बुधवार, 5 अगस्त 2009
भयभीत हुआ मैं
भाईयों जय श्री कृष्णा
जो आज मैं लिख रहा हुं समझ ही नही आ रहा की वह समस्या मेरी ही है, या सबकी है !
अंदर एक अनजाना सा डर सा लगा रहता है ! एक अजीब सा भय रहता है ! मैं उस स्थिती को क्या नाम दुं ??? उस विषय में कोई ठोस निर्णय नही ले पा रहा हुं !
आज रात ही मैं सो रहा था तो अचानक मेरी नींद खुल गयी ! कोई खतरनाक डरावना स्वपन देखा होगा!
काली अंधेरी रात का सन्नाटा ! कहीं कोई भी आवाज नही ! मैं बिस्तर पर लेटा, आंख खोलने की हिम्मत नही हो रही थी ! जीभ तालु पर चिपक गयी ! गला सुख गया ! सारे बदन में सिहरन सी दोङ रही थी ! रोंगटे खङे थे ! दिमाग काम नही कर रहा था ! मैं बिस्तर पर बैठ गया तो ऐसे बैठा जैसे कि दीवार पर किसी ने चिपका दिया हो !
मैंने अपने कमरे में सामने ही मंदिर बनाया हुआ है ! अचानक मेरी नजर मंदिर पर पङी तो मुझे साफ स्पस्ट दिखाई दिया की अंधेरे और सन्नाटे में एक कोई बालक घुटनों के बल हंसता हुआ मेरी तरफ आ रहा है ! उसे देखते ही मुझे कुछ होश सा आया ! और मेरे आंसु निकलने लगे ! मुझे नही मालुम की वह कोन था ?? लेकिन उस पर नजर पङते ही जो मेरे सारे बदन में जङता सी हो गयी थी वह दुर हो गयी ! और चेतनता आ गयी मैंने उठकर पानी पिया और धिरे धिरे सो गया ! सुबह जब उठा तो तब तक भी बदन टुटा सा था ! लेकिन वह हालात मैं अब भी याद करता हुं तो रोंगटे खङे हो रहे हैं ! मुझे कुछ समझ नही आ रहा था, की वह सब क्या था ?? ऐसा भी नही था की मैं सो रहा हुं ! मैं तो अपने बिस्तर पर बैठा था आंखे खोलकर !वह बालक कोन था जो मंदिर की तरफ से मेरी तरफ हंसता हुआ आ रहा था मैं इतना ज्यादा डरा कैसे ???
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर-9210650915
शनिवार, 1 अगस्त 2009
आत्महत्याएं- क्यों
आत्महत्या! सोचकर भी डर सा लगता है लेकिन आजकल हर तरफ इन वारदातों को लेकर भारत ही नही पूरा विश्व ही भयभीत है, डरा हुआ है। हर समाचार पत्र में, हर चैनल में, रोज दो चार आत्महत्या की खबर दिख ही जाती हैं। मरना कोई नहीं चाहता है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह जिये ओर जीवन का आनंद ले, मौज करे। अपने मां बाप भाई बहन सगे सम्बंधी के साथ प्रेम से जीना चाहता है। जो मां बाप आज तक बच्चे की हर इच्छा पूरी करते थे, हर सुख सुविधा ऐशो-आराम का ध्यान रखते थे; फिर अचानक क्या हुआ, कौन सा संकट आ गया, जो आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। व्यक्ति जिनके लिये धन दौलत सोहरत इज्जत कमाना चाहता है, उनको छोड़ने का कैसे करता है संकल्प। सुबह से सांय, सांय से रात तक कोल्हू के बैल की तरह पिलता रहता है। हर वर्ष आंकड़ों के मुताबिक हजारों बच्चे आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। एक कहावत है कि आत्म हत्या कायर लोग करते हैं। लेकिन नही, आत्म हत्या करने में बहुत हिम्मत चाहिए। मैं आपको आंकड़ो के आधार पर नही अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ। मैं 8-10 ऐसे आदमीयों को जानता हूँ जिन्होने आत्म हत्या की। कई बार आदमी अपने आप को परिस्थतियों के सामने इतना मजबूर पाता है कि चारो ओर कहीं कुछ दिखाई ही नहीं देता।
आज जिस तरह आत्महत्या नाम की यह बिमारी लोगों को अपने शिकंजे में कसती जा रही है, बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है। इतना भय ओर हानि देश में ओर किसी भी कारण से नही जितनी बढ़ती आत्महत्या से है। मनोवैज्ञानिक लोग, ड़ाक्टर लोग ओर सर्वे करने वाले अपने अपने अलग कारण बताते है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि जब कहीं से भी कोई प्रकाश की किरण नजर नही आती और व्यक्ति जीवन से बहुत उदास हो जाता है। किसी से कुछ कह नही सकता, बता नही सकता क्योंकि लोग तो रो कर पूछते हैं और हंसकर उड़ाते है। किसी के सामने अपनी व्यथा कहकर और हंसी उड़वानी है। बढ़ती आत्महत्या या अपराध का कारण शिक्षा की कमी, गरीबी या कमजोरी नही है। देखा जाय तो शिक्षक, सैनिक, विद्यार्थी, अमीर, गरीब, औरत, मर्द सब अपनी जीवन लीला समाप्त करके आंकड़ो में एक ओर आत्महत्या जोड़ देते है। व्यक्ति कोई भी कर्म करता है तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मन की होती है। कर्म चाहे किसी भी भाव से भावित रहा हो; काम का संचार हो, भय का, क्रोध, वासना, खुशी, दुख कुछ भी हो; सीधा सम्पर्क हमारे मन से होता है। तो आत्महत्या भी हमारे मन में उत्पन होने वाले भाव का ही एक अंग है। हर व्यक्ति चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी बात मानें, इज्जत करें, उससे प्रेम करें। जो भी हम काम करते अपने लिये नही अन्य लोगो के मध्य अपनी जगह बनाने के लिये भरसक प्रयास करते हैं, चाहे झूठ भी बोलना पड़े। यह सोचते है कि देखो अगर यह हो गया तो लोग मेरी इज्जत करेंगे, मेरा समाज में नाम होगा सब मेरी वाह वाही करेंगे।
बीबी बच्चे मां बाप यार दोस्त इन सब के लिये कितना करता है फिर भी आत्महत्या.............................. इस विषय पर गहरा चिन्तन करना पड़ेगा....... श्री मदभगदगीता में एक श्लोक है......विषयों का चिन्तन करने वाले पुरूष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से कामना उत्पन होती है, कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध पैदा होता है। क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता, स्मृति में भ्रम होने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है, बुद्धि का नाश हो जाने पर पुरूष अपनी स्थिति से गिर जाता है और गिर कर वह व्यक्ति हत्या, डकैती, बलात्कार या आत्म हत्या कुछ भी कर सकता है। मेरा मानना है कि आज यह श्लोक पूरे विश्व की वर्तमान हालत बयान कर रहा है। जिस तरह भारत ही नही सारे विश्व में अपराध, हिंसा, अशांति और आत्महत्या में वृद्धि हो रही है, उसका यही एक कारण है। बात चल रही है आत्महत्याओं की तो सबसे पहले उस संवेदनशील समय से पहले का विचार करना होगा । मैं आपके सामने कुछ केस की थोड़ी हकीकत बताउंगा। एक आदमी था निर्मल सिंह, खूब नशा करता था। एक दिन रात को मैं उठा तो देखा की 3.30 बजे स्मैक पी रहा है। मैंने कहा, “चाचा! अब तो सोने का समय है।“ उसने मुझे कहा कि “शिवा बाबा! जीवन में हर प्रकार की मौज लेने दो ना” और उसने 4.00 बजे फांसी लगा ली। राजेश, पिता का नाम ओमप्रकाश; तिहाड़ जेल में था। रोज वहाँ सबके साथ हंसी मजाक करता रहता था। अचानक फांसी लगा ली। वह भी चरस आदि का नशा करता था। एक आदमी पेसे से डाक्टर था। एक दिन उसकी बीबी से कुछ कहा सुनी हुई और लटक गया पंखे पर। एक ओर लड़का था जो एक लड़की से प्यार करता था और अकेले में बैठकर ऐसे बातें करता था कि जैसे वह सामने ही बैठी हो। उसके घरवालों ने उसे कहा कि तेरी शादी इसके साथ नही हो सकती, तो एक दिन रात को फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अगले दिन उसके बिस्तर पर उस लड़की के कई पत्र मिले जिन्हे शायद वह सारी रात पढ़ता रहा होगा। जैसे मैंने अभी तक इतनी आत्महत्याओं का अध्ययन किया तो हर केस में कुछ एक बात समान मिलती है। जैसे कि जो भी इतना खतरनाक कदम उठाता है, उन संवेदनशील पलों से पहले बिलकुल अकेला रहकर, डूबा रहता है, वह खो जाना चाहता है। अपने को मिटा देता है इस समाज, सभी रिश्तों और हर बन्धन से। वह अपने को कहीं डुबा देना चाहता है, चाहे वह नशे में डूबे या फिर किसी की यादों में। उसमें डूबकर अनुभव करता है कि इस वस्तु या व्यक्ति के अलावा मेरा कोई नहीं है। एक बार मेरे सामने भी यह मनहूस घड़ी आयी थी। जहर की शीशी हाथ में थी। आधा घण्टा दरवाजा बंद करके रोता रहा फिर शीशी हाथ में ली, मन में यही विचार था कि वह नहीं तो मेरा कोई नहीं है, तो क्या करूँगा जीकर। इसी बीच एक ऐसा चमत्कार हुआ कि मुझे जीवन मिल गया। मैने अपनी घड़ी में 9 बजे का अलार्म भर रखा था। वह चित्कार उठी। बस सारा नक्शा ही बदल गया। वो ऐसे नाजुक पल होते हैं जिनमें व्यक्ति इतना बड़ा फैसला कर लेता है और वह क्षण बस कुछ ही सैकेंडों का होता है। उस पल अगर कोई बीच में आ जाये तो कुछ नहीं होगा। वह नाजुक पल जब आता है तो व्यक्ति आत्महत्या ही नहीं; हत्या, बलात्कार, कुछ भी कर सकता है। यह मन बड़ा चंचल है। एक क्षण में इधर उधर हो जाता है। यह चाहता है कि कोई इसे प्यार करे और आज व्यस्त युग में मनुष्य के पास हर चीज है, बस समय नहीं है। घर में बच्चे कब तक अकेले रहें। उन्हें तो प्यार चाहिए, अपनापन चाहिए। कोई उनसे बात करे, उनके दिल की पूछे। लेकिन मम्मी पापा के पास समय नही होता, 5-10 मिनट के लिये खाने के समय बात करते हैं तो बस यही पूछते हैं कि कैसी पढ़ाई चल रही है, क्या चाहिए, बेटा तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना है, पढ़ाई का ध्यान करना और जाकर सो जाते हैं। बच्चा सुन सुन कर दुखी हो जाता है; परेशान हो जाता है; झल्ला जाता है। जब घर में उसे प्यार नहीं मिलता, कोई उनके दिल की आवाज नही सुनता तो वह कहीं और दूसरी जगह प्यार खोजता है। उस व्यक्ति को खोजता है जो उसको प्यार दे सके, उसकी दिल की आवाज सुन सके। तो वह अपने दोस्तों से सम्पर्क बढ़ाता है और किसी ना किसी में वह तस्वीर देखता है कि यह मेरी दिल की आवाज सुनेगा। और यह मन बड़ा चालू है, विपरीत लिंग की ओर ही प्रभावित होता है। लेकिन यह कार्यक्रम ज्यादा नही चलता। हर व्यक्ति रोज एक सा पाकर भी बोर हो जाता है और जिसे मन अपना समझता है, वह कहीं और भी अपना ठिकाना बना लेता है। जब वह मासूम मन उसे देखता है तो सहन नहीं कर पाता क्योंकि पहले तो अपने मां बाप से नहीं मिला प्यार; बाहर भी खोजा लेकिन जितना वह मासूम मन चाहता है उतना नही मिल पाता। बस टूट जाता है, टूट गयी सारी उम्मीदें। वह अब दुख ओर कष्ट के कुऐं में पड़ा रहता है। अब वह हर तरफ से निराश और मायूस होकर कोई ऐसा रास्ता खोजता है जो सहज और सरल हो। जैसा हम सब जानते है कि दुख ओर कष्ट से निकलने का सबसे आसान तरीका मानते हैं नशा................................. अब वह मन मां-बाप, यार-दोस्त सबसे निराश हो चुका और सिर्फ नशे में ही अपने जीवन का आनन्द सुख समझने तथा अनुभव करने लगता है। यहाँ कई लोग अपने को उस अकेलेपन ओर मायूसी से बचाने के लिये लड़ाई झगड़ा, हिंसा और अपराध में लिप्त कर लेते है। नशे में डूबा हुआ आदमी अपनी वास्तविक स्थिति से गिर जाता है, नशे के सागर या फिर किसी में अपनी तस्वीर देखता हुआ बाकी सारे जहाँ से अलग होकर आत्महत्या में ही आत्मीक सुख और जीवन का आनन्द समझता है और इस संसार में जो भी उसके अपने मां, बाप, भाई, बहन, यार-दोस्त, घर, पैसा, सोहरत सबको अपना नहीं मानता। वह बस अकेला है। यह जग दुश्मन है। यहां इस स्थिति पर आकर वह दुखी मन हत्या भी कर सकता है, बलात्कार औरर आत्महत्या भी। यह भेड़चाल नही है और कोई किसी के बहकावे में आकर भी आत्महत्या नहीं करता। अर्जुन भी यही कह रहा था कि हे कृष्ण! अगर ये सब ही मर गये तो मैं किसके लिये राज्य करूंगा। मेरा मरना भी कल्याण का होगा। जब मेरा परिवार नहीं रहेगा तो मैं जीकर क्या करूंगा। भगवान जानते थे कि ऐसी परिस्थति होगी भविष्य में तो पहले ही इससे बचने के लिये वह रास्ता इस दुनिया को दिया जो हमें इन सभी बीमारियों से मुक्ति दे सकती है वह है श्री मदभगवदगीता!
