मंगलवार, 19 मई 2009

डर गये होली से

डर गये होली से
डर गये होली से सब सोच रहे होंगे की होली तो प्रेम बढाने का दिन है, मिलन का दिवस है l तो फिर डरेंगे क्यों ???
बात करीब 18-20 वर्ष पहले की है होली के सवा माह पहले से ही बच्चे लकङी काटकर होली की तैयारी करने लगते थे, औरतें फागुन की चांदनी रात में गीत गाकर अपनी खुशी का इजहार करती थी l
एक दिन सांय को करीब चार बजे मैं अपने पिताजी की अंगुली पकङकर खेत से आ रहा था मैंने देखा बहुत से लङके पेङों को काटकर सङक पर खिंचकर ला रहे थे l
मैंने पिताजी से पुछा--- ये सब क्या कर रहे हैं ???
पिताजी ने कहा-- बेटा होली आने वाली है l ये बच्चे होली को जलाने के लिए लकङी इकठठा कर रहे हैं l
मैंने भोलेपन से पुछा-- ये होली कोन है ?? और ये लोग उसे क्यो जलाते हैं ????
पिताजी ने मुझे बङे धैर्य से समझाया-- बेटा ये होली एक राक्षसी थी जो हजारों वर्ष पहले आग में जलकर मर गयी थी l वह बहुत बुरी थी l
मैंने कहा-- जब वह इतने वर्ष पहले वह मर गयी तो फिर अब भी उसे क्यों जलाते हैं ???
पिताजी ने कहा-- वह तो मर गयी लेकिन हम आज भी इस त्योहार के दिन लकङी की होली जलाकर जो हमारा आपस में लङाई झगङा, बैर, कलह होती है l इसे जलाकर आपस में गले मिलकर, प्रेम बढाते हैं, भाईचारा बढाते हैं l आपस में गुलाल लगाकर मिठाई खिलाते हैं l
मैंने होली आने तक बीच में कई बार पुछा कि कब है होली ??? जब हम सब गले मिलकर गुलाल लगायेंगे और मिठाई खिलायेंगे ????
पिताजी कहते की बेटा जल्दी ही है l
आखिर वह दिन आ ही गया l
चारो तरफ वातावरण में खुशियां ही खुशियां........
मानों सुर्य भी नाच रहा हो ........
और पवन इतनी लुभावनी चल रही है की मन में प्रेम बढा रही है......
हर एक के चेहरे पर हंसी मुस्कान ......
सब नये नये कपङे पहन रहे हैं l
मम्मी ने कहा मुझसे-- बेटा शिवा तु भी जल्दी अपने नये कपङे पहन ले होली पर जाना है l और अपने काम में लग गयी बङी व्यस्त सी लग रहीं थी l
उस दिन मम्मी ने दाल चावल बुरा घी बनाये थे l
गांव में कई जगह लोग इकठठा होकर होली के गाने गा गाकर आनंद ले रहे थे l
कितना मजा आया उस दिन मैं कागज पर पैन से नही लिख सकता l
वह तो अब बस मेरे ख्वाबों में ही रह गया है l
उन पलों को याद करके खुशी का अनुभव करके अभी भी आंखे भर आती हैं l
12 15 16 17 वर्ष की लङकीयां सज संवर कर गोबर के बहुत छोटे थोटे से उपले बनाकर रस्सी में पिरोकर अपने अपने घर से होली पर डालने जा रही थी कितनी सुन्दर लग रही थी
मैंने अपनी मां से पुछा-- मम्मी ये सब क्या है और कहां ले जा रही हैं
एक बात का मुझे गर्व है की हमारा सारा परिवार साधु संत प्रवृति का है l
नित्य सत्संग और गीता पाठ होता ही रहता था त
मम्मी ने कहा-- बेटा तु अभी बहुत छोटा है सब पता लग जायेगा उन्होने मुझे टालना चाहा
मैंने जिद्द से कहा की अभी बताओ मुझे l
मम्मी ने कहा-- बेटा ये सब होली को जलाने के लिए अपने अपने घर से डालने को जा रहे हैं
मैंने कहा-- इतनी लकङी तो पहले से ही इकठठा कर रखी हैं फिर इन्हे क्यो ले जा रही हैं ????
मम्मी ने बङे प्यार से कहा-- बेटा ये इस लिए की होली बहुत बुरी थी, लङाई झगङा करने वाली, सब लोग ये उपले इसलिए डालते हैं, की हमारे घर परिवार में जो अशांति है, लङाई झगङा है,
घृणा है l वह सब होली के साथ जल जाये और सब प्रेम से रहे l भाईचारा बढे, सब मिलकर रहे,
मैंने हां में सिर हिलाकर कहा-- अच्छा तो मम्मी जी मैं तो कई गिराकर आऊंगा l
मम्मी ने कहा-- क्यों बेटा कई क्यों ?????
मैंने कहा-- मम्मी जी आप और पिताजी झगङा करते हो l पिताजी, चाचा, ताऊ, सबका झगङा होता रहता है l मेरी चाची ओर चाचा लङते रहते हैं l मैंने भोले पन से कहा की मैं तो 10 गिराकर आऊंगा l सब में प्यार होगा फिर कोई नही लङेगा l
मम्मी जोर से हंसी -- बेटा शिवा तु अभी बहुत भोला है बालक है l
मैंने कहा क्यों मम्मी जी भोले और बालक नही डालते क्या ??????
उन्होने टालने के लिए कहा कि डाल आना जा अब अपने कपङे पहन ले l
मैंने सफेद छोटा सा कुर्ता पायजामा पहन लिया l
सारे गांव में खुशियां ही खुशियां l हर तरफ सब नये नये कपङे पहन कर घुम रहे थे l और उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे सुर्य भी अपनी रोशनी को दुगना कर रहा हो l वह भी होली पर सबके साथ प्यार बांटना चाहता हो l
