रविवार, 16 अगस्त 2009

प्रेम बङा दुर्लभ है


जय श्री कृष्णा
कल मैं औशो की एक पुस्तक पढ रहा था ! उसमें प्रेम और आसक्ति के बारें में बहुत अच्छा वर्णन किया गया है ! उसको पढकर मुझे लगा की ये बात सच ही है की आज के वर्तमान युग में आसक्ति का क्षेत्र बढता जा रहा है, और प्रेम कम होता जा रहा है !
मैं बहुत वर्षों से ओशो की पुस्तकें पढता आ रहा हुं ! और यही कारण है की हर बात का गहराई से चिंतन करता हुं ! जब मैंने इस बात का भी चिंतन किया कि प्रेम तो बङा दुर्लभ है ! हर व्यक्ति अपने ही बारें में सोचता है ! जो हर कोई कहता है की मुझे अपने बच्चों बीबी से यार दोस्त से प्रेम है ! तो ओशो ने कही है की जब तक हम (जिसे प्यार करते हैं) वो हमारी बात मानते हैं ! हमारे मन के मुताबीक चलते हैं ! तो प्रेम रहता है ! जिस दिन (वो ही व्यक्ति जिसे हम इतना प्यार करते) हमारी बात मानने से इंकार दे ! हमारे विरूद्ध चल पङे तो कहां गया सारा प्रेम ! उस दिन हमें बङा कष्ट होता है जिस दिन पहली बार वह ( जिसे हम प्रेम करते थे) हमारी आकाक्षाओं की हमारी इच्छाओं की चिता जलाता है ! उस पर इतना गुस्सा आता है ! की अगर पुलिस का डर ना हो तो सिधी गोली मार दें ! अरे बाबा जब प्रेम था तो इतनी जल्दी नफरत और गुस्से में कैसे बदल गया !
जिस किसी के ह्रदय में एक बार प्रेम का बीज अंकुरित हो जाता है ! वह तो गुलाब के फुल की तरह से बन जाता है ! कि जो भी उसके निकट आयेगा तो खुशबु से सुगंधित हो उठता है !
तो इसका अर्थ हुआ की जो हम सबके अंदर प्रेम दिख रहा है यह कुछ और ही है !
दुसरी एक बात और कही है की हम जितना किसी से इच्छा रखते है और (फलां आदमी जिसे हम प्रेम करते) हैं ! वह हमारी आकांक्षाए पुर्ण करता है तो वह हमें इतना ही प्यारा होता है अर्थात हम उससे उतना ज्यादा प्रेम करता है !
मैंने भी इस पर अपने विचार लिखे और लिखकर आ गया ! तो मेरी बीबी (राधा) ने बाद में पढ लिया ! और उसने भी इस पर अपने विचार लिखे ! वह भी पिछले चार पांच सालों से गीता अध्ययन और ध्यान में रत रहती है !
उसने कुछ तथ्य लिखे ! जिसका में संक्षेप में वर्णन करता हुं ! उन्होनें लिखा है कि, संसार में प्रेम ही प्रेम ही है ! अगर प्रेम नही होता तो ! क्या एक मां रात को 10 बार उठकर अपने बच्चे को दुध पिलाती ! उसके मल मुत्र साफ करती ! माना की सारा संसार स्वार्थी हो गया है ! लेकिन अभी तो उस बच्चे से कोई स्वार्थ पुर्ण ही नही हो सकता ! स्वयं रात को गीले बिस्तर पर सो जायेगी लेकिन अपने बच्चे को सुखे में सुलाती है !
उन्होने दुसरी बात लिखी है की, एक मां अपनी नन्हीं सी बेटी को ऊंगली पकङकर चलना सिखाती है ! सारा काम सिखाती है 18 20 वर्ष तक पाल पोसकर बङा करके फिर विदा करके किसी अनजान के हाथ में हाथ देकर भेज देती है ! लेकिन मां का दिल तो अपनी लाडली के पास ही रहता है और कभी कभी सुबह आवाज लगाती है ! बेटी उठ जा सुबह हो गयी है ! जव उसे होस आता कि बेटी तो चली गयी तो दिल भर आता है ! और इसके प्रेम का जबाब उस बेबस मां की आंखे देती है ! क्या यह भी आसक्ति है !
बातें तो उसने और भी बहुत लिखी है ! अंत में लिखा है की भगवान कहते है की ये सारी सृष्टि मैंने ही बनायी है ! संसार का हर जीव मेरा ही अंश है ! जो इससे प्रेम नही कर सकता जो इसको भी स्वार्थ रूप में देखता है ! तो वह मुझसे क्या प्रेम करेगा !
मैंने रात को जाकर डायरी में लिखने का विचार किया ! जैसे ही मैंने यह पढा तो असमंजस में पङ गया ! जो राधा ने लिखा है उसको भी हम नकार नही सकते ! प्रेम के बिना तो संसार रेगिस्तान बन जायेगा ! मरूस्थल हो जायेगा ! और सारी व्यवस्था ही बिगङ जायेगी !
मैं तो अपनी बात और ओशो के उपदेश को अभी भी 100 प्रतिशत सत्य मान रहा हुं ! क्योंकि अगर हम भावनाओं में बहकर नही बल्कि व्यवहारिकता से देखें ! तो हर तरफ आसक्ति और स्वार्थ ने अपना शिकंजा कस रखा है ! किसी को भी इससे मुक्त नही होने देता !
आप अपनी राय जरूर दे की मैं ठीक हुं या राधा ????????
जय श्री कृष्णा

शिवा तोमर-- 09210650915

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

आजादी पर संकल्प


15 अगस्त
आज आजादी का दिन ! सुबह से ही देश भक्ति के गाने और शहीदों की शहीदी बहुत सुंदर तरिके से दिखाकर लोगों के अंदर देश भक्ति की भावना पैदा करने का काम टी वी चैनल कर रहे थे !
मैं सुबह से ही अपने आफिस में बैठा हुआ अपने ही चैनल का आजादी पर खाश प्रोग्राम देख रहा था !
पता नही बचपन से ही ऐसी क्या बात रही, की आजादी की कोई भी बात सुनकर पढकर ही मेरी आंखों में आंसु निकलने लगते हैं !मुझे नही पता की क्या संबंध है मेरी आजादी से !
आजादी और शहीदों की कहानी देश भक्ति और भारत माता का नाम ही सुनकर अंदर से ही भाव विभोर हो जाता हुं !
मेरे पिताजी भारत मां के सच्चे सिपाही हैं उन्होने 1962 चीन के साथ 1965 पाक के साथ और 1972 बंगला देश वाली लङाई भारतीय सेना की तरफ से लङे थे ! उन्हीं का लहू मेरी रगों में दोङ रहा है ! या कोई और कारण है ! मुझे कुछ समझ नही आता ! बस इतना ही पता है की देश भक्ति की बात सुनकर ऐसा मन करता है की मैं कैसे अपनी भारत मां के काम आ सकता हुं ! और देश में बढती गुलामी से कैसे अपने युवा भाईयों को आजादी दिलाऊं ! आज के युवाओं को देखकर स्वयं से और पर उस युवा पर गुस्सा आता है जो हमारी भारत मां और संस्कृति के विरूद्ध चलते हैं !
भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, मंगलपांडे, सुभाषचंद्र बोश इन भारत मां के सच्चे सपुतों को क्या पङी थी ! वो भी हमारी तरह मोज ले सकते थे.... समझ नही आता की ऐसा क्या हो गया है ऐसी कोनसी चक्की का आटा खाने लगे हमारे युवा किशोर भाई की जो लगातार नशा सैक्स हिंसा अनैतिकता अश्लीलता व्याभीचार के शिकंजे में फंसकर इतने स्वार्थी और मतलबी हो हो गये हैं की कुछ भी कहना गलत ही होगा !
सुबह से ही मेरे दिल में आ रहा है कि ऐसा क्या करूं जो देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का सबक हो ! मेरे पास कोई साधन संगठन भी नही है बस भावना है !
आपसे मेरा अनुरोध है, कि हमारी जागरूक युवा सेना को मनोबल बढायें और सबको प्रेरित करो की कुछ ऐसा करो जो सबके लिए एक सबक हो
आज आजादी पर्व के मोके पर उन शहीदों से हमें ये ही वायदा करना है की जिस भारत माता की आन शान की खातिर फांसी का फंदा चुम लिया था हम भी इसकी आन शान बचाने के लिए तन मन धन से समर्पित होंगे !
जय भारत जय हिंद
शिवा तोमर - 09210650915