शिवा तोमर 09210650915
रविवार, 19 जुलाई 2009
मां की ममता
मां .................मां शब्द्ध में ही कितना प्रेम, रस, करूणा और ममता सी झलकती है ! कितना भी व्याकुल हो कितना भी दुखी हो व्यक्ति, एक बार आंख बंद करके लम्बा सांस लो और मां बोले तो देखो कितना अच्छा लगता है कितना हल्का से होता है मन.....
यही कारण है जब भी कोई ज्यादा दुख आता है तो मुंह से अनायास ही निकलता है
मां.........................................
किसी के समक्ष भी यह एक अक्षर लिखा आ जाये तो आंखो के सामने वही मां के दृष्य घुमने लगते हैं ! कितना दुख उठाती है ! कितना कष्ट सहती है ! खुद रातों का जागकर बच्चों की नींद की चिंता करती है !
एक बार बहुत दिनों की बात हो गयी जब में 7 या 8 साल का था ! बहुत बीमार पङ गया ! डाक्टर दवाई दे रहे थे, लेकिन पता नही क्यों ?? कुछ आराम नही लग रहा था ! रात को तेज वुखार और मैं रोता जा रहा था ! पिताजी भी चुप कराने में लगे थे लेकिन
उन्होने सोचा की कहीं ऊपरी हवा का कोई चक्कर तो नही है ! किसी से झाङा फुंकी कराकर भी लाये लेकिन कोई आराम नही !
पिताजी गुस्से में कहने लगे, इसने सारे घर को सिर पर उठा रखा है इसके कारण सारा घर परेशान है उठाकर बहार फैंक दो ! यह होते ही क्यों नही मर गया था ??
यह पिछले जन्म का कोई हमारा दुष्मन है ! जो हम सबकी नींद उङा दी है !
गुस्से में ना जाने क्या क्या कह रहे थे ????
लेकिन मेरी मम्मी मुझे गोद में छाती से लगाकर रोये जा रही थी ! आज भी मुझे वह पल ऐसे याद है जैसे कल ही हुआ हो !
पिताजी तो दुसरी जगह जाकर सो गये ! लेकिन मम्मी रात भर मेरे सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रखती रही ! सारी रात जागकर मुझे सुलाने की कोशीश करती रही !
खुद कुछ नही खाया मुझे चाय में रोटी भीगोकर खिलायी !
आज में याद करता हुं उस बात को तो आंखे आंसुओं से भर आती हैं !
बुखार तेज था जो थोङा सा खाया वो ही उल्टा आ गया!
उल्टी आयी तो मम्मी के पास कोई कपङा नही था, अपनी साङी के आंचल से ही मेरा मुंह पोंछ दिया !
पांच रूपये मेरे ऊपर से ऊतारकर मंदिर में रखे, और भगवान से कहा की मेरे बेटे की रक्षा करो प्रभु ! अपने सुख की अपने आराम की अपनी नींद की चिंता नही की चिंता की तो अपने बेटे की बस...............
यह तो मैं अपनी बात रहा हुं ऐसा नही है कि मेरी ही मां ने यह सब किया है ! हर मां ऐसे ही करती है अपने बच्चे की खातिर सब कुछ त्याग देती है !
एक हमारे इधर कहावत है बनी की बहन बिगङी की मां .....
दोस्तों जितने भी रिस्ते नाते हैं, जब भी बुरा समय आता है, सब भुल जाते हैं ! लेकिन मां तो उसका बच्चा चाहे कैसी भी हालात में हो उसे प्यार ही करती है ! उसकी लम्बी उम्र की दुआ ही मांगती है ! उसका कल्याण चाहती है !
इस दुनिया में हमारा कुछ भी वजुद नही है ! हमें इस धरती पर लाने वाली मां ही है !हम किसी को 100 रूपये दे देते हैं तो कितनी बार एहसान जता देते हैं ! और मां हमें अपने रक्त से सिंचकर ही बङा करती है ! जब तक बच्चा गर्भ में रहता है मां अपने सारे स्वाद छोङ देती है वो ही खाती है जो बच्चे के लिए अच्छा हो चलने फिरने के लिए भी लाचार हो जाती है कितना कष्ट कितनी पीङा सहती है ! मैं किसी एक की व्यक्ति की बात नही कर रहा ! सभी के लिए कह रहा हुं ! अगर हम लोग अपने शरीर की खाल भी बनवा कर मां की जुती बनवां दे तो भी हम मां के कर्ज से मुक्त नही हो सकते !
बङा दुख होता है मुझे ! बहुत रोना आता है ! जब देखता हुं की आजकल के बच्चे मां बाप को किस तरह दुखी करते हैं ! यहां तक की मार भी देते हैं ! घर से निकाल देते हैं ! अभी की घटना है ! एक लङके ने अपनी विधवा मां को मर्त घोषित करके घर से निकाल दिया वो बेचारी दर दर की ठोकरें खा रही हैं !
अरे नादान लोभ भ्रष्ट मानव चार पांच बच्चों को अपने हाथों से निवाला खिला खिलाकर पाल पोसकर बङा कर देती है मां ! तो क्या हम बेटे इस लायक भी नहीं हैं की मां को अपने हाथ से निवाले की खिलाने की बात नही कर रहा प्रेम से दो वक्त का खाना दे सके उसकी खैर खबर ले सकें !
मां तो मरते दम तक अपने बच्चे की जान की रक्षा करती है ! उसकी सलामती चाहती है ! थोङे दिनों पहले की बात है ! एक घर में आग लग गयी थी ! पुरा परिवार अंदर था ! आग ने सबको इतनी बुरी तरह से सबको अपनी चपेट में ले लिया की कोई भी बहार ना जा सका ! सब अंदर ही जलने लगे ! तो मां की गोद में उसका दो एक साल का बेटा था ! मां ने अपनी जान की परवाह नही की, और अपने लाल की जान बचाने के लिए खिङकी से बहार फैंक दिया था !
हर मां अपने बच्चे को इतना ही प्यार करती है ! अपनी जान दे सकती है ! स्वयं कष्ट उठा लेगी यातनाएं सह लेगी ! लेकिन कभी भी ये नही चाहती की उसका बच्चा दुखी हो बैचेन हो ! दोस्तों मेरा आपसे बस इतना अनुरोध है, की जिसने इतने कष्ट उठाकर हमें जवान किया इस लायक बनाया कि अपने पैरो पर चल सके ! सबको याद होगा की बच्चा कितनी बार गिरता है ! मां भागकर ये भी नही देखती की सिर से पल्लु गिर गया या चुल्हे पर रोटी जल रही है ! उसको कुछ नही दिखाई देता बस अपने बच्चे की चीख सुनकर पागल हो जाती है ! क्या कभी उस मां ने इस बात की कल्पना की होगी की आज जिसके थोङे से रोने पर तेरे आंसु बह जाते हैं वो तेरे लिए क्या करेंगे मां तो ऐसी होती है !
कितनी भी तपती धुंप हो
या हों लु के थपेङे ……..
अपने आंचल में छुपा लेती है
एक ममता भरा चुंबन देती गाल पर
सारी पीङा हर लेती है............
एक ना आंसु बहे मेरे लाल का
उससे पहले ही आंसु बहा लेती है
हाथ जोङकर प्रार्थना करता हुं, की कभी भी मां को नही भुलना ! अरे नादान दोस्तों कृष्ण भगवान से बङे तो नही हैं हम लोग ! एक बार यसोदा मैया उनसे थोङी नाराज हो गयी थी तो भगवान के भी आंसु निकल आये थे ! लेकिन हम कितने कठोर हो गये है ! की अपनी मां के आंसुओं को भी देखकर नही पिंघलते ! जिस बेटे की मां खुश नही होती उसे नरक में भी जगह नही मिलती !
होते हैं बदनशीब जो भुल जाते हैं
उसे
जिसने खुद कष्ट उठाये
पीङा सही रात भर जागती रही
एक आवाज सुनकर अपने लाल की
नींद उङ जाती थी
शरद रात गीला बिस्तर
लेकिन बच्चे को सुखे में सुलाती थी
जीवन में मिल जाती है हर चीज
बस मां नही मिल पाती है
दोस्तों मैं लिख तो रहा हुं ! लेकिन क्या लिखुं मां की खुबियां मुझे तो कुछ समझ नही आता ! मैं तो भगवान से एक ही हुआ करता हुं की चाहे मुझे कैसी भी हालात में रखो बस आप और मेरी मां का प्रेम मिलता रहे ! आज भी मुझे वही याद रहता है जब खेत में गरमीं की तेज चिलचिलाती धुंप और मम्मी पिताजी खेत में काम करते थे ! और आते समय जब गरमीं और धुंप से मैं व्याकुल हो जाता था ! तो मम्मीजी मेरे सिर पर अपनी साङी का पल्लु ढक देती थी ! उस आंचल में ना कोई पंखा होता ना कोई कुलर फिर भी चिलचिलाती धुंप और गरमीं से कितनी राहत मिलती थी !
आज मेरे पास भगवान के दिया सब कुछ है बस वह आंचल सिर पर नही है ! यही कारण है कि थोङी सी परेशानी में व्याकुल हो जाता हुं बैचेन हो जाता हुं !
जब कभी अब भी घर पर जाता हुं, तो मां स्नेह प्रेम और ममता से सिर पर हाथ रखती है तो ऐसा लगता है जैसे सारे जहां की खुशीयां मेरे ही पास हैं !
सारी दुनिया में भागता रहा
ढुंढता रहा उस आंचल की छांव को
लेकिन
नही मिल सका
नही मिल सका
नही मिल सका
लिख रहा हुं
रो रहा हुं
उस आंचल के पाने को
लेना पङेगा नया जन्म
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर 09210650915
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
मां का आंचल
तपती गर्मी
चिचिलाती धुंप
लु के थपेङे
बारिश की फुहार
तुफान की मार
कभी कोहरा तो
कभी शीत लहर
क्या करूं कहां जाऊं
समझ नही आता बहुत हुं बैचेन
भागता रहता हुं बचता रहता हुं,
लेकिन दिल को नही है चैन ....
हर समय रहता हुं भयभीत
अनजाना डर सताता है.........
भागता रहता हुं हर क्षण
मन बहुत घबराता है....
कितना टुटा कितना बिखरा
बिखरता ही गया..........
रोया बहुत बिलबिलाया
कहीं ना मिला बसेरा..
कभी अपनों ने मारा
कभी गैरों ने लुटा
कभी खुद गिर गया
तो कभी समय ने पीटा
विपत्तियां आती रही
अलगाव होते रहे
अपने सब बिछुङते गये
याद करता हुं उस पल को
जब
करूणा, ममता, स्नेह और
प्रेम का छाता
मां का आंचल
मेरे सिर पर होता था
जब से छुटा है वो आंचल
भय
असुरक्षा
व्याकुलता
अशांति
पीङा
दुख
और आंसु
और कुछ नही मिला जीवन में..
