुछ भी नही दे सकते,, बस हम दे सकते तो सिर्फ आंसु उसके अलावा कुछ नही
अब पता अपनों के मिलन के अहसास का की क्या होता मिलन का आनंद क्या होता
यह तो सभी को पता है, कि मिलन से कितना सुख प्राप्त होता है l अगर हमें किसी से मिलना हो तो कई दिन पहले से ही तैयारी करने लगते हैं , की हमारा फलां रिस्तेदार भाई बहन या बेटा बेटी या कोई और चाहने वाला आ रहा है l कितने असीम आनंद के पल होते हैं वो l लेकिन आज कल क्या सोच रहे है कि वही मां वही बाप भाई बहन रिस्तेदार उनको तो रोज आना जाना है l अब बस ऐसा होता है की फलां आदमी आज हमसे मिलने आ रहा है l कोई तङप नही होती कोई व्याकुलता नही होती l बस थोङा खुश होने का दिखावा सा करते हैं ऊपर से देखकर मुस्कुराते हैं मैं किसी एक की बात नही कर रहा ज्यादातर लोग ऐसे ही हो गया हैं l अरे मिलने की तङप तो क्या कई बार तो बोर भी होने लगते है अपनो से l और सोचते है की रोज ही आकर बैठ जाते हैं l पता नही कोई काम है या नही l ऐसा भाईयों इसलिए है, की हम अपनो सो अभी तक बिछुङे नही हैं l किसी चीज का गहरा अनुभव जभी होता है, जब हाथो से छुट जाती है तब उसकी किमत का पता लगता है l
मिलने की तङप, मिलने का सुख देखा है मैने.. की किस तरह, कितनी बैचैनी होती है l एक एक पल काटना कितना भारी होता है l किस तरह अपनों को खोजती हैं ये प्यासी निंगाहे.. कुछ पलों की देरी हो जाये और इन बेबस निगाहों को ना हो अपनो का दीदार तो कैसे आँसु बहाती है, की सारा चेहरा भीग जाता है l और फिर अचानक भीङ और अंधेरे में दिखाई देता है किसी अपने का दुखी और उदास चेहरा शोर ऐसा की कुछ भी सुनाई ना पङे 100-- 125 आदमी छोटी सी जगह में चिल्लाते रहते हैं तो कितना सकुन मिलता है , इस दिल को कितना आनंद मिलता है l इसका वर्णन किसी की भी वाणी नही कर सकती, कलम लिख नही सकती l
लेकिन इस आनंद की अनुभूति जो मैंने प्राप्त की है चाहता हुं की किसी को भी ना हो l अपनो से मिलने का आनंद तो भगवान इससे भी ज्यादा दे सबको l लेकिन माध्यम ऐसा ना हो, हम आम जीवन में अपने मां बाप भाई बहन दोस्तो से रिस्तेदारों से सबसे मिलते हैं लेकिन यंत्रवत से मिलते है कोई संवेदना नही होती कोई तङप नही होती l
एक जगह है हमारे समाज का अंग है कारागार यानि की जेल l नाम से तो लग रहा होगा की बात तो कैसी भावुकता की कर रहा है लेकिन जेल में क्या कोई किसी से मिलने के लिए तङपता होगा ??? जो हत्यारे हैं मां को बेटे से जुदा कर देते हैं भाई को मारकर बहन को अकेला कर देते हैं तो क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहाते होंगे ??? जो लोग हत्या डकैती अपहरण बलात्कार दहेज के लालच में अपनी बहु को जला देते हैं, क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहायेंगे ??? किसी के लिए तङपेंगे l
जी हां यह बिलकुल सत्य है l घर में मां बाप कहते हैं, की बेटा जल्दी आना l लेकिन हमें तो कोई असर ही नही होता की कोई हमारा इंतजार कर रहा होगा l कितने तङपते होंगे मां बाप हमारे लिए l
11 जुन 1999 को में कारागार तिहाङ चला गया किसी आरोप में l घर से अलग रहते हुए तो मुझे कई वर्ष हो गये थे l लेकिन कोई परेशानी नही आयी l जेल में पता नही क्या हुआ ना कोई दिक्कत ना कोई परेशानी l इतने आदमी साथ रह रहे l मात्र दो ही दिनों में ऐसा लगने लगा की जैसे पता नही कितने वर्षों से नही मिला अपने मां बाप से अपने भाई बहनो से l खाना भी खाया सोया भी लेकिन रोया भी बहुत l जब घर से अलग सारे परिवार से अलग मैं रहता ही था, कभी किसी की याद नही आती थी l तो अब क्यों इतना बैचेन हो रहा हुं l दिल में आया की बस घर वाले भी याद कर रहे होंगे इसलिए मुझे भी उनकी याद आ रही है l
लेकिन यह तङप मेरी ही नही थी,,, और भी कई लोग इसी तरह व्याकुल थे अपने घर वालों के लिए तङप रहे थे l
सोमवार का दिन जेल में मुलाकात का दिन होता है l मुझे कुछ नही पता की क्या होगा लेकिन जो लोग पुराने थे जल्दी जल्दी नहा धोकर घुमने लगे l मैंने पुछा किसी से कि क्या बात है आज सब लोग बङे खुश से लग रहे हैं l तो उसने कहा की आपको नही पता की आज मुलाकात का दिन है l सबके घर वाले मिलने के लिए आते हैं l तो मुझे भी बहुत खुशी सी हुई की शायद हमारे घर से भी कोई आ जाये l