सोमवार, 10 अगस्त 2009

आंसु एक नारी के


जुन का महिना चिलचिलाती धुंप ऐसी की सब कुछ उबल रहा है सुरज तो मानों आग ही उगल रहा हो !
एक महिला ऐसी गरमी में बाहर सुरज की तपती धुंप में मिटटी के चुल्हे पर रोटी पका रही है ! माथे से पसिना टपक टपक कर गालों को भीगोता हुआ सारी गरदन पुरा बदन पसिना पसिना कर रहा है !
एक छोटी सी लङकी भागती हुई आती है !
मम्मी मम्मी मुझे दो रूपये दे दो आईसक्रिम लेनी है !
वह महिला बेचारी कुछ तो धुंप की गरमी से बेहाल थी ! कुछ चुल्हे में जलती आग की तपन से तंग थी ! टालने के लिए कहती है की तेरा बाप आंदर बैठा है ! जा उससे मांग ले ! बस ये कहना था कि वह आदमी उन दोनों मां बेटी पर चीते की तरह टुट पङा ! गाली गलोच करता हुआ बक रहा था, की एक तो साली तुने ये लङकी का पाप मेरे सिर पर गिरा रखा है !
ऊपर से तेरी और तेरी इस कम्बख्त बेटी ने तो हमारा जीना हराम कर दिया है ! आज में तुम्हे दोनो को ही खत्म कर देता हुं ! कम से कम घर में सुख शांति तो रहेगी !
और निर्दयी ने अपनी दरिंदगी की हद ही कर दी उस जल्लाद ने उस मासुम सी बच्ची को हाथ पकङ कर दीवार पर फैंक मारा ! बेचारी वह अबोद्ध बच्ची रोती रही बिलबिलाती रही तङपती रही ! उसके गुस्से की आग यहीं पर ही ठंडी नही हुई ! चुल्हे से तवा उठाकर सरोज (पत्नि) की पीठ पर मारने लगा !
हा हुल्ला और हाहाकार सुनकर बाहर से कई लोगों ने आकर उस राक्षस के चंगुल से उन दो मासुमों की जान बचाई !
दोनों मां बेटी बेचारी अंदर खाट पर पङी हैं ! एक तो गरमी ऊपर से मार का दर्द कराह रही है ! एक लाचार और बेबस मां पसिने से लथपथ अपनी बेटी को कुछ इस तरह अपने सीने में छुपा रही है जैसे किसी किले में लेकर बैठ गयी हो !
रोती रोती कहती है, मेरी अभागी बच्ची तु क्यों आयी यहां इस घर में ??? तेरी इस घर में जरूरत नही है ! इस पापी को तो बस बेटा चाहिए ! और आंसु बहाती हुई बच्ची का मुंह चुमने गलती है !
रोती रोती उसकी बेटी कहती है, मम्मी मम्मी मैंने ऐसा क्या किया है ?? या कोई गलती हो गयी ?? जो पापा हर समय मुझे मारते रहते हैं ! आज तक कभी भी प्यार नही किया......
बेटी तेरी और मेरी दोनों की किष्मत ही खराब है जो इस घर में आये हैं !
उसके बालों को ठीक करती हुई कहती है ! चल बेटी तु पहले खाना खा ले, नही तो फिर तेरा जल्लाद बाप आ जायेगा ! वो चैन से खाना भी नही खाने देगा !
नही मम्मी मेरा मन नही कर रहा कुछ खाने का !
मुझे खाना नही प्यार चाहिए प्यार मम्मी !
क्या करूं ?? बेटी जो कुछ मेरे हाथ में हो वह मांग ले ! में दुंगी चाहे मेरी जान ले ले वो भी दे दुंगी मेरी बच्ची !
उस छोटी सी बच्ची का नाम है राखी !
राखी अपने छोटे छोटे मुलायम हाथों से अपनी मां के आंसु पोछ कर कहती है ! मम्मी आपको इतना दुख मेरे ही कारण मिल रहा है ना ! जो पापा रोज रोज आपको मारते रहते है ! आपको मेरी वजह से ही इतनी मार खनी पङ रही है ना !
मम्मी मैं आपसे आज प्रोमिस करती हुं, की अब कभी भी मैं कुछ नही मांगुगी ! कुछ भी ऐसा नही करूंगी जिससे पापा आपको मारें !
अपनी मासुम सी बच्ची के मुंह से इतनी भावुक बातें सुनकर सरोज का दिल भर आया ! आंखो से आंसु और मुंह से बस आह ही निकल सकी ! रा........खी.......... मेरी बच्ची मैं तुझे कहां छुपाऊं ??? कहां ले जाऊं ??? जो उस राक्षस की नजर तुझ पर ना पङ सके !
और दोनो मां बेटी इसी तरह भुखी प्यासी पता नही कब नींद आ गयी ! दुख में कष्ट में जिल्लत में ना गरमी अपना प्रभाव दिखाती है ना शरदी......
उन दोनों मां बेटी को तो पता ही नही गरमी है या शरदी ! कोन क्या कह रहा है ?? बस निश्चिंत होकर ऐसे सो रही है ! जैसे उन दोनो के अलावा उनका कोई नही है इतने बङे संसार में !
भुखा पेट आंखों में आंसु, क्या उनके लिए इस जहां में एक रोटी भी नही है ! जिसे वो मां बेटी चैन से खाकर पानी पीकर सो जायें !
अचानक राजेश (पति) आ जाता है, और इस तरह चैन से सोता देखकर आग बबुला हो जाता है ! और चिल्लाने लगता है.... सरोज….. सरोज के घोङे बेच कर सोई है क्या ! जो उठने का नाम ही नही ले रही ! साली हरामजादी अपना तो पेट भरकर सो गयी ! दुसरा कोई अपनी ऐसी तैसी कराता रहे ! भुखा मरता रहे ! तुझे तो बस अपनी और अपनी छोरी की ही चिंता है !
और बाल खिंचकर घसिटता है !
सरोज बेचारी चिल्लाती रही रोती रही !
लेकिन राजेश को तो शायद कुछ सुनाई ही नही देता ! और थप्पङ मारने लगा !
बेचारी राखी सहमी सी घर के एक कोने में घुस गयी !
राजेश गुस्से में कहता है, की आज तु अपने दिल की बता ही दे आखिर तु चाहती क्या है ????
मैं अब तुझे एक मिनट भी अपने घर में नही रहने दुंगा !
बेचारी अबला बेसाहरा जो अपने मां बाप को छोङकर पति के साथ आयी ! जब पति ही घर से निकालने की कहे तो कहां जायेगी !
सरोज बेचारी रोती हुई हाथों के बीच में साङी का पल्लु और आंसु टपक रहे हैं ! आंखों में दया की भीख ! हाथ जोङकर कहती है, की अगर आप मुझे निकाल देंगे तो मैं कहां जाऊंगी ???
राजेश और गुस्से में आग बबुला हो जाता है ! साली हरामजादी कुतिया मुझे क्या मतलब ??? है कि तु कहां जायेगी ??? मैंने तेरा ठेका ले रखा है क्या ???
राखी रोती हुई सुबकती हुई हाथ जोङकर आती है-पापा पापा आप मम्मी को नही मारो !
राजेश तो यह सुनते ही मानों उसके अंदर बम फट गया हो !
और कहता है... अच्छा तो तेरी इस चंडाली मां को ना मारूं ! इसकी पुजा करूं साथ में तेरे ऊपर भी फुल चढाऊं ! और उसके छोटे से मासुम कोमल से मुंह को इतनी जोर से दबाता है की राखी की चीख निकल जाती है ! पापा छोङ दो...... बहुत दर्द हो रहा है ! बेचारी मासुम कन्या तङपती रही चिल्लाती रही ! लेकिन राजेश के ऊपर कोई असर नही और जोर से धक्का दिया ! तो बेचारी राखी दुध के पतिले के ऊपर जाकर पङी !