होकर बच्चा बैचेन जब भी बिलबिलाता है
सुन आवाज दिल के टुकङे की
मां का दिल भर आता है
कितनी भी तपती धुंप हो
या हों लु के थपेङे
अपने आंचल में छुपा लेती है
एक ममता भरा चुंबन देती गाल पर
सारी पीङा हर लेती है............
एक ना आंसु बहे मेरे लाल का
उससे पहले ही आंसु बहा लेती है
सारी दुनिया में भागता रहा
ढुंढता रहा उस आंचल की छांव को
लेकिन
नही मिल सका
नही मिल सका
नही मिल सका
लिख रहा हुं
रो रहा हुं
उस आंचल के पाने को
लेना पङेगा नया जन्म
होते हैं बदनशीब जो भुल जाते हैं
उसे
जिसने खुद कष्ट उठाये
पीङा सही रात भर जागती रही
एक आवाज सुनकर अपने लाल की
नींद उङ जाती थी
शरद रात गीला बिस्तर
लेकिन बच्चे को सुखे में सुलाती थी
जीवन में मिल जाती है हर चीज
बस मां और मां का आंचल नही मिल पाता ही
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर- 09210650915
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
-------मैं कोन हुं-------
यह सवाल अपने आप में ही सुनने वालों का दिमाग चकरा देता है ,
मैं कोन हुं ???? फलां आदमी, फलां बाप के बेटा, एक व्यापारी, एक शिक्षक या अधिकारी आखिर कोन हुं मैं ??
ये जितने भी नाम लिए हैं ये रिस्तों ओहदों के नाम हैं !
यह आग पानी हवा आकाश से बना हाड मांस का पिंड आखिर कोन हुं मैं ???
यह अजीब सा सवाल एक दिन मैं सत्संग में बैठा था वहीं पर किसी ने पुछा !
उनमें से एक ने कहा की सब स्वयं से ही यह प्रश्न करो की मैं कोन हुं !
तो कईयों ने जबाब दिये कि हम प्रमात्मा के अंश आत्मा हैं ... हम विराट प्रभु का एक छोटा सा अंश हैं !
लेकिन मैं इस जबाब से संतुष्ट नही हुआ, क्योंकि जब हमें पता है कि हम प्रमात्मा के अंश हैं और सारा दिन एक दुसरे की निंदा चुगली दुसरे की अनिष्ट की भावना अधर्म पुर्वक धनादि का संग्रह करते रहते हैं, वासना में भ्रमण करते रहते हैं !
फिर हम कैसे प्रमात्मा के अंश हो सकते हैं ?????
सत्संग में बैठे सब ज्ञानी स्वयं को आत्मा समझते हैं फिर भी एक दुसरे के खुन के प्यासे ....
मैंने विचार किया की ये लोग जो बता रहे हैं वो छुट है, या फिर जो कह रहे हैं वो झुट है!
मैं इस विषय पर गहरा चिंतन करता रहा लेकिन कोई परिणाम नही निकला !
मेरी स्थिती ऐसी हो गयी जैसे कोई नदी के एक किनारे पर बैठे दुसरे किनारे की बात कर रहा जहां हम कभी गये ही नही उसकी शोभा का वर्णन कर रहा हो ! जिसको सिर्फ हमने उधर से आने वाले यात्रियों से सुन रखा था उसे ही गाये जा रहे हैं ! और इस चर्चा पर दो ढाई घंटे विचार किया ! बाद में आपस में कहने लगे कि वाह भई वाह आज का सत्संग बहुत अच्छा रहा गम्भीर चर्चा थी !
वो सब तो वाह वाह कर रहे थे, लेकिन मुझे तो और ज्यादा बैचेनी सी होने लगी थी !
रात को खाना खाकर लेट गया लेकिन सवाल वही कि मैं कोन हुं ????
मेरा विवेक मेरी बुद्धि इतनी विशाल नही है कि जो इतनी बङी समस्या का समाधान खोजने में सक्षम हो .....
मैंने टुकङे टुकङे करके इस समस्या को हल करने की कोशिश की .. जैसे मैं शरीर हुं लेकिन हाथ पांव नाक पेट पैर जांघ सिर को हम अलग अलग देखे तो वह भी मैं नही हुं ! फिर थोङा गहराई में गया सांस तो वहां से भी लगा की यह भी में नही हुं...
दिल आंत फेफङे अखिर कोन हुं मैं ???
मैंने सोचा की चलो ये बात ये छोङो जैसे हम दिल्ली से मुम्बई चले जायें तो लोग वहां हमें नही जानते बस ये जानते हैं कि फलां आदमी दिल्ली से आया है... उसकी पहचान जगह से बन गयी ....
मैंने भी यही विचार किया कि मैं का ज्ञात यानि की सही पहचान नही तो प्रथम यही देख लो कि यह मैं आया कहां से है ??? शायद कोई सुराग वहीं से हाथ लग जाये !
चिंतन किया जो यह इतना बङा शरीर हट्टा कटटा जवान दिखाई दे रहा है.यह पहले बहुत मुलायम सा था उसके पहले मां के गर्भ में,, गर्भ से पहले पिता के विर्य में फिर वही मनुष्य.................... आखिर क्या है ये पहेली ?????
इन सब चिंतन मनन के बाद एक बात सामने आयी कि जो लोग इतनी आसानी से कह रहे थे वो सब एक दुसरे की कही बात को ही दोहरा रहे थे कुछ यथार्थ का ज्ञान नही है...
दुसरी बात यह शरीर हाथ पांव मन बुद्धि अंह क्रोध सांस कुछ भी मैं नही हुं जो मैं है वो इन सबसे अतीत है सबसे अलग है....
जैसे बिजली के खम्बे में कांच लोहे का टुकङा अन्य चीजें जो भी हैं वह उसमें बहता प्रकाश नही है ! वह सबसे सर्वथा अलग थलग है !
तो हमारे इस हाड मांस के शरीर में भी मैं कोई अलग ही चीज है !
बस यही विचार करना है कि वह कोन है !
जैसे इस शरीर पर कोई प्रहार करे तो दर्द के मारे बिलबिला उठता है, कोई प्यार से छुए तो प्रेम की भावना या बदन में स्पंदन तरंगीत सा अनुभव होता है !
जहां चोट लगी है वह भी मैं नही हुं जहां पर तरंगे सी उठी वह भी मैं नही हुं !
उन सत्संगियों की बात मात्र उनकी बातो से मैं संतुष्ट नही हुआ क्योंकि वो तो सब यही कह रहे थे कि कि हम प्रमात्मा के अंश हैं जब सभी जीवों के अंदर प्रमात्मा है तो यह जानते हुए क्यों एक दुसरे पर अत्याचार कर कहे हैं क्यों एक दुसरे के खुन के प्यासे हो रहे हैं !
मैं विचार करता करता मानसिक रूप से बहुत थक चुका था अचानक गीता का एक श्लोक याद आया न हन्यते हन्यमानें शरीरे अर्थात शरीर के मारे जाने पर भी यह नही मारा जाता ... गीता पर पुर्ण विस्वास है क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण की दिव्य वाणी है !
लेकिन ये सब मन बुद्धि से ऊपर की बात है और हम मन बुद्धि तक ही सीमित हैं !
हम मान सकते हैं कि भगवान ने कही है तो सत्य है लेकिन बुद्धि तो तर्कवादी होती है..
मैंने एक डाक्टर से बात की डा0 नवीन से पुछा की डाक्टर साहब यह बताओ मुझे की जैसे आदमी की आंख निकल जाये तो अंधा हो जाता है कान के खराब होने से बहरा हो जाता है.. तो जब आदमी मरता है तो इस हमारे शरीर के अंदर से कोन सा हिस्सा कम होता है !
डाक्टर साहब ने बङी गम्भीरता से कहा शिवा आज तक वैज्ञानिक भी इस बात का पता नही लगा पाये, कि इस शरीर में ऐसा कोन है जिसकी साहयता से देखता सुनता बोलता खाता पीता चलता स्वांस लेता है उसके निकलते ही अल्प समय पश्चात शरीर जो इतना सुन्दर था उसमें से बदबु आने लगती है !
डाक्टर साहब की बात मेरे दिमाग में आयी की इस शरीर में हाथ पैर सिर मन बुद्धि ह्रदय फेफङे के अलावा कोई है जो इसमें रहता है असली मैं वही है भगवान भी कहते हैं की न हन्यते हन्यामानें शरीरे शरीर के मारे जाने पर भी वह नही मारा जाता !
अगले दिन सुबह मैं ध्यान में बैठा हुआ उस सत्य को परखने की कोशिश करने लगा जिससे मैं के विषय में कुछ जानकारी हासिल हो सके कि मैं कोन हुं ????
ज्यादा देर तक बैठे बैठे पैर दुखने लगे सुन्न हो गये कमर में दर्द हो गया ! बुद्धि को तो इस बात की जानकारी है की शरीर सुन्न हो रहा है कमर में दर्द हो रहा है लेकिन कोई ओर भी है जिसे यह दर्द नही हो रहा है !
मेरी समझ में आ गया की मैं तो पता नही कोन हुं लेकिन जो में देख रहा सुन रहा कह रहा हुं वह इस शरीर से अलग है ! पता नही किसका अंश है, लेकिन यह बात सत्य है की कोई साक्षी है जो हर पल इस शरीर में होने वाली घटना पर ध्यान रखता है ! लेकिन कुछ कहता नही !
जैसे एक बाग का माली बाग में तो बैठा है सब कुछ देख रहा है लेकिन किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नही करता अच्छे या बुरे का मैं वही हुं...
मुझे अभी तक नही पता लगा की आया कहां से हुं जाना कहां है ???????
भगवान से प्रार्थना करता हुं मुझ पर अपनी असीम कृपा करो जिससे मैं यह पहेलियां जान सकुं...........
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर- 9210650915
मैं कोन हुं ???? फलां आदमी, फलां बाप के बेटा, एक व्यापारी, एक शिक्षक या अधिकारी आखिर कोन हुं मैं ??
ये जितने भी नाम लिए हैं ये रिस्तों ओहदों के नाम हैं !
यह आग पानी हवा आकाश से बना हाड मांस का पिंड आखिर कोन हुं मैं ???
यह अजीब सा सवाल एक दिन मैं सत्संग में बैठा था वहीं पर किसी ने पुछा !
उनमें से एक ने कहा की सब स्वयं से ही यह प्रश्न करो की मैं कोन हुं !
तो कईयों ने जबाब दिये कि हम प्रमात्मा के अंश आत्मा हैं ... हम विराट प्रभु का एक छोटा सा अंश हैं !
लेकिन मैं इस जबाब से संतुष्ट नही हुआ, क्योंकि जब हमें पता है कि हम प्रमात्मा के अंश हैं और सारा दिन एक दुसरे की निंदा चुगली दुसरे की अनिष्ट की भावना अधर्म पुर्वक धनादि का संग्रह करते रहते हैं, वासना में भ्रमण करते रहते हैं !
फिर हम कैसे प्रमात्मा के अंश हो सकते हैं ?????
सत्संग में बैठे सब ज्ञानी स्वयं को आत्मा समझते हैं फिर भी एक दुसरे के खुन के प्यासे ....
मैंने विचार किया की ये लोग जो बता रहे हैं वो छुट है, या फिर जो कह रहे हैं वो झुट है!
मैं इस विषय पर गहरा चिंतन करता रहा लेकिन कोई परिणाम नही निकला !
मेरी स्थिती ऐसी हो गयी जैसे कोई नदी के एक किनारे पर बैठे दुसरे किनारे की बात कर रहा जहां हम कभी गये ही नही उसकी शोभा का वर्णन कर रहा हो ! जिसको सिर्फ हमने उधर से आने वाले यात्रियों से सुन रखा था उसे ही गाये जा रहे हैं ! और इस चर्चा पर दो ढाई घंटे विचार किया ! बाद में आपस में कहने लगे कि वाह भई वाह आज का सत्संग बहुत अच्छा रहा गम्भीर चर्चा थी !
वो सब तो वाह वाह कर रहे थे, लेकिन मुझे तो और ज्यादा बैचेनी सी होने लगी थी !
रात को खाना खाकर लेट गया लेकिन सवाल वही कि मैं कोन हुं ????
मेरा विवेक मेरी बुद्धि इतनी विशाल नही है कि जो इतनी बङी समस्या का समाधान खोजने में सक्षम हो .....