वार्ड में घंटी बजी सब लोग एक ग्राउंड में इकठठा हो गये l मुलाकात का पर्चा बोला उसमें मेरा भी नाम था l मुझे अभी तक कुछ भी नही पता था की क्या होगा ???? क्या है ये मुलाकात का पचङा ??? सबके हाथ पर नम्बर लिख दिये गये मुझे भी 25 नम्बर दे दिया l जहां पर हम गये वहां छोटी छोटी सी जालीयां हल्का सा अँधेरा जाली इतनी छोटी की साफ कुछ भी नही दिखाई पङ रहा l और शोर इतना की कल्पना करो एक हाल में 200 250 आदमी
और सब एक दुसरे को खोज रहे हों तो क्या हालात बनेंगे ???? कुछ भी सुनाई नही पङ रहा l मैं तो पहली बार आया था पागलों की तरह घुम रहा था l क्या करू क्या ना करू समझ ही नही आ रहा था ????? अचानक मेरे कानों में आवाज आयी शिवा,,,,,,,,,,,, तो मैं झट से आवाज की दिशा में झपटा जाली इतनी छोटी की साफ साफ कुछ भी नही दिखाई दे रहा था l फिर आवाज आयी की शिवा हम यहां है आवाज मेरी बहन की थी l मैने पहचान लिया,, दुसरी तरफ मेरी मां, बहन और जीजा थे l मेरी बहन ने पुछा की कैसा है l
यह बात तो जब भी में उनके पास जाता था पुछते ही थे, लेकिन आज क्या हो गया जो उनको देखते ही मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकली l बस गला रूंध गया और आंखो से आँसु टपकने लगे l
जेल में ना कोई कष्ट है, ना कोई तंग रहा, और सिर्फ तीन दिन ही तो हुए हैं l जब मैं तीन महिने घर से अलग रहता तो कभी नही रोया लेकिन उस दिन तो गजब हो गया रोकते रोकते नयनों से अश्रु बह रहे थे रूकने का नाम ही नही.. बङी मुश्किल से बस एक ही बात कह पाया की मम्मी जी आप कैसी हो
वही मां वही बहन तो आज अलग क्या हो गया जो इतना स्नेह इतना प्यार हुआ की दिल में नही समाया तो आंखो के जरिये बहार आ रहा है मेरी बहन ना कहा तु चिंता मत कर हम जल्दी ही जमानत करवा लेंगे और मम्मी भी ऐसे रोने लगी जैसे पता नही कितने वर्षों के बाद देख रही हो अपने बेटे को मुलाकात का समय समाप्त हुआ पुलिस वाला आया और सबको भगाने लगा की चलो दुसरो को भी मुलाकात करनी है लेकिन ना मां का दिल कर रहा है जाने का ना मेरा मन कर रहा था कि वापिस जेल जाउं परन्तु क्या करें जाना तो पङता ही मम्मी ने खाना और कपङे दिये और घर की तरफ चल दिये पिछे मुङ मुङ कर देखती जा रही थी मेरी मां आज मुझे पहली बार मां की तङप एक बेबस मां की ममता का आभास हुआ और क्या होता है अपनो से मिलने का आनंद उस दिन कैसी दिव्य शांति का अनुभव हुआ जिसका वर्णन मैं शायद लिखकर कभी नही कर सकता लेकिन यह बात मैं अवस्य ही कहुंगा की पहली बार मुझे अपनी मां देवी के रूप में प्रतित हो रही थी.. जो खाना देकर जाते हैं घर वाले सब लोग एक जगह एक कमरें में बैठकर खाते हैं चारो तरफ खाना ही खाना
जीवन के 20-- 22 वर्ष रोज ही ते घर का खाना खाया था लेकिन उस दिन जो खाने में आनंद आया वह पहले कभी नही आया, घर पर तो रोज मन करता था की बाहर कहीं होटल में खाया जाये, प्रथम बार यह अनुभव हुआ की जिस भोजन में मां की ममता मिली होती है उस जैसा आनंद वैसा स्वाद किसी भी व्यंजन में नही होता..
घर पर और समाज में कितने त्योहार होते हैं हम सब मनाते भी हैं लेकिन क्या दिपावली पर पटाखे छोङना मिठाई बांटना होली पर रंग लगाकर गुंजीयां खाना बस यही हैं त्योहार की खुशियां,,,,,, नही दोस्तो त्योहारों में होता है अपनापन, सदभावना, मैत्री, प्रेम, भाईचारा, और शांति....... जरा विचार करें की क्या हमारे त्योहारो हैं ये सब
क्या होता है त्योहारों की खुशियां,,, रक्षाबंधन का नाम तो सबने ही सुना होगा कि बहन इस दिन भाई की कलई पर राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है और टिके की थाली में अपनी हैसियत के अनुसार रूपये दे देते है बस....
लेकिन भाईयों मैंने इस त्योहार की अहमियत देखी है बहन सिर्फ राखी ही नही बांधती अपने भाई की सलामती और खुशियों का भी प्रार्थना करती है.. जेल में भी इस पावन पर्व को मनाने की खुली छुट है कोई बंधन नही कोई रोक टोक नही,,, राखी तो बहने हर साल बांधती है लेकिन सन 2000 के रक्षा बंधन को में आज तक नही भुल पाया हुं और शायद ना ही भुल पाऊं ...
सारी जेल में रक्षा बंधन से सम्बंधित गीत बज रहे थे सुबह 8 बजे से ही बहने मिठाई लेकर आनी शुरू हो गयी थी मेरा भी नाम मुलाकात पर्चे में आ गया जहां मुलाकात हो रही थी वहां का दृष्य देखकर कितने भी कठोर दिल का आदमी हो वह भी रोने लगेगा किस तरह से बहन भागकर आती और रोती हुई अपने मजबुर और बेबस भाई को गले लगाकर विलाप करती... राखी तो हर वर्ष आयी होगी लेकिन क्या इतनी बैचेनी भाई को देखने के लिए इतनी तङप राखी बांधने के लिए हुई होगी कभी,,,, शायद कभी नही...................