सारे घर में दुध ही दुध !
सरोज भी कितना सहती कितना झेलती आखिर सबर का बांध टुट गया !
और दुध को देखकर गुस्से में बोली की आप मुझ पर अपना गुस्सा उतार लो !
राखी को भी मारते रहते हो ! लेकिन अब तो घर का नुकसान भी करने लगे हो !
उसकी बात ने राजेश के गुस्से में आप में घी का काम किया ! और उसे घुरकर खा जाने वाले अंदाज में बोला ! मेरा घर मेरा सारा सामान मैं इसको रखुं खिडाऊं या आग लगाऊं तु कोन होती है ! मुझे कुछ कहने वाली !
बहार से राजेश के मां बाप आते है...
पिता... राजेश तुमने इस घर को जंग का मैदान बना दिया है ! जब भी देखे यहां लङाई ही होती रहती है क्या मामला है ??
दुध को देखकर राजेश की मां की आंख फटी रह जाती है .. ये क्या सारे घर में दुध ही दुध गिरा रखा है ! लोगों को पीने के लिए नही मिलता यहां गिरा पङा है !
नाश खेतों तरस जाओगे लेकिन कभी दर्शन भी नही होंगे ऐसे तो ! पता नही किसकी किष्मत से भगवान दे रहा है !
राजेश राखी की तरफ चीते की तरह झपटता है... मां ये दुध इसने खिंडाया है ! पता नही कोनसा मैंने पाप किया था ! जब से पैदा हुई है घर का नाश ही हो रहा है ! चल पोचा उठा और साफ कर !
सरोज कहती है.. इतनी छोटी सी बच्ची क्या साफ कर सकती है दया करो थोङी !
बीच में ही मां बोल पङती है.. लङकी है अभी से काम करना सिखेगी तो ही अच्छा रहेगा ! नही तो तेरी तरह सिर पर बैठ जायेगी !
सब चुप देख रहे हैं ! बेचारी राखी नन्हे नन्हे से हाथो में पोचा लेकर सफाई कर रही है और रो रही है !
कितने निर्दयी हैं ये लोग ! जो हाथ ठीक से रोटी का टुकङा भी नही ऊठ सकते ! उसे इतनी यातनाएं दे रहे हैं ! कहां भला होगा इनका !
राजेश का पिता ही चुप्पी को तोङता है ! राजेश और सरोज हम तुम दोनों को आखिरी बार समझा रहे हैं ! अगर तुम लोग आपस में झगङा करने से बाज नही आते तो हमें ही यहां से भागना पङेगा !
और कहकर चले जाते हैं !
बेचारी सरोज और राखी को इसी तरह यातनाएं मिलती रही ! दुख देते रहे
अवहेलना प्रताङना जिल्लत सहते हुए कई वर्ष बीत गये ! इसी बीच राजेश को एक और बुरी आदत लग गयी शाराब पीने लगा ! पहले से ही वह इतना दरिंदा था राक्षस भी उसकी दरिंदगी सामने तौबा कर ले ! और अब तो शाराब पीकर बस उन दोनों के खुन का प्यासा बना रहता था ! रात को शाराब पीकर घर पर आना और फिर दोनों मां बेटी पर जुल्म करना उसकी आदत बन चुकी थी !
एक दिन रात के करीब 11 बजे शाराब में धुत लङखङाता चिल्लाता हुआ आता है !
साली कुतिया हर समय दरवाजे को बंद रखती है मेरा ही घर और मेरे लिए ही घर के दरवाजे बंद ! खोल साली दरवाजा खोल आज तेरी अच्छी खबर लेता हुं !
राखी दरवाजा खोलती है !
दरवाजा खुलते ही वह धङाम से पङता है !
पापा पापा आप ठीक तो हो राखी बैचेनी से पुछती है !
अच्छा हरामजादी बङा प्यार सा दिखा रही है ! पता नही कहां से लायी इस पाप को जो मेरी छाती पर पङा है ! और कहकर दो थप्पङ मारता है !
सरोज अंदर से भागती हुई आती है ! क्या हुआ राखी बेटी ?? ठीक तो है !
हां आजा तेरी कमी रह गयी थी तु भी आ गयी ठीक हुआ ! और उसके बाल पकङकर घसीटता है !
मुंह से शाराब की बदबु इतनी आ रही है की सारा घर ......
और कपङों में से भी बदबु आ रही है ! वह लङखङाता हुआ सरोज की तरफ लपकता है !
लेकिन वह आगे से हट जाती है ! और कहती है आप नहा कर खाना खाओ और सो जाओ ! शाराब बहुत चढ गयी है !
अच्छा हरामजादी कुतिया मुझे शाराब चढ गयी है ! मैं तो शाराबी हुं ! मुझमें तो 100 ऐब है ! बस तु और तेरी यह बेटी ही ठीक हो !
सरोज बङी दीनता से लङाई को दबाने के लिए हाथ जोङकर कहती है ! नही आप ही ठीक हो अच्छे हो ! हम दोनो तो गलत हैं ! चलो आपका पानी रख दिया ! आप पहले नहा लो
नहा धोकर खाना खाता है !
राखी पापा बता देना कितनी रोटी लोगे !उतनी ही बनायेगी मम्मी ! नही तो फिर बच जायेगी सुबह खानी पङेगी !
इतना सुनते ही राजेश तो आग बबुला हो गया ! और दाल की कटोरी उठाकर राखी के मुंह पर फैंक मारी ! हरामजादी रांड की औलाद तु और तेरी मां ही खाओ !
मुझे नही खानी लङखङाता हुआ राखी को लपकने के लिए पीछे भागा ! लेकिन वह अपने को उसकी पकङ से बचाती हुई बहार भाग गयी है !
रोज आये दिन इसी तरह घर में झगङा होता गया ! हालात ऐसे हो गये की एक पल के लिए भी उनके घर में चैन शांति नाम की चिज नही रही ! बस आपस में झगङा कलह क्लेश रोना पिटना आंसु दो बेबस महिलाओं के ! और शाराब की बदबु बससससससस
उनके यहां कोई आना भी पसंद नही करता !
राजेश बहुत गिर चुका था ! उसकी मां भी उसी का पक्ष लेती सरोज और राखी पर सारे इल्जाम लगाती थी !
सरोज इसी तरह रोती रही सहती रही झेलती रही ! और पता नही किस तरह से अपनी और राखी की आबरू बचाती ! एक दिन दोनों मां बेटी बात करती है !
राखी... मम्मी ऐसा कब तक चलेगा ??
क्या सारी जिंदगी हम दोनों इसी तरह मार खाती रहेंगी !
और कितना सहेंगे अब नही सहा जाता ! बस इससे अच्छा तो भगवान हमें उठा ही ले तो बढीया रहे !
सरोज.. राखी का हाथ अपने हाथों में लेकर प्यार से कहती है ! बेटी बस भगवान एक बार सही सलामत तेरे हाथ पीले करवा दे ! तु अपने पति के साथ आराम से रहना और कभी इधर आना भी नही ! और आंखे डबडबा आई !
राखी अपनी मां के आंसु पोछकर कहती है ! मां मैं कभी आपको अकेला छोङकर नही जाऊंगी ! आपने मेरी वजह से बहुत कष्ट उठाये हैं !