मैंने टुकङे टुकङे करके इस समस्या को हल करने की कोशिश की .. जैसे मैं शरीर हुं लेकिन हाथ पांव नाक पेट पैर जांघ सिर को हम अलग अलग देखे तो वह भी मैं नही हुं ! फिर थोङा गहराई में गया सांस तो वहां से भी लगा की यह भी में नही हुं...
दिल आंत फेफङे अखिर कोन हुं मैं ???
मैंने सोचा की चलो ये बात ये छोङो जैसे हम दिल्ली से मुम्बई चले जायें तो लोग वहां हमें नही जानते बस ये जानते हैं कि फलां आदमी दिल्ली से आया है... उसकी पहचान जगह से बन गयी ....
मैंने भी यही विचार किया कि मैं का ज्ञात यानि की सही पहचान नही तो प्रथम यही देख लो कि यह मैं आया कहां से है ??? शायद कोई सुराग वहीं से हाथ लग जाये !
चिंतन किया जो यह इतना बङा शरीर हट्टा कटटा जवान दिखाई दे रहा है.यह पहले बहुत मुलायम सा था उसके पहले मां के गर्भ में,, गर्भ से पहले पिता के विर्य में फिर वही मनुष्य.................... आखिर क्या है ये पहेली ?????
इन सब चिंतन मनन के बाद एक बात सामने आयी कि जो लोग इतनी आसानी से कह रहे थे वो सब एक दुसरे की कही बात को ही दोहरा रहे थे कुछ यथार्थ का ज्ञान नही है...
दुसरी बात यह शरीर हाथ पांव मन बुद्धि अंह क्रोध सांस कुछ भी मैं नही हुं जो मैं है वो इन सबसे अतीत है सबसे अलग है....
जैसे बिजली के खम्बे में कांच लोहे का टुकङा अन्य चीजें जो भी हैं वह उसमें बहता प्रकाश नही है ! वह सबसे सर्वथा अलग थलग है !
तो हमारे इस हाड मांस के शरीर में भी मैं कोई अलग ही चीज है !
बस यही विचार करना है कि वह कोन है !
जैसे इस शरीर पर कोई प्रहार करे तो दर्द के मारे बिलबिला उठता है, कोई प्यार से छुए तो प्रेम की भावना या बदन में स्पंदन तरंगीत सा अनुभव होता है !
जहां चोट लगी है वह भी मैं नही हुं जहां पर तरंगे सी उठी वह भी मैं नही हुं !
उन सत्संगियों की बात मात्र उनकी बातो से मैं संतुष्ट नही हुआ क्योंकि वो तो सब यही कह रहे थे कि कि हम प्रमात्मा के अंश हैं जब सभी जीवों के अंदर प्रमात्मा है तो यह जानते हुए क्यों एक दुसरे पर अत्याचार कर कहे हैं क्यों एक दुसरे के खुन के प्यासे हो रहे हैं !
मैं विचार करता करता मानसिक रूप से बहुत थक चुका था अचानक गीता का एक श्लोक याद आया न हन्यते हन्यमानें शरीरे अर्थात शरीर के मारे जाने पर भी यह नही मारा जाता ... गीता पर पुर्ण विस्वास है क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण की दिव्य वाणी है !
लेकिन ये सब मन बुद्धि से ऊपर की बात है और हम मन बुद्धि तक ही सीमित हैं !
हम मान सकते हैं कि भगवान ने कही है तो सत्य है लेकिन बुद्धि तो तर्कवादी होती है..
मैंने एक डाक्टर से बात की डा0 नवीन से पुछा की डाक्टर साहब यह बताओ मुझे की जैसे आदमी की आंख निकल जाये तो अंधा हो जाता है कान के खराब होने से बहरा हो जाता है.. तो जब आदमी मरता है तो इस हमारे शरीर के अंदर से कोन सा हिस्सा कम होता है !
डाक्टर साहब ने बङी गम्भीरता से कहा शिवा आज तक वैज्ञानिक भी इस बात का पता नही लगा पाये, कि इस शरीर में ऐसा कोन है जिसकी साहयता से देखता सुनता बोलता खाता पीता चलता स्वांस लेता है उसके निकलते ही अल्प समय पश्चात शरीर जो इतना सुन्दर था उसमें से बदबु आने लगती है !
डाक्टर साहब की बात मेरे दिमाग में आयी की इस शरीर में हाथ पैर सिर मन बुद्धि ह्रदय फेफङे के अलावा कोई है जो इसमें रहता है असली मैं वही है भगवान भी कहते हैं की न हन्यते हन्यामानें शरीरे शरीर के मारे जाने पर भी वह नही मारा जाता !
अगले दिन सुबह मैं ध्यान में बैठा हुआ उस सत्य को परखने की कोशिश करने लगा जिससे मैं के विषय में कुछ जानकारी हासिल हो सके कि मैं कोन हुं ????
ज्यादा देर तक बैठे बैठे पैर दुखने लगे सुन्न हो गये कमर में दर्द हो गया ! बुद्धि को तो इस बात की जानकारी है की शरीर सुन्न हो रहा है कमर में दर्द हो रहा है लेकिन कोई ओर भी है जिसे यह दर्द नही हो रहा है !
मेरी समझ में आ गया की मैं तो पता नही कोन हुं लेकिन जो में देख रहा सुन रहा कह रहा हुं वह इस शरीर से अलग है ! पता नही किसका अंश है, लेकिन यह बात सत्य है की कोई साक्षी है जो हर पल इस शरीर में होने वाली घटना पर ध्यान रखता है ! लेकिन कुछ कहता नही !
जैसे एक बाग का माली बाग में तो बैठा है सब कुछ देख रहा है लेकिन किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नही करता अच्छे या बुरे का मैं वही हुं...
मुझे अभी तक नही पता लगा की आया कहां से हुं जाना कहां है ???????
भगवान से प्रार्थना करता हुं मुझ पर अपनी असीम कृपा करो जिससे मैं यह पहेलियां जान सकुं...........
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर- 9210650915
बुधवार, 8 जुलाई 2009
क्यों ?? बच्चा गर्भ में उल्टा होता है
यह बात सनातन काल से हमारे पुर्वज बताते आये हैं ! कि इस जीवन के लिए जन्म और मृत्यु सबसे बङे कष्ट हैं.. सबसे बङा नरक है !
गर्भ में बच्चा रक्त मांस के लोथङे में नीचे सिर ऊपर पैर करके पङा रहते है ! एक दो दिन नही पुरे नौ महिने ! हम तो नौ मिनट में ही दुखी हो जाते हैं बैचेन हो जाते है ! 8 -9 माह इसी तरह कष्ट उठाता हुआ पिङा सहता हुआ जब बाहर आता है तो सारा शरीर लहु से सना हुआ !
जब इस मायावी संसार में पहला सांस लेता है ! तो लहु लुहान इतनी बङी पीङा से मुक्त हुआ है, जैसे आदमी कई वर्षों पश्चात कारागार से मुक्त हुआ हो, लेकिन यहां आकर संतोष की सांस नही लेता चैन से नही बैठता ! मुक्ति की खुशी में हंसता नही बल्कि रोता है चिल्लाता है.. अगर बच्चा पैदा होते ही नही रोता तो दादा दादी मां बाप डाक्टर कहते हैं की बच्चा स्वस्थ नही है !
अरे भाई इतने कष्ट भोगकर आया है थोङा चैन लेने दो !
बच्चे की रोने की चिल्लाने की आवाज से घर में खुशी की लहर दोङ जाती है....
जो भगवान हमें दिखाते हैं अपनी माया से उसका आशय समझना चाहिए
लेकिन उसकी माया को समझना बङा दुस्तर है ! वो तो माया पति हैं हम माया के अधिन हैं !
कैसे हम माया के रहस्य को समझ सकते हैं ???
लेकिन प्रभु की कृपा से ही हमारे मन और बुद्धि में कुछ दिव्य भाव आते हैं ! जो मानव कल्याणार्थ होते हैं ...........
प्रमेश्वर अपनी माया समझाने के लिए किसी की वाणी को अपना यंत्र बनाते हैं , माध्यम बनाते हैं !
जो प्रकृति में वस्तु स्थिती दर्शायी गयी है, उसमें प्रमेश्वर तक जाने का दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग है, लेकिन हम तो बस अपनी नजरों से अपने अनुसार ही उसके दर्शन करते हैं !
अगर एक बार प्रमात्मा की दिव्य दृष्टि से प्रकृति का दर्शन करे तो वही पर्मात्मा तक ले जाने वाली सिढी है...
गर्भ में बच्चा उल्टा ही क्यों होता है ????
संसार में आता है तो उल्टा ही आता है !
अगर 100 आदमीयों से अलग अलग पुछा जाय तो सबका उत्तर अपनी अपनी बुद्धि के अनुरूप अलग अलग ही होगा....
मैने भी विचार किया की हमारे पुर्वज संत महात्मा क्यों हमे बार बार इस बात का स्मरण कराते हैं की 9 माह ऊपर पैर नीचे सिर करके मल मुत्र में पङा रहता है ! और इतने कष्ट में रहने के बाद भी बाहर आकर सब भुल जाता है.....
क्यों ऐसी मुद्रा में रहता है ?????
यह तो मात्र संकेत है प्रमात्मा का, कि जिस तरह कष्ट में जिस नरक में मां के गर्भ में घुमता रहता है उल्टा पङा रहता है और उल्टा ही निकलता है !
इससे भी बहुत बङा गर्भ जिसमें पता नही कितने हजार करोङ वर्षों न जानें कितने जन्मों से यही इसी तरह घुम रहा है भटक रहा है ! भगवान ने संकेत भी किया है, हर मनुष्य को इसारा किया ! जन्म के साथ ही ज्ञान कराने का प्रयत्न करते हैं ... लेकिन यह मनुष्य बहार आते ही इस माया की हवा में उस ज्ञान के दिपक को बुझा देता है ! फिर इसे कुछ नही दिखाई पङता ....
इस संसार में आवागमन के कष्ट के कुएं से कभी सिधा नही निकल सकता सही और सहजता से उल्टा ही निकलेगा ! लेकिन गर्भ से बाहर आते ही सब भुल गया जो प्रमात्मा ने संकेत किया था, कि यहां से निकलने का एक मात्र मार्ग बस यही है..... हम क्या करते हैं ??? जो मार्ग हमें बताया था की यहां से बहार जा सकते हो वहां से निकलने के बजाय उल्टा उसी में प्रवेश करते चले गये ....
जैसे सरकार सङक मार्ग पर कहीं लाल बत्ती, कहीं प्रवेश वर्जित है के निर्देश बोर्ड लगा देते हैं ! यह सरकार का संकेत है ! अगर हम उसमें घुसे तो फंस जाते हैं ! आदमी के बनाये दिशा निर्देश नियमों का हम पालन करते हैं ! क्योंकि नियम तोङकर किसी विपत्ति में ना फंस जाये ! लेकिन जिस कष्ट को भोगते हुए कितने आंसु बह गये और न जाने कितने शरीर जलकर राख हो गये ! उससे बचने के लिए जो निर्देश दिये हैं जो नियम बताये हैं उनको नजर अंदाज करते रहते हैं !
और सारे सिगनल तोङकर फंस जाते हैं ! रास्ता है जन्म मृत्यु कष्टों से मुक्ति पाने का
इसका मतलब यह नही है कि हम उल्टे ही खङे हो जाओ ! नही अर्थात जहां से हम उल्टे होकर अबोध सम और निर्दोश होकर आये हैं वैसे ही जाने का इंतजाम करो !
पहले स्वयं गर्भ में रहा बाहर आते ही सब कुछ भुल कर और लग गया पढाई लिखाई धन व्यापार बीबी बच्चों में ! वह क्षण याद नही जो मल मुत्र में सिर रखकर पङा था ! जिस मायावी संसार से इतना स्नेह कर रहा है मोह कर रहा है ! इसमें प्रवेश करते ही पहला सांस लिया तो रोना प्रारम्भ हो गया था ! आज इसी को सम्पुर्ण सुख सास्वत आन्नद मानकर रात दिन कोल्हु के बैल की भांति पिलता रहता है !
प्रमेश्वर कितने दयालु हैं पग पग पर संकेत देते हैं ! अब उसके घर परिवार में बच्चे पैदा हो गये उन्हे देखकर भी अपना अतीत याद नही आया ! और उनकी तोतली आवाज को सुनकर कितना आन्नदित और भाव विभोर होता है ! याद ही नही रहता की कोई शक्ति है जो तुझे पुकार रही है ....
एक और संकेत प्रभु का बच्चा जब किसी को देखता है कभी उदास होता है कभी हंसने लगता है ! हम सब इस संकेत को भी अपनी बुद्धि से समझकर बालक का चुलबुलापन शरारती देखकर कितना आन्नदित होते हैं !.