मैं बचपन से ही बहुत कटटर रहा हुं मेरा नम्बर आया, लेकिन कोई नही आया इन्तजार करता रहा, दिमाग में पता नही कितने विचार आये, की पता नही क्यों नही कोई आया ??? कहीं कोई घटना तो नही घट गयी ??? इन्हीं विचारों में भटक रहा तो दरवाजे पर मेरी बहन दिखाई दी मेरी नजरें तो एकटक दरवाजे पर ही लगी हुई थी मेरी बहन की हालात भी दुसरी बहनों जैसी आते ही फुट फुटकर रोने लगी पता नही मेरे कटटर दिल में कहां से प्रेम भावनाए पनप आयी की मैं भी अपनें आंसु नही रोक पाया..
जब बाहर राखी होती है तो बहन की थाली में रूपये डालते है लेकिन हम कितने मजबुर की आज अपनी बहन को कुछ भी नही दे सकते,, बस हम दे सकते तो सिर्फ आंसु उसके अलावा कुछ नही
अब पता अपनों के मिलन के अहसास का की क्या होता मिलन का आनंद क्या होता
त्याग से मिलती है शांति
त्याग से तत्काल मिलती है - शांति
मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ हैl ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ठ है l क्योंकि त्याग से तत्काल शांति मिलती हैl
ये पन्क्तिया भगवद्गगीता मे भगवान ने कही हैं l यहाँ पर स्पस्ट कह रहे हैं ज्ञान आवस्यक है तत्व के जाने बिना अर्थात कर्म के परिणाम कि जानकारी के बिना किये गये अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है l
जैसा की व्यवहारिक जीवन में देखा जा रहा है कि एक पंडित सारा दिन लगा रहता है मंदिर में भगवान की सेवा में
मोलवी मस्जिद में अध्यापक को ज्ञान बांटते हुए वर्षो बीत गये मगर सच्चाई क्या है l
इसी बात को सहजता से समझाने के लिए कहा है कि ज्ञान श्रेष्ठ है l कर्म करने का अभ्यास तो हर व्यक्ति करता है l लेकिन परिणाम भिन्न भिन्न हो जाता है जैसे एक डाक्टर अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है, दुसरा एक डाकू अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है l परिणाम..... एक को बंधन अपमान सजा तो दुसरे को सम्मान मिलता है l कर्म करने का अभ्यास तो दोनो ने किया लेकिन बिना ज्ञान के किया गया अभ्यास कितना व्यर्थ है l
यहां से आगे भगवान और थोङी गहराई में ले जाते हैं l ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l गीता के एक श्लोक में कृष्ण ने पुरे संसार के व्यक्तियों का वर्णन कर दिया है न0 1 कर्म में लिप्त रहते हैं न0 2 ज्ञान न03 ध्यान न04 योग त्याग.l......
लेकिन भगवान ने जैसा कहा है ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान उत्तम है l क्या करें
इन शब्द्धो का अर्थ ही बदल दिया है l जिस स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ बताया गया है उसे तो भुला ही दिया गया और भगवान के स्वरूप को एक मंदिर तक मस्जिद एक मू्र्ती तक या किसी एक जगह तक सिमित करके उसमें ही लिप्त रहने लगे हैं l उसको भुला दिया जिसको भगवान ने कहा है- ईश्वरः सर्वभुतानां ह्रदेशे अर्जुन तिष्ठति अर्थात प्रमात्मा सबके ह्रदय में विधमान है तो स्पस्ट है कि किस स्वरूप का ध्यान करने के लिए कह रहे हैं l किसी भी सम्प्रदाय धर्म जाति का धार्मिक ग्रन्थ हो सभी में भाषा बदल गयी होगी लेकिन अर्थ यही है सर्वभुतानां ह्रदेशे तिष्ठति l
अब क्या हो रहा है लोगो ने स्वार्थ पुर्ति तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता के कारण एक दुसरे के खुन के प्यासे हो रहे हैं एक दुसरे का वजुद मिटा देना चाहते हैं भगवान का संकेत है कि मेरे स्वरूप का ध्यान कि जितने भी प्राणी हैं वो मेरे ही अंश हैं सबके ह्रदय में प्रत्यक्ष विधमान हुं उसका ध्यान करो कि किसी भी प्रकार से हमारे कारण अन्य प्राणींयो का अनिष्ट तो नही हो रहा है किसी को शारीरिक मानसिक कष्ट तो नही हो रहा है l इसके पश्चात भगवान ने हमें इतना सहज और सरल तरिका बताया है l कि ध्यान से भी सब क्रमों के फल का त्याग श्रेष्ठ है l यह बात कितनी आसान सी लग रही है ना परन्तु बहुत कठिन है l कैसे कर सकते हैं हम कर्म फल का त्याग,,, मन का स्वभाव तो ऐसा बना हुआ है कि कर्म करने से पहले उसके फल की इच्छा कर लेते हैं l और कर्म चाहे जैसा भी हो उसका परिणाम जिसकी हमने कल्पना की है वह बहुत सुन्दर है l और बिना कर्म किये ही परिणाम फल का महल खङा कर लेते हैं l