सरोज राखी को बाहों में भर लेती है ! बेटी तु ही तो मेरी जिंदगी है ! तेरे लिए ही तो मेरी सांसे चल रही हैं !अगर तु नही होती तो मैं कभी की मोत को गले लगा लेती !
और इस राक्षस इसके नरक जैसे घर को कभी की अलविदा कहकर भगवान के पास चली जाती !
राखी बङे भोलेपन और सादगी से पुछती है ! की मम्मी क्या लङकी इस धरती पर सिर्फ इसलिए आती है की !
सारी जिंदगी यातनाए सहे !
जिलल्त उठाये !
कष्ट भोगे !
इतनी अवहेलना, यातना, प्रताङना !
इतने ताने क्या ये सब हमारी ही किष्मत में ही लिखा है !
बेटी राखी........ सरोज की आवाज में सारे जहां का दुख सा समाया हुआ था ! और आवाज ऐसे निकल रही थी जैसे जबरदस्ती निकल रही हो !
कुछ वर्षों पहले तक लङकी को देवी की तरह पुजते थे लोग ! अभी पता नही क्या आग लग गयी है ! जो लङकीयों को पाप समझने लगे !
इसी बीच कोई बाहर से दरवाजा खटखटाता है !
मम्मी इस समय कोन होगा ??? पापा तो अभी आ नही सकते !
सरोज दरवाजा खोलती है ! तो राजेश ही गिरता पङता अंदर आता है !
आप आज इतनी जल्दी कैसे आ गये ?? सरोज ने अचम्भीत सी होकर पुछा !
क्यों... मु..,,झे ज...ल्दी न.. ही... आ...ना चा..हि...ए क्या... लङखङाती आवाज में कहने लगा मुझे... अ..ब.. तु..झ..से पु..छ..क..र आ..ना प..ङे..गा.. क्या...
ला मुझे 50 रूपये दो कुछ काम है !
मेरे पास तो एक भी पैसा नही है कहां से दुं !
यह सुनते ही उसका तो पारा हाई हो गया आग बबुला हो गया !
तु साली जोङकर कहां ले जायेगी ! जब तु अपने पति को नही दे सकती तो काहे की मेरी पत्नि है !
गाली गलोच करता हुआ इधर उधर सिर मारने लगा !
साली पता नही इतने पैसे जोङकर क्या करेगी ?? जब वो मेरे काम नही आयेंगे तो क्या तुने अपने कफन के लिए इकठठा करके रखे हैं !
मैं आखिरी बार कह रहा हुं, की पैसे दे दे वरना आज तुझे मार डालुंगा !
वह गालीयां बकता रहा ! आज चाहे कोई भी आ जाये मैं किसी को नही छोङुंगा !
सबको मार दुंगा ! और सरोज को मारने के लिए भागा !
राखी बीच में ही बोल पङी पापा झगङा मत करो ! मैं आपके हाथ जोङती हुं !
हरामजादी तु भी अपनी मां रांड का ही फेवर करती है ! आज तुम दोनो को ही खत्म कर दुंगा ! वह लङखङाता हुआ उन्हे पकङने के लिए भागता रहा !
सरोज चीखी राखी जा तु इसके मां को ही बुलाकर ला ! आज हम फैंसला कर ही देते है की आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ????
यह सुनकर उसके गुस्सा और भी ज्यादा चढ गया ! वह बङबङाया जाओ तुम आज किसी को भी बुला लाओ मैं तुम्हे नही छोङुंगा !
और सरोज को मारने के लिए एक शाराब की खाली बोतल फोङकर उसके पिछे लपका !
इतनी ही देर में राजेश के मां बाप भी आ गये ! उन्होने उसे ऐसी हालात में देखा तो होश उङ गये ! किसी को कुछ समझ ही नही आ रहा था की क्या करें ?? क्या ना करें ??
राजेश का बाप बोला... राजेश बेटा बोतल फैंक दे ! जो तु कहेगा वैसे ही होगा !
नही पिताजी में आज इसको छोङने वाला नही हुं ! सारे घर को इसने नरक बना
दिया है ! सरोज भागती भागती चिल्लाई... नरक हमने नही तेरे करतुत ने और शाराब ने बनाया है ! मैं कहां से इसे पैसे दुं ! भीख मांगकर लाऊं क्या ?? देने का तो नाम नही !
राजेश ने सरोज को पकङने लिए जैसे ही घर में पङी खाट के ऊपर से छलांग लगाई तो
फिसलकर गिर गया ! और हाथ में पकङी बोतल उसी की छाती में धंस गयी !
किसी को कुछ नही पता लगा की क्या हुआ ?? इस बात का तो यकिन था ही नही राजेश ऐसा पङा है जो अब कभी भी उठने वाला नही है !
सरोज हांफती हुई दीवार से सटकर आंखे बंद करके लम्बे लम्बे सांस लेने लगी !
राखी भागती आयी मम्मी मम्मी ठीक तो हो ना !
हां बेटी बस मौत के मुंह से ही निकलकर आयी हुं !
राखी ने सरोज का सिर अपने कंधे पर रख लिया मम्मी पानी लाऊं !
राजेश की मां चिल्लाई .... अरी निर्भाग्य राखी अपनी मां की ही गोद में बैठी रहेगी ! अपने बाप को भी देख ले जब से गिरा है उठा ही नही है ! क्या हो गया ???
राजेश का बाप गुस्से में झल्लाकर बोला उसे कुत्ते कमिने को कुछ नही होगा ! जब शाराब उतर जायेगी तो उठ जायेगा !
सरोज के मुंह से कराह निकली राखी अपने पापा को देख बेटी वो बहुत जोर से गिरे हैं !
राखी उसके पास गयी पापा पापा पापा कई आवाज लगाई ! लेकिन कोई जबाब नही !
जब कई बार आवाज लगाने से भी नही बोला तो राखी ने हाथ पकङकर उठाने की कोशिश की खिंचते ही राजेश का शरीर एक तरफ लुङक गया !
छाती में बोतल धंसी उसके निचे खुन ही खुन !
राखी के मुंह से तेज चीख निकली .... मम्मी ...........................
सारे लोग राखी के पास गये ! तो देखते ही सबके होश उङ गये ! राजेश तो कभी का मर चुका था ! उसकी मां जोर जोर से राने लगी !
मेरे लाल को दोनों मां बेटी खा गयी हैं ! और विलाप करने लगी !
सरोज को पता नही क्या हुआ ?? ना रोई ना कुछ बोल रही ना कुछ कह रही है ! बस दुर कहीं शुन्य में खोई रही !
शाम का समय गांव के बाहर राजेश का अंतिम संस्कार हो रहा है ! चीता में आग लगा दी गयी ! और वहीं थोङी दुरी पर सरोज एक टक राजेश की चिता को देख रही है ! और ना किसी की तरफ देख रही है ना कुछ कह रही है ! बस रोये जा रही है ! और आंसु तो मानों थमने का नाम ही नही दे रहे !
राखी मम्मी आप अपने आप को सम्भालो ! अगर आप ही ऐसी रहोगी तो मेरा तो अब कोई है ही नही ! और गले लगकर जोर जोर से रोने लगी !
सरोज बेहद गम्भीरता से बोली राखी बेटी हम औरतो के पास आंसु बहाने के अलावा और कुछ नही है ! और फिर कहीं आकाश में शुन्य में खोकर आंसु बहाती रही !
जैसे जैसे चिता की आग ठंडी हो रही थी ! आंसु और ज्यादा बह रहे थे !
शिवा तोमर- 09210650915