अरे भाई समझ जाओ इतने मुर्ख मत बनो जो बाद में माफी के लायक भी ना रहो ! बच्चा कभी उदास होता है कभी खुश तो कभी गम्भीर हो जाता है ! उस क्षण बच्चे को अपने सैंकङो जन्म याद होते हैं और जो सामने होता है उसे भी पहचानता है जो किसी जन्म में दुश्मन रहे या जो अपने रहे उन्हे देखकर वैसी ही मुद्रा बनाता है ! और हम उसे देखकर बाल क्रिङा समझकर खुश होते रहते हैं...
वही गर्भ वाला बच्चा यह सब देखता हुआ परिवार बीबी बच्चे आदि को सुख दुखों को भोगते भोगते कब अंत समय आ गया मुंह में दांत नही पैरों में चलने की ताकत नही फिर भी बिस्तर पङा पङा भगवान से प्रार्थना करता है हे प्रभु बस छोटे बेचे के बच्चे का मुंह और देख लुं !
अरे पागल मानव नही सम्भल रहा !!!
जब बालक का जन्म होता तो ना मुंह में दांत होते हैं ना पैरों में चलने की ताकत होती है ! वही क्षण आ गया जैसे आया था क्यों व्यर्थ में प्रार्थना कर रहा है ?????
कितने गति अवरोधक लगाये जीवन की सङक पर लेकिन क्या करें ??? कुछ देखा ही नही ! आदमी मरता है खुली हथेली होती है ! उन्हे देखकर कहते हैं देखो भाई सब यहीं छोङकर चला गया, हम भी ऐसे ही चले जायेंगे ! कुछ क्षण उपरान्त सब भुल जाता है ! और लग जाता है माया को फेर में ! और बच्चों की तोतली आवाज में !
यही संकेत है उल्टा पैदा होने का कि जब तक मानव अपने आप को इस माया और मोह से नही मोङेगा तो इसी तरह दंड भोगता रहेगा ! अपनी मंजील से दुर होता जाता है!
कुछ नही समझा साधु संतो महात्माओं शास्त्र सारा जीवन सुनता तो सबकी रहा ! देखता हर बोर्ड पर कि क्या लिखा है ??? की फलां जगह जाना वर्जित है ! मगर जीवन की भागम भाग में सब सिगनल तोङता जाता है !
अंत समय में सांस इस शरीर से निकलना चाहता है ! लेकिन बङा कष्ट हो रहा है... जब जीव निकलता है तो आगे जो शरीर मिलने वाला होता है वही दिखाई देता है ! पुरा जीवन अपराध करता रहा, आखिर पकङा गया ! जेल तो जाना पङेगा ना भाई ....
जिस मंहगी बहुमुल्य कार में सारा जीवन सफर करता रहा उसे छोङकर घटीया सी गाङी में तो बैठने तो कतरायेगा ना अब ! हम सब भी कतराते है !
यह मानव तन छिना जा रहा है ! कुकर सुकर गधा किट का तन मिल रहा है ! यह जीव मानव तन को छोङना नही चाहता बङी पीङा हो रही है एक एक सांस लेना भारी हो रहा है ! घर वाले भगवान से दुआ करते हैं कि हे भगवान इन्हे उठा लो हम पंडित बैठायेगें चद्दर चढायेगें !
जब यह बात उसके कानों में पङती है बङा कष्ट होता है ! अब उसे सारी बातें याद आती है कि किस तरह जिनकी खातिर सारे सिगनल तोङे वो ही आज मेरे मरने की प्रार्थना कर रहे हैं ....
भाईयों यह बात किसी एक की नही है हम सबके साथ घटती है !
तो जीवन में प्रमेश्वर के संकेत दिशा निर्देश देखकर ही चले की प्रभु हमें इस क्षण क्या संकेत दे रहे हैं ???? अगर हमें मंजील तक पहुंचना है तो सावधानी से यात्रा करनी होगी जो पैदा होते समय साथ लाते हैं अर्थात लहुलुहान होकर आते हैं विचार करें इस जगत में पहला सांस लिया लहुलुहान खुन ही खुन था हमारे ऊपर इससे हमें बचना है की कहीं हमसे खुन ना बहे इसमें हम शामिल ना हों... सावधानी बरतनी है
बाकि सब समझदार हैं!
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर 09210650915
गर्भ में बच्चा रक्त मांस के लोथङे में नीचे सिर ऊपर पैर करके पङा रहते है ! एक दो दिन नही पुरे नौ महिने ! हम तो नौ मिनट में ही दुखी हो जाते हैं बैचेन हो जाते है ! 8 -9 माह इसी तरह कष्ट उठाता हुआ पिङा सहता हुआ जब बाहर आता है तो सारा शरीर लहु से सना हुआ !
जब इस मायावी संसार में पहला सांस लेता है ! तो लहु लुहान इतनी बङी पीङा से मुक्त हुआ है, जैसे आदमी कई वर्षों पश्चात कारागार से मुक्त हुआ हो, लेकिन यहां आकर संतोष की सांस नही लेता चैन से नही बैठता ! मुक्ति की खुशी में हंसता नही बल्कि रोता है चिल्लाता है.. अगर बच्चा पैदा होते ही नही रोता तो दादा दादी मां बाप डाक्टर कहते हैं की बच्चा स्वस्थ नही है !
अरे भाई इतने कष्ट भोगकर आया है थोङा चैन लेने दो !
बच्चे की रोने की चिल्लाने की आवाज से घर में खुशी की लहर दोङ जाती है....
जो भगवान हमें दिखाते हैं अपनी माया से उसका आशय समझना चाहिए
लेकिन उसकी माया को समझना बङा दुस्तर है ! वो तो माया पति हैं हम माया के अधिन हैं !
कैसे हम माया के रहस्य को समझ सकते हैं ???
लेकिन प्रभु की कृपा से ही हमारे मन और बुद्धि में कुछ दिव्य भाव आते हैं ! जो मानव कल्याणार्थ होते हैं ...........
प्रमेश्वर अपनी माया समझाने के लिए किसी की वाणी को अपना यंत्र बनाते हैं , माध्यम बनाते हैं !
जो प्रकृति में वस्तु स्थिती दर्शायी गयी है, उसमें प्रमेश्वर तक जाने का दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग है, लेकिन हम तो बस अपनी नजरों से अपने अनुसार ही उसके दर्शन करते हैं !
अगर एक बार प्रमात्मा की दिव्य दृष्टि से प्रकृति का दर्शन करे तो वही पर्मात्मा तक ले जाने वाली सिढी है...
गर्भ में बच्चा उल्टा ही क्यों होता है ????
संसार में आता है तो उल्टा ही आता है !
अगर 100 आदमीयों से अलग अलग पुछा जाय तो सबका उत्तर अपनी अपनी बुद्धि के अनुरूप अलग अलग ही होगा....
मैने भी विचार किया की हमारे पुर्वज संत महात्मा क्यों हमे बार बार इस बात का स्मरण कराते हैं की 9 माह ऊपर पैर नीचे सिर करके मल मुत्र में पङा रहता है ! और इतने कष्ट में रहने के बाद भी बाहर आकर सब भुल जाता है.....
क्यों ऐसी मुद्रा में रहता है ?????
यह तो मात्र संकेत है प्रमात्मा का, कि जिस तरह कष्ट में जिस नरक में मां के गर्भ में घुमता रहता है उल्टा पङा रहता है और उल्टा ही निकलता है !
इससे भी बहुत बङा गर्भ जिसमें पता नही कितने हजार करोङ वर्षों न जानें कितने जन्मों से यही इसी तरह घुम रहा है भटक रहा है ! भगवान ने संकेत भी किया है, हर मनुष्य को इसारा किया ! जन्म के साथ ही ज्ञान कराने का प्रयत्न करते हैं ... लेकिन यह मनुष्य बहार आते ही इस माया की हवा में उस ज्ञान के दिपक को बुझा देता है ! फिर इसे कुछ नही दिखाई पङता ....
इस संसार में आवागमन के कष्ट के कुएं से कभी सिधा नही निकल सकता सही और सहजता से उल्टा ही निकलेगा ! लेकिन गर्भ से बाहर आते ही सब भुल गया जो प्रमात्मा ने संकेत किया था, कि यहां से निकलने का एक मात्र मार्ग बस यही है..... हम क्या करते हैं ??? जो मार्ग हमें बताया था की यहां से बहार जा सकते हो वहां से निकलने के बजाय उल्टा उसी में प्रवेश करते चले गये ....
जैसे सरकार सङक मार्ग पर कहीं लाल बत्ती, कहीं प्रवेश वर्जित है के निर्देश बोर्ड लगा देते हैं ! यह सरकार का संकेत है ! अगर हम उसमें घुसे तो फंस जाते हैं ! आदमी के बनाये दिशा निर्देश नियमों का हम पालन करते हैं ! क्योंकि नियम तोङकर किसी विपत्ति में ना फंस जाये ! लेकिन जिस कष्ट को भोगते हुए कितने आंसु बह गये और न जाने कितने शरीर जलकर राख हो गये ! उससे बचने के लिए जो निर्देश दिये हैं जो नियम बताये हैं उनको नजर अंदाज करते रहते हैं !
और सारे सिगनल तोङकर फंस जाते हैं ! रास्ता है जन्म मृत्यु कष्टों से मुक्ति पाने का
इसका मतलब यह नही है कि हम उल्टे ही खङे हो जाओ ! नही अर्थात जहां से हम उल्टे होकर अबोध सम और निर्दोश होकर आये हैं वैसे ही जाने का इंतजाम करो !
पहले स्वयं गर्भ में रहा बाहर आते ही सब कुछ भुल कर और लग गया पढाई लिखाई धन व्यापार बीबी बच्चों में ! वह क्षण याद नही जो मल मुत्र में सिर रखकर पङा था ! जिस मायावी संसार से इतना स्नेह कर रहा है मोह कर रहा है ! इसमें प्रवेश करते ही पहला सांस लिया तो रोना प्रारम्भ हो गया था ! आज इसी को सम्पुर्ण सुख सास्वत आन्नद मानकर रात दिन कोल्हु के बैल की भांति पिलता रहता है !
प्रमेश्वर कितने दयालु हैं पग पग पर संकेत देते हैं ! अब उसके घर परिवार में बच्चे पैदा हो गये उन्हे देखकर भी अपना अतीत याद नही आया ! और उनकी तोतली आवाज को सुनकर कितना आन्नदित और भाव विभोर होता है ! याद ही नही रहता की कोई शक्ति है जो तुझे पुकार रही है ....
एक और संकेत प्रभु का बच्चा जब किसी को देखता है कभी उदास होता है कभी हंसने लगता है ! हम सब इस संकेत को भी अपनी बुद्धि से समझकर बालक का चुलबुलापन शरारती देखकर कितना आन्नदित होते हैं !.
अरे भाई समझ जाओ इतने मुर्ख मत बनो जो बाद में माफी के लायक भी ना रहो ! बच्चा कभी उदास होता है कभी खुश तो कभी गम्भीर हो जाता है ! उस क्षण बच्चे को अपने सैंकङो जन्म याद होते हैं और जो सामने होता है उसे भी पहचानता है जो किसी जन्म में दुश्मन रहे या जो अपने रहे उन्हे देखकर वैसी ही मुद्रा बनाता है ! और हम उसे देखकर बाल क्रिङा समझकर खुश होते रहते हैं...
वही गर्भ वाला बच्चा यह सब देखता हुआ परिवार बीबी बच्चे आदि को सुख दुखों को भोगते भोगते कब अंत समय आ गया मुंह में दांत नही पैरों में चलने की ताकत नही फिर भी बिस्तर पङा पङा भगवान से प्रार्थना करता है हे प्रभु बस छोटे बेचे के बच्चे का मुंह और देख लुं !
अरे पागल मानव नही सम्भल रहा !!!
जब बालक का जन्म होता तो ना मुंह में दांत होते हैं ना पैरों में चलने की ताकत होती है ! वही क्षण आ गया जैसे आया था क्यों व्यर्थ में प्रार्थना कर रहा है ?????
कितने गति अवरोधक लगाये जीवन की सङक पर लेकिन क्या करें ??? कुछ देखा ही नही ! आदमी मरता है खुली हथेली होती है ! उन्हे देखकर कहते हैं देखो भाई सब यहीं छोङकर चला गया, हम भी ऐसे ही चले जायेंगे ! कुछ क्षण उपरान्त सब भुल जाता है ! और लग जाता है माया को फेर में ! और बच्चों की तोतली आवाज में !
यही संकेत है उल्टा पैदा होने का कि जब तक मानव अपने आप को इस माया और मोह से नही मोङेगा तो इसी तरह दंड भोगता रहेगा ! अपनी मंजील से दुर होता जाता है!
कुछ नही समझा साधु संतो महात्माओं शास्त्र सारा जीवन सुनता तो सबकी रहा ! देखता हर बोर्ड पर कि क्या लिखा है ??? की फलां जगह जाना वर्जित है ! मगर जीवन की भागम भाग में सब सिगनल तोङता जाता है !
अंत समय में सांस इस शरीर से निकलना चाहता है ! लेकिन बङा कष्ट हो रहा है... जब जीव निकलता है तो आगे जो शरीर मिलने वाला होता है वही दिखाई देता है ! पुरा जीवन अपराध करता रहा, आखिर पकङा गया ! जेल तो जाना पङेगा ना भाई ....
जिस मंहगी बहुमुल्य कार में सारा जीवन सफर करता रहा उसे छोङकर घटीया सी गाङी में तो बैठने तो कतरायेगा ना अब ! हम सब भी कतराते है !
यह मानव तन छिना जा रहा है ! कुकर सुकर गधा किट का तन मिल रहा है ! यह जीव मानव तन को छोङना नही चाहता बङी पीङा हो रही है एक एक सांस लेना भारी हो रहा है ! घर वाले भगवान से दुआ करते हैं कि हे भगवान इन्हे उठा लो हम पंडित बैठायेगें चद्दर चढायेगें !
जब यह बात उसके कानों में पङती है बङा कष्ट होता है ! अब उसे सारी बातें याद आती है कि किस तरह जिनकी खातिर सारे सिगनल तोङे वो ही आज मेरे मरने की प्रार्थना कर रहे हैं ....
भाईयों यह बात किसी एक की नही है हम सबके साथ घटती है !
तो जीवन में प्रमेश्वर के संकेत दिशा निर्देश देखकर ही चले की प्रभु हमें इस क्षण क्या संकेत दे रहे हैं ???? अगर हमें मंजील तक पहुंचना है तो सावधानी से यात्रा करनी होगी जो पैदा होते समय साथ लाते हैं अर्थात लहुलुहान होकर आते हैं विचार करें इस जगत में पहला सांस लिया लहुलुहान खुन ही खुन था हमारे ऊपर इससे हमें बचना है की कहीं हमसे खुन ना बहे इसमें हम शामिल ना हों... सावधानी बरतनी है
बाकि सब समझदार हैं!
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर 09210650915
सोमवार, 6 जुलाई 2009
रहस्य कृष्ण जन्म का
रहस्य कृष्ण जन्म का
भगवान श्री कृष्ण का नाम तो सभी ने सुना है, और कृष्ण जन्म को तो आज भी लोग 5000 वर्ष से भी ज्यादा समय बीतने के बाद भी हर वर्ष बङी धुमधाम से जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं ! लोग मंदिरों में छोटे छोटे बच्चो को राधा कृष्ण के जैसी पोशाक पहनाकर सजा धजा कर बैठाते हैं !
आज तक जितने भी भगवान ने जितने भी अवतार लिए हैं कृष्ण अवतार सबसे पुर्ण मानते हैं !. भगवान के हर अवतार उनका हर कर्म उनकी हर लीलाओं में बहुत गहरा रहस्य छिपा होता है ! जिन पर भगवान की असीम कृपा होती है उसी बुद्धि में दिव्य झलक आती है !.
में बात कर रहा हुं श्री कृष्ण जन्म की ! उनके हर कर्म में अपने भक्तो की मुक्ति का रहस्य छिपा रहता है !
गीता में भगवान ने एक जगह कहा है, कोई भी श्रद्धा रहित और अंहकारी मुझे नही जान सकता वह तो भगवान को आम आदमी की तरह जन्मने वाला और मरने वाला समझता है !
में भगवान से प्रार्थना करता हुं कि हे प्रभु मुझे अपनी असीम कृपा प्रदान करो, जो कि मैं आपके जन्म के रहस्य को आपके भक्तों में कहकर उन्हे उस पथ पर ले चलुं जहां आपका धाम है.......
भगवान ने कृष्ण अवतार में आकर जितनी भी लीलाऐं की है ! वह संसार के हर व्यक्ति के लिए संदेश था ! उनके साकार रूप को सारी दुनिया पुजती है ! लेकिन उनका स्वरूप केवल पुजा तक ही सीमित नही है !
भगवान का अवतार होने ही वाला है ! चारो तरफ हर दिशा में खुशियों की लहर सी चल पङी ! स्त्री पुरूष देवी देवता किन्नर यक्ष सब खुशियों के गीत गा रहे हैं..........
भगवान को तो धरती का भार उतारने के लिए आना ही था ! तो उन्होने मानव कल्याणार्थ हमें समझाने के लिए संकेत दिखाया है ! कि किस तरह हम अपने दुखों की जंजीरो से मुक्त हो कैसे हमें सुख चैन प्राप्त हो............
गीता में ही भगवान ने कहा है की अज्ञानी और आसुरी स्वभाव वाले तो इस आत्मा को श्रवण करके अध्ययन करके भी नही जान पाते ! जिन पर भगवान की कृपा होती है वो ही उनके रहस्य भरे संदेश को उनके संकेत को समझनें में सफल हो सकता है.........
भगवान श्री कृष्ण को जिसने जिस भाव से भी भजा है पुजा है उन्होने उसी रूप में दर्शन दिये ! लेकिन उनकी यह कृष्ण जन्म की लीला हमारे लिए क्या संदेश थी !
भगवान ने ना जाने कितने अवतार धारण किये हैं ! लेकिन कृष्ण अवतार में उनके गर्भ से पहले ही मां बाप को कैद में डाल दिया था कारागार में डाल दिया था ! कारागार एक ऐसी जगह है अगर हम जरा सा भी चिंतन करें तो एक बात स्पस्ट होती है हम संसार की भीङ में रहते हुए भी कितने अकेले हैं !
लेकिन इस बात का चिंतन करने का तो समय तो हमारे पास है ही नही ! जैसे सङक पर स्पिड ब्रेकर होते हैं ताकि गाङी की गति तेज ना हो और हमारे नियंत्रण में रहे कोई दुर्घटना ना घटे...
भगवान का संकेत स्पस्ट होता है लेकिन हमारी बुद्धि रजोगुण या तमोगुण से घिरी होने के कारण कुछ नही देख पाती ! और सारे सिगनल तोङकर बंधनों में फंस जाती है... अगर कोई जेल जाता है तो चाहे उसके पास कितनी भी धन दौलत हो उसके मां बाप, भाई बहन, पति पत्नि यार दोस्त बंगला गाङी धन दौलत कुछ भी उसके काम का नही रहता ! बस 2बाई 6 की जगह सोने के लिए उसकी होती है...
हमारा भी इस जहां में कुछ भी नही है ! कितनी भी मारा मारी कर ले भागा दोङी कर कितनी भी धन दौलत का संग्रह कर ले लेकिन अंत में वही 2 बाई 6 की ही जगह मिलेगी!
सर्व प्रथम बात करते है कि भगवान का जन्म जेल में दिखाया है और भगवान के मां बाप जो की कभी राजकुमार और राजकुमारी थे वो भी जेल में हैं बन्धनों में है ! कितनी यातनाएं भोगनी पङी.....
क्या कोई दिवार है ???? या कही इतनी मजबुत सलाखें हैं ????? जो भगवान के मां बाप को कैद कर सके ! अरे भाईयों जो मुक्ति के धाम हैं ! जिनके स्मरण मात्र से भव बन्धन से मुक्ति मिल जाती है ! मुक्ति जिनकी दासी है ! क्या वो कैद हो सकते हैं ???
वो तो भक्त वत्सल हैं ! अपने भक्तों का अपने सेवकों का उद्धार करने के लिए जो सुकर का रूप धारण कर सकते है ! तो कारागार क्या बङी बात है..........
कितना स्पस्ट है, कि हम चाहे कितने भी अमिर घर में जन्म ले चाहे कितनी भी धन दौलत हमारे पास है ! कानुन तोङते ही हमें बन्धन में आना पङता है कारागार में यातनाएं भोगनी पङती हैं ! हर जीव कारागार में है ! जंजीरों में जकङा पङा रहता है ! पिंजङा चाहे सोने का हो या लोहे का यो फिर लकङी का पिंजङा तो पिंजङा ही होता है ! अर्थात चाहे हमें मानव रूपी पिंजङा प्राप्त हुआ हो या कोई और .......
इन भोगों को भोगने के लिए हमें यह कारागार मिलती है ! अगर हमें यह तन प्राप्त हुआ है तो जेल यानि बंधन तो भोगने ही पङेंगे ! यही कारण था कि गर्भ में प्रवेश करते ही जंजीरों ने हमें जकङ लिया है बन्दी बना लिया हम गुलाम हो गये अपने भोगों की कैद में है .........
फिर दिखाया है भगवान पैदा हुए तो वसुदेव और मां देवकी के मन में उन्हे बचाने की योजना बनने लगी ! योजना तो हम सब भी बनाते हैं कि किस तरह से अपनी जीव आत्मा को भव सागर के आवागमन से मुक्ति दिलायें ??? कैसे इसको कैद से मुक्त करे???? लेकिन हम अपनी कोशिश और प्रयास में सफल नही हो पाते....
तो माता पिता के दिमाग में उन्हें बचाने की बात आयी, लेकिन बचाये तो बचाये कैसे ???? ना कोई साधन है ना रास्ता ! दोनो की आंखे मिलती है और दोनो का एक ही मुक सवाल की कैसे बचाये कहां ले जाये क्या करें ?????????
यही हालत हम सबकी है हम सब तो निराश हो जाते हैं !
काली अंधेरी रात मुसलाधार बारिस ……
काली रात अज्ञान का प्रतिक है ! इस अज्ञान के कारण ही हम अपनी यात्रा में आगे नही बढ पाते और निराश होकर अपने पथ से भटक जाते हैं ..............
इतनी भयंकर रात बादलों की गङगङाहट बिजली का जोर जोर से चमकना ऐसी विकट परिस्थिती ...........
देवकी मां विनती करती है, कि बचा लो मेरे लाल को मैं इसके बिना नही जी सकती ! कितना सुन्दर और स्पस्ट संदेश है !
देवकी रूपी बुद्धि तो सदा ही चाहती है की आत्मा को मुक्ति मिले परमशांति को प्राप्त हो लेकिन काली अंधेरी अज्ञान की रात में भटक जाते हैं ! माता देवकी के बार बार विनती करने पर वासुदेव जी सहमत हुए तो जब मन और बुद्धि एक होते होते हैं जंजीरे स्वत: ही टुट जाती हैं ! अज्ञान भय शंका संदेह ये सब मन मे ही होता है !.....
वसुदेव जी कहते हैं कि देवकी इच्छा तो मेरी भी है की अपने बेटे को बचाऊं ! लेकिन कैसे जाऊंगा बाहर लेकर ????
इतने विचार मात्र से हथकङी खुल गयी ! कितना स्पस्ट समझा रहे हैं लेकिन हम तो.....
जेल से मुक्ति कोन नही चाहता ?? लेकिन जिन बेङियों ने हमें जकङ रखा है तृष्णा का जंजीर, कभी न पुर्ण होने वाली आशाओं की फांस में फंसे रहते हैं और अज्ञान की अंधेरी रात में निकलने का साहस ही नही करते हिम्मत ही नही जुटा पाते.....
देवकी मां और वसुदेव जी की एक राय हुई तो स्वत: ही सभी जंजीरों से मुक्ति मिल गयी ! अपने पथ पर चलने के लिए यह प्रथम सफलता है...
वसुदेव जी कहते हैं- इतनी बारीस हो रही है काली अंधेरी रात ना हमारे पास कोई कपङा है ! ना कोई दुसरी ऐसी चीज है, जिसमें अपने इस नन्हे से बच्चे को ले जाऊं...
तो देवकी कहती है- यह सूप रखा है इसमें ले जा !.
हम कृष्ण जन्म को बस फिल्मों में पर्दे पर देखकर किताबों में पढकर ही भाव विभोर होते रहते हैं ! कि कितने कष्ट में कितनी विपत्तियां उठाकर मां बाप ने कृष्ण को बचाया था ! और भाईयों समझने का प्रयत्न करो भगवान अवतार लेकर धरती से पाप कर्म अधर्म को मिटाने के लिए आ रहे हैं ! तथा अपने भक्तों की तरफ संकेत भी कर रहे हैं !