भगवान ने यही मना किया है कि ज्ञान और मेरे ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग उत्तम है l वो झुठ तो कह नही सकते l यह भी कहा है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l यह मानव सुबह से सांय सांय से रात तक यह शांति प्राप्त करने के लिए ही तो भागता रहता है l लेकिन जीवन में शांति के बजाय अशांति असुरक्षा भय अपना शिकंजा कसता जाता है l
यह बात बिलकुल सत्य है जो भगवान समझा रहे हैं l उसको माने जाने बिना शांति सुख चैन हमारे जीवन में आ ही नही सकते l यह भी नही है कि लोगो को इस बात का ज्ञान नही है l बहुतों को पता है लोग आपस में कहते भी हैं l कि गीता में कहा है कि कर्म कर फल की इच्छा ना कर l जैसा कर्म करेगा इन्सान वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान ये एक फिल्म कि पंक्ति हैं l इतने सबके बावजुद भी नही समझते इस तथ्य को लोग स्वीकार तो करते हैं, लेकिन कब जब किसी कार्य में हानि हो जाय तो अन्य दुसरे ही समझाते हैं कि जो ऊपर वाले कि मर्जी है वही होता है अगर किसी कार्य में सफलता मिल जाय तो मनुष्य अपनी पीठ थपथपाता है की मैं इतना समझदार हुं होशियार मैंने इतना मुनाफ इतना लाभ कमाया यह कार्य इतनी कुशलता ते किया यहां पर भगवान को श्रेय नही देते
भारत ही नही सारे संसार में भगवान के इस कथन की आवस्यकता है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l
त्याग का अर्थ यह नही है की हम सब कुछ छोङ कर जंगल में चले जाये... हमें किसी व्यक्ति या वस्तु को नही छोङना बल्कि उनमें होने वाली आसक्ति का त्याग करना है,,, यहां पर कोई किसी प्रकार का सन्देह नही होना चाहिए भगवान ने कर्म को त्यागने की बात नही कही कर्म फल के प्रति तृष्णा का त्याग करना है l आज जो हालात हमारे समक्ष है लोग आये दिन आत्महत्या करके अपनी और अपने परिवार की जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं विधार्थी शिक्षक व्यापारी नोकर हर कोई पीङित है दुखी परेशान है l अगर एक विधार्थी अपना कर्तव्य भली प्रकार करे और फल की चिंता ना करे यानि कि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र से सम्बधित हो वह इसी बात को स्वीकार करे जानते तो सब हैं लेकिन मानते नही स्वीकार नही करते l,,
बच्चा जब छोटा सा होता है तो मां बाप उसके दिमांग में यह बात भरनी शुरू कर देते हैं कि बेटा अच्छी तरह ध्यान से अच्छी नोकरी लगेगी पैसा कमायेगा l इतनी इच्छाएं इतनी महत्वाकांक्षाएं बढ जाती हैं l उस कोमल से बालक की अब वह इतने तनाव में रहता है कि अगर पढाई ठीक नही हुई तो मैं बेकार हो जाऊंगा l जब हमारी कल्पनाओं को झटका लगता है तो कांच के सिसे की भांति टुटकर बिखर जाता है यह मानव मन l और इसके पश्चात लोग नशे में डुबकर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं l तो कितना लाभप्रद है कर्मो के फल का त्याग जीवन में सुख चैन और शांति स्थापना के लिए l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
email- jatshiva.tomar@gmail.com
मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ हैl ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ठ है l क्योंकि त्याग से तत्काल शांति मिलती हैl
ये पन्क्तिया भगवद्गगीता मे भगवान ने कही हैं l यहाँ पर स्पस्ट कह रहे हैं ज्ञान आवस्यक है तत्व के जाने बिना अर्थात कर्म के परिणाम कि जानकारी के बिना किये गये अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है l
जैसा की व्यवहारिक जीवन में देखा जा रहा है कि एक पंडित सारा दिन लगा रहता है मंदिर में भगवान की सेवा में
मोलवी मस्जिद में अध्यापक को ज्ञान बांटते हुए वर्षो बीत गये मगर सच्चाई क्या है l
इसी बात को सहजता से समझाने के लिए कहा है कि ज्ञान श्रेष्ठ है l कर्म करने का अभ्यास तो हर व्यक्ति करता है l लेकिन परिणाम भिन्न भिन्न हो जाता है जैसे एक डाक्टर अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है, दुसरा एक डाकू अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है l परिणाम..... एक को बंधन अपमान सजा तो दुसरे को सम्मान मिलता है l कर्म करने का अभ्यास तो दोनो ने किया लेकिन बिना ज्ञान के किया गया अभ्यास कितना व्यर्थ है l
यहां से आगे भगवान और थोङी गहराई में ले जाते हैं l ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l गीता के एक श्लोक में कृष्ण ने पुरे संसार के व्यक्तियों का वर्णन कर दिया है न0 1 कर्म में लिप्त रहते हैं न0 2 ज्ञान न03 ध्यान न04 योग त्याग.l......