बुधवार, 5 अगस्त 2009

भयभीत हुआ मैं


भाईयों जय श्री कृष्णा
जो आज मैं लिख रहा हुं समझ ही नही आ रहा की वह समस्या मेरी ही है, या सबकी है !
अंदर एक अनजाना सा डर सा लगा रहता है ! एक अजीब सा भय रहता है ! मैं उस स्थिती को क्या नाम दुं ??? उस विषय में कोई ठोस निर्णय नही ले पा रहा हुं !
आज रात ही मैं सो रहा था तो अचानक मेरी नींद खुल गयी ! कोई खतरनाक डरावना स्वपन देखा होगा!
काली अंधेरी रात का सन्नाटा ! कहीं कोई भी आवाज नही ! मैं बिस्तर पर लेटा, आंख खोलने की हिम्मत नही हो रही थी ! जीभ तालु पर चिपक गयी ! गला सुख गया ! सारे बदन में सिहरन सी दोङ रही थी ! रोंगटे खङे थे ! दिमाग काम नही कर रहा था ! मैं बिस्तर पर बैठ गया तो ऐसे बैठा जैसे कि दीवार पर किसी ने चिपका दिया हो !
मैंने अपने कमरे में सामने ही मंदिर बनाया हुआ है ! अचानक मेरी नजर मंदिर पर पङी तो मुझे साफ स्पस्ट दिखाई दिया की अंधेरे और सन्नाटे में एक कोई बालक घुटनों के बल हंसता हुआ मेरी तरफ आ रहा है ! उसे देखते ही मुझे कुछ होश सा आया ! और मेरे आंसु निकलने लगे ! मुझे नही मालुम की वह कोन था ?? लेकिन उस पर नजर पङते ही जो मेरे सारे बदन में जङता सी हो गयी थी वह दुर हो गयी ! और चेतनता आ गयी मैंने उठकर पानी पिया और धिरे धिरे सो गया ! सुबह जब उठा तो तब तक भी बदन टुटा सा था ! लेकिन वह हालात मैं अब भी याद करता हुं तो रोंगटे खङे हो रहे हैं ! मुझे कुछ समझ नही आ रहा था, की वह सब क्या था ?? ऐसा भी नही था की मैं सो रहा हुं ! मैं तो अपने बिस्तर पर बैठा था आंखे खोलकर !वह बालक कोन था जो मंदिर की तरफ से मेरी तरफ हंसता हुआ आ रहा था मैं इतना ज्यादा डरा कैसे ???
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर-9210650915