रात के करीब 8 बजे पिताजी मेरा हाथ पकङकर चले l
पिताजी मुझसे बोले-- बेटा शिवा मेरे पास ही खङे रहना कहीं इधर उधर नही चले जाना l
मैंने कहा-- नही पिताजी मैं आपके पास ही खङा रहुंगा कहीं नही जाऊंगा l
गांव के बाहर लकङीयों का बङा ऊंचा सा ढेर और उन पर बहुत से उपले भी पङे थे जो गोबर से बनाकर पिरो रखे थे वो भी सुखी टहनीयों पर लटक रही थी l
होली जलाने के लिए सैंकङो लोग इकठठा हुए थे l
ढोल नगाङे बज रहे थे लोग होली गा रहे थे l
9 बजे के करीब लकङी के ढेर योनि की होली में आग लगाई l
आग की लपटें बहुत ऊपर तक जा रही थी, मानों आसमान को छुना चाहती हों आंच इतनी तेज थी की सहन नही हो रही थी l
अचानक मैं चिल्लाया-- पिताजी भागो आग हमारी तरफ आ रही है और मैं भागने लगा l
सब लोग मुझे देखकर हंसने लगे l
एक बुढे ने कहा-- यह आग कहीं नही जायेगी बस यहीं तक ही रहेगी तु डर मत l
हम सब भी तो यहीं हैं l मैं सहमा सा डरा सा अपने पिताजी की गोद में सिमटा रहा l डरा डरा सा आग को देख रहा था जैसे पता नही कब वह हमारी तरफ भाग आये l
धीरे धीरे आग ठंडी हो गयी अब वहां मोटे मोटे से लकङों से धुंआ निकल रहा बाकि राख का ढेर l
होली जलाकर सब अपने अपने घर चले गये l
रात को पिताजी ने मुझसे कहा-- बेटा शिवा कल अपने पुराने कपङे पहन लेना जब खेलना और किसी से झगङा मत करना बस अपने घर में ही खेलना
छोटा चाचा आ गया मम्मी से बोले -- कल आप भाभी भांग की लस्सी बनाकर रख लेना l
पिताजी ने कहा-- जो भी होली खेलने आये सबको गुंजीयां और लस्सी दे देना l
------------------------ होली खेलने का दिन ----------------------------------------------
सुबह उठते ही मम्मी ने मुझे पुराने कपङे पहना दिये l
सारे बच्चे सुबह से ही रंगीन पानी की पिचकारी एक दुसरे पर फैंक कर खिलखिलाते, ताली बजाकर हंसते, होली का पुरा आनंद ले रहे थे l
बस हर तरफ मस्ती ही मस्ती खुशियां ही खुशियां मौसम झुम रहा था l
बङे बङे लोग ढोल नगाङे बजाकर खेलते खेलते सबके घरों में जाते l औरते उन पर पानी डालकर मारती l वो मस्ती में झुमते लस्सी पीते गुजीयां और मिठाई खाते फिर नाचने लगते l कितना आनंद आ रहा था l ना कोई छोटा बङा ना कोई हिंदू ना मुस्लिम ना जैन सब ऐसे रंगो में रंगे हुए की सब रंग फिके पङ जाये औरतो ने लोगो के कपङे फाङ दिये l
हम सब बच्चे भी उन पर रंगो की पिचकारी मार रहे थे l
सब लोग उस दिन मानो सब कुछ भुल गये बस होली ही होली खेलना, औरतों से पिटना, खाना पिना, और नाचना और मस्ती से झुमना बस और कुछ नही l
अचानक एक बच्चे की चिखने की आवाज आयी..... मम्मी..........................................
एक औरत ने भागकर उसे उठाया -- क्या हुआ लाला आंखे खोल लाला लाला
उसने रोते हुए कहा -- मम्मी अमित ने मेरी आंख में रंग फैंक दिया है l बहुत दर्द हो रहा है l
उस बच्चे का बाप ताऊ चाचा सब इकठठे हो गये l
कुछ ही क्षणों के बाद मस्ती भरे माहोल में जहर घुल गया l और मां बहन की गालीयां होने लगी l
दुसरी तरफ से कुछ लोग भी और जोर से बोलने लगे l
बातों बातों में ही लाठीयां बल्लम भाले निकाल लाये l
मैंने अपनी मां से कहा-- मम्मी आप तो कह रही थी होली जलाने से लङाई झगङा नही होता l
उन्होने मुझे डांटा तु चुप नही रह सकता हर समय चपङ चपङ करता रहता है l जुबान को बंद भी रख लिया कर l
और लङाई इतनी बढी की पांच सात आदमीयों के सिर फुट गये l
जहां थोङी ही देर पहले रंगो से भीगे हुए मस्ती में झुम रहे थे l वहीं खुन से लथपथ खाटों पर पङे गालीयां दे रहे हैं l
एक दुसरे के खुन के प्यासे l
मैंने चुपचाप अपनी पिचकारी घर के अंदर छिपाकर रख दी l
मैंने मम्मी से कहा--- मम्मी जी अब मैं कभी नही खेलुंगा होली मुझे पिचकारी से डर लगता है l
क्या गलती थी उस मासुम की ???? क्या गलती थी उस पिचकारी की ?????
उस दिन से मैं गांव में होली के मौके पर रहा ही नही और ना ही कहीं खेला l
ऐसा खेल क्या खेले जिसमें प्रेम की जगह नफरत हो हिंसा हो l नही करनी ऐसी मस्ती जिससे समाज में भाई चारे की जगह दरार पङे एक दुसरे के खुन के प्यासे हो l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर

रविवार, 17 मई 2009

मिलन का सुख

मिलन का सुख-- मेरा अनुभव
यह तो सभी को पता है, कि मिलन से कितना सुख प्राप्त होता है l अगर हमें किसी से मिलना हो तो कई दिन पहले से ही तैयारी करने लगते हैं , की हमारा फलां रिस्तेदार भाई बहन या बेटा बेटी या कोई और चाहने वाला आ रहा है l कितने असीम आनंद के पल होते हैं वो l लेकिन आज कल क्या सोच रहे है कि वही मां वही बाप भाई बहन रिस्तेदार उनको तो रोज आना जाना है l अब बस ऐसा होता है की फलां आदमी आज हमसे मिलने आ रहा है l कोई तङप नही होती कोई व्याकुलता नही होती l बस थोङा खुश होने का दिखावा सा करते हैं ऊपर से देखकर मुस्कुराते हैं मैं किसी एक की बात नही कर रहा ज्यादातर लोग ऐसे ही हो गया हैं l अरे मिलने की तङप तो क्या कई बार तो बोर भी होने लगते है अपनो से l और सोचते है की रोज ही आकर बैठ जाते हैं l पता नही कोई काम है या नही l ऐसा भाईयों इसलिए है, की हम अपनो सो अभी तक बिछुङे नही हैं l किसी चीज का गहरा अनुभव जभी होता है, जब हाथो से छुट जाती है तब उसकी किमत का पता लगता है l
मिलने की तङप, मिलने का सुख देखा है मैने.. की किस तरह, कितनी बैचैनी होती है l एक एक पल काटना कितना भारी होता है l किस तरह अपनों को खोजती हैं ये प्यासी निंगाहे.. कुछ पलों की देरी हो जाये और इन बेबस निगाहों को ना हो अपनो का दीदार तो कैसे आँसु बहाती है, की सारा चेहरा भीग जाता है l और फिर अचानक भीङ और अंधेरे में दिखाई देता है किसी अपने का दुखी और उदास चेहरा शोर ऐसा की कुछ भी सुनाई ना पङे 100-- 125 आदमी छोटी सी जगह में चिल्लाते रहते हैं तो कितना सकुन मिलता है , इस दिल को कितना आनंद मिलता है l इसका वर्णन किसी की भी वाणी नही कर सकती, कलम लिख नही सकती l
लेकिन इस आनंद की अनुभूति जो मैंने प्राप्त की है चाहता हुं की किसी को भी ना हो l अपनो से मिलने का आनंद तो भगवान इससे भी ज्यादा दे सबको l लेकिन माध्यम ऐसा ना हो, हम आम जीवन में अपने मां बाप भाई बहन दोस्तो से रिस्तेदारों से सबसे मिलते हैं लेकिन यंत्रवत से मिलते है कोई संवेदना नही होती कोई तङप नही होती l
एक जगह है हमारे समाज का अंग है कारागार यानि की जेल l नाम से तो लग रहा होगा की बात तो कैसी भावुकता की कर रहा है लेकिन जेल में क्या कोई किसी से मिलने के लिए तङपता होगा ??? जो हत्यारे हैं मां को बेटे से जुदा कर देते हैं भाई को मारकर बहन को अकेला कर देते हैं तो क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहाते होंगे ??? जो लोग हत्या डकैती अपहरण बलात्कार दहेज के लालच में अपनी बहु को जला देते हैं, क्या वो भी किसी के लिए आंसु बहायेंगे ??? किसी के लिए तङपेंगे l
जी हां यह बिलकुल सत्य है l घर में मां बाप कहते हैं, की बेटा जल्दी आना l लेकिन हमें तो कोई असर ही नही होता की कोई हमारा इंतजार कर रहा होगा l कितने तङपते होंगे मां बाप हमारे लिए l
11 जुन 1999 को में कारागार तिहाङ चला गया किसी आरोप में l घर से अलग रहते हुए तो मुझे कई वर्ष हो गये थे l लेकिन कोई परेशानी नही आयी l जेल में पता नही क्या हुआ ना कोई दिक्कत ना कोई परेशानी l इतने आदमी साथ रह रहे l मात्र दो ही दिनों में ऐसा लगने लगा की जैसे पता नही कितने वर्षों से नही मिला अपने मां बाप से अपने भाई बहनो से l खाना भी खाया सोया भी लेकिन रोया भी बहुत l जब घर से अलग सारे परिवार से अलग मैं रहता ही था, कभी किसी की याद नही आती थी l तो अब क्यों इतना बैचेन हो रहा हुं l दिल में आया की बस घर वाले भी याद कर रहे होंगे इसलिए मुझे भी उनकी याद आ रही है l
लेकिन यह तङप मेरी ही नही थी,,, और भी कई लोग इसी तरह व्याकुल थे अपने घर वालों के लिए तङप रहे थे l
सोमवार का दिन जेल में मुलाकात का दिन होता है l मुझे कुछ नही पता की क्या होगा लेकिन जो लोग पुराने थे जल्दी जल्दी नहा धोकर घुमने लगे l मैंने पुछा किसी से कि क्या बात है आज सब लोग बङे खुश से लग रहे हैं l तो उसने कहा की आपको नही पता की आज मुलाकात का दिन है l सबके घर वाले मिलने के लिए आते हैं l तो मुझे भी बहुत खुशी सी हुई की शायद हमारे घर से भी कोई आ जाये l
वार्ड में घंटी बजी सब लोग एक ग्राउंड में इकठठा हो गये l मुलाकात का पर्चा बोला उसमें मेरा भी नाम था l मुझे अभी तक कुछ भी नही पता था की क्या होगा ???? क्या है ये मुलाकात का पचङा ??? सबके हाथ पर नम्बर लिख दिये गये मुझे भी 25 नम्बर दे दिया l जहां पर हम गये वहां छोटी छोटी सी जालीयां हल्का सा अँधेरा जाली इतनी छोटी की साफ कुछ भी नही दिखाई पङ रहा l और शोर इतना की कल्पना करो एक हाल में 200 250 आदमी