लेकिन भगवान ने जैसा कहा है ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान उत्तम है l क्या करें
इन शब्द्धो का अर्थ ही बदल दिया है l जिस स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ बताया गया है उसे तो भुला ही दिया गया और भगवान के स्वरूप को एक मंदिर तक मस्जिद एक मू्र्ती तक या किसी एक जगह तक सिमित करके उसमें ही लिप्त रहने लगे हैं l उसको भुला दिया जिसको भगवान ने कहा है- ईश्वरः सर्वभुतानां ह्रदेशे अर्जुन तिष्ठति अर्थात प्रमात्मा सबके ह्रदय में विधमान है तो स्पस्ट है कि किस स्वरूप का ध्यान करने के लिए कह रहे हैं l किसी भी सम्प्रदाय धर्म जाति का धार्मिक ग्रन्थ हो सभी में भाषा बदल गयी होगी लेकिन अर्थ यही है सर्वभुतानां ह्रदेशे तिष्ठति l
अब क्या हो रहा है लोगो ने स्वार्थ पुर्ति तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता के कारण एक दुसरे के खुन के प्यासे हो रहे हैं एक दुसरे का वजुद मिटा देना चाहते हैं भगवान का संकेत है कि मेरे स्वरूप का ध्यान कि जितने भी प्राणी हैं वो मेरे ही अंश हैं सबके ह्रदय में प्रत्यक्ष विधमान हुं उसका ध्यान करो कि किसी भी प्रकार से हमारे कारण अन्य प्राणींयो का अनिष्ट तो नही हो रहा है किसी को शारीरिक मानसिक कष्ट तो नही हो रहा है l इसके पश्चात भगवान ने हमें इतना सहज और सरल तरिका बताया है l कि ध्यान से भी सब क्रमों के फल का त्याग श्रेष्ठ है l यह बात कितनी आसान सी लग रही है ना परन्तु बहुत कठिन है l कैसे कर सकते हैं हम कर्म फल का त्याग,,, मन का स्वभाव तो ऐसा बना हुआ है कि कर्म करने से पहले उसके फल की इच्छा कर लेते हैं l और कर्म चाहे जैसा भी हो उसका परिणाम जिसकी हमने कल्पना की है वह बहुत सुन्दर है l और बिना कर्म किये ही परिणाम फल का महल खङा कर लेते हैं l
भगवान ने यही मना किया है कि ज्ञान और मेरे ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग उत्तम है l वो झुठ तो कह नही सकते l यह भी कहा है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l यह मानव सुबह से सांय सांय से रात तक यह शांति प्राप्त करने के लिए ही तो भागता रहता है l लेकिन जीवन में शांति के बजाय अशांति असुरक्षा भय अपना शिकंजा कसता जाता है l
यह बात बिलकुल सत्य है जो भगवान समझा रहे हैं l उसको माने जाने बिना शांति सुख चैन हमारे जीवन में आ ही नही सकते l यह भी नही है कि लोगो को इस बात का ज्ञान नही है l बहुतों को पता है लोग आपस में कहते भी हैं l कि गीता में कहा है कि कर्म कर फल की इच्छा ना कर l जैसा कर्म करेगा इन्सान वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान ये एक फिल्म कि पंक्ति हैं l इतने सबके बावजुद भी नही समझते इस तथ्य को लोग स्वीकार तो करते हैं, लेकिन कब जब किसी कार्य में हानि हो जाय तो अन्य दुसरे ही समझाते हैं कि जो ऊपर वाले कि मर्जी है वही होता है अगर किसी कार्य में सफलता मिल जाय तो मनुष्य अपनी पीठ थपथपाता है की मैं इतना समझदार हुं होशियार मैंने इतना मुनाफ इतना लाभ कमाया यह कार्य इतनी कुशलता ते किया यहां पर भगवान को श्रेय नही देते
भारत ही नही सारे संसार में भगवान के इस कथन की आवस्यकता है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l
त्याग का अर्थ यह नही है की हम सब कुछ छोङ कर जंगल में चले जाये... हमें किसी व्यक्ति या वस्तु को नही छोङना बल्कि उनमें होने वाली आसक्ति का त्याग करना है,,, यहां पर कोई किसी प्रकार का सन्देह नही होना चाहिए भगवान ने कर्म को त्यागने की बात नही कही कर्म फल के प्रति तृष्णा का त्याग करना है l आज जो हालात हमारे समक्ष है लोग आये दिन आत्महत्या करके अपनी और अपने परिवार की जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं विधार्थी शिक्षक व्यापारी नोकर हर कोई पीङित है दुखी परेशान है l अगर एक विधार्थी अपना कर्तव्य भली प्रकार करे और फल की चिंता ना करे यानि कि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र से सम्बधित हो वह इसी बात को स्वीकार करे जानते तो सब हैं लेकिन मानते नही स्वीकार नही करते l,,
बच्चा जब छोटा सा होता है तो मां बाप उसके दिमांग में यह बात भरनी शुरू कर देते हैं कि बेटा अच्छी तरह ध्यान से अच्छी नोकरी लगेगी पैसा कमायेगा l इतनी इच्छाएं इतनी महत्वाकांक्षाएं बढ जाती हैं l उस कोमल से बालक की अब वह इतने तनाव में रहता है कि अगर पढाई ठीक नही हुई तो मैं बेकार हो जाऊंगा l जब हमारी कल्पनाओं को झटका लगता है तो कांच के सिसे की भांति टुटकर बिखर जाता है यह मानव मन l और इसके पश्चात लोग नशे में डुबकर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं l तो कितना लाभप्रद है कर्मो के फल का त्याग जीवन में सुख चैन और शांति स्थापना के लिए l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
email- jatshiva.tomar@gmail.com
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
अपराध मुक्त राजनीति
अपराध मुक्त राजनीति
राजनीति और अपराध मुक्त बङा आश्चर्य सा हो रहा है ना सुनकर बङा असमंजस सा हो रहा होगा आपको नही सभी को ही अजीब सा लगेगा क्योंकि अपराध और राजनीति का तो चोली दामन का साथ है एक के बिना दुसरा अधुरा है अकेली राजनीति चल नही सकती बिना राजनीति के अपराध फल फूल नही सकता यूं कहो तो और भी अच्छा होगा राजनीति में अपराध आग में घी का काम करता है
हम बात कर रहे हैं अपराध मुक्त राजनीति की ..........................................