शनिवार, 1 अगस्त 2009

आत्महत्याएं- क्यों


आत्महत्या! सोचकर भी डर सा लगता है लेकिन आजकल हर तरफ इन वारदातों को लेकर भारत ही नही पूरा विश्व ही भयभीत है, डरा हुआ है। हर समाचार पत्र में, हर चैनल में, रोज दो चार आत्महत्या की खबर दिख ही जाती हैं। मरना कोई नहीं चाहता है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह जिये ओर जीवन का आनंद ले, मौज करे। अपने मां बाप भाई बहन सगे सम्बंधी के साथ प्रेम से जीना चाहता है। जो मां बाप आज तक बच्चे की हर इच्छा पूरी करते थे, हर सुख सुविधा ऐशो-आराम का ध्यान रखते थे; फिर अचानक क्या हुआ, कौन सा संकट आ गया, जो आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। व्यक्ति जिनके लिये धन दौलत सोहरत इज्जत कमाना चाहता है, उनको छोड़ने का कैसे करता है संकल्प। सुबह से सांय, सांय से रात तक कोल्हू के बैल की तरह पिलता रहता है। हर वर्ष आंकड़ों के मुताबिक हजारों बच्चे आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। एक कहावत है कि आत्म हत्या कायर लोग करते हैं। लेकिन नही, आत्म हत्या करने में बहुत हिम्मत चाहिए। मैं आपको आंकड़ो के आधार पर नही अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ। मैं 8-10 ऐसे आदमीयों को जानता हूँ जिन्होने आत्म हत्या की। कई बार आदमी अपने आप को परिस्थतियों के सामने इतना मजबूर पाता है कि चारो ओर कहीं कुछ दिखाई ही नहीं देता।
आज जिस तरह आत्महत्या नाम की यह बिमारी लोगों को अपने शिकंजे में कसती जा रही है, बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है। इतना भय ओर हानि देश में ओर किसी भी कारण से नही जितनी बढ़ती आत्महत्या से है। मनोवैज्ञानिक लोग, ड़ाक्टर लोग ओर सर्वे करने वाले अपने अपने अलग कारण बताते है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि जब कहीं से भी कोई प्रकाश की किरण नजर नही आती और व्यक्ति जीवन से बहुत उदास हो जाता है। किसी से कुछ कह नही सकता, बता नही सकता क्योंकि लोग तो रो कर पूछते हैं और हंसकर उड़ाते है। किसी के सामने अपनी व्यथा कहकर और हंसी उड़वानी है। बढ़ती आत्महत्या या अपराध का कारण शिक्षा की कमी, गरीबी या कमजोरी नही है। देखा जाय तो शिक्षक, सैनिक, विद्यार्थी, अमीर, गरीब, औरत, मर्द सब अपनी जीवन लीला समाप्त करके आंकड़ो में एक ओर आत्महत्या जोड़ देते है। व्यक्ति कोई भी कर्म करता है तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मन की होती है। कर्म चाहे किसी भी भाव से भावित रहा हो; काम का संचार हो, भय का, क्रोध, वासना, खुशी, दुख कुछ भी हो; सीधा सम्पर्क हमारे मन से होता है। तो आत्महत्या भी हमारे मन में उत्पन होने वाले भाव का ही एक अंग है। हर व्यक्ति चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी बात मानें, इज्जत करें, उससे प्रेम करें। जो भी हम काम करते अपने लिये नही अन्य लोगो के मध्य अपनी जगह बनाने के लिये भरसक प्रयास करते हैं, चाहे झूठ भी बोलना पड़े। यह सोचते है कि देखो अगर यह हो गया तो लोग मेरी इज्जत करेंगे, मेरा समाज में नाम होगा सब मेरी वाह वाही करेंगे।
बीबी बच्चे मां बाप यार दोस्त इन सब के लिये कितना करता है फिर भी आत्महत्या.............................. इस विषय पर गहरा चिन्तन करना पड़ेगा....... श्री मदभगदगीता में एक श्लोक है......विषयों का चिन्तन करने वाले पुरूष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से कामना उत्पन होती है, कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध पैदा होता है। क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव हो जाता है। मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता, स्मृति में भ्रम होने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है, बुद्धि का नाश हो जाने पर पुरूष अपनी स्थिति से गिर जाता है और गिर कर वह व्यक्ति हत्या, डकैती, बलात्कार या आत्म हत्या कुछ भी कर सकता है। मेरा मानना है कि आज यह श्लोक पूरे विश्व की वर्तमान हालत बयान कर रहा है। जिस तरह भारत ही नही सारे विश्व में अपराध, हिंसा, अशांति और आत्महत्या में वृद्धि हो रही है, उसका यही एक कारण है। बात चल रही है आत्महत्याओं की तो सबसे पहले उस संवेदनशील समय से पहले का विचार करना होगा । मैं आपके सामने कुछ केस की थोड़ी हकीकत बताउंगा। एक आदमी था निर्मल सिंह, खूब नशा करता था। एक दिन रात को मैं उठा तो देखा की 3.30 बजे स्मैक पी रहा है। मैंने कहा, “चाचा! अब तो सोने का समय है।“ उसने मुझे कहा कि “शिवा बाबा! जीवन में हर प्रकार की मौज लेने दो ना” और उसने 4.00 बजे फांसी लगा ली। राजेश, पिता का नाम ओमप्रकाश; तिहाड़ जेल में था। रोज वहाँ सबके साथ हंसी मजाक करता रहता था। अचानक फांसी लगा ली। वह भी चरस आदि का नशा करता था। एक आदमी पेसे से डाक्टर था। एक दिन उसकी बीबी से कुछ कहा सुनी हुई और लटक गया पंखे पर। एक ओर लड़का था जो एक लड़की से प्यार करता था और अकेले में बैठकर ऐसे बातें करता था कि जैसे वह सामने ही बैठी हो। उसके घरवालों ने उसे कहा कि तेरी शादी इसके साथ नही हो सकती, तो एक दिन रात को फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अगले दिन उसके बिस्तर पर उस लड़की के कई पत्र मिले जिन्हे शायद वह सारी रात पढ़ता रहा होगा। जैसे मैंने अभी तक इतनी आत्महत्याओं का अध्ययन किया तो हर केस में कुछ एक बात समान मिलती है। जैसे कि जो भी इतना खतरनाक कदम उठाता है, उन संवेदनशील पलों से पहले बिलकुल अकेला रहकर, डूबा रहता है, वह खो जाना चाहता है। अपने को मिटा देता है इस समाज, सभी रिश्तों और हर बन्धन से। वह अपने को कहीं डुबा देना चाहता है, चाहे वह नशे में डूबे या फिर किसी की यादों में। उसमें डूबकर अनुभव करता है कि इस वस्तु या व्यक्ति के अलावा मेरा कोई नहीं है। एक बार मेरे सामने भी यह मनहूस घड़ी आयी थी। जहर की शीशी हाथ में थी। आधा घण्टा दरवाजा बंद करके रोता रहा फिर शीशी हाथ में ली, मन में यही विचार था कि वह नहीं तो मेरा कोई नहीं है, तो क्या करूँगा जीकर। इसी बीच एक ऐसा चमत्कार हुआ कि मुझे जीवन मिल गया। मैने अपनी घड़ी में 9 बजे का अलार्म भर रखा था। वह चित्कार उठी। बस सारा नक्शा ही बदल गया। वो ऐसे नाजुक पल होते हैं जिनमें व्यक्ति इतना बड़ा फैसला कर लेता है और वह क्षण बस कुछ ही सैकेंडों का होता है। उस पल अगर कोई बीच में आ जाये तो कुछ नहीं होगा। वह नाजुक पल जब आता है तो व्यक्ति आत्महत्या ही नहीं; हत्या, बलात्कार, कुछ भी कर सकता है। यह मन बड़ा चंचल है। एक क्षण में इधर उधर हो जाता है। यह चाहता है कि कोई इसे प्यार करे और आज व्यस्त युग में मनुष्य के पास हर चीज है, बस समय नहीं है। घर में बच्चे कब तक अकेले रहें। उन्हें तो प्यार चाहिए, अपनापन चाहिए। कोई उनसे बात करे, उनके दिल की पूछे। लेकिन मम्मी पापा के पास समय नही होता, 5-10 मिनट के लिये खाने के समय बात करते हैं तो बस यही पूछते हैं कि कैसी पढ़ाई चल रही है, क्या चाहिए, बेटा तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना है, पढ़ाई का ध्यान करना और जाकर सो जाते हैं। बच्चा सुन सुन कर दुखी हो जाता है; परेशान हो जाता है; झल्ला जाता है। जब घर में उसे प्यार नहीं मिलता, कोई उनके दिल की आवाज नही सुनता तो वह कहीं और दूसरी जगह प्यार खोजता है। उस व्यक्ति को खोजता है जो उसको प्यार दे सके, उसकी दिल की आवाज सुन सके। तो वह अपने दोस्तों से सम्पर्क बढ़ाता है और किसी ना किसी में वह तस्वीर देखता है कि यह मेरी दिल की आवाज सुनेगा। और यह मन बड़ा चालू है, विपरीत लिंग की ओर ही प्रभावित होता है। लेकिन यह कार्यक्रम ज्यादा नही चलता। हर व्यक्ति रोज एक सा पाकर भी बोर हो जाता है और जिसे मन अपना समझता है, वह कहीं और भी अपना ठिकाना बना लेता है। जब वह मासूम मन उसे देखता है तो सहन नहीं कर पाता क्योंकि पहले तो अपने मां बाप से नहीं मिला प्यार; बाहर भी खोजा लेकिन जितना वह मासूम मन चाहता है उतना नही मिल पाता। बस टूट जाता है, टूट गयी सारी उम्मीदें। वह अब दुख ओर कष्ट के कुऐं में पड़ा रहता है। अब वह हर तरफ से निराश और मायूस होकर कोई ऐसा रास्ता खोजता है जो सहज और सरल हो। जैसा हम सब जानते है कि दुख ओर कष्ट से निकलने का सबसे आसान तरीका मानते हैं नशा................................. अब वह मन मां-बाप, यार-दोस्त सबसे निराश हो चुका और सिर्फ नशे में ही अपने जीवन का आनन्द सुख समझने तथा अनुभव करने लगता है। यहाँ कई लोग अपने को उस अकेलेपन ओर मायूसी से बचाने के लिये लड़ाई झगड़ा, हिंसा और अपराध में लिप्त कर लेते है। नशे में डूबा हुआ आदमी अपनी वास्तविक स्थिति से गिर जाता है, नशे के सागर या फिर किसी में अपनी तस्वीर देखता हुआ बाकी सारे जहाँ से अलग होकर आत्महत्या में ही आत्मीक सुख और जीवन का आनन्द समझता है और इस संसार में जो भी उसके अपने मां, बाप, भाई, बहन, यार-दोस्त, घर, पैसा, सोहरत सबको अपना नहीं मानता। वह बस अकेला है। यह जग दुश्मन है। यहां इस स्थिति पर आकर वह दुखी मन हत्या भी कर सकता है, बलात्कार औरर आत्महत्या भी। यह भेड़चाल नही है और कोई किसी के बहकावे में आकर भी आत्महत्या नहीं करता। अर्जुन भी यही कह रहा था कि हे कृष्ण! अगर ये सब ही मर गये तो मैं किसके लिये राज्य करूंगा। मेरा मरना भी कल्याण का होगा। जब मेरा परिवार नहीं रहेगा तो मैं जीकर क्या करूंगा। भगवान जानते थे कि ऐसी परिस्थति होगी भविष्य में तो पहले ही इससे बचने के लिये वह रास्ता इस दुनिया को दिया जो हमें इन सभी बीमारियों से मुक्ति दे सकती है वह है श्री मदभगवदगीता!
शिवा तोमर 09210650915