और सब एक दुसरे को खोज रहे हों तो क्या हालात बनेंगे ???? कुछ भी सुनाई नही पङ रहा l मैं तो पहली बार आया था पागलों की तरह घुम रहा था l क्या करू क्या ना करू समझ ही नही आ रहा था ????? अचानक मेरे कानों में आवाज आयी शिवा,,,,,,,,,,,, तो मैं झट से आवाज की दिशा में झपटा जाली इतनी छोटी की साफ साफ कुछ भी नही दिखाई दे रहा था l फिर आवाज आयी की शिवा हम यहां है आवाज मेरी बहन की थी l मैने पहचान लिया,, दुसरी तरफ मेरी मां, बहन और जीजा थे l मेरी बहन ने पुछा की कैसा है l
यह बात तो जब भी में उनके पास जाता था पुछते ही थे, लेकिन आज क्या हो गया जो उनको देखते ही मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकली l बस गला रूंध गया और आंखो से आँसु टपकने लगे l
जेल में ना कोई कष्ट है, ना कोई तंग रहा, और सिर्फ तीन दिन ही तो हुए हैं l जब मैं तीन महिने घर से अलग रहता तो कभी नही रोया लेकिन उस दिन तो गजब हो गया रोकते रोकते नयनों से अश्रु बह रहे थे रूकने का नाम ही नही.. बङी मुश्किल से बस एक ही बात कह पाया की मम्मी जी आप कैसी हो
वही मां वही बहन तो आज अलग क्या हो गया जो इतना स्नेह इतना प्यार हुआ की दिल में नही समाया तो आंखो के जरिये बहार आ रहा है मेरी बहन ना कहा तु चिंता मत कर हम जल्दी ही जमानत करवा लेंगे और मम्मी भी ऐसे रोने लगी जैसे पता नही कितने वर्षों के बाद देख रही हो अपने बेटे को मुलाकात का समय समाप्त हुआ पुलिस वाला आया और सबको भगाने लगा की चलो दुसरो को भी मुलाकात करनी है लेकिन ना मां का दिल कर रहा है जाने का ना मेरा मन कर रहा था कि वापिस जेल जाउं परन्तु क्या करें जाना तो पङता ही मम्मी ने खाना और कपङे दिये और घर की तरफ चल दिये पिछे मुङ मुङ कर देखती जा रही थी मेरी मां आज मुझे पहली बार मां की तङप एक बेबस मां की ममता का आभास हुआ और क्या होता है अपनो से मिलने का आनंद उस दिन कैसी दिव्य शांति का अनुभव हुआ जिसका वर्णन मैं शायद लिखकर कभी नही कर सकता लेकिन यह बात मैं अवस्य ही कहुंगा की पहली बार मुझे अपनी मां देवी के रूप में प्रतित हो रही थी.. जो खाना देकर जाते हैं घर वाले सब लोग एक जगह एक कमरें में बैठकर खाते हैं चारो तरफ खाना ही खाना
जीवन के 20-- 22 वर्ष रोज ही ते घर का खाना खाया था लेकिन उस दिन जो खाने में आनंद आया वह पहले कभी नही आया, घर पर तो रोज मन करता था की बाहर कहीं होटल में खाया जाये, प्रथम बार यह अनुभव हुआ की जिस भोजन में मां की ममता मिली होती है उस जैसा आनंद वैसा स्वाद किसी भी व्यंजन में नही होता..
घर पर और समाज में कितने त्योहार होते हैं हम सब मनाते भी हैं लेकिन क्या दिपावली पर पटाखे छोङना मिठाई बांटना होली पर रंग लगाकर गुंजीयां खाना बस यही हैं त्योहार की खुशियां,,,,,, नही दोस्तो त्योहारों में होता है अपनापन, सदभावना, मैत्री, प्रेम, भाईचारा, और शांति....... जरा विचार करें की क्या हमारे त्योहारो हैं ये सब
क्या होता है त्योहारों की खुशियां,,, रक्षाबंधन का नाम तो सबने ही सुना होगा कि बहन इस दिन भाई की कलई पर राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है और टिके की थाली में अपनी हैसियत के अनुसार रूपये दे देते है बस....
लेकिन भाईयों मैंने इस त्योहार की अहमियत देखी है बहन सिर्फ राखी ही नही बांधती अपने भाई की सलामती और खुशियों का भी प्रार्थना करती है.. जेल में भी इस पावन पर्व को मनाने की खुली छुट है कोई बंधन नही कोई रोक टोक नही,,, राखी तो बहने हर साल बांधती है लेकिन सन 2000 के रक्षा बंधन को में आज तक नही भुल पाया हुं और शायद ना ही भुल पाऊं ...
सारी जेल में रक्षा बंधन से सम्बंधित गीत बज रहे थे सुबह 8 बजे से ही बहने मिठाई लेकर आनी शुरू हो गयी थी मेरा भी नाम मुलाकात पर्चे में आ गया जहां मुलाकात हो रही थी वहां का दृष्य देखकर कितने भी कठोर दिल का आदमी हो वह भी रोने लगेगा किस तरह से बहन भागकर आती और रोती हुई अपने मजबुर और बेबस भाई को गले लगाकर विलाप करती... राखी तो हर वर्ष आयी होगी लेकिन क्या इतनी बैचेनी भाई को देखने के लिए इतनी तङप राखी बांधने के लिए हुई होगी कभी,,,, शायद कभी नही...................
मैं बचपन से ही बहुत कटटर रहा हुं मेरा नम्बर आया, लेकिन कोई नही आया इन्तजार करता रहा, दिमाग में पता नही कितने विचार आये, की पता नही क्यों नही कोई आया ??? कहीं कोई घटना तो नही घट गयी ??? इन्हीं विचारों में भटक रहा तो दरवाजे पर मेरी बहन दिखाई दी मेरी नजरें तो एकटक दरवाजे पर ही लगी हुई थी मेरी बहन की हालात भी दुसरी बहनों जैसी आते ही फुट फुटकर रोने लगी पता नही मेरे कटटर दिल में कहां से प्रेम भावनाए पनप आयी की मैं भी अपनें आंसु नही रोक पाया..
जब बाहर राखी होती है तो बहन की थाली में रूपये डालते है लेकिन हम कितने मजबुर की आज अपनी बहन को कुछ भी नही दे सकते,, बस हम दे सकते तो सिर्फ आंसु उसके अलावा कुछ नही
अब पता अपनों के मिलन के अहसास का की क्या होता मिलन का आनंद क्या होता