राजनीति गांव शहर समाज और राष्ट्र में होने वाले कार्य कलापों गति विधियों आचरण संस्कार का आईना है
मैं कोई ज्ञानी विद्वान नही हुं बस एक सिधा साघा सा नागरीक हुं जिंदगी में कष्ट और दुखों के झटको को सह सह कर बङा अनुभव किया है और हर पहलु पर गहराई से अध्ययन किया है तो हमारे समाज का सबसे संवेदनशिल अंग है राजनीति
राजनीति में लोगो को देखकर समाज के हर वर्ग के लोगो पर बहुत गहरा प्रभाव पङता है
नेताओं को हम लोग श्रेष्ठ और देश के संचालक कर्ता धर्ता मानते हैं लोग नेताओं के फोटो भी अपने घरों में लगाकर रखते हैं अगर हमारे सम्मानीत व्यक्ति ही अपराध में लिप्त या अपराध से ग्रसित हो तो क्या होगा जनता का ????????
जिस समाज का संचालन करने वाले व्यक्ति अपराध मुक्त नही होगें भ्रष्टाचार मुक्त नही होगें तो देश में न्याय व्यवस्था कार्य व्यवस्था शांति सुरक्षा कैसे स्थापित होगी
भगवान श्री कृष्ण ने भगदगीता में भी कहा है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते है अन्य भी वैसा ही करते है यह शत प्रतिशत सत्य है इस बात को हम और अच्छी तरह से एक उदाहरण के माध्यम से समझे की एक घर में 5 सदस्य हैं और घर का मुखिया शराब पीता है यह एक घर की घटना है यही क्रम है परिवार से समाज बनता है तो देखा होगा 80 प्रतिशत बच्चे बीङी तम्बाकु गुटके शाराब का सेवन करते है और घरों में हिंसा ऐसी होती है का रोज खाना नही गालीयां खानी पङती हैं l
जैसै देखा गया है की कितने बङे स्तर पर देश में घोटाले हो रहे हैं सी बी आई और मीडीया कितने लोगो की पोल खोलती है अरबों रूपये के घोटाले हो रहे हैं बङे बङे नेताओं के नाम आते है पता नही बाद में क्या होता है ???????
हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि हर व्यक्ति अपनी जो भी नोकरी करता है चाहे तनख्वाह ज्यादा हो या कम हो ऊपर की कमाई जरूर करने की सोचता है l
अब से राजनीति में अपराध और अपराधीयों का प्रवेश हुआ है हमारी न्याय पालिका, शिक्षा का क्षेत्र हो या व्यापार सिपाही हो या अधिकारी हर विभाग में अपराध अपना शिकंजा कसता जा रहा है जो इसका परिणाम है वह हमारे सब के सामने है किस तरह हमारा युवा वर्ग अपराध भ्रष्टाचार अश्लीलता व्यभिचार की दलदल में फंस रहे हैं
क्यों कहा है भगवान ने की शाशन करने वाले में यमराज हुं में ????????
हमारा शाशक हमारे नेता श्रेष्ठ संचालन कर्ता का आचरण यमराज जैसा कठोर होना चाहिए भ्रष्टता लालच स्वार्थ पुर्ण नही बल्कि न्याय, सेवा और समर्पण होना चाहिए
देश और समाज में बढता अपराध हिंसा स्वार्थ बङी चिंता का विषय है
वर्तमान राजनिति में तो अपराध का ही बोलबाला है ज्यादातर नेताओं पर अपराधिक मुकदमें चल रहे हैं अभी कुछ माह पहले अंडर वर्ल्ड डोन अबु सलेम कस्टडी पैरोल पर अपने घर आजमगढ गया वहां के युवा वर्ग ने उसके जिंदाबाद के नारे लगाये और जायजा ले तो आज आजमगढ अपराध और आतंक का विस्व विधालय बन रहा है अब अबु सलेम भी राजनिति में आने का मन बना रहा है अतीक अहमद,, साहबुदीन,, मुखत्यार अंसारी,, पप्पु यादव,, और भी ना जाने कितने अपराध प्रवृत्ति के लोग ने राजनिति में अपना झंडा गाङ दिया है तो क्या होगा समाज का ??????????
ये तो बात हम सबको पता है लेकिन इसका समाधान क्या है कैसे हो अपराध मुक्त राजनिति कैसे निकले इसके शिकंजे से ??????????
कोनसा सुत्र है वह जिससे समाज और हर व्यक्ति अपराध मुक्त हो ???????