रविवार, 19 जुलाई 2009

मां की ममता


मां .................मां शब्द्ध में ही कितना प्रेम, रस, करूणा और ममता सी झलकती है ! कितना भी व्याकुल हो कितना भी दुखी हो व्यक्ति, एक बार आंख बंद करके लम्बा सांस लो और मां बोले तो देखो कितना अच्छा लगता है कितना हल्का से होता है मन.....
यही कारण है जब भी कोई ज्यादा दुख आता है तो मुंह से अनायास ही निकलता है
मां.........................................
किसी के समक्ष भी यह एक अक्षर लिखा आ जाये तो आंखो के सामने वही मां के दृष्य घुमने लगते हैं ! कितना दुख उठाती है ! कितना कष्ट सहती है ! खुद रातों का जागकर बच्चों की नींद की चिंता करती है !
एक बार बहुत दिनों की बात हो गयी जब में 7 या 8 साल का था ! बहुत बीमार पङ गया ! डाक्टर दवाई दे रहे थे, लेकिन पता नही क्यों ?? कुछ आराम नही लग रहा था ! रात को तेज वुखार और मैं रोता जा रहा था ! पिताजी भी चुप कराने में लगे थे लेकिन
उन्होने सोचा की कहीं ऊपरी हवा का कोई चक्कर तो नही है ! किसी से झाङा फुंकी कराकर भी लाये लेकिन कोई आराम नही !
पिताजी गुस्से में कहने लगे, इसने सारे घर को सिर पर उठा रखा है इसके कारण सारा घर परेशान है उठाकर बहार फैंक दो ! यह होते ही क्यों नही मर गया था ??
यह पिछले जन्म का कोई हमारा दुष्मन है ! जो हम सबकी नींद उङा दी है !
गुस्से में ना जाने क्या क्या कह रहे थे ????
लेकिन मेरी मम्मी मुझे गोद में छाती से लगाकर रोये जा रही थी ! आज भी मुझे वह पल ऐसे याद है जैसे कल ही हुआ हो !
पिताजी तो दुसरी जगह जाकर सो गये ! लेकिन मम्मी रात भर मेरे सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रखती रही ! सारी रात जागकर मुझे सुलाने की कोशीश करती रही !
खुद कुछ नही खाया मुझे चाय में रोटी भीगोकर खिलायी !
आज में याद करता हुं उस बात को तो आंखे आंसुओं से भर आती हैं !
बुखार तेज था जो थोङा सा खाया वो ही उल्टा आ गया!
उल्टी आयी तो मम्मी के पास कोई कपङा नही था, अपनी साङी के आंचल से ही मेरा मुंह पोंछ दिया !
पांच रूपये मेरे ऊपर से ऊतारकर मंदिर में रखे, और भगवान से कहा की मेरे बेटे की रक्षा करो प्रभु ! अपने सुख की अपने आराम की अपनी नींद की चिंता नही की चिंता की तो अपने बेटे की बस...............
यह तो मैं अपनी बात रहा हुं ऐसा नही है कि मेरी ही मां ने यह सब किया है ! हर मां ऐसे ही करती है अपने बच्चे की खातिर सब कुछ त्याग देती है !
एक हमारे इधर कहावत है बनी की बहन बिगङी की मां .....
दोस्तों जितने भी रिस्ते नाते हैं, जब भी बुरा समय आता है, सब भुल जाते हैं ! लेकिन मां तो उसका बच्चा चाहे कैसी भी हालात में हो उसे प्यार ही करती है ! उसकी लम्बी उम्र की दुआ ही मांगती है ! उसका कल्याण चाहती है !
इस दुनिया में हमारा कुछ भी वजुद नही है ! हमें इस धरती पर लाने वाली मां ही है !हम किसी को 100 रूपये दे देते हैं तो कितनी बार एहसान जता देते हैं ! और मां हमें अपने रक्त से सिंचकर ही बङा करती है ! जब तक बच्चा गर्भ में रहता है मां अपने सारे स्वाद छोङ देती है वो ही खाती है जो बच्चे के लिए अच्छा हो चलने फिरने के लिए भी लाचार हो जाती है कितना कष्ट कितनी पीङा सहती है ! मैं किसी एक की व्यक्ति की बात नही कर रहा ! सभी के लिए कह रहा हुं ! अगर हम लोग अपने शरीर की खाल भी बनवा कर मां की जुती बनवां दे तो भी हम मां के कर्ज से मुक्त नही हो सकते !
बङा दुख होता है मुझे ! बहुत रोना आता है ! जब देखता हुं की आजकल के बच्चे मां बाप को किस तरह दुखी करते हैं ! यहां तक की मार भी देते हैं ! घर से निकाल देते हैं ! अभी की घटना है ! एक लङके ने अपनी विधवा मां को मर्त घोषित करके घर से निकाल दिया वो बेचारी दर दर की ठोकरें खा रही हैं !
अरे नादान लोभ भ्रष्ट मानव चार पांच बच्चों को अपने हाथों से निवाला खिला खिलाकर पाल पोसकर बङा कर देती है मां ! तो क्या हम बेटे इस लायक भी नहीं हैं की मां को अपने हाथ से निवाले की खिलाने की बात नही कर रहा प्रेम से दो वक्त का खाना दे सके उसकी खैर खबर ले सकें !
मां तो मरते दम तक अपने बच्चे की जान की रक्षा करती है ! उसकी सलामती चाहती है ! थोङे दिनों पहले की बात है ! एक घर में आग लग गयी थी ! पुरा परिवार अंदर था ! आग ने सबको इतनी बुरी तरह से सबको अपनी चपेट में ले लिया की कोई भी बहार ना जा सका ! सब अंदर ही जलने लगे ! तो मां की गोद में उसका दो एक साल का बेटा था ! मां ने अपनी जान की परवाह नही की, और अपने लाल की जान बचाने के लिए खिङकी से बहार फैंक दिया था !
हर मां अपने बच्चे को इतना ही प्यार करती है ! अपनी जान दे सकती है ! स्वयं कष्ट उठा लेगी यातनाएं सह लेगी ! लेकिन कभी भी ये नही चाहती की उसका बच्चा दुखी हो बैचेन हो ! दोस्तों मेरा आपसे बस इतना अनुरोध है, की जिसने इतने कष्ट उठाकर हमें जवान किया इस लायक बनाया कि अपने पैरो पर चल सके ! सबको याद होगा की बच्चा कितनी बार गिरता है ! मां भागकर ये भी नही देखती की सिर से पल्लु गिर गया या चुल्हे पर रोटी जल रही है ! उसको कुछ नही दिखाई देता बस अपने बच्चे की चीख सुनकर पागल हो जाती है ! क्या कभी उस मां ने इस बात की कल्पना की होगी की आज जिसके थोङे से रोने पर तेरे आंसु बह जाते हैं वो तेरे लिए क्या करेंगे मां तो ऐसी होती है !
कितनी भी तपती धुंप हो
या हों लु के थपेङे ……..
अपने आंचल में छुपा लेती है
एक ममता भरा चुंबन देती गाल पर
सारी पीङा हर लेती है............
एक ना आंसु बहे मेरे लाल का
उससे पहले ही आंसु बहा लेती है
हाथ जोङकर प्रार्थना करता हुं, की कभी भी मां को नही भुलना ! अरे नादान दोस्तों कृष्ण भगवान से बङे तो नही हैं हम लोग ! एक बार यसोदा मैया उनसे थोङी नाराज हो गयी थी तो भगवान के भी आंसु निकल आये थे ! लेकिन हम कितने कठोर हो गये है ! की अपनी मां के आंसुओं को भी देखकर नही पिंघलते ! जिस बेटे की मां खुश नही होती उसे नरक में भी जगह नही मिलती !