त्याग से मिलती है शांति

त्याग से तत्काल मिलती है - शांति

मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ हैl ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ठ है l क्योंकि त्याग से तत्काल शांति मिलती हैl
ये पन्क्तिया भगवद्गगीता मे भगवान ने कही हैं l यहाँ पर स्पस्ट कह रहे हैं ज्ञान आवस्यक है तत्व के जाने बिना अर्थात कर्म के परिणाम कि जानकारी के बिना किये गये अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है l
जैसा की व्यवहारिक जीवन में देखा जा रहा है कि एक पंडित सारा दिन लगा रहता है मंदिर में भगवान की सेवा में
मोलवी मस्जिद में अध्यापक को ज्ञान बांटते हुए वर्षो बीत गये मगर सच्चाई क्या है l
इसी बात को सहजता से समझाने के लिए कहा है कि ज्ञान श्रेष्ठ है l कर्म करने का अभ्यास तो हर व्यक्ति करता है l लेकिन परिणाम भिन्न भिन्न हो जाता है जैसे एक डाक्टर अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है, दुसरा एक डाकू अपने चाकू से किसी का पेट फाङ देता है l परिणाम..... एक को बंधन अपमान सजा तो दुसरे को सम्मान मिलता है l कर्म करने का अभ्यास तो दोनो ने किया लेकिन बिना ज्ञान के किया गया अभ्यास कितना व्यर्थ है l
यहां से आगे भगवान और थोङी गहराई में ले जाते हैं l ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ है l गीता के एक श्लोक में कृष्ण ने पुरे संसार के व्यक्तियों का वर्णन कर दिया है न0 1 कर्म में लिप्त रहते हैं न0 2 ज्ञान न03 ध्यान न04 योग त्याग.l......
लेकिन भगवान ने जैसा कहा है ज्ञान से भी मुझ प्रमेश्वर के स्वरूप का ध्यान उत्तम है l क्या करें
इन शब्द्धो का अर्थ ही बदल दिया है l जिस स्वरूप का ध्यान श्रेष्ठ बताया गया है उसे तो भुला ही दिया गया और भगवान के स्वरूप को एक मंदिर तक मस्जिद एक मू्र्ती तक या किसी एक जगह तक सिमित करके उसमें ही लिप्त रहने लगे हैं l उसको भुला दिया जिसको भगवान ने कहा है- ईश्वरः सर्वभुतानां ह्रदेशे अर्जुन तिष्ठति अर्थात प्रमात्मा सबके ह्रदय में विधमान है तो स्पस्ट है कि किस स्वरूप का ध्यान करने के लिए कह रहे हैं l किसी भी सम्प्रदाय धर्म जाति का धार्मिक ग्रन्थ हो सभी में भाषा बदल गयी होगी लेकिन अर्थ यही है सर्वभुतानां ह्रदेशे तिष्ठति l
अब क्या हो रहा है लोगो ने स्वार्थ पुर्ति तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता के कारण एक दुसरे के खुन के प्यासे हो रहे हैं एक दुसरे का वजुद मिटा देना चाहते हैं भगवान का संकेत है कि मेरे स्वरूप का ध्यान कि जितने भी प्राणी हैं वो मेरे ही अंश हैं सबके ह्रदय में प्रत्यक्ष विधमान हुं उसका ध्यान करो कि किसी भी प्रकार से हमारे कारण अन्य प्राणींयो का अनिष्ट तो नही हो रहा है किसी को शारीरिक मानसिक कष्ट तो नही हो रहा है l इसके पश्चात भगवान ने हमें इतना सहज और सरल तरिका बताया है l कि ध्यान से भी सब क्रमों के फल का त्याग श्रेष्ठ है l यह बात कितनी आसान सी लग रही है ना परन्तु बहुत कठिन है l कैसे कर सकते हैं हम कर्म फल का त्याग,,, मन का स्वभाव तो ऐसा बना हुआ है कि कर्म करने से पहले उसके फल की इच्छा कर लेते हैं l और कर्म चाहे जैसा भी हो उसका परिणाम जिसकी हमने कल्पना की है वह बहुत सुन्दर है l और बिना कर्म किये ही परिणाम फल का महल खङा कर लेते हैं l
भगवान ने यही मना किया है कि ज्ञान और मेरे ध्यान से भी सब कर्मो के फल का त्याग उत्तम है l वो झुठ तो कह नही सकते l यह भी कहा है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l यह मानव सुबह से सांय सांय से रात तक यह शांति प्राप्त करने के लिए ही तो भागता रहता है l लेकिन जीवन में शांति के बजाय अशांति असुरक्षा भय अपना शिकंजा कसता जाता है l
यह बात बिलकुल सत्य है जो भगवान समझा रहे हैं l उसको माने जाने बिना शांति सुख चैन हमारे जीवन में आ ही नही सकते l यह भी नही है कि लोगो को इस बात का ज्ञान नही है l बहुतों को पता है लोग आपस में कहते भी हैं l कि गीता में कहा है कि कर्म कर फल की इच्छा ना कर l जैसा कर्म करेगा इन्सान वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान ये एक फिल्म कि पंक्ति हैं l इतने सबके बावजुद भी नही समझते इस तथ्य को लोग स्वीकार तो करते हैं, लेकिन कब जब किसी कार्य में हानि हो जाय तो अन्य दुसरे ही समझाते हैं कि जो ऊपर वाले कि मर्जी है वही होता है अगर किसी कार्य में सफलता मिल जाय तो मनुष्य अपनी पीठ थपथपाता है की मैं इतना समझदार हुं होशियार मैंने इतना मुनाफ इतना लाभ कमाया यह कार्य इतनी कुशलता ते किया यहां पर भगवान को श्रेय नही देते
भारत ही नही सारे संसार में भगवान के इस कथन की आवस्यकता है कि त्याग से तत्काल शांति मिलती है l
त्याग का अर्थ यह नही है की हम सब कुछ छोङ कर जंगल में चले जाये... हमें किसी व्यक्ति या वस्तु को नही छोङना बल्कि उनमें होने वाली आसक्ति का त्याग करना है,,, यहां पर कोई किसी प्रकार का सन्देह नही होना चाहिए भगवान ने कर्म को त्यागने की बात नही कही कर्म फल के प्रति तृष्णा का त्याग करना है l आज जो हालात हमारे समक्ष है लोग आये दिन आत्महत्या करके अपनी और अपने परिवार की जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं विधार्थी शिक्षक व्यापारी नोकर हर कोई पीङित है दुखी परेशान है l अगर एक विधार्थी अपना कर्तव्य भली प्रकार करे और फल की चिंता ना करे यानि कि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र से सम्बधित हो वह इसी बात को स्वीकार करे जानते तो सब हैं लेकिन मानते नही स्वीकार नही करते l,,
बच्चा जब छोटा सा होता है तो मां बाप उसके दिमांग में यह बात भरनी शुरू कर देते हैं कि बेटा अच्छी तरह ध्यान से अच्छी नोकरी लगेगी पैसा कमायेगा l इतनी इच्छाएं इतनी महत्वाकांक्षाएं बढ जाती हैं l उस कोमल से बालक की अब वह इतने तनाव में रहता है कि अगर पढाई ठीक नही हुई तो मैं बेकार हो जाऊंगा l जब हमारी कल्पनाओं को झटका लगता है तो कांच के सिसे की भांति टुटकर बिखर जाता है यह मानव मन l और इसके पश्चात लोग नशे में डुबकर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं l तो कितना लाभप्रद है कर्मो के फल का त्याग जीवन में सुख चैन और शांति स्थापना के लिए l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर
email- jatshiva.tomar@gmail.com