राजनिति को इसलिए कह रहे हैं की नेताओं का लोग अनुशरण करते हैं कोइ नेता आरक्षण मांगने के लिए खङा हुआ तो हजारों लोग बिना परिणाम की चिंता किये उसके पिछे चल पङे आग लगाई सरकार का नुकसान किया लाठीयां खाई गोलीयां खाई लेकिन अपने नेता के पिछे जरूर चले
कोई सम्प्रदाय के नाम पर चला तो कोई तो कोई जाति के नाम पर उसके चाहने वाले उसके पिछे पिछे चल पङे ये भी आवश्यक नही है की सिर्फ हिंसा को ही भङकाने के लिए चलते हैं बापु गांधी अहिंसा की लाठी लेकर चले तो लाखो लोग पिछे चल पङे
आज लोग अपने पिछे भीङ को एकत्रीत तो कर लेते हैं लेकिन कहीं ना कहीं अपराध, हिंसा में लिप्त रहते हैं
ओर भ्रष्टचार से मुक्त नही हो पाते और परिणाम यह होता हैं कि उनके समर्थक भी उनके चाहने वाले भी अपराध के शिकंजे में फंसते चले जाते हैं
आप यह सोच रहे होगे की कैसा पागल आदमी है इस बात का हम सबको मालुम है की राजनिति ही नही समाज का हर वर्ग अपराध और भ्रष्टाचार से ग्रसित है कोई रास्ता क्यों नही बता रहा की किस प्रकार से होगी राजनिति और समाज अपराध मुक्त
और हर व्यक्ति चाहता भी है की कोई गलत कार्य ना करे फिर भी क्या कारण है जो ना चाहता हुआ भी अपराध की दलदल में फंसता जा रहा है
तो यही सवाल भगवान श्री कृष्ण से पुछा था की किससे प्रेरित होकर व्यक्ति अपराध करता हैं यह प्रश्न किसी एक का नही हर कोई चाहता है इसका जबाब
तो भगवान ने दो टुक भाषा में साफ कहा था कि किसी विषय के बार बार चिंतन करने से उस विषय के प्रति आसक्ति बढ जाती है और उसकी प्राप्ति ना होने पर क्रोध आता है क्रोध आने से व्यक्ति अपनी स्थिती से गिर जाता है और परिणाम यह होता है की कुछ भी अपराध कर बैठता है
यह भगवान का संदेश किसी एक के लिए नही है वो तो अंतर्यामी है सब कुछ जानते है की क्या होने वाला है इसी लिए यह बात बतायी थी क्योंकि आज के भागम भाग जमाने मे एक दुसरे से आगे निकलने की होङ सी लगी है
यही कारण है की इतनी तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता हो गयी है की हर कोई अपने घर परिवार तक ही सिमट कर रह गये हैं इतिहास गवाह है कि जो भी व्यक्ति अपने घर परिवार से ऊपर ऊठकर समाज में चला है वही अपराध मुक्त हुआ है
लेकिन में किसी एक की बात नही कर रहा आज तो हर आदमी ही यह चाहता है की मेरे बच्चे सबसे ऊपर जायें सबसे ज्यादा पैसा कमाये गाङी बंगला सब ऐसो आराम हो चाहे रास्ता कोई भी अपनाना पङे
आज एक नेता चुनाव में करोङो रूपये खर्च कर देता है तो वह क्या जनता की सेवा करेगा अपनी और अपने घर परिवार की सेवा करने के लिए राजनिति में आ रहे हैं
भगवान ने कहा है की हे मानव तु हर समय मेरा चिंतन भी कर अपना कर्म भी कर इससे तु सदा अपराध मुक्त रहेगा तु मुझमें ही निवास करेगा
आज राजनिति ही नही पुरे विस्व के हर वर्ग को भगवदगीता के मार्गदर्शन की जरूरत है इससे ही अपराध मुक्त हो सकते
शिवा तोमर
राजनीति और अपराध मुक्त बङा आश्चर्य सा हो रहा है ना सुनकर बङा असमंजस सा हो रहा होगा आपको नही सभी को ही अजीब सा लगेगा क्योंकि अपराध और राजनीति का तो चोली दामन का साथ है एक के बिना दुसरा अधुरा है अकेली राजनीति चल नही सकती बिना राजनीति के अपराध फल फूल नही सकता यूं कहो तो और भी अच्छा होगा राजनीति में अपराध आग में घी का काम करता है
हम बात कर रहे हैं अपराध मुक्त राजनीति की ..........................................
राजनीति गांव शहर समाज और राष्ट्र में होने वाले कार्य कलापों गति विधियों आचरण संस्कार का आईना है
मैं कोई ज्ञानी विद्वान नही हुं बस एक सिधा साघा सा नागरीक हुं जिंदगी में कष्ट और दुखों के झटको को सह सह कर बङा अनुभव किया है और हर पहलु पर गहराई से अध्ययन किया है तो हमारे समाज का सबसे संवेदनशिल अंग है राजनीति
राजनीति में लोगो को देखकर समाज के हर वर्ग के लोगो पर बहुत गहरा प्रभाव पङता है
नेताओं को हम लोग श्रेष्ठ और देश के संचालक कर्ता धर्ता मानते हैं लोग नेताओं के फोटो भी अपने घरों में लगाकर रखते हैं अगर हमारे सम्मानीत व्यक्ति ही अपराध में लिप्त या अपराध से ग्रसित हो तो क्या होगा जनता का ????????
जिस समाज का संचालन करने वाले व्यक्ति अपराध मुक्त नही होगें भ्रष्टाचार मुक्त नही होगें तो देश में न्याय व्यवस्था कार्य व्यवस्था शांति सुरक्षा कैसे स्थापित होगी
भगवान श्री कृष्ण ने भगदगीता में भी कहा है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते है अन्य भी वैसा ही करते है यह शत प्रतिशत सत्य है इस बात को हम और अच्छी तरह से एक उदाहरण के माध्यम से समझे की एक घर में 5 सदस्य हैं और घर का मुखिया शराब पीता है यह एक घर की घटना है यही क्रम है परिवार से समाज बनता है तो देखा होगा 80 प्रतिशत बच्चे बीङी तम्बाकु गुटके शाराब का सेवन करते है और घरों में हिंसा ऐसी होती है का रोज खाना नही गालीयां खानी पङती हैं l
जैसै देखा गया है की कितने बङे स्तर पर देश में घोटाले हो रहे हैं सी बी आई और मीडीया कितने लोगो की पोल खोलती है अरबों रूपये के घोटाले हो रहे हैं बङे बङे नेताओं के नाम आते है पता नही बाद में क्या होता है ???????
हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि हर व्यक्ति अपनी जो भी नोकरी करता है चाहे तनख्वाह ज्यादा हो या कम हो ऊपर की कमाई जरूर करने की सोचता है l
अब से राजनीति में अपराध और अपराधीयों का प्रवेश हुआ है हमारी न्याय पालिका, शिक्षा का क्षेत्र हो या व्यापार सिपाही हो या अधिकारी हर विभाग में अपराध अपना शिकंजा कसता जा रहा है जो इसका परिणाम है वह हमारे सब के सामने है किस तरह हमारा युवा वर्ग अपराध भ्रष्टाचार अश्लीलता व्यभिचार की दलदल में फंस रहे हैं
क्यों कहा है भगवान ने की शाशन करने वाले में यमराज हुं में ????????