होते हैं बदनशीब जो भुल जाते हैं
उसे
जिसने खुद कष्ट उठाये
पीङा सही रात भर जागती रही
एक आवाज सुनकर अपने लाल की
नींद उङ जाती थी
शरद रात गीला बिस्तर
लेकिन बच्चे को सुखे में सुलाती थी
जीवन में मिल जाती है हर चीज
बस मां नही मिल पाती है

दोस्तों मैं लिख तो रहा हुं ! लेकिन क्या लिखुं मां की खुबियां मुझे तो कुछ समझ नही आता ! मैं तो भगवान से एक ही हुआ करता हुं की चाहे मुझे कैसी भी हालात में रखो बस आप और मेरी मां का प्रेम मिलता रहे ! आज भी मुझे वही याद रहता है जब खेत में गरमीं की तेज चिलचिलाती धुंप और मम्मी पिताजी खेत में काम करते थे ! और आते समय जब गरमीं और धुंप से मैं व्याकुल हो जाता था ! तो मम्मीजी मेरे सिर पर अपनी साङी का पल्लु ढक देती थी ! उस आंचल में ना कोई पंखा होता ना कोई कुलर फिर भी चिलचिलाती धुंप और गरमीं से कितनी राहत मिलती थी !
आज मेरे पास भगवान के दिया सब कुछ है बस वह आंचल सिर पर नही है ! यही कारण है कि थोङी सी परेशानी में व्याकुल हो जाता हुं बैचेन हो जाता हुं !
जब कभी अब भी घर पर जाता हुं, तो मां स्नेह प्रेम और ममता से सिर पर हाथ रखती है तो ऐसा लगता है जैसे सारे जहां की खुशीयां मेरे ही पास हैं !
सारी दुनिया में भागता रहा
ढुंढता रहा उस आंचल की छांव को
लेकिन
नही मिल सका
नही मिल सका
नही मिल सका
लिख रहा हुं
रो रहा हुं
उस आंचल के पाने को
लेना पङेगा नया जन्म
जय श्री कृष्णा
शिवा तोमर 09210650915



गुरुवार, 16 जुलाई 2009

मां का आंचल





तपती गर्मी
चिचिलाती धुंप
लु के थपेङे
बारिश की फुहार
तुफान की मार
कभी कोहरा तो
कभी शीत लहर
क्या करूं कहां जाऊं
समझ नही आता बहुत हुं बैचेन
भागता रहता हुं बचता रहता हुं,
लेकिन दिल को नही है चैन ....
हर समय रहता हुं भयभीत
अनजाना डर सताता है.........
भागता रहता हुं हर क्षण
मन बहुत घबराता है....
कितना टुटा कितना बिखरा
बिखरता ही गया..........
रोया बहुत बिलबिलाया
कहीं ना मिला बसेरा..
कभी अपनों ने मारा
कभी गैरों ने लुटा
कभी खुद गिर गया
तो कभी समय ने पीटा
विपत्तियां आती रही
अलगाव होते रहे
अपने सब बिछुङते गये
याद करता हुं उस पल को
जब
करूणा, ममता, स्नेह और
प्रेम का छाता
मां का आंचल
मेरे सिर पर होता था
जब से छुटा है वो आंचल
भय
असुरक्षा
व्याकुलता
अशांति
पीङा
दुख
और आंसु
और कुछ नही मिला जीवन में..
होकर बच्चा बैचेन जब भी बिलबिलाता है
सुन आवाज दिल के टुकङे की
मां का दिल भर आता है
कितनी भी तपती धुंप हो
या हों लु के थपेङे
अपने आंचल में छुपा लेती है
एक ममता भरा चुंबन देती गाल पर
सारी पीङा हर लेती है............
एक ना आंसु बहे मेरे लाल का
उससे पहले ही आंसु बहा लेती है
सारी दुनिया में भागता रहा
ढुंढता रहा उस आंचल की छांव को
लेकिन
नही मिल सका
नही मिल सका
नही मिल सका
लिख रहा हुं
रो रहा हुं
उस आंचल के पाने को
लेना पङेगा नया जन्म
होते हैं बदनशीब जो भुल जाते हैं
उसे
जिसने खुद कष्ट उठाये
पीङा सही रात भर जागती रही
एक आवाज सुनकर अपने लाल की
नींद उङ जाती थी
शरद रात गीला बिस्तर
लेकिन बच्चे को सुखे में सुलाती थी
जीवन में मिल जाती है हर चीज
बस मां और मां का आंचल नही मिल पाता ही
जय श्री कृष्णा शिवा तोमर- 09210650915