देवकी मां ने सूप दे दिया ..... अरे भाईयों क्या है ये सूप ???? जब बुद्धि मन के साथ होगी ! यानि की ये चंचल मन जो की कभी भी नही ठहरता रूकने का नाम नही लेता.... जब भी बुद्धि के पास आकर साहयता चाहता है ! मदद की भीख मांगता है ! तो बुद्धि के पास कुछ भी नही है बस एक सूप है वही दे देती है वसुदेव जी को....
सुप नाम सुनकर ही आभास हो गया होगा की सूप का क्या काम है.. सूप कबाङ को गेहुं आदि में से छिटककर बाहर कर सफाई करने का काम करता है ...
यह सूप विवेक है.... जब विवेक आता है तो हमारे अंदर की गंदगी को निकलना ही पङता है .. जब हम अपने विवेक के साहरे आगे बढते हैं तो मार्ग में आने वाली हर समस्या तमाम अङचन हर बाधा दुर हो जाती है !
जंजीरें खुल गयी ! जैसे ही सूप में भगवान को लेकर चले !
एक खास बात और है, ध्यान रखने की जैसे वसुदेव जी भगवान को लेकर चले बिलकुल वस्त्र हीन ऐसा नही था की देवकी के पास एक भी कपङा नही हो !
लेकिन भगवान ने गीता में स्पस्ट कहा है कि अगर मैं कर्मों सावधानी ना बरतुं तो बङी हानि हो जाय ! तो यहां भी उन्होने बङी सावधानी बरती है !
जिस तरह वसुदेव जी कृष्ण को बिना किसी कपङे में लपेटे हुए सूप में लेकर चले ! बिलकुल उसी तरह हम भी अपनी मुक्ति के मार्ग पर चल सकते हैं !
जब तक हम कहीं लिप्त रहेंगें, किसी में लिपटें होगें तो चल ही नही सकते !
वसुदेव जी कृष्ण को सूप में लिटाकर चलते हैं, पिछे देवकी बङी व्याकुल नजरों से निहार रही है अपने लाल को ! आंखों से ममता छिलककर बाहर आ गयी !
क्या हैं वो आंसु ! गहन चिंतन की आवस्यकता है !
हमारे अंदर जब तक कटटरता होगी ! कठोरता होगी तो आगे नही बढ पायेंगें !
कटटरता टुटकर कठोरता पिंघलकर आंसु बनकर बाहर आये और अंदर कोमलता भावुकता की प्रबलता रहे तो हमें अपनी यात्रा करने में साहयक होगी !
आगे जरा ध्यान देना कितने अचम्भे की बात है ! की वसुदेव जी कन्हैया को लेकर चले ! कारागार के सारे पहरेदार, जो बङी सजगता से पहरेदारी कर रहे थे ! वो सब खङे खङे ही सो गये ! हथियार भी उनके पास है, लेकिन सो गये ! ताले भी खुद ब खुद खुल गये !
जब हम प्रमात्मा को लक्ष्य बनाकर अपने विवेक के साहरे आगे की यात्रा तय करते हैं ! तो हमारे अंदर की कारागार के सारे पहरेदार जो हमारे रास्ते में बाधक हैं ! काम क्रोध लोभ मोह भय वासना और तृष्णा वो सब सो जाते हैं !अगर हम सोचे की हमारे सभी विकार प्रमात्मा के रास्ते चलते ही समाप्त हो जायेंगे ! जी नही ये रहेंगे तो हमारे अंदर ही लेकिन हमारा किसी प्रकार का अनिष्ट नही करेंगे ! हमारी यात्रा में किसी भी तरह से बाधक नही बनेंगे कोई रोङा नही अङायेंगे ! सब तो जायेंगे !
कितना सुन्दर दृष्य है ! काली अंधेरी रात मुसलाधार बारिस, और वसुदेव जी कृष्ण को सूप में लिटाकर सिर पर रखकर चले हैं ! ऐसी घनघोर बारिस डरावनी रात भयभीत तो वसुदेव जी भी थे ! लेकिन जरा सा ध्यान दे कि नये जन्में बच्चे को क्या कोई पिता इस तरह से सिर पर रखकर ले जाते हुए देखा है ! कितनी अदभुत और खास बात दिखाई है ! ... अरे भाईयों हर मां बाप अपने बच्चे को धुंप छांव आदि से बचाने के लिए सीने से लगाता है सिर पर रखकर कोई नही ले जाता !
यहां पर भी प्रभु ने ऐसी बात का संकेत किया है जिसके बिना हम कारागार से मुक्त नही हो सकते ! इस बात पर अम्ल किये बिना बंधनों से आजाद नही हो सकते !
भगवान ने सारी बाते बतायी भी हैं कहा है कि !
शरीर इंद्रियां मन और बुद्धि से ऊपर और श्रेष्ठ है आत्मा ,,, आत्मा को श्रेष्ठ जानकर क्रम करो तो मुक्त हो जाओगे...
यह बात साकार करके भी दिखा दी .... वसुदेव जी कितने भयभीत थे ! जिस प्रकार उन्होने सबसे ऊपर भगवान को लेकर यात्रा प्रारम्भ की ! हमें भी अपनी यात्रा इसी तरह से करनी पङेगी ! लेकिन हमने तो अपने ऊपर सारी दुनिया को रखा हुआ है ! भगवान के लिए तो वहां जगह ही नही है ! कभी मां बाप को सिर पर रखकर चले, तो कभी बीबी बच्चों को रख लिया, तो कभी काम धंधे को रख कर चल पङे, तो कभी क्रोध को रख लिया तो, कहीं भय के साथ चल पङे !
अपने सिर को यानि की दिमाग को कभी खाली छोङी ही नहीं जिससे हम प्रभु को साथ लेकर चल सके ......
उसके आगे बढते हैं क्या देखते हैं कि वासुदेव जी कृष्ण को लेकर मुसलाधार बारीस में आगे बढ रहे हैं, तो शेषनाग जी उनके ऊपर फन फैलाये खङे हैं ! नाग को मानते हैं काल का रूप ! तो जब हम संसारी वस्तु को अपने सिर पर रखकर चलते हैं तो वही काल हमें डसता है भयभीत करता है..........
लेकिन वासुदेव जी की तो रक्षा कर रहा है मुसलाधार रूपी हर विपत्तियां जो हमारे मुक्ति के मार्ग में हैं तो वो ही रक्षा करेंगें !
सारी अङचनों और बाधाओं से निकलते हुए बढ रहे है ! अभी तो बहुत बङी नदी भी पार करनी है ! यह भवसागर पार करना है जो हर क्षण हमें डुबोने के लिए मुंह बाये खङा रहता है .....
हथकङी बेङी कारागार मुसलाधार बारीस नदी का तुफानी वेग काली अंधेरी रात इन सबके पार करते हुए वसुदेव जी नंद बाबा के घर पहुंच जाते हैं...
वहां मैया यसोदा को सोई हुई दिखाते हैं और एक कन्या को उन्होने भी जन्म दिया है लेकिन यसोदा जी को कोई खबर नही है .....
वासुदेव जी धीरे से कृष्ण को उनके पास लिटाकर और कन्या को उठाकर अपने सीने से लगाकर वापिस चल पङते हैं ! कन्या को देवकी की गोद में देते ही वह जोर जोर से रोने लगी और सब पहरेदार जग गये हथकङी बेङी लग गयी ......
बङे समझने की बात है इस कन्या रूपी माया के आते ही फिर हमारी बुद्धि में पर्दा पङ गया और हम कैद हो गये ..........
अगर कोई गलती हो तो माफ करना
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
भगवान श्री कृष्ण का नाम तो सभी ने सुना है, और कृष्ण जन्म को तो आज भी लोग 5000 वर्ष से भी ज्यादा समय बीतने के बाद भी हर वर्ष बङी धुमधाम से जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं ! लोग मंदिरों में छोटे छोटे बच्चो को राधा कृष्ण के जैसी पोशाक पहनाकर सजा धजा कर बैठाते हैं !
आज तक जितने भी भगवान ने जितने भी अवतार लिए हैं कृष्ण अवतार सबसे पुर्ण मानते हैं !. भगवान के हर अवतार उनका हर कर्म उनकी हर लीलाओं में बहुत गहरा रहस्य छिपा होता है ! जिन पर भगवान की असीम कृपा होती है उसी बुद्धि में दिव्य झलक आती है !.
में बात कर रहा हुं श्री कृष्ण जन्म की ! उनके हर कर्म में अपने भक्तो की मुक्ति का रहस्य छिपा रहता है !
गीता में भगवान ने एक जगह कहा है, कोई भी श्रद्धा रहित और अंहकारी मुझे नही जान सकता वह तो भगवान को आम आदमी की तरह जन्मने वाला और मरने वाला समझता है !
में भगवान से प्रार्थना करता हुं कि हे प्रभु मुझे अपनी असीम कृपा प्रदान करो, जो कि मैं आपके जन्म के रहस्य को आपके भक्तों में कहकर उन्हे उस पथ पर ले चलुं जहां आपका धाम है.......
भगवान ने कृष्ण अवतार में आकर जितनी भी लीलाऐं की है ! वह संसार के हर व्यक्ति के लिए संदेश था ! उनके साकार रूप को सारी दुनिया पुजती है ! लेकिन उनका स्वरूप केवल पुजा तक ही सीमित नही है !
भगवान का अवतार होने ही वाला है ! चारो तरफ हर दिशा में खुशियों की लहर सी चल पङी ! स्त्री पुरूष देवी देवता किन्नर यक्ष सब खुशियों के गीत गा रहे हैं..........
भगवान को तो धरती का भार उतारने के लिए आना ही था ! तो उन्होने मानव कल्याणार्थ हमें समझाने के लिए संकेत दिखाया है ! कि किस तरह हम अपने दुखों की जंजीरो से मुक्त हो कैसे हमें सुख चैन प्राप्त हो............
गीता में ही भगवान ने कहा है की अज्ञानी और आसुरी स्वभाव वाले तो इस आत्मा को श्रवण करके अध्ययन करके भी नही जान पाते ! जिन पर भगवान की कृपा होती है वो ही उनके रहस्य भरे संदेश को उनके संकेत को समझनें में सफल हो सकता है.........
भगवान श्री कृष्ण को जिसने जिस भाव से भी भजा है पुजा है उन्होने उसी रूप में दर्शन दिये ! लेकिन उनकी यह कृष्ण जन्म की लीला हमारे लिए क्या संदेश थी !
भगवान ने ना जाने कितने अवतार धारण किये हैं ! लेकिन कृष्ण अवतार में उनके गर्भ से पहले ही मां बाप को कैद में डाल दिया था कारागार में डाल दिया था ! कारागार एक ऐसी जगह है अगर हम जरा सा भी चिंतन करें तो एक बात स्पस्ट होती है हम संसार की भीङ में रहते हुए भी कितने अकेले हैं !
लेकिन इस बात का चिंतन करने का तो समय तो हमारे पास है ही नही ! जैसे सङक पर स्पिड ब्रेकर होते हैं ताकि गाङी की गति तेज ना हो और हमारे नियंत्रण में रहे कोई दुर्घटना ना घटे...
भगवान का संकेत स्पस्ट होता है लेकिन हमारी बुद्धि रजोगुण या तमोगुण से घिरी होने के कारण कुछ नही देख पाती ! और सारे सिगनल तोङकर बंधनों में फंस जाती है... अगर कोई जेल जाता है तो चाहे उसके पास कितनी भी धन दौलत हो उसके मां बाप, भाई बहन, पति पत्नि यार दोस्त बंगला गाङी धन दौलत कुछ भी उसके काम का नही रहता ! बस 2बाई 6 की जगह सोने के लिए उसकी होती है...
हमारा भी इस जहां में कुछ भी नही है ! कितनी भी मारा मारी कर ले भागा दोङी कर कितनी भी धन दौलत का संग्रह कर ले लेकिन अंत में वही 2 बाई 6 की ही जगह मिलेगी!
सर्व प्रथम बात करते है कि भगवान का जन्म जेल में दिखाया है और भगवान के मां बाप जो की कभी राजकुमार और राजकुमारी थे वो भी जेल में हैं बन्धनों में है ! कितनी यातनाएं भोगनी पङी.....
क्या कोई दिवार है ???? या कही इतनी मजबुत सलाखें हैं ????? जो भगवान के मां बाप को कैद कर सके ! अरे भाईयों जो मुक्ति के धाम हैं ! जिनके स्मरण मात्र से भव बन्धन से मुक्ति मिल जाती है ! मुक्ति जिनकी दासी है ! क्या वो कैद हो सकते हैं ???
वो तो भक्त वत्सल हैं ! अपने भक्तों का अपने सेवकों का उद्धार करने के लिए जो सुकर का रूप धारण कर सकते है ! तो कारागार क्या बङी बात है..........
कितना स्पस्ट है, कि हम चाहे कितने भी अमिर घर में जन्म ले चाहे कितनी भी धन दौलत हमारे पास है ! कानुन तोङते ही हमें बन्धन में आना पङता है कारागार में यातनाएं भोगनी पङती हैं ! हर जीव कारागार में है ! जंजीरों में जकङा पङा रहता है ! पिंजङा चाहे सोने का हो या लोहे का यो फिर लकङी का पिंजङा तो पिंजङा ही होता है ! अर्थात चाहे हमें मानव रूपी पिंजङा प्राप्त हुआ हो या कोई और .......
इन भोगों को भोगने के लिए हमें यह कारागार मिलती है ! अगर हमें यह तन प्राप्त हुआ है तो जेल यानि बंधन तो भोगने ही पङेंगे ! यही कारण था कि गर्भ में प्रवेश करते ही जंजीरों ने हमें जकङ लिया है बन्दी बना लिया हम गुलाम हो गये अपने भोगों की कैद में है .........
फिर दिखाया है भगवान पैदा हुए तो वसुदेव और मां देवकी के मन में उन्हे बचाने की योजना बनने लगी ! योजना तो हम सब भी बनाते हैं कि किस तरह से अपनी जीव आत्मा को भव सागर के आवागमन से मुक्ति दिलायें ??? कैसे इसको कैद से मुक्त करे???? लेकिन हम अपनी कोशिश और प्रयास में सफल नही हो पाते....
तो माता पिता के दिमाग में उन्हें बचाने की बात आयी, लेकिन बचाये तो बचाये कैसे ???? ना कोई साधन है ना रास्ता ! दोनो की आंखे मिलती है और दोनो का एक ही मुक सवाल की कैसे बचाये कहां ले जाये क्या करें ?????????
यही हालत हम सबकी है हम सब तो निराश हो जाते हैं !
काली अंधेरी रात मुसलाधार बारिस ……
काली रात अज्ञान का प्रतिक है ! इस अज्ञान के कारण ही हम अपनी यात्रा में आगे नही बढ पाते और निराश होकर अपने पथ से भटक जाते हैं ..............
इतनी भयंकर रात बादलों की गङगङाहट बिजली का जोर जोर से चमकना ऐसी विकट परिस्थिती ...........
देवकी मां विनती करती है, कि बचा लो मेरे लाल को मैं इसके बिना नही जी सकती ! कितना सुन्दर और स्पस्ट संदेश है !
देवकी रूपी बुद्धि तो सदा ही चाहती है की आत्मा को मुक्ति मिले परमशांति को प्राप्त हो लेकिन काली अंधेरी अज्ञान की रात में भटक जाते हैं ! माता देवकी के बार बार विनती करने पर वासुदेव जी सहमत हुए तो जब मन और बुद्धि एक होते होते हैं जंजीरे स्वत: ही टुट जाती हैं ! अज्ञान भय शंका संदेह ये सब मन मे ही होता है !.....
वसुदेव जी कहते हैं कि देवकी इच्छा तो मेरी भी है की अपने बेटे को बचाऊं ! लेकिन कैसे जाऊंगा बाहर लेकर ????
इतने विचार मात्र से हथकङी खुल गयी ! कितना स्पस्ट समझा रहे हैं लेकिन हम तो.....
जेल से मुक्ति कोन नही चाहता ?? लेकिन जिन बेङियों ने हमें जकङ रखा है तृष्णा का जंजीर, कभी न पुर्ण होने वाली आशाओं की फांस में फंसे रहते हैं और अज्ञान की अंधेरी रात में निकलने का साहस ही नही करते हिम्मत ही नही जुटा पाते.....
देवकी मां और वसुदेव जी की एक राय हुई तो स्वत: ही सभी जंजीरों से मुक्ति मिल गयी ! अपने पथ पर चलने के लिए यह प्रथम सफलता है...
वसुदेव जी कहते हैं- इतनी बारीस हो रही है काली अंधेरी रात ना हमारे पास कोई कपङा है ! ना कोई दुसरी ऐसी चीज है, जिसमें अपने इस नन्हे से बच्चे को ले जाऊं...
तो देवकी कहती है- यह सूप रखा है इसमें ले जा !.
हम कृष्ण जन्म को बस फिल्मों में पर्दे पर देखकर किताबों में पढकर ही भाव विभोर होते रहते हैं ! कि कितने कष्ट में कितनी विपत्तियां उठाकर मां बाप ने कृष्ण को बचाया था ! और भाईयों समझने का प्रयत्न करो भगवान अवतार लेकर धरती से पाप कर्म अधर्म को मिटाने के लिए आ रहे हैं ! तथा अपने भक्तों की तरफ संकेत भी कर रहे हैं !
देवकी मां ने सूप दे दिया ..... अरे भाईयों क्या है ये सूप ???? जब बुद्धि मन के साथ होगी ! यानि की ये चंचल मन जो की कभी भी नही ठहरता रूकने का नाम नही लेता.... जब भी बुद्धि के पास आकर साहयता चाहता है ! मदद की भीख मांगता है ! तो बुद्धि के पास कुछ भी नही है बस एक सूप है वही दे देती है वसुदेव जी को....
सुप नाम सुनकर ही आभास हो गया होगा की सूप का क्या काम है.. सूप कबाङ को गेहुं आदि में से छिटककर बाहर कर सफाई करने का काम करता है ...
यह सूप विवेक है.... जब विवेक आता है तो हमारे अंदर की गंदगी को निकलना ही पङता है .. जब हम अपने विवेक के साहरे आगे बढते हैं तो मार्ग में आने वाली हर समस्या तमाम अङचन हर बाधा दुर हो जाती है !
जंजीरें खुल गयी ! जैसे ही सूप में भगवान को लेकर चले !
एक खास बात और है, ध्यान रखने की जैसे वसुदेव जी भगवान को लेकर चले बिलकुल वस्त्र हीन ऐसा नही था की देवकी के पास एक भी कपङा नही हो !
लेकिन भगवान ने गीता में स्पस्ट कहा है कि अगर मैं कर्मों सावधानी ना बरतुं तो बङी हानि हो जाय ! तो यहां भी उन्होने बङी सावधानी बरती है !
जिस तरह वसुदेव जी कृष्ण को बिना किसी कपङे में लपेटे हुए सूप में लेकर चले ! बिलकुल उसी तरह हम भी अपनी मुक्ति के मार्ग पर चल सकते हैं !
जब तक हम कहीं लिप्त रहेंगें, किसी में लिपटें होगें तो चल ही नही सकते !
वसुदेव जी कृष्ण को सूप में लिटाकर चलते हैं, पिछे देवकी बङी व्याकुल नजरों से निहार रही है अपने लाल को ! आंखों से ममता छिलककर बाहर आ गयी !
क्या हैं वो आंसु ! गहन चिंतन की आवस्यकता है !
हमारे अंदर जब तक कटटरता होगी ! कठोरता होगी तो आगे नही बढ पायेंगें !
कटटरता टुटकर कठोरता पिंघलकर आंसु बनकर बाहर आये और अंदर कोमलता भावुकता की प्रबलता रहे तो हमें अपनी यात्रा करने में साहयक होगी !
आगे जरा ध्यान देना कितने अचम्भे की बात है ! की वसुदेव जी कन्हैया को लेकर चले ! कारागार के सारे पहरेदार, जो बङी सजगता से पहरेदारी कर रहे थे ! वो सब खङे खङे ही सो गये ! हथियार भी उनके पास है, लेकिन सो गये ! ताले भी खुद ब खुद खुल गये !
जब हम प्रमात्मा को लक्ष्य बनाकर अपने विवेक के साहरे आगे की यात्रा तय करते हैं ! तो हमारे अंदर की कारागार के सारे पहरेदार जो हमारे रास्ते में बाधक हैं ! काम क्रोध लोभ मोह भय वासना और तृष्णा वो सब सो जाते हैं !अगर हम सोचे की हमारे सभी विकार प्रमात्मा के रास्ते चलते ही समाप्त हो जायेंगे ! जी नही ये रहेंगे तो हमारे अंदर ही लेकिन हमारा किसी प्रकार का अनिष्ट नही करेंगे ! हमारी यात्रा में किसी भी तरह से बाधक नही बनेंगे कोई रोङा नही अङायेंगे ! सब तो जायेंगे !
कितना सुन्दर दृष्य है ! काली अंधेरी रात मुसलाधार बारिस, और वसुदेव जी कृष्ण को सूप में लिटाकर सिर पर रखकर चले हैं ! ऐसी घनघोर बारिस डरावनी रात भयभीत तो वसुदेव जी भी थे ! लेकिन जरा सा ध्यान दे कि नये जन्में बच्चे को क्या कोई पिता इस तरह से सिर पर रखकर ले जाते हुए देखा है ! कितनी अदभुत और खास बात दिखाई है ! ... अरे भाईयों हर मां बाप अपने बच्चे को धुंप छांव आदि से बचाने के लिए सीने से लगाता है सिर पर रखकर कोई नही ले जाता !
यहां पर भी प्रभु ने ऐसी बात का संकेत किया है जिसके बिना हम कारागार से मुक्त नही हो सकते ! इस बात पर अम्ल किये बिना बंधनों से आजाद नही हो सकते !
भगवान ने सारी बाते बतायी भी हैं कहा है कि !
शरीर इंद्रियां मन और बुद्धि से ऊपर और श्रेष्ठ है आत्मा ,,, आत्मा को श्रेष्ठ जानकर क्रम करो तो मुक्त हो जाओगे...
यह बात साकार करके भी दिखा दी .... वसुदेव जी कितने भयभीत थे ! जिस प्रकार उन्होने सबसे ऊपर भगवान को लेकर यात्रा प्रारम्भ की ! हमें भी अपनी यात्रा इसी तरह से करनी पङेगी ! लेकिन हमने तो अपने ऊपर सारी दुनिया को रखा हुआ है ! भगवान के लिए तो वहां जगह ही नही है ! कभी मां बाप को सिर पर रखकर चले, तो कभी बीबी बच्चों को रख लिया, तो कभी काम धंधे को रख कर चल पङे, तो कभी क्रोध को रख लिया तो, कहीं भय के साथ चल पङे !
अपने सिर को यानि की दिमाग को कभी खाली छोङी ही नहीं जिससे हम प्रभु को साथ लेकर चल सके ......
उसके आगे बढते हैं क्या देखते हैं कि वासुदेव जी कृष्ण को लेकर मुसलाधार बारीस में आगे बढ रहे हैं, तो शेषनाग जी उनके ऊपर फन फैलाये खङे हैं ! नाग को मानते हैं काल का रूप ! तो जब हम संसारी वस्तु को अपने सिर पर रखकर चलते हैं तो वही काल हमें डसता है भयभीत करता है..........
लेकिन वासुदेव जी की तो रक्षा कर रहा है मुसलाधार रूपी हर विपत्तियां जो हमारे मुक्ति के मार्ग में हैं तो वो ही रक्षा करेंगें !
सारी अङचनों और बाधाओं से निकलते हुए बढ रहे है ! अभी तो बहुत बङी नदी भी पार करनी है ! यह भवसागर पार करना है जो हर क्षण हमें डुबोने के लिए मुंह बाये खङा रहता है .....
हथकङी बेङी कारागार मुसलाधार बारीस नदी का तुफानी वेग काली अंधेरी रात इन सबके पार करते हुए वसुदेव जी नंद बाबा के घर पहुंच जाते हैं...
वहां मैया यसोदा को सोई हुई दिखाते हैं और एक कन्या को उन्होने भी जन्म दिया है लेकिन यसोदा जी को कोई खबर नही है .....
वासुदेव जी धीरे से कृष्ण को उनके पास लिटाकर और कन्या को उठाकर अपने सीने से लगाकर वापिस चल पङते हैं ! कन्या को देवकी की गोद में देते ही वह जोर जोर से रोने लगी और सब पहरेदार जग गये हथकङी बेङी लग गयी ......
बङे समझने की बात है इस कन्या रूपी माया के आते ही फिर हमारी बुद्धि में पर्दा पङ गया और हम कैद हो गये ..........
अगर कोई गलती हो तो माफ करना
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
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