हमारा शाशक हमारे नेता श्रेष्ठ संचालन कर्ता का आचरण यमराज जैसा कठोर होना चाहिए भ्रष्टता लालच स्वार्थ पुर्ण नही बल्कि न्याय, सेवा और समर्पण होना चाहिए
देश और समाज में बढता अपराध हिंसा स्वार्थ बङी चिंता का विषय है
वर्तमान राजनिति में तो अपराध का ही बोलबाला है ज्यादातर नेताओं पर अपराधिक मुकदमें चल रहे हैं अभी कुछ माह पहले अंडर वर्ल्ड डोन अबु सलेम कस्टडी पैरोल पर अपने घर आजमगढ गया वहां के युवा वर्ग ने उसके जिंदाबाद के नारे लगाये और जायजा ले तो आज आजमगढ अपराध और आतंक का विस्व विधालय बन रहा है अब अबु सलेम भी राजनिति में आने का मन बना रहा है अतीक अहमद,, साहबुदीन,, मुखत्यार अंसारी,, पप्पु यादव,, और भी ना जाने कितने अपराध प्रवृत्ति के लोग ने राजनिति में अपना झंडा गाङ दिया है तो क्या होगा समाज का ??????????
ये तो बात हम सबको पता है लेकिन इसका समाधान क्या है कैसे हो अपराध मुक्त राजनिति कैसे निकले इसके शिकंजे से ??????????
कोनसा सुत्र है वह जिससे समाज और हर व्यक्ति अपराध मुक्त हो ???????
राजनिति को इसलिए कह रहे हैं की नेताओं का लोग अनुशरण करते हैं कोइ नेता आरक्षण मांगने के लिए खङा हुआ तो हजारों लोग बिना परिणाम की चिंता किये उसके पिछे चल पङे आग लगाई सरकार का नुकसान किया लाठीयां खाई गोलीयां खाई लेकिन अपने नेता के पिछे जरूर चले
कोई सम्प्रदाय के नाम पर चला तो कोई तो कोई जाति के नाम पर उसके चाहने वाले उसके पिछे पिछे चल पङे ये भी आवश्यक नही है की सिर्फ हिंसा को ही भङकाने के लिए चलते हैं बापु गांधी अहिंसा की लाठी लेकर चले तो लाखो लोग पिछे चल पङे
आज लोग अपने पिछे भीङ को एकत्रीत तो कर लेते हैं लेकिन कहीं ना कहीं अपराध, हिंसा में लिप्त रहते हैं
ओर भ्रष्टचार से मुक्त नही हो पाते और परिणाम यह होता हैं कि उनके समर्थक भी उनके चाहने वाले भी अपराध के शिकंजे में फंसते चले जाते हैं
आप यह सोच रहे होगे की कैसा पागल आदमी है इस बात का हम सबको मालुम है की राजनिति ही नही समाज का हर वर्ग अपराध और भ्रष्टाचार से ग्रसित है कोई रास्ता क्यों नही बता रहा की किस प्रकार से होगी राजनिति और समाज अपराध मुक्त
और हर व्यक्ति चाहता भी है की कोई गलत कार्य ना करे फिर भी क्या कारण है जो ना चाहता हुआ भी अपराध की दलदल में फंसता जा रहा है
तो यही सवाल भगवान श्री कृष्ण से पुछा था की किससे प्रेरित होकर व्यक्ति अपराध करता हैं यह प्रश्न किसी एक का नही हर कोई चाहता है इसका जबाब
तो भगवान ने दो टुक भाषा में साफ कहा था कि किसी विषय के बार बार चिंतन करने से उस विषय के प्रति आसक्ति बढ जाती है और उसकी प्राप्ति ना होने पर क्रोध आता है क्रोध आने से व्यक्ति अपनी स्थिती से गिर जाता है और परिणाम यह होता है की कुछ भी अपराध कर बैठता है
यह भगवान का संदेश किसी एक के लिए नही है वो तो अंतर्यामी है सब कुछ जानते है की क्या होने वाला है इसी लिए यह बात बतायी थी क्योंकि आज के भागम भाग जमाने मे एक दुसरे से आगे निकलने की होङ सी लगी है
यही कारण है की इतनी तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता हो गयी है की हर कोई अपने घर परिवार तक ही सिमट कर रह गये हैं इतिहास गवाह है कि जो भी व्यक्ति अपने घर परिवार से ऊपर ऊठकर समाज में चला है वही अपराध मुक्त हुआ है
लेकिन में किसी एक की बात नही कर रहा आज तो हर आदमी ही यह चाहता है की मेरे बच्चे सबसे ऊपर जायें सबसे ज्यादा पैसा कमाये गाङी बंगला सब ऐसो आराम हो चाहे रास्ता कोई भी अपनाना पङे
आज एक नेता चुनाव में करोङो रूपये खर्च कर देता है तो वह क्या जनता की सेवा करेगा अपनी और अपने घर परिवार की सेवा करने के लिए राजनिति में आ रहे हैं
भगवान ने कहा है की हे मानव तु हर समय मेरा चिंतन भी कर अपना कर्म भी कर इससे तु सदा अपराध मुक्त रहेगा तु मुझमें ही निवास करेगा
आज राजनिति ही नही पुरे विस्व के हर वर्ग को भगवदगीता के मार्गदर्शन की जरूरत है इससे ही अपराध मुक्त हो सकते
शिवा तोमर
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