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

अपराध मुक्त राजनीति

अपराध मुक्त राजनीति
राजनीति और अपराध मुक्त बङा आश्चर्य सा हो रहा है ना सुनकर बङा असमंजस सा हो रहा होगा आपको नही सभी को ही अजीब सा लगेगा क्योंकि अपराध और राजनीति का तो चोली दामन का साथ है एक के बिना दुसरा अधुरा है अकेली राजनीति चल नही सकती बिना राजनीति के अपराध फल फूल नही सकता यूं कहो तो और भी अच्छा होगा राजनीति में अपराध आग में घी का काम करता है
हम बात कर रहे हैं अपराध मुक्त राजनीति की ..........................................
राजनीति गांव शहर समाज और राष्ट्र में होने वाले कार्य कलापों गति विधियों आचरण संस्कार का आईना है
मैं कोई ज्ञानी विद्वान नही हुं बस एक सिधा साघा सा नागरीक हुं जिंदगी में कष्ट और दुखों के झटको को सह सह कर बङा अनुभव किया है और हर पहलु पर गहराई से अध्ययन किया है तो हमारे समाज का सबसे संवेदनशिल अंग है राजनीति
राजनीति में लोगो को देखकर समाज के हर वर्ग के लोगो पर बहुत गहरा प्रभाव पङता है
नेताओं को हम लोग श्रेष्ठ और देश के संचालक कर्ता धर्ता मानते हैं लोग नेताओं के फोटो भी अपने घरों में लगाकर रखते हैं अगर हमारे सम्मानीत व्यक्ति ही अपराध में लिप्त या अपराध से ग्रसित हो तो क्या होगा जनता का ????????
जिस समाज का संचालन करने वाले व्यक्ति अपराध मुक्त नही होगें भ्रष्टाचार मुक्त नही होगें तो देश में न्याय व्यवस्था कार्य व्यवस्था शांति सुरक्षा कैसे स्थापित होगी
भगवान श्री कृष्ण ने भगदगीता में भी कहा है कि श्रेष्ठ पुरूष जैसा जैसा आचरण करते है अन्य भी वैसा ही करते है यह शत प्रतिशत सत्य है इस बात को हम और अच्छी तरह से एक उदाहरण के माध्यम से समझे की एक घर में 5 सदस्य हैं और घर का मुखिया शराब पीता है यह एक घर की घटना है यही क्रम है परिवार से समाज बनता है तो देखा होगा 80 प्रतिशत बच्चे बीङी तम्बाकु गुटके शाराब का सेवन करते है और घरों में हिंसा ऐसी होती है का रोज खाना नही गालीयां खानी पङती हैं l
जैसै देखा गया है की कितने बङे स्तर पर देश में घोटाले हो रहे हैं सी बी आई और मीडीया कितने लोगो की पोल खोलती है अरबों रूपये के घोटाले हो रहे हैं बङे बङे नेताओं के नाम आते है पता नही बाद में क्या होता है ???????
हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि हर व्यक्ति अपनी जो भी नोकरी करता है चाहे तनख्वाह ज्यादा हो या कम हो ऊपर की कमाई जरूर करने की सोचता है l
अब से राजनीति में अपराध और अपराधीयों का प्रवेश हुआ है हमारी न्याय पालिका, शिक्षा का क्षेत्र हो या व्यापार सिपाही हो या अधिकारी हर विभाग में अपराध अपना शिकंजा कसता जा रहा है जो इसका परिणाम है वह हमारे सब के सामने है किस तरह हमारा युवा वर्ग अपराध भ्रष्टाचार अश्लीलता व्यभिचार की दलदल में फंस रहे हैं
क्यों कहा है भगवान ने की शाशन करने वाले में यमराज हुं में ????????
हमारा शाशक हमारे नेता श्रेष्ठ संचालन कर्ता का आचरण यमराज जैसा कठोर होना चाहिए भ्रष्टता लालच स्वार्थ पुर्ण नही बल्कि न्याय, सेवा और समर्पण होना चाहिए
देश और समाज में बढता अपराध हिंसा स्वार्थ बङी चिंता का विषय है
वर्तमान राजनिति में तो अपराध का ही बोलबाला है ज्यादातर नेताओं पर अपराधिक मुकदमें चल रहे हैं अभी कुछ माह पहले अंडर वर्ल्ड डोन अबु सलेम कस्टडी पैरोल पर अपने घर आजमगढ गया वहां के युवा वर्ग ने उसके जिंदाबाद के नारे लगाये और जायजा ले तो आज आजमगढ अपराध और आतंक का विस्व विधालय बन रहा है अब अबु सलेम भी राजनिति में आने का मन बना रहा है अतीक अहमद,, साहबुदीन,, मुखत्यार अंसारी,, पप्पु यादव,, और भी ना जाने कितने अपराध प्रवृत्ति के लोग ने राजनिति में अपना झंडा गाङ दिया है तो क्या होगा समाज का ??????????
