डर गये होली से
डर गये होली से सब सोच रहे होंगे की होली तो प्रेम बढाने का दिन है, मिलन का दिवस है l तो फिर डरेंगे क्यों ???
बात करीब 18-20 वर्ष पहले की है होली के सवा माह पहले से ही बच्चे लकङी काटकर होली की तैयारी करने लगते थे, औरतें फागुन की चांदनी रात में गीत गाकर अपनी खुशी का इजहार करती थी l
एक दिन सांय को करीब चार बजे मैं अपने पिताजी की अंगुली पकङकर खेत से आ रहा था मैंने देखा बहुत से लङके पेङों को काटकर सङक पर खिंचकर ला रहे थे l
मैंने पिताजी से पुछा--- ये सब क्या कर रहे हैं ???
पिताजी ने कहा-- बेटा होली आने वाली है l ये बच्चे होली को जलाने के लिए लकङी इकठठा कर रहे हैं l
मैंने भोलेपन से पुछा-- ये होली कोन है ?? और ये लोग उसे क्यो जलाते हैं ????
पिताजी ने मुझे बङे धैर्य से समझाया-- बेटा ये होली एक राक्षसी थी जो हजारों वर्ष पहले आग में जलकर मर गयी थी l वह बहुत बुरी थी l
मैंने कहा-- जब वह इतने वर्ष पहले वह मर गयी तो फिर अब भी उसे क्यों जलाते हैं ???
पिताजी ने कहा-- वह तो मर गयी लेकिन हम आज भी इस त्योहार के दिन लकङी की होली जलाकर जो हमारा आपस में लङाई झगङा, बैर, कलह होती है l इसे जलाकर आपस में गले मिलकर, प्रेम बढाते हैं, भाईचारा बढाते हैं l आपस में गुलाल लगाकर मिठाई खिलाते हैं l
मैंने होली आने तक बीच में कई बार पुछा कि कब है होली ??? जब हम सब गले मिलकर गुलाल लगायेंगे और मिठाई खिलायेंगे ????
पिताजी कहते की बेटा जल्दी ही है l
आखिर वह दिन आ ही गया l
चारो तरफ वातावरण में खुशियां ही खुशियां........
मानों सुर्य भी नाच रहा हो ........
और पवन इतनी लुभावनी चल रही है की मन में प्रेम बढा रही है......
हर एक के चेहरे पर हंसी मुस्कान ......
सब नये नये कपङे पहन रहे हैं l
मम्मी ने कहा मुझसे-- बेटा शिवा तु भी जल्दी अपने नये कपङे पहन ले होली पर जाना है l और अपने काम में लग गयी बङी व्यस्त सी लग रहीं थी l
उस दिन मम्मी ने दाल चावल बुरा घी बनाये थे l
गांव में कई जगह लोग इकठठा होकर होली के गाने गा गाकर आनंद ले रहे थे l
कितना मजा आया उस दिन मैं कागज पर पैन से नही लिख सकता l
वह तो अब बस मेरे ख्वाबों में ही रह गया है l
उन पलों को याद करके खुशी का अनुभव करके अभी भी आंखे भर आती हैं l
12 15 16 17 वर्ष की लङकीयां सज संवर कर गोबर के बहुत छोटे थोटे से उपले बनाकर रस्सी में पिरोकर अपने अपने घर से होली पर डालने जा रही थी कितनी सुन्दर लग रही थी
मैंने अपनी मां से पुछा-- मम्मी ये सब क्या है और कहां ले जा रही हैं
एक बात का मुझे गर्व है की हमारा सारा परिवार साधु संत प्रवृति का है l
नित्य सत्संग और गीता पाठ होता ही रहता था त
मम्मी ने कहा-- बेटा तु अभी बहुत छोटा है सब पता लग जायेगा उन्होने मुझे टालना चाहा
मैंने जिद्द से कहा की अभी बताओ मुझे l
मम्मी ने कहा-- बेटा ये सब होली को जलाने के लिए अपने अपने घर से डालने को जा रहे हैं
मैंने कहा-- इतनी लकङी तो पहले से ही इकठठा कर रखी हैं फिर इन्हे क्यो ले जा रही हैं ????
मम्मी ने बङे प्यार से कहा-- बेटा ये इस लिए की होली बहुत बुरी थी, लङाई झगङा करने वाली, सब लोग ये उपले इसलिए डालते हैं, की हमारे घर परिवार में जो अशांति है, लङाई झगङा है,
घृणा है l वह सब होली के साथ जल जाये और सब प्रेम से रहे l भाईचारा बढे, सब मिलकर रहे,
मैंने हां में सिर हिलाकर कहा-- अच्छा तो मम्मी जी मैं तो कई गिराकर आऊंगा l
मम्मी ने कहा-- क्यों बेटा कई क्यों ?????
मैंने कहा-- मम्मी जी आप और पिताजी झगङा करते हो l पिताजी, चाचा, ताऊ, सबका झगङा होता रहता है l मेरी चाची ओर चाचा लङते रहते हैं l मैंने भोले पन से कहा की मैं तो 10 गिराकर आऊंगा l सब में प्यार होगा फिर कोई नही लङेगा l
मम्मी जोर से हंसी -- बेटा शिवा तु अभी बहुत भोला है बालक है l
मैंने कहा क्यों मम्मी जी भोले और बालक नही डालते क्या ??????