ये तो बात हम सबको पता है लेकिन इसका समाधान क्या है कैसे हो अपराध मुक्त राजनिति कैसे निकले इसके शिकंजे से ??????????
कोनसा सुत्र है वह जिससे समाज और हर व्यक्ति अपराध मुक्त हो ???????
राजनिति को इसलिए कह रहे हैं की नेताओं का लोग अनुशरण करते हैं कोइ नेता आरक्षण मांगने के लिए खङा हुआ तो हजारों लोग बिना परिणाम की चिंता किये उसके पिछे चल पङे आग लगाई सरकार का नुकसान किया लाठीयां खाई गोलीयां खाई लेकिन अपने नेता के पिछे जरूर चले
कोई सम्प्रदाय के नाम पर चला तो कोई तो कोई जाति के नाम पर उसके चाहने वाले उसके पिछे पिछे चल पङे ये भी आवश्यक नही है की सिर्फ हिंसा को ही भङकाने के लिए चलते हैं बापु गांधी अहिंसा की लाठी लेकर चले तो लाखो लोग पिछे चल पङे
आज लोग अपने पिछे भीङ को एकत्रीत तो कर लेते हैं लेकिन कहीं ना कहीं अपराध, हिंसा में लिप्त रहते हैं
ओर भ्रष्टचार से मुक्त नही हो पाते और परिणाम यह होता हैं कि उनके समर्थक भी उनके चाहने वाले भी अपराध के शिकंजे में फंसते चले जाते हैं
आप यह सोच रहे होगे की कैसा पागल आदमी है इस बात का हम सबको मालुम है की राजनिति ही नही समाज का हर वर्ग अपराध और भ्रष्टाचार से ग्रसित है कोई रास्ता क्यों नही बता रहा की किस प्रकार से होगी राजनिति और समाज अपराध मुक्त
और हर व्यक्ति चाहता भी है की कोई गलत कार्य ना करे फिर भी क्या कारण है जो ना चाहता हुआ भी अपराध की दलदल में फंसता जा रहा है
तो यही सवाल भगवान श्री कृष्ण से पुछा था की किससे प्रेरित होकर व्यक्ति अपराध करता हैं यह प्रश्न किसी एक का नही हर कोई चाहता है इसका जबाब
तो भगवान ने दो टुक भाषा में साफ कहा था कि किसी विषय के बार बार चिंतन करने से उस विषय के प्रति आसक्ति बढ जाती है और उसकी प्राप्ति ना होने पर क्रोध आता है क्रोध आने से व्यक्ति अपनी स्थिती से गिर जाता है और परिणाम यह होता है की कुछ भी अपराध कर बैठता है
यह भगवान का संदेश किसी एक के लिए नही है वो तो अंतर्यामी है सब कुछ जानते है की क्या होने वाला है इसी लिए यह बात बतायी थी क्योंकि आज के भागम भाग जमाने मे एक दुसरे से आगे निकलने की होङ सी लगी है
यही कारण है की इतनी तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता हो गयी है की हर कोई अपने घर परिवार तक ही सिमट कर रह गये हैं इतिहास गवाह है कि जो भी व्यक्ति अपने घर परिवार से ऊपर ऊठकर समाज में चला है वही अपराध मुक्त हुआ है
लेकिन में किसी एक की बात नही कर रहा आज तो हर आदमी ही यह चाहता है की मेरे बच्चे सबसे ऊपर जायें सबसे ज्यादा पैसा कमाये गाङी बंगला सब ऐसो आराम हो चाहे रास्ता कोई भी अपनाना पङे
आज एक नेता चुनाव में करोङो रूपये खर्च कर देता है तो वह क्या जनता की सेवा करेगा अपनी और अपने घर परिवार की सेवा करने के लिए राजनिति में आ रहे हैं
भगवान ने कहा है की हे मानव तु हर समय मेरा चिंतन भी कर अपना कर्म भी कर इससे तु सदा अपराध मुक्त रहेगा तु मुझमें ही निवास करेगा
आज राजनिति ही नही पुरे विस्व के हर वर्ग को भगवदगीता के मार्गदर्शन की जरूरत है इससे ही अपराध मुक्त हो सकते

शिवा तोमर

रविवार, 19 अप्रैल 2009

चाहत

दिल की गहराई से चाहा है तुम्हे
जब भी तन्हा हुआ हुं साथ पाया है तुम्हे
अकेला बैठता हुं खाता हुं कहीं भी रहुं
कैसी अजीब चाहत है हर पल यादों में पाया है तुम्हे
जीवन में आये दुख बहुत कष्टों ने भी घेरा.
कभी जीने की चाहत हुई कभी मरने की तम्मना
कहीं नही मिला रास्ता चारो और था अन्धेरा
दुखी हुआ उदास हुआ कहीं नहीं मिला किनारा
बंद किये नयन सामने पाया तुम्हे