उन्होने टालने के लिए कहा कि डाल आना जा अब अपने कपङे पहन ले l
मैंने सफेद छोटा सा कुर्ता पायजामा पहन लिया l
सारे गांव में खुशियां ही खुशियां l हर तरफ सब नये नये कपङे पहन कर घुम रहे थे l और उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे सुर्य भी अपनी रोशनी को दुगना कर रहा हो l वह भी होली पर सबके साथ प्यार बांटना चाहता हो l
रात के करीब 8 बजे पिताजी मेरा हाथ पकङकर चले l
पिताजी मुझसे बोले-- बेटा शिवा मेरे पास ही खङे रहना कहीं इधर उधर नही चले जाना l
मैंने कहा-- नही पिताजी मैं आपके पास ही खङा रहुंगा कहीं नही जाऊंगा l
गांव के बाहर लकङीयों का बङा ऊंचा सा ढेर और उन पर बहुत से उपले भी पङे थे जो गोबर से बनाकर पिरो रखे थे वो भी सुखी टहनीयों पर लटक रही थी l
होली जलाने के लिए सैंकङो लोग इकठठा हुए थे l
ढोल नगाङे बज रहे थे लोग होली गा रहे थे l
9 बजे के करीब लकङी के ढेर योनि की होली में आग लगाई l
आग की लपटें बहुत ऊपर तक जा रही थी, मानों आसमान को छुना चाहती हों आंच इतनी तेज थी की सहन नही हो रही थी l
अचानक मैं चिल्लाया-- पिताजी भागो आग हमारी तरफ आ रही है और मैं भागने लगा l
सब लोग मुझे देखकर हंसने लगे l
एक बुढे ने कहा-- यह आग कहीं नही जायेगी बस यहीं तक ही रहेगी तु डर मत l
हम सब भी तो यहीं हैं l मैं सहमा सा डरा सा अपने पिताजी की गोद में सिमटा रहा l डरा डरा सा आग को देख रहा था जैसे पता नही कब वह हमारी तरफ भाग आये l
धीरे धीरे आग ठंडी हो गयी अब वहां मोटे मोटे से लकङों से धुंआ निकल रहा बाकि राख का ढेर l
होली जलाकर सब अपने अपने घर चले गये l
रात को पिताजी ने मुझसे कहा-- बेटा शिवा कल अपने पुराने कपङे पहन लेना जब खेलना और किसी से झगङा मत करना बस अपने घर में ही खेलना
छोटा चाचा आ गया मम्मी से बोले -- कल आप भाभी भांग की लस्सी बनाकर रख लेना l
पिताजी ने कहा-- जो भी होली खेलने आये सबको गुंजीयां और लस्सी दे देना l
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सुबह उठते ही मम्मी ने मुझे पुराने कपङे पहना दिये l
सारे बच्चे सुबह से ही रंगीन पानी की पिचकारी एक दुसरे पर फैंक कर खिलखिलाते, ताली बजाकर हंसते, होली का पुरा आनंद ले रहे थे l
बस हर तरफ मस्ती ही मस्ती खुशियां ही खुशियां मौसम झुम रहा था l
बङे बङे लोग ढोल नगाङे बजाकर खेलते खेलते सबके घरों में जाते l औरते उन पर पानी डालकर मारती l वो मस्ती में झुमते लस्सी पीते गुजीयां और मिठाई खाते फिर नाचने लगते l कितना आनंद आ रहा था l ना कोई छोटा बङा ना कोई हिंदू ना मुस्लिम ना जैन सब ऐसे रंगो में रंगे हुए की सब रंग फिके पङ जाये औरतो ने लोगो के कपङे फाङ दिये l
हम सब बच्चे भी उन पर रंगो की पिचकारी मार रहे थे l
सब लोग उस दिन मानो सब कुछ भुल गये बस होली ही होली खेलना, औरतों से पिटना, खाना पिना, और नाचना और मस्ती से झुमना बस और कुछ नही l
अचानक एक बच्चे की चिखने की आवाज आयी..... मम्मी..........................................
एक औरत ने भागकर उसे उठाया -- क्या हुआ लाला आंखे खोल लाला लाला
उसने रोते हुए कहा -- मम्मी अमित ने मेरी आंख में रंग फैंक दिया है l बहुत दर्द हो रहा है l
उस बच्चे का बाप ताऊ चाचा सब इकठठे हो गये l
कुछ ही क्षणों के बाद मस्ती भरे माहोल में जहर घुल गया l और मां बहन की गालीयां होने लगी l
दुसरी तरफ से कुछ लोग भी और जोर से बोलने लगे l
बातों बातों में ही लाठीयां बल्लम भाले निकाल लाये l
मैंने अपनी मां से कहा-- मम्मी आप तो कह रही थी होली जलाने से लङाई झगङा नही होता l
उन्होने मुझे डांटा तु चुप नही रह सकता हर समय चपङ चपङ करता रहता है l जुबान को बंद भी रख लिया कर l
और लङाई इतनी बढी की पांच सात आदमीयों के सिर फुट गये l
जहां थोङी ही देर पहले रंगो से भीगे हुए मस्ती में झुम रहे थे l वहीं खुन से लथपथ खाटों पर पङे गालीयां दे रहे हैं l
एक दुसरे के खुन के प्यासे l
मैंने चुपचाप अपनी पिचकारी घर के अंदर छिपाकर रख दी l
मैंने मम्मी से कहा--- मम्मी जी अब मैं कभी नही खेलुंगा होली मुझे पिचकारी से डर लगता है l
क्या गलती थी उस मासुम की ???? क्या गलती थी उस पिचकारी की ?????
उस दिन से मैं गांव में होली के मौके पर रहा ही नही और ना ही कहीं खेला l
ऐसा खेल क्या खेले जिसमें प्रेम की जगह नफरत हो हिंसा हो l नही करनी ऐसी मस्ती जिससे समाज में भाई चारे की जगह दरार पङे एक दुसरे के खुन के प्यासे हो